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#MahaveeracharyaPrachin
महावीराचार्य
भारतीय गणितके इतिहासमें महावीराचार्यका नाम आदरके साथ लिया जा सकता है। जैन गणितको व्यवस्थित रूप देनेका श्रेय इन्हींको प्राप्त है। .महावीराचार्य की गुरुपरम्परा और जीवनवृत्तके सम्बन्धमें कुछ भी सामग्री उपलब्ध नहीं है। इन्होंने ग्रन्थके आरम्भमें अमोघवर्ष नृपतुंगके सम्बन्धमें प्रशंसात्मक विचार व्यक्त किये हैं। इन विचारोंसे महावीराचार्यके समय पर तो प्रकाश पड़ता है, पर उनके जीवनवृत्तके सम्बन्धमें सामग्री उपलब्ध नहीं हो पाती। महावीराचार्य को इस गणित-ग्रन्थकी पाण्डुलिपियों एवं कन्नड़ और तमिल टीकाओके आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि महावीराचार्य मैसूर प्रान्तके किसी कन्नड़ भाग में हुए होंगे। सुदूर दक्षिणमें गणित-विज्ञानको वृद्धिंगत करनेका उस समय प्रयत्न किया गया, जब उत्तरीय भारतमें ब्रह्मगुप्त और भास्करके समयके बीच श्रीधराचार्यको छोड़कर कोई अन्य प्रकाण्ड गणितज्ञ न हुआ। महावीराचार्यने पूर्ववर्ती गणितज्ञोंके कार्य में पर्याप्त संशोधन और परिवर्तन किये | नवीन प्रश्न दिये, दीर्घवृत्तका क्षेत्रफल निकाला तथा मूलबद्ध तथा द्विघातीय समीकरण आदिके गणितका प्रणयन किया। इन्होंने शून्यके विषयमें भागक्रिया करनेकी प्रणालीका आविष्कार किया। किसी संख्यामें शून्य द्वारा विभाजनके लिये फलोंका निरूपण करते हुए बतलाया कि संख्या शून्य द्वारा विभाजित होनेपर परिवर्तित नहीं होती है। जिस दृष्टिकोणको लेकर यह सिद्धान्त निबद्ध किया है, वह सिद्धान्त स्थूल विभाजन पर आवर्त है। यों तो शून्य द्वारा किसी संख्याको विभाजित करनेपर फल परिमित (Finite) आता है। महावीराचार्य और ब्रह्मगुप्त आदिके प्रश्नों तथा अन्य प्रकरणोंकी भिन्नता के सम्बन्धमें डेविड यू जेन स्मिथका वक्तव्य द्रष्टव्य है।
महावीराचार्य ने अमोघवर्षक सम्बन्धमें छह श्लोक निबद्ध किये हैं। इन पद्योंसे अवगत होता है कि आचार्य अमोघवर्षके आश्रयमें अवश्य रहे हैं। उन्होंने लिखा है-"धन्य हैं वे अमोघवर्ष, जो हमेशा अपने प्रिय पात्रोंके हित-चिन्तन में संलग्न रहते हैं और जिनके द्वारा प्राणी तथा वनस्पति महामारी और दुर्भिक्ष आदिसे मुक्त होकर सुखी हुए हैं। जिन अमोघवर्षक चित्तकी क्रियाएँ अग्निपुज्ज सदृश होकर समस्त पाप-रूपी वैरियोंको भस्ममें परिणत करने में सफल हैं और जिनका क्रोध व्यर्थ नहीं जाता, जिन्होंने समस्त संसारको अपने वशमें कर लिया है और जो किसीके वशमे न रहकर शत्रुओं द्वारा पराजित नहीं हो सके, अपूर्व मकरध्वजकी तरह शोभायमान हैं। जिनका कार्य अपने पराक्रम द्वारा पराभूत राजाओंके चक्रसे होता है और जो न केवल नामसे चक्रिकाभंजन हैं,अपितु वास्तवमें भी चक्रिकाभंजन-जन्म-मरणके नाशक हैं। जो अनेकज्ञान सरिताओंके अधिष्ठाता होकर सच्चरित्रताको व्रजमयी मर्यादा वाले हैं और जो जैनधर्मरूप रत्नको हृदयमें रखते हैं, इसलिये वे यथाख्यातचारित्रके महान सागरके समान सुप्रसिद्ध हुए हैं। एकान्त पक्षको नष्ट कर जो स्याद्वादरूपी न्यायशास्त्रके वादी हुए हैं, ऐसे महाराज नृपतुंगका शासन वृद्धिगत हो ।
