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#Maghnandi12ThCentury
जैन साहित्य में माघनन्दि नामके तेरह आचार्योका उल्लेस्त्र प्राप्त होता है । १. एक आचार्य कुन्दकुन्दके आम्नायमें कुलभूषणके शिष्य माधनन्दिका उल्लेख आता है। यह गुरू-शिष्यपरम्परा निम्न प्रकार है
कुलभूषण
|
माघनन्दि
|
शुभचन्द्र त्रैविद्य
|
चारुकीर्ती पण्डित
|
माघनन्दिव्रती
|
अभयचन्द्र
|
बालचन्द्र पण्डित
|
रामचन्द्र
२. दूसरे माधनन्दिवती चास्कीति पण्डितके शिष्य हैं। ३. तीसरे माघ
नन्दि कोल्हापुरीय हैं जो कुलचन्द्रदेवके शिष्य थे। इनकी गुरु-परम्परा इस प्रकार है
गोल्लाचार्य
|
त्रैकाल्ययोगी
|
अविद्धकर्ण पद्मनन्दि (कौमारदेव)
|
कुलभूषण प्रभाचन्द्र
|
कुलचन्द्रदेव
|
माघनन्दि मुनि (कोल्हापुरीय)
|
गण्डविमुक्त देव
|
भानुकीर्ति देवकीर्ति (स्वर्ग०१०८५)
४. तुर्ण माघानि मू.प. सोयगाः कुन्दकुन्दान्वयके हैं। इस आम्नायमें देवेन्द्र सिद्धान्तदेवके पश्चात् चतुर्मुखदेवका द्वितीय नाम वृषभ नन्द्याचार्य दिया है। चतुर्मुखदेवके शिष्यों में महेन्द्रचन्द्र पण्डितदेवका नाम प्रसिद्ध है । माघनन्दिके शिष्योंमें त्रिरत्ननन्दिका नाम अधिक प्रसिद्ध है । श्रवण बेलगोलाके ५५वें अभिलेखमें चतुर्मुखदेवके ४ शिष्योंके नाम आये हैं। इन्हीं शिष्योंमें एक माधनन्दि भी हैं । ५. पंचम माघनन्दि गुप्तिगुप्तके शिष्य हैं । इनकी गुरुपरम्परामें भद्रबाहु के शिष्य गुप्तिगुप्त, गुप्तिगुप्तके शिष्य माधनन्दि, माघनन्दिके शिष्य जिनचन्द्र और जिनचन्द्रके शिष्य कुन्दकुन्द ताये गये हैं। ये माघनन्दि श्रुतज्ञानियों में परिगणित हैं। ६. छठे माधनन्दि नयकीसिके शिष्य हैं। इनका उल्लेख श्रवणबेलगोलाके अभिलेखसंख्या ४२, १२४ और १२८में माया है। बताया है
"गाम्भीर्य्य मकराकरो वितरणे कल्पद्रुमस्तेजसि
प्रोच्चण्ड-बुमणिः कलास्वपि शशी धैर्ये पुनमन्दरः ।
सर्बोनी-परिपूर्ण-निर्मल-यशो-लक्ष्मी - मनोरम्बनो
भास्यस्यां भुवि माघनन्दिमुनिपो भट्टारकासरः ।।"
१. जैन शिलालेखसंग्रह प्रथम भाग, अभिलेखसंख्या ४२, पद्यसंस्था ३६, पृ. ४० ।
इस पद्य में माघनन्दिको समद्रके समान गम्भीर, कल्पवृक्षके समान दानशील, सूर्यके समान तेजस्वी, चन्द्रमाके समान कलाचान, मन्दराचल के समान धर्यशाल और समस्त पृथ्वीमें निर्मल यशस्वी प्रकट किया गया है। ७. सप्तम माघ नन्दि श्रीधरके शिष्य हैं। श्रवणबेलगोलाके ४२वें अभिलेख में बताया है कि ये माधन्दि सिद्धान्त चक्रेश्वर कहलाते थे। ८. अष्टम माधनन्दि मुल संघ देशीय गण पुस्तकगच्छ कुन्दकुन्दान्वयके हैं। इनका निर्देश निम्नलिखित अभिलेख में
आया है
‘स्वस्ति श्रीमूलसंधदेशियगण-पोस्तकगच्छद' कोण्डकुन्दान्वय कोल्लापुरद सावन्तन बसदिय प्रतिबद्धद श्री माघनन्दि-सिद्धान्त-देवर शिष्यरु शुभचन्द्र विद्य-देवर शिष्याप्प सागरणन्दि-सिद्धान्तदेवरिगे वसुधेक-बान्धव श्री करणद रेचिमय्यदण्डनायकर शान्तिनाथ-देवर प्रतिष्ठेयं माडिधारा पूचक कोट्टर।" ६. नवम माधर्नान्द योगीन्द्र हैं। इन्होंने शास्त्रसारसमुच्चय नामक अन्धको रचना की है । इस ग्रन्थ के अन्त में एक पद्य अंकित है, जिसमें माधनन्दि योगीन्द्र को सिद्धान्ताम्बोधिचन्द्रमा' कहा गया है....
