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#Mahasen2nd9ThCentury
जिनसेन प्रथमने अपने हरिवंशपुराणमें सुलोचनाकथाके रचयिता महासेन का उल्लेख किया है । लिखा है
महासेनस्य मधुरा शीलालङ्कारधारिणी ।
कथा न वणिता केन वनितेव सुलोचना ।।
१. जैनशिलालेख संग्रह, प्रथम भाग, अभिलेखसंख्या ५४, पय ११ ।
२. हरिवंशपुराण, ज्ञानपीठ संस्करण,१।३२ ।
३. वही, १।३३।
अर्थात् माधुर्य गुणसे सहित अलङ्कार और रसयुक्त महाकवि महासेनकी सुलोचनाकथा किसके मनका हरण नहीं करती है । धवल कधिने भी अपभ्रंशके हरिवंशपुराणमें सुलोचनाकथाकी प्रशंसा की है
मणि महसेणु सुलोयणु जेण, पउमचरित मुणि रविसेपेण । कुबलयमालाके रचयिता उद्योसनसूरिने भी महासेनकविकी सुलोचना कथाकी चर्चा की है । यह कथा सम्भवतः प्राकृतमें रही होगी । लिखा है
सण्णिहियजिणवरिंदा धम्मकहाबंदिक्खियरिंदा ।
कहिया जैण सुकहिया सुलोयणा समवसरणं व ॥३९।।
अर्थात् जिसने समवशरण जैसी सुकथिता सुलोचनाकथा लिखी, जिस तरह समवशरणमें जिनेन्द्र स्थित रहते हैं और धर्मकथा सुनकर राजा लोग दीक्षित होते हैं, उसी प्रकार सुलोचनाकथामें भी जिनेन्द्र सन्निहित हैं और उसमें राजाने दीक्षा ले ली है ।
उद्योत्तनसुरिने जिनसेन प्रथमसे ५ वर्ष पूर्व अपने ग्रन्थको रचना की है। अतएव यह निश्चित है कि दोनोंके द्वारा प्रशंसित सुलोचनाकथा एक हो है। महासेनका समय ई० सन्की ८ वीं शताब्दीका उत्तरार्ध या ९वीं शताब्दी का पूर्वार्ध होना चाहिये।
गुरु | |
शिष्य | आचार्य श्री महासेन द्वितीय |
स्वतन्त्र-रचना-प्रतिभा के साथ टीका, भाष्य एवं विवृत्ति लिखनेकी क्षमता भी प्रबुद्धाचायोंमें थी । श्रुतधराचार्य और सारस्वताचार्योंने जो विषय-वस्तु प्रस्तुत की थी उसीको प्रकारान्तरसे उपस्थित करनेका कार्य प्रबुद्धाचार्योने किया है । यह सत्य है कि इन आचार्योंने अपनी मौलिक प्रतिभा द्वारा परम्परासे प्राप्त तथ्योंको नवीन रूपमें भी प्रस्तुत किया है। अतः विषयके प्रस्तुतीकरणकी दृष्टिसे इन वाचायोका अपना महत्त्व है।
प्रबुद्धाचार्यों में कई आचार्य इतने प्रतिभाशाली हैं कि उन्हें सारस्वताचार्योकी श्रेणी में परिगणित किया जा सकता है। किन्तु विषय-निरूपणको सूक्ष्म क्षमता प्रबुद्धाचार्योंमें वैसी नहीं है, जैसी सारस्वताचार्यों में पायी जाती है। यहाँ इन प्रबुद्धाचार्योंके व्यक्तित्व और कृति तत्वका विवेचन प्रस्तुत है।
Book : Tirthankar Mahavir Aur Unki Acharya Parampara3
#Mahasen2nd9ThCentury
Book : Tirthankar Mahavir Aur Unki Acharya Parampara3
आचार्य श्री महासेन द्वितीय 9वीं शताब्दी
संतोष खुले जी ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 18-May- 2022
दिगजैनविकी आभारी है
बालिकाई शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
नेमिनाथ जी शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