उक्त उद्धरणसे ज्ञात है कि यह अमोघवर्ष प्रथम जगत्तुंगदेव गोविन्दतृतीय के पुत्र थे। नृपतुंग, शर्व, सण्ड, अतिशय धवल, वीर नारायण, पृथ्वीवल्लभ, लक्ष्मीवल्लभ, महराजाधिराज, भटार, परम भट्टारक आदि उनकी उपाधियाँ थी । ये बड़े पराक्रमी राजा थे | इन्होंने राष्ट्रकूट वंशकी राज्यलक्ष्मीका उद्धार किया था । शक संवत् ७३५ में जब धवलाकी समाप्ति हुई थी, तब ये राजा थे। शक संवत् ७८२ के ताम्रपत्र से ज्ञात होता है कि इन्होंने स्वयं मान्यखेटमें जैनाचार्य देवेन्द्र को दानं दिया था। यह दानपत्र इनके राज्यके ४२ वे वर्षका है । शक संवत् ७९९ का एक अभिरूख काहिराको गुफाम मिला है, जिसमें इनका और सामन्त कपर्दी द्वितीयका उल्लेख है। इससे स्पष्ट है कि अमोघवर्षका राज्यकाल ईसाकी नवम शताब्दीका पूर्वार्द्ध है। यही समय महावीराचार्यका भी होना चाहिये। महावीराचार्यने गणितसारसंग्रहमें अमोधवर्षको स्यादाद न्यायवादी और यथाव्यख्यातचारित्रका धारक बतलाया है। इससे यह ध्वनित होता है कि गणितसारसंग्रहक रचनाकाल तक उन्होंने राज्य तो नहीं छोड़ा था, पर उनकी वृत्ति युद्धकी ओरसे हट गयी थी और उनका कोप वध्य हो गया था। इस प्रकार महावीराचार्यका समय अमोघवर्षका राज्यकाल है।
महावीराचार्यका प्रामाणिकरूपसे एक 'गणितसारसंग्रह' ही प्राप्त है। यो इनके नामसे 'ज्योतिषपटल' का भी उल्लेख मिलता है, पर यह रचना अभी तक उपलब्ध नहीं है।
गणितसारसंग्रह' में नवअध्याय हैं। प्रथम अध्याय संज्ञाधिकार है। इसमें गणितशास्त्रकी प्रशंसाके. अनन्तर क्षेत्रपरिभाषा, कालपरिभाषा, धान्यपरि भाषा, सुवर्णपरिभाषा, रजतपरिभाषा, लोहपरिभाषा, परिकर्मनामावली, स्थानमान और संख्यासंज्ञा आदिका वर्णन आया है। द्वितीय अधिकार परिकर्म व्यवहार है। इसमें प्रत्युत्पन्न-गुणन, भागहार, वर्ग, वर्गमूल, घन, घनमूल, संकलित और व्युत्कलित गणितका उदाहरणसहित विवेचन आया है । तृतीय अधिकार कलास्वर्ण व्यवहार है। इसमें भिन्न प्रत्युत्पन्न, भिन्न भागहार, भिन्न सम्बन्धी वर्ग, वर्गमूल, घन, घनमूल, भिन्न संकलित, भिन्न व्युत्कलित भागजाति, प्रभागजाति, भागाभागजाति, भागानुबन्ध जाति, भागापबाहजाति, भागमात्रिजातिका गणित उदाहरणसहित वर्णित है। चतुर्थ अधिकार प्रकीर्ण व्यवहार है । इसमें भिन्नोंके विविध प्रश्न वणित हैं। भाग और शेषजाति, मूल जाति , शेषमूलजाति, द्विरग्रशेषमूलजाति, अंशमूलजाति, भाग, संवर्गजाति, ऊनाधिक अंशवगंजाति, मूलमिश्रजाति और भिन्नदृश्यजातिका गणित आया है। पञ्चम अधिकार वैराशिकव्यवहारसंज्ञक है। इसमें अनुक्रम वैराशिक ,व्यस्त त्रैराशिक, व्यस्त पञ्चराशिक, व्यस्त सप्तराशिक, व्यस्त नवराशिक, गतिनिवृत्ति, पञ्च राशिक, सप्त राशिक, नवराशिक, भाण्डप्रतिभाण्ड