श्रीमाघनन्दियोगीन्द्रः सिद्धान्ताम्बोधिचन्द्रमाः ।
अचीकरविचित्रार्थ शास्त्रसारसमुच्चयम् ।।
कर्णाटककनिरितेके अनुसार एक मापनन्दिका समय ई० सन् १२६७ है और उन्होंने इस ग्रन्थपर एक कन्नड़-टीका लिखी है तथा ये हो माधनन्दि श्रावकाचारके रचयिता भी हैं । इससे अवगत होता है कि शास्त्रसारसमुच्चय के कर्ता ई० सन् १९६० के पहले हुए हैं ।
'मद्रास ओरियण्टल लाइब्रेरी में प्रतिष्ठाकल्पटिप्पणया जिनसंहिसा नामका एक ग्रन्थ है, जिसके प्रारम्भमें लिखा है
श्रीमाअनन्दिसिद्धान्तचक्रवति तनूभवः ।
कुमुदेन्दुरहं वच्मि प्रतिष्ठाकल्पटिप्पणम् ॥
और अन्त में लिखा है 'इति श्रीमाघनन्दिसिद्धास्तचक्रवर्तितनूभवचतुर्विधपांडित्यचक्रवर्तिश्रीवादि कुमुदचन्द्रमुनीन्द्रविरचिते जिनसंहिताटिप्पणे पूज्यपूजकपूजकाचार्य पूजाफलप्रति पादनं समासम् ।।'
इससे स्पष्ट है कि प्रतिष्ठाकल्पटिप्पणके कर्ता कुमुदचन्द्र माघनन्दि सिद्धान्त चक्रवर्तीके शिष्य थे।
१. जैन शिला लेख संग्रह, अभिलेखसंख्या ४७१ पु०३७५ |
माघनन्दि-श्रावकाचार और शास्त्रसारसमुच्चयके टीकाकार माघनन्दिने 'कर्णाटकविचरिते के अनुसार कुमुदेन्दुको अपना गुरु बत्ताया है। सम्भव है किमानसारमपुजगावे मन्दिके शिष्य कुमुदचन्द्र ही भावकाचारके रचयिताके गुरु हों । श्री प्रेमीजीका यह अनुमान एता प्रतीत होता है कि दादा और पौत्रके नाम समान हो सकते हैं। अतएव शास्त्रसारसमुच्चयके कर्ताका समय ई० सन् को १२वीं शताब्दीका अन्तिम भाग है ।
यह ग्रन्थ चार अध्यायोंमें विभक्त है । प्रथम अध्याघमें तीन काल, दश कल्प वृक्ष, चतुर्दश कुलकर, षोडश भावना, चतुर्विशति तार्थंकर, ३४ अतिशय, पञ्चमहाकल्याण, चार घात्तियाकर्म, १८ दोष, ११ समवशरणभूमि, द्वादश गणधर, अष्टमहाप्तातिहाय, अनन्तचतुष्टय, द्वादश चक्रवर्ती, सप्त अग, चतुर्दश रत्न, नवनिधि, दशांग भोग, नव वासुदेव, नब नारद और एकादश रुद्रोंका नाथन आया है। यह अन्य सूत्रशैलीम लिखा गया है। प्रथम अध्यायम २० सूत्र हैं।
द्वितीय अध्यायमें ४५ सूत्र हैं | तीन लोक, सात नरक, ४९ पटल, इन्द्रक, प्रकीर्णक और घेणीबद्ध बिल, चार प्रकारके दुःख, जम्बरीष, लवणसमुद्रादि द्वीप और समुद्र, मनुष्यलोक, ९६ कुभोगभूमि, पञ्चमन्दराचल, जम्बुक्ष, शाल्मलीवृक्ष, शत सरोवर, सहस्र कनकाचल, शतवक्षारगिरि, पंष्टिविभंग नदी, भोगभूमि, भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक देचोंका कथन
आया है।
तृतीय अध्यायमें ६६ सूत्र हैं। इसमें पञ्च लब्धि, तीन करण सम्यक्त्व के भेद-प्रभेद, अष्ट अंग, अष्टगुण, पञ्च अतिचार, ११ निलय, सा व्यसन, तीन शल्य, आठ मूलगुण, पञ्च अणुव्रत, तीन गुणवत्त, चार शिक्षाऋत, दैनिक षट् कर्म, दश विध पूजा, चार प्रकारके दान, १२ अनुम्नेशा, १० धर्म, २८ मूलगुण, पाँच प्रकारके स्वाध्याय, चार प्रकारके ध्यान आदि वर्णित है।