परियोजना के लिए पुस्तकों को संदर्भित करने के लिए।
लेखक:- पंडित श्री नेमीचंद्र शास्त्री-ज्योतिषाचार्य
आचार्य शांति सागर छानी ग्रंथ माला
Santosh Khule Created Wiki Page Maharaj ji On Date 18-May- 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
जिनसेन प्रथमने अपने हरिवंशपुराणमें सुलोचनाकथाके रचयिता महासेन का उल्लेख किया है । लिखा है
महासेनस्य मधुरा शीलालङ्कारधारिणी ।
कथा न वणिता केन वनितेव सुलोचना ।।
१. जैनशिलालेख संग्रह, प्रथम भाग, अभिलेखसंख्या ५४, पय ११ ।
२. हरिवंशपुराण, ज्ञानपीठ संस्करण,१।३२ ।
३. वही, १।३३।
अर्थात् माधुर्य गुणसे सहित अलङ्कार और रसयुक्त महाकवि महासेनकी सुलोचनाकथा किसके मनका हरण नहीं करती है । धवल कधिने भी अपभ्रंशके हरिवंशपुराणमें सुलोचनाकथाकी प्रशंसा की है
मणि महसेणु सुलोयणु जेण, पउमचरित मुणि रविसेपेण । कुबलयमालाके रचयिता उद्योसनसूरिने भी महासेनकविकी सुलोचना कथाकी चर्चा की है । यह कथा सम्भवतः प्राकृतमें रही होगी । लिखा है
सण्णिहियजिणवरिंदा धम्मकहाबंदिक्खियरिंदा ।
कहिया जैण सुकहिया सुलोयणा समवसरणं व ॥३९।।
अर्थात् जिसने समवशरण जैसी सुकथिता सुलोचनाकथा लिखी, जिस तरह समवशरणमें जिनेन्द्र स्थित रहते हैं और धर्मकथा सुनकर राजा लोग दीक्षित होते हैं, उसी प्रकार सुलोचनाकथामें भी जिनेन्द्र सन्निहित हैं और उसमें राजाने दीक्षा ले ली है ।
उद्योत्तनसुरिने जिनसेन प्रथमसे ५ वर्ष पूर्व अपने ग्रन्थको रचना की है। अतएव यह निश्चित है कि दोनोंके द्वारा प्रशंसित सुलोचनाकथा एक हो है। महासेनका समय ई० सन्की ८ वीं शताब्दीका उत्तरार्ध या ९वीं शताब्दी का पूर्वार्ध होना चाहिये।
गुरु | |
शिष्य | आचार्य श्री महासेन द्वितीय |
स्वतन्त्र-रचना-प्रतिभा के साथ टीका, भाष्य एवं विवृत्ति लिखनेकी क्षमता भी प्रबुद्धाचायोंमें थी । श्रुतधराचार्य और सारस्वताचार्योंने जो विषय-वस्तु प्रस्तुत की थी उसीको प्रकारान्तरसे उपस्थित करनेका कार्य प्रबुद्धाचार्योने किया है । यह सत्य है कि इन आचार्योंने अपनी मौलिक प्रतिभा द्वारा परम्परासे प्राप्त तथ्योंको नवीन रूपमें भी प्रस्तुत किया है। अतः विषयके प्रस्तुतीकरणकी दृष्टिसे इन वाचायोका अपना महत्त्व है।
प्रबुद्धाचार्यों में कई आचार्य इतने प्रतिभाशाली हैं कि उन्हें सारस्वताचार्योकी श्रेणी में परिगणित किया जा सकता है। किन्तु विषय-निरूपणको सूक्ष्म क्षमता प्रबुद्धाचार्योंमें वैसी नहीं है, जैसी सारस्वताचार्यों में पायी जाती है। यहाँ इन प्रबुद्धाचार्योंके व्यक्तित्व और कृति तत्वका विवेचन प्रस्तुत है।
Aacharya Shri Mahasen 2 nd 9 Th Century
Santosh Khule Created Wiki Page Maharaj ji On Date 18-May- 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
#Mahasen2nd9ThCentury
15000
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