एवं क्रय विक्रयका गणित वर्णित है। पाठ अधिकार मिथक व्यवहार है। इसमें संक्रमण, विषम-संक्रमण, पञ्चराशिक विधि, वृद्धि विवान, प्रक्षेपक कुट्टीकार, वल्लिका कुट्टीकार, विषम कुट्टीकार, सकलकुट्टीकार, सुवर्णकुट्टोकार विचित्रकुट्टी कार एवं श्रेढीबद्ध संकलित गणितका सोदाहरण निरूपण आया है। अप्तम अधि कार क्षेत्र गणित व्यवहार है। इसमें क्षेत्रफलसम्बन्धी विविध प्रकारके गणितों का कथन आया है। व्यावहारिक गणित सूक्ष्मगणित, जन्य व्यवहार एवं पंशा चिक व्यवहार गणितका उदाहरण सहित निरूपण किया गया है । अष्टम अधि कार खात व्यवहार है। इसमें सूक्ष्म गणित, चितिगणित .और क्रकचिका व्यवहार गणित निबद्ध है। नवम अधिकार छाया व्यवहार संज्ञक है। इसमें छाया सम्बन्धी विभिन्न प्रकारके गणितोंका उदाहरण सहित विवेचन किया गया है।
महावीराचार्यने (अ+ब)3 का आनयन किया है जो न्यूटनके द्विपद श्रेढीको दिशा प्रदान करता है।
(अ+ब)3= अ2 + 3अ2 उ +3ब2 अ + ब3
इस 'गणितसासंग्रह' में गणितकी अनेक विशेषताएँ विद्यमान हैं। ग्रन्थ कारने भाग देनेकी वर्तमान विधिका कथन किया है। इस सुविधाजनक विधि से उभयनिष्ठ गुणन खण्डोंको हटाकर विभाजन किया जाता है। ब्याज निकालने की विधिका निरूपण करते हुए लिखा है
महावीराचर्यने मूलधन, ब्याज, मिश्रधन और समय निकालनेके सम्बन्धमें महत्त्वपूर्ण नियम दिये हैं । मूलधन = स, मिश्रधन = म, समय = ट, व्याज = ई
इस प्रकार गणितसारसंग्रहमें गणित सम्बन्धी अनेक विशेषताएं प्रतिपादित
गुरु | |
शिष्य | आचार्य श्री महावीराचार्या |
स्वतन्त्र-रचना-प्रतिभा के साथ टीका, भाष्य एवं विवृत्ति लिखनेकी क्षमता भी प्रबुद्धाचायोंमें थी । श्रुतधराचार्य और सारस्वताचार्योंने जो विषय-वस्तु प्रस्तुत की थी उसीको प्रकारान्तरसे उपस्थित करनेका कार्य प्रबुद्धाचार्योने किया है । यह सत्य है कि इन आचार्योंने अपनी मौलिक प्रतिभा द्वारा परम्परासे प्राप्त तथ्योंको नवीन रूपमें भी प्रस्तुत किया है। अतः विषयके प्रस्तुतीकरणकी दृष्टिसे इन वाचायोका अपना महत्त्व है।
प्रबुद्धाचार्यों में कई आचार्य इतने प्रतिभाशाली हैं कि उन्हें सारस्वताचार्योकी श्रेणी में परिगणित किया जा सकता है। किन्तु विषय-निरूपणको सूक्ष्म क्षमता प्रबुद्धाचार्योंमें वैसी नहीं है, जैसी सारस्वताचार्यों में पायी जाती है। यहाँ इन प्रबुद्धाचार्योंके व्यक्तित्व और कृति तत्वका विवेचन प्रस्तुत है।
Book : Tirthankar Mahavir Aur Unki Acharya Parampara3
#MahaveeracharyaPrachin
Book : Tirthankar Mahavir Aur Unki Acharya Parampara3
आचार्य श्री महावीराचार्य
संतोष खुले जी ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 9 एप्रिल 2022
दिगजैनविकी आभारी है
बालिकाई शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
नेमिनाथ जी शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
परियोजना के लिए पुस्तकों को संदर्भित करने के लिए।