चतुर्थ अध्याय ६५ सूत्र हैं 1 इसमें छः द्रव्य, पाँच अस्तिकाय, सप्त तत्त्व, नवं पदार्थ, दो प्रकारके प्रमाण, पाँच प्रकार के ज्ञान, तीन कुजान, मतिज्ञानके ३३६ मेद, श्रुतज्ञानके भेद-प्रभेद, नव नय सप्त भंग, पाँच भाव, गुणस्थान, जीव समास, प्राण, संज्ञा, लेश्या, अष्ट काम, चार प्रकारके बन्न, कर्मोकी मल उत्तर प्रकृतियाँ और सिद्धोंके अष्टगुण प्रतिपादित हैं । छोटा-सा ग्रन्थ होनेपर भी सिद्धान्त, तत्त्वज्ञान और आचारकी जानकारी प्रास करने के लिए उपयोगी है।
गुरु | आचार्य श्री कुमुदेंदू |
शिष्य | आचार्य श्री माघनन्दी |
शिष्य | आचार्य श्री कुमुद्चंद्र |
स्वतन्त्र-रचना-प्रतिभा के साथ टीका, भाष्य एवं विवृत्ति लिखनेकी क्षमता भी प्रबुद्धाचायोंमें थी । श्रुतधराचार्य और सारस्वताचार्योंने जो विषय-वस्तु प्रस्तुत की थी उसीको प्रकारान्तरसे उपस्थित करनेका कार्य प्रबुद्धाचार्योने किया है । यह सत्य है कि इन आचार्योंने अपनी मौलिक प्रतिभा द्वारा परम्परासे प्राप्त तथ्योंको नवीन रूपमें भी प्रस्तुत किया है। अतः विषयके प्रस्तुतीकरणकी दृष्टिसे इन वाचायोका अपना महत्त्व है।
प्रबुद्धाचार्यों में कई आचार्य इतने प्रतिभाशाली हैं कि उन्हें सारस्वताचार्योकी श्रेणी में परिगणित किया जा सकता है। किन्तु विषय-निरूपणको सूक्ष्म क्षमता प्रबुद्धाचार्योंमें वैसी नहीं है, जैसी सारस्वताचार्यों में पायी जाती है। यहाँ इन प्रबुद्धाचार्योंके व्यक्तित्व और कृति तत्वका विवेचन प्रस्तुत है।
Book : Tirthankar Mahavir Aur Unki Acharya Parampara3
#Maghnandi12ThCentury
Book : Tirthankar Mahavir Aur Unki Acharya Parampara3
आचार्य श्री माघनंदी 12वीं शताब्दी
संतोष खुले जी ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 17-May- 2022
दिगजैनविकी आभारी है
बालिकाई शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
नेमिनाथ जी शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
परियोजना के लिए पुस्तकों को संदर्भित करने के लिए।
लेखक:- पंडित श्री नेमीचंद्र शास्त्री-ज्योतिषाचार्य
आचार्य शांति सागर छानी ग्रंथ माला
Santosh Khule Created Wiki Page Maharaj ji On Date 17-May- 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
जैन साहित्य में माघनन्दि नामके तेरह आचार्योका उल्लेस्त्र प्राप्त होता है । १. एक आचार्य कुन्दकुन्दके आम्नायमें कुलभूषणके शिष्य माधनन्दिका उल्लेख आता है। यह गुरू-शिष्यपरम्परा निम्न प्रकार है
कुलभूषण
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माघनन्दि
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शुभचन्द्र त्रैविद्य
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चारुकीर्ती पण्डित
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माघनन्दिव्रती
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अभयचन्द्र
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बालचन्द्र पण्डित
|
रामचन्द्र
२. दूसरे माधनन्दिवती चास्कीति पण्डितके शिष्य हैं। ३. तीसरे माघ
नन्दि कोल्हापुरीय हैं जो कुलचन्द्रदेवके शिष्य थे। इनकी गुरु-परम्परा इस प्रकार है
