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#Mahendrasen18ThCentury
काष्ठासंघ नन्दितटगच्छके आचार्यों में रत्नकीर्ति, लक्ष्मीसेन, भीमसेन, सोम कीर्ति, विजयसेन, यशकीर्ति, उदयसेन, त्रिभुवनकीर्ति, रत्नभूषण, जयकीर्ति, केशवसेन, विश्वकीर्ति, धर्मसेन, बिमलसेन, विशालकीर्ति, विश्वसेन, बिजय कीर्ति, विद्याभूषण, श्रीभूषण आदि आचार्य हुए। महेन्द्रसेनके गुरु विजयकीर्ति थे। इस परम्पराम धर्मसेनके पश्चात् विमलसेन और विशालकीर्ति के नाम आये हैं। विशालकीर्ति के शिष्य विश्वसेनने वि० सं० १५९६ में एक मूर्ति स्थापित की थी। इनके द्वारा लिखित आराधनासारटीका भी उपलब्ध है। विश्वसेनके दो शिष्य हुए विजयकीर्ति और विद्याभूषण | इन विजयकीर्ति के शिष्य महेन्द्र भूषण हैं। इनका समय विकी १७वीं शतीका अन्तिम पाद और १८वीं शती का प्रथम पाद है। इनकी दो रचनाएँ उपलब्ध हैं-सीताहरण और बारह मासा । सीताहरण में निम्नलिखित प्रशस्ति उपलब्ध होती है
काष्ठासंघशृङ्गारविविविद्यारससागर ।
नंदीतटगच्छकाव्य पुराण गुण आगर ॥
सूरि विश्वसेन पाटि प्रगट सूरि विजयकीति बंदितचरण ।
महेंद्रसेन एवं वदति राम सीता मंगलकरण' ।
गुरु | आचार्य श्री विजयकीर्ति |
शिष्य | आचार्य श्री महेंद्रसेन |
प्रास्ताविक
आचार्य केवल 'स्व'का उत्थान ही नहीं करते हैं, अपितु परम्पराले वाङ्मय और संस्कृतिकी रक्षा भी करते हैं । वे अपने चतुर्दिक फैले विश्वको केवल बाह्य नेत्रोंसे ही नहीं देखते, अपितु अन्तःचक्षुद्वारा उसके सौन्दर्य एवं वास्तविक रूपका अवलोकन करते हैं। जगत्के अनुभव के साथ अपना व्यक्तित्व मिला कर धरोहरके रूपमें प्राप्त बाइ मयकी परम्पराका विकास और प्रसार करते हैं। यही कारण है कि आचार्य अपने दायित्वका निर्वाह करने के लिये अपनी मौलिक प्रतिभाका पूर्णतया उपयोग करते हैं। दायित्व निर्वाहकी भावना इतनी बलवती रहती है, जिससे कभी-कभी परम्पराका पोषण मात्र ही हो पाता है।
यह सत्य है कि वाङ्मय-निर्माणको प्रतिभा किसी भी जाति था समाजकी समान नहीं रहती है । बारम्भमें जो प्रतिभाएं अपना चमत्कार दिखलाती हैं,
Book : Tirthankar Mahavir Aur Unki Acharya Parampara3
#Mahendrasen18ThCentury
Book : Tirthankar Mahavir Aur Unki Acharya Parampara3
आचार्य श्री महेंद्रसेन 18वीं शताब्दी
आचार्य श्री विजयकीर्ति Aacharya Shri Vijaykirti
संतोष खुले जी ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 15-June- 2022
दिगजैनविकी आभारी है
बालिकाई शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
नेमिनाथ जी शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
परियोजना के लिए पुस्तकों को संदर्भित करने के लिए।
लेखक:- पंडित श्री नेमीचंद्र शास्त्री-ज्योतिषाचार्य
आचार्य शांति सागर छानी ग्रंथ माला
Santosh Khule Created Wiki Page Maharaj ji On Date 15-June- 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
काष्ठासंघ नन्दितटगच्छके आचार्यों में रत्नकीर्ति, लक्ष्मीसेन, भीमसेन, सोम कीर्ति, विजयसेन, यशकीर्ति, उदयसेन, त्रिभुवनकीर्ति, रत्नभूषण, जयकीर्ति, केशवसेन, विश्वकीर्ति, धर्मसेन, बिमलसेन, विशालकीर्ति, विश्वसेन, बिजय कीर्ति, विद्याभूषण, श्रीभूषण आदि आचार्य हुए। महेन्द्रसेनके गुरु विजयकीर्ति थे। इस परम्पराम धर्मसेनके पश्चात् विमलसेन और विशालकीर्ति के नाम आये हैं। विशालकीर्ति के शिष्य विश्वसेनने वि० सं० १५९६ में एक मूर्ति स्थापित की थी। इनके द्वारा लिखित आराधनासारटीका भी उपलब्ध है। विश्वसेनके दो शिष्य हुए विजयकीर्ति और विद्याभूषण | इन विजयकीर्ति के शिष्य महेन्द्र भूषण हैं। इनका समय विकी १७वीं शतीका अन्तिम पाद और १८वीं शती का प्रथम पाद है। इनकी दो रचनाएँ उपलब्ध हैं-सीताहरण और बारह मासा । सीताहरण में निम्नलिखित प्रशस्ति उपलब्ध होती है
काष्ठासंघशृङ्गारविविविद्यारससागर ।
नंदीतटगच्छकाव्य पुराण गुण आगर ॥
सूरि विश्वसेन पाटि प्रगट सूरि विजयकीति बंदितचरण ।
महेंद्रसेन एवं वदति राम सीता मंगलकरण' ।
गुरु | आचार्य श्री विजयकीर्ति |
शिष्य | आचार्य श्री महेंद्रसेन |
प्रास्ताविक
आचार्य केवल 'स्व'का उत्थान ही नहीं करते हैं, अपितु परम्पराले वाङ्मय और संस्कृतिकी रक्षा भी करते हैं । वे अपने चतुर्दिक फैले विश्वको केवल बाह्य नेत्रोंसे ही नहीं देखते, अपितु अन्तःचक्षुद्वारा उसके सौन्दर्य एवं वास्तविक रूपका अवलोकन करते हैं। जगत्के अनुभव के साथ अपना व्यक्तित्व मिला कर धरोहरके रूपमें प्राप्त बाइ मयकी परम्पराका विकास और प्रसार करते हैं। यही कारण है कि आचार्य अपने दायित्वका निर्वाह करने के लिये अपनी मौलिक प्रतिभाका पूर्णतया उपयोग करते हैं। दायित्व निर्वाहकी भावना इतनी बलवती रहती है, जिससे कभी-कभी परम्पराका पोषण मात्र ही हो पाता है।
यह सत्य है कि वाङ्मय-निर्माणको प्रतिभा किसी भी जाति था समाजकी समान नहीं रहती है । बारम्भमें जो प्रतिभाएं अपना चमत्कार दिखलाती हैं,
Aacharya Shri Mahendrasen 18th Century
आचार्य श्री विजयकीर्ति Aacharya Shri Vijaykirti
आचार्य श्री विजयकीर्ति Aacharya Shri Vijaykirti
Santosh Khule Created Wiki Page Maharaj ji On Date 15-June- 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
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Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
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