लेखक:- पंडित श्री नेमीचंद्र शास्त्री-ज्योतिषाचार्य
आचार्य शांति सागर छानी ग्रंथ माला
Santosh Khule Created Wiki Page Maharaj ji On Date 9-April- 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
महावीराचार्य
भारतीय गणितके इतिहासमें महावीराचार्यका नाम आदरके साथ लिया जा सकता है। जैन गणितको व्यवस्थित रूप देनेका श्रेय इन्हींको प्राप्त है। .महावीराचार्य की गुरुपरम्परा और जीवनवृत्तके सम्बन्धमें कुछ भी सामग्री उपलब्ध नहीं है। इन्होंने ग्रन्थके आरम्भमें अमोघवर्ष नृपतुंगके सम्बन्धमें प्रशंसात्मक विचार व्यक्त किये हैं। इन विचारोंसे महावीराचार्यके समय पर तो प्रकाश पड़ता है, पर उनके जीवनवृत्तके सम्बन्धमें सामग्री उपलब्ध नहीं हो पाती। महावीराचार्य को इस गणित-ग्रन्थकी पाण्डुलिपियों एवं कन्नड़ और तमिल टीकाओके आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि महावीराचार्य मैसूर प्रान्तके किसी कन्नड़ भाग में हुए होंगे। सुदूर दक्षिणमें गणित-विज्ञानको वृद्धिंगत करनेका उस समय प्रयत्न किया गया, जब उत्तरीय भारतमें ब्रह्मगुप्त और भास्करके समयके बीच श्रीधराचार्यको छोड़कर कोई अन्य प्रकाण्ड गणितज्ञ न हुआ। महावीराचार्यने पूर्ववर्ती गणितज्ञोंके कार्य में पर्याप्त संशोधन और परिवर्तन किये | नवीन प्रश्न दिये, दीर्घवृत्तका क्षेत्रफल निकाला तथा मूलबद्ध तथा द्विघातीय समीकरण आदिके गणितका प्रणयन किया। इन्होंने शून्यके विषयमें भागक्रिया करनेकी प्रणालीका आविष्कार किया। किसी संख्यामें शून्य द्वारा विभाजनके लिये फलोंका निरूपण करते हुए बतलाया कि संख्या शून्य द्वारा विभाजित होनेपर परिवर्तित नहीं होती है। जिस दृष्टिकोणको लेकर यह सिद्धान्त निबद्ध किया है, वह सिद्धान्त स्थूल विभाजन पर आवर्त है। यों तो शून्य द्वारा किसी संख्याको विभाजित करनेपर फल परिमित (Finite) आता है। महावीराचार्य और ब्रह्मगुप्त आदिके प्रश्नों तथा अन्य प्रकरणोंकी भिन्नता के सम्बन्धमें डेविड यू जेन स्मिथका वक्तव्य द्रष्टव्य है।
महावीराचार्य ने अमोघवर्षक सम्बन्धमें छह श्लोक निबद्ध किये हैं। इन पद्योंसे अवगत होता है कि आचार्य अमोघवर्षके आश्रयमें अवश्य रहे हैं। उन्होंने लिखा है-"धन्य हैं वे अमोघवर्ष, जो हमेशा अपने प्रिय पात्रोंके हित-चिन्तन में संलग्न रहते हैं और जिनके द्वारा प्राणी तथा वनस्पति महामारी और दुर्भिक्ष आदिसे मुक्त होकर सुखी हुए हैं। जिन अमोघवर्षक चित्तकी क्रियाएँ अग्निपुज्ज सदृश होकर समस्त पाप-रूपी वैरियोंको भस्ममें परिणत करने में सफल हैं और जिनका क्रोध व्यर्थ नहीं जाता, जिन्होंने समस्त संसारको अपने वशमें कर लिया है और जो किसीके वशमे न रहकर शत्रुओं द्वारा पराजित नहीं हो सके, अपूर्व मकरध्वजकी तरह शोभायमान हैं। जिनका कार्य अपने पराक्रम द्वारा पराभूत राजाओंके चक्रसे होता है और जो न केवल नामसे चक्रिकाभंजन हैं,अपितु वास्तवमें भी चक्रिकाभंजन-जन्म-मरणके नाशक हैं। जो अनेकज्ञान सरिताओंके अधिष्ठाता होकर सच्चरित्रताको व्रजमयी मर्यादा वाले हैं और जो जैनधर्मरूप रत्नको हृदयमें रखते हैं, इसलिये वे यथाख्यातचारित्रके महान सागरके समान सुप्रसिद्ध हुए हैं। एकान्त पक्षको नष्ट कर जो स्याद्वादरूपी न्यायशास्त्रके वादी हुए हैं, ऐसे महाराज नृपतुंगका शासन वृद्धिगत हो ।