गोल्लाचार्य
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त्रैकाल्ययोगी
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अविद्धकर्ण पद्मनन्दि (कौमारदेव)
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कुलभूषण प्रभाचन्द्र
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कुलचन्द्रदेव
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माघनन्दि मुनि (कोल्हापुरीय)
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गण्डविमुक्त देव
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भानुकीर्ति देवकीर्ति (स्वर्ग०१०८५)
४. तुर्ण माघानि मू.प. सोयगाः कुन्दकुन्दान्वयके हैं। इस आम्नायमें देवेन्द्र सिद्धान्तदेवके पश्चात् चतुर्मुखदेवका द्वितीय नाम वृषभ नन्द्याचार्य दिया है। चतुर्मुखदेवके शिष्यों में महेन्द्रचन्द्र पण्डितदेवका नाम प्रसिद्ध है । माघनन्दिके शिष्योंमें त्रिरत्ननन्दिका नाम अधिक प्रसिद्ध है । श्रवण बेलगोलाके ५५वें अभिलेखमें चतुर्मुखदेवके ४ शिष्योंके नाम आये हैं। इन्हीं शिष्योंमें एक माधनन्दि भी हैं । ५. पंचम माघनन्दि गुप्तिगुप्तके शिष्य हैं । इनकी गुरुपरम्परामें भद्रबाहु के शिष्य गुप्तिगुप्त, गुप्तिगुप्तके शिष्य माधनन्दि, माघनन्दिके शिष्य जिनचन्द्र और जिनचन्द्रके शिष्य कुन्दकुन्द ताये गये हैं। ये माघनन्दि श्रुतज्ञानियों में परिगणित हैं। ६. छठे माधनन्दि नयकीसिके शिष्य हैं। इनका उल्लेख श्रवणबेलगोलाके अभिलेखसंख्या ४२, १२४ और १२८में माया है। बताया है
"गाम्भीर्य्य मकराकरो वितरणे कल्पद्रुमस्तेजसि
प्रोच्चण्ड-बुमणिः कलास्वपि शशी धैर्ये पुनमन्दरः ।
सर्बोनी-परिपूर्ण-निर्मल-यशो-लक्ष्मी - मनोरम्बनो
भास्यस्यां भुवि माघनन्दिमुनिपो भट्टारकासरः ।।"
१. जैन शिलालेखसंग्रह प्रथम भाग, अभिलेखसंख्या ४२, पद्यसंस्था ३६, पृ. ४० ।
इस पद्य में माघनन्दिको समद्रके समान गम्भीर, कल्पवृक्षके समान दानशील, सूर्यके समान तेजस्वी, चन्द्रमाके समान कलाचान, मन्दराचल के समान धर्यशाल और समस्त पृथ्वीमें निर्मल यशस्वी प्रकट किया गया है। ७. सप्तम माघ नन्दि श्रीधरके शिष्य हैं। श्रवणबेलगोलाके ४२वें अभिलेख में बताया है कि ये माधन्दि सिद्धान्त चक्रेश्वर कहलाते थे। ८. अष्टम माधनन्दि मुल संघ देशीय गण पुस्तकगच्छ कुन्दकुन्दान्वयके हैं। इनका निर्देश निम्नलिखित अभिलेख में
आया है
‘स्वस्ति श्रीमूलसंधदेशियगण-पोस्तकगच्छद' कोण्डकुन्दान्वय कोल्लापुरद सावन्तन बसदिय प्रतिबद्धद श्री माघनन्दि-सिद्धान्त-देवर शिष्यरु शुभचन्द्र विद्य-देवर शिष्याप्प सागरणन्दि-सिद्धान्तदेवरिगे वसुधेक-बान्धव श्री करणद रेचिमय्यदण्डनायकर शान्तिनाथ-देवर प्रतिष्ठेयं माडिधारा पूचक कोट्टर।" ६. नवम माधर्नान्द योगीन्द्र हैं। इन्होंने शास्त्रसारसमुच्चय नामक अन्धको रचना की है । इस ग्रन्थ के अन्त में एक पद्य अंकित है, जिसमें माधनन्दि योगीन्द्र को सिद्धान्ताम्बोधिचन्द्रमा' कहा गया है....