उक्त उद्धरणसे ज्ञात है कि यह अमोघवर्ष प्रथम जगत्तुंगदेव गोविन्दतृतीय के पुत्र थे। नृपतुंग, शर्व, सण्ड, अतिशय धवल, वीर नारायण, पृथ्वीवल्लभ, लक्ष्मीवल्लभ, महराजाधिराज, भटार, परम भट्टारक आदि उनकी उपाधियाँ थी । ये बड़े पराक्रमी राजा थे | इन्होंने राष्ट्रकूट वंशकी राज्यलक्ष्मीका उद्धार किया था । शक संवत् ७३५ में जब धवलाकी समाप्ति हुई थी, तब ये राजा थे। शक संवत् ७८२ के ताम्रपत्र से ज्ञात होता है कि इन्होंने स्वयं मान्यखेटमें जैनाचार्य देवेन्द्र को दानं दिया था। यह दानपत्र इनके राज्यके ४२ वे वर्षका है । शक संवत् ७९९ का एक अभिरूख काहिराको गुफाम मिला है, जिसमें इनका और सामन्त कपर्दी द्वितीयका उल्लेख है। इससे स्पष्ट है कि अमोघवर्षका राज्यकाल ईसाकी नवम शताब्दीका पूर्वार्द्ध है। यही समय महावीराचार्यका भी होना चाहिये। महावीराचार्यने गणितसारसंग्रहमें अमोधवर्षको स्यादाद न्यायवादी और यथाव्यख्यातचारित्रका धारक बतलाया है। इससे यह ध्वनित होता है कि गणितसारसंग्रहक रचनाकाल तक उन्होंने राज्य तो नहीं छोड़ा था, पर उनकी वृत्ति युद्धकी ओरसे हट गयी थी और उनका कोप वध्य हो गया था। इस प्रकार महावीराचार्यका समय अमोघवर्षका राज्यकाल है।
महावीराचार्यका प्रामाणिकरूपसे एक 'गणितसारसंग्रह' ही प्राप्त है। यो इनके नामसे 'ज्योतिषपटल' का भी उल्लेख मिलता है, पर यह रचना अभी तक उपलब्ध नहीं है।
गणितसारसंग्रह' में नवअध्याय हैं। प्रथम अध्याय संज्ञाधिकार है। इसमें गणितशास्त्रकी प्रशंसाके. अनन्तर क्षेत्रपरिभाषा, कालपरिभाषा, धान्यपरि भाषा, सुवर्णपरिभाषा, रजतपरिभाषा, लोहपरिभाषा, परिकर्मनामावली, स्थानमान और संख्यासंज्ञा आदिका वर्णन आया है। द्वितीय अधिकार परिकर्म व्यवहार है। इसमें प्रत्युत्पन्न-गुणन, भागहार, वर्ग, वर्गमूल, घन, घनमूल, संकलित और व्युत्कलित गणितका उदाहरणसहित विवेचन आया है । तृतीय अधिकार कलास्वर्ण व्यवहार है। इसमें भिन्न प्रत्युत्पन्न, भिन्न भागहार, भिन्न सम्बन्धी वर्ग, वर्गमूल, घन, घनमूल, भिन्न संकलित, भिन्न व्युत्कलित भागजाति, प्रभागजाति, भागाभागजाति, भागानुबन्ध जाति, भागापबाहजाति, भागमात्रिजातिका गणित उदाहरणसहित वर्णित है। चतुर्थ अधिकार प्रकीर्ण व्यवहार है । इसमें भिन्नोंके विविध प्रश्न वणित हैं। भाग और शेषजाति, मूल जाति , शेषमूलजाति, द्विरग्रशेषमूलजाति, अंशमूलजाति, भाग, संवर्गजाति, ऊनाधिक अंशवगंजाति, मूलमिश्रजाति और भिन्नदृश्यजातिका गणित आया है। पञ्चम अधिकार वैराशिकव्यवहारसंज्ञक है। इसमें अनुक्रम वैराशिक ,व्यस्त त्रैराशिक, व्यस्त पञ्चराशिक, व्यस्त सप्तराशिक, व्यस्त नवराशिक, गतिनिवृत्ति, पञ्च राशिक, सप्त राशिक, नवराशिक, भाण्डप्रतिभाण्ड एवं क्रय विक्रयका गणित वर्णित है। पाठ अधिकार मिथक व्यवहार है। इसमें संक्रमण, विषम-संक्रमण, पञ्चराशिक विधि, वृद्धि विवान, प्रक्षेपक कुट्टीकार, वल्लिका कुट्टीकार, विषम कुट्टीकार, सकलकुट्टीकार, सुवर्णकुट्टोकार विचित्रकुट्टी कार एवं श्रेढीबद्ध संकलित गणितका सोदाहरण निरूपण आया है। अप्तम अधि कार क्षेत्र गणित व्यवहार है। इसमें क्षेत्रफलसम्बन्धी विविध प्रकारके गणितों का कथन आया है। व्यावहारिक गणित सूक्ष्मगणित, जन्य व्यवहार एवं पंशा चिक व्यवहार गणितका उदाहरण सहित निरूपण किया गया है । अष्टम अधि कार खात व्यवहार है। इसमें सूक्ष्म गणित, चितिगणित .और क्रकचिका व्यवहार गणित निबद्ध है। नवम अधिकार छाया व्यवहार संज्ञक है। इसमें छाया सम्बन्धी विभिन्न प्रकारके गणितोंका उदाहरण सहित विवेचन किया गया है।
महावीराचार्यने (अ+ब)3 का आनयन किया है जो न्यूटनके द्विपद श्रेढीको दिशा प्रदान करता है।
(अ+ब)3= अ2 + 3अ2 उ +3ब2 अ + ब3
इस 'गणितसासंग्रह' में गणितकी अनेक विशेषताएँ विद्यमान हैं। ग्रन्थ कारने भाग देनेकी वर्तमान विधिका कथन किया है। इस सुविधाजनक विधि से उभयनिष्ठ गुणन खण्डोंको हटाकर विभाजन किया जाता है। ब्याज निकालने की विधिका निरूपण करते हुए लिखा है
महावीराचर्यने मूलधन, ब्याज, मिश्रधन और समय निकालनेके सम्बन्धमें महत्त्वपूर्ण नियम दिये हैं । मूलधन = स, मिश्रधन = म, समय = ट, व्याज = ई
इस प्रकार गणितसारसंग्रहमें गणित सम्बन्धी अनेक विशेषताएं प्रतिपादित
गुरु | |
शिष्य | आचार्य श्री महावीराचार्या |
स्वतन्त्र-रचना-प्रतिभा के साथ टीका, भाष्य एवं विवृत्ति लिखनेकी क्षमता भी प्रबुद्धाचायोंमें थी । श्रुतधराचार्य और सारस्वताचार्योंने जो विषय-वस्तु प्रस्तुत की थी उसीको प्रकारान्तरसे उपस्थित करनेका कार्य प्रबुद्धाचार्योने किया है । यह सत्य है कि इन आचार्योंने अपनी मौलिक प्रतिभा द्वारा परम्परासे प्राप्त तथ्योंको नवीन रूपमें भी प्रस्तुत किया है। अतः विषयके प्रस्तुतीकरणकी दृष्टिसे इन वाचायोका अपना महत्त्व है।
प्रबुद्धाचार्यों में कई आचार्य इतने प्रतिभाशाली हैं कि उन्हें सारस्वताचार्योकी श्रेणी में परिगणित किया जा सकता है। किन्तु विषय-निरूपणको सूक्ष्म क्षमता प्रबुद्धाचार्योंमें वैसी नहीं है, जैसी सारस्वताचार्यों में पायी जाती है। यहाँ इन प्रबुद्धाचार्योंके व्यक्तित्व और कृति तत्वका विवेचन प्रस्तुत है।
Aacharya Shri Mahaveeracharya ( Prachin )
Aacharya Shri
Santosh Khule Created Wiki Page Maharaj ji On Date 9-April- 2022
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Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
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