श्रीमाघनन्दियोगीन्द्रः सिद्धान्ताम्बोधिचन्द्रमाः ।
अचीकरविचित्रार्थ शास्त्रसारसमुच्चयम् ।।
कर्णाटककनिरितेके अनुसार एक मापनन्दिका समय ई० सन् १२६७ है और उन्होंने इस ग्रन्थपर एक कन्नड़-टीका लिखी है तथा ये हो माधनन्दि श्रावकाचारके रचयिता भी हैं । इससे अवगत होता है कि शास्त्रसारसमुच्चय के कर्ता ई० सन् १९६० के पहले हुए हैं ।
'मद्रास ओरियण्टल लाइब्रेरी में प्रतिष्ठाकल्पटिप्पणया जिनसंहिसा नामका एक ग्रन्थ है, जिसके प्रारम्भमें लिखा है
श्रीमाअनन्दिसिद्धान्तचक्रवति तनूभवः ।
कुमुदेन्दुरहं वच्मि प्रतिष्ठाकल्पटिप्पणम् ॥
और अन्त में लिखा है 'इति श्रीमाघनन्दिसिद्धास्तचक्रवर्तितनूभवचतुर्विधपांडित्यचक्रवर्तिश्रीवादि कुमुदचन्द्रमुनीन्द्रविरचिते जिनसंहिताटिप्पणे पूज्यपूजकपूजकाचार्य पूजाफलप्रति पादनं समासम् ।।'
इससे स्पष्ट है कि प्रतिष्ठाकल्पटिप्पणके कर्ता कुमुदचन्द्र माघनन्दि सिद्धान्त चक्रवर्तीके शिष्य थे।
१. जैन शिला लेख संग्रह, अभिलेखसंख्या ४७१ पु०३७५ |
माघनन्दि-श्रावकाचार और शास्त्रसारसमुच्चयके टीकाकार माघनन्दिने 'कर्णाटकविचरिते के अनुसार कुमुदेन्दुको अपना गुरु बत्ताया है। सम्भव है किमानसारमपुजगावे मन्दिके शिष्य कुमुदचन्द्र ही भावकाचारके रचयिताके गुरु हों । श्री प्रेमीजीका यह अनुमान एता प्रतीत होता है कि दादा और पौत्रके नाम समान हो सकते हैं। अतएव शास्त्रसारसमुच्चयके कर्ताका समय ई० सन् को १२वीं शताब्दीका अन्तिम भाग है ।
यह ग्रन्थ चार अध्यायोंमें विभक्त है । प्रथम अध्याघमें तीन काल, दश कल्प वृक्ष, चतुर्दश कुलकर, षोडश भावना, चतुर्विशति तार्थंकर, ३४ अतिशय, पञ्चमहाकल्याण, चार घात्तियाकर्म, १८ दोष, ११ समवशरणभूमि, द्वादश गणधर, अष्टमहाप्तातिहाय, अनन्तचतुष्टय, द्वादश चक्रवर्ती, सप्त अग, चतुर्दश रत्न, नवनिधि, दशांग भोग, नव वासुदेव, नब नारद और एकादश रुद्रोंका नाथन आया है। यह अन्य सूत्रशैलीम लिखा गया है। प्रथम अध्यायम २० सूत्र हैं।
द्वितीय अध्यायमें ४५ सूत्र हैं | तीन लोक, सात नरक, ४९ पटल, इन्द्रक, प्रकीर्णक और घेणीबद्ध बिल, चार प्रकारके दुःख, जम्बरीष, लवणसमुद्रादि द्वीप और समुद्र, मनुष्यलोक, ९६ कुभोगभूमि, पञ्चमन्दराचल, जम्बुक्ष, शाल्मलीवृक्ष, शत सरोवर, सहस्र कनकाचल, शतवक्षारगिरि, पंष्टिविभंग नदी, भोगभूमि, भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक देचोंका कथन
आया है।
तृतीय अध्यायमें ६६ सूत्र हैं। इसमें पञ्च लब्धि, तीन करण सम्यक्त्व के भेद-प्रभेद, अष्ट अंग, अष्टगुण, पञ्च अतिचार, ११ निलय, सा व्यसन, तीन शल्य, आठ मूलगुण, पञ्च अणुव्रत, तीन गुणवत्त, चार शिक्षाऋत, दैनिक षट् कर्म, दश विध पूजा, चार प्रकारके दान, १२ अनुम्नेशा, १० धर्म, २८ मूलगुण, पाँच प्रकारके स्वाध्याय, चार प्रकारके ध्यान आदि वर्णित है।
चतुर्थ अध्याय ६५ सूत्र हैं 1 इसमें छः द्रव्य, पाँच अस्तिकाय, सप्त तत्त्व, नवं पदार्थ, दो प्रकारके प्रमाण, पाँच प्रकार के ज्ञान, तीन कुजान, मतिज्ञानके ३३६ मेद, श्रुतज्ञानके भेद-प्रभेद, नव नय सप्त भंग, पाँच भाव, गुणस्थान, जीव समास, प्राण, संज्ञा, लेश्या, अष्ट काम, चार प्रकारके बन्न, कर्मोकी मल उत्तर प्रकृतियाँ और सिद्धोंके अष्टगुण प्रतिपादित हैं । छोटा-सा ग्रन्थ होनेपर भी सिद्धान्त, तत्त्वज्ञान और आचारकी जानकारी प्रास करने के लिए उपयोगी है।
गुरु | आचार्य श्री कुमुदेंदू |
शिष्य | आचार्य श्री माघनन्दी |
शिष्य | आचार्य श्री कुमुद्चंद्र |
स्वतन्त्र-रचना-प्रतिभा के साथ टीका, भाष्य एवं विवृत्ति लिखनेकी क्षमता भी प्रबुद्धाचायोंमें थी । श्रुतधराचार्य और सारस्वताचार्योंने जो विषय-वस्तु प्रस्तुत की थी उसीको प्रकारान्तरसे उपस्थित करनेका कार्य प्रबुद्धाचार्योने किया है । यह सत्य है कि इन आचार्योंने अपनी मौलिक प्रतिभा द्वारा परम्परासे प्राप्त तथ्योंको नवीन रूपमें भी प्रस्तुत किया है। अतः विषयके प्रस्तुतीकरणकी दृष्टिसे इन वाचायोका अपना महत्त्व है।
प्रबुद्धाचार्यों में कई आचार्य इतने प्रतिभाशाली हैं कि उन्हें सारस्वताचार्योकी श्रेणी में परिगणित किया जा सकता है। किन्तु विषय-निरूपणको सूक्ष्म क्षमता प्रबुद्धाचार्योंमें वैसी नहीं है, जैसी सारस्वताचार्यों में पायी जाती है। यहाँ इन प्रबुद्धाचार्योंके व्यक्तित्व और कृति तत्वका विवेचन प्रस्तुत है।
Aacharya Shri Maghnandi 12 Th Century
Santosh Khule Created Wiki Page Maharaj ji On Date 17-May- 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
#Maghnandi12ThCentury
15000
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Maghnandi12ThCentury
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