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#Shrutkirti16ThCentury
भट्टारक श्रुतकीर्ति नन्दिसंघ बलात्कारगण और सरस्वतीगच्छके विद्वान् हैं। यह भट्टारक देवेन्द्रकीतिके प्रशिष्य और त्रिभुबनकोतिके शिष्य थे। श्नुत कीर्ति सुलेखक, चिन्तक और प्रभावक चिद्वान हैं । इन्होंने अनेक ग्रन्थोंकी रचना की है।
श्रुतकीतिका समय उनकी रचनाओंके आधारपर बिक्रम संवत्की १६वीं शती सिद्ध होता है । इनकी रचनाओं में हरिबंशपुराण सबसे बड़ा है । जैन सिद्धान्त भवन आरामें उसकी पाण्डुलिपि वि०सं० १५५३की है, जो मण्डपाचलदुर्गके
१. भट्रारक सम्प्रदाय, लेखांक ६३९ ।
२. अनेकान्त, वर्ष १३, किरण ४, पृ० ११०, श्लोक २१-२५ ।
सुल्तान गयासुद्दीनके राज्यकालमें दमोत्रा देशके जोरहट नगरके महाखान और भोजखान के समयमें लिखी गयी है । ये महाखान और भोजखान जोरहट नगरके सूबेदार जान पड़ते हैं। इतिहाससे स्पष्ट है कि सन् १४०६ में मालवाके सुबेदार दिलबरखाँको उसके पुत्र अलफखाने विष देकर मार डाला था और मालवाको स्वतन्त्र उद्घोषित कर स्वयं राजा बन गया था । इसकी उपाधि हुशंगशाह थी। इसने माण्डवगढ़को सुहड़ कर अपनी राजधानी बनाया था । उसीके चशमें शाह गयासुद्दीन हुआ। जिसने माण्डवगढ़से मालबाका राज्य वि० सं०१५२६ से १५५७ तक किया। इसके पुत्रका नाम नसीरशाह था । भट्टारक श्रुतकीतिने जेरहट नगरके नेमिनाथचैत्यालयमें हरिवंशपुराणको रचना वि० सं० १५५२ माघ कृष्णा पन्चमी सोमबारके दिन हस्तनक्षत्रमें की है।
संवबिक्कमसेण-नरेसह, साहिगयासुपयावअसेसई ।
णयरजेरहटजिणहरु चंगउ, मिणाजिबिनु अभंगउ ।
गंधसड़ण्णु तत्त्व इहु जायउ, चविहुसंसुणिसुणिअणुरायउ ।
माकिण्हपंचमिससिबारई, हत्थणखत्तसमत्तगुणालई ।
गंभु सःणु गाल पति, कमाल मित्त जं उत्तर ।
भ. श्रुतकीतिने वि०सं०१५५२में धर्मपरीक्षाकी भी रचना की है। 'परमेष्ठी प्रकाशसार'को रचना भी वि० सं० १५५३ को श्रावण मास पञ्चमीक दिन हुई है। इस समय गयासुद्दीनका राज्य था और उसका पुत्र राज्यकार्यमें अनुराम रखता आ । पूज्यराज नामके वणिक उस समय नसौरशाहके मन्त्री थे।
दहपणसयतेवण गयवासइ,
पूण विक्कमणिवसंवच्छरहे
तह सावण मासहु गुरुपंचमि,
सह गंथु पुण्णु तय सहस' तहे ।।
योगसार ग्रन्थकी प्रशस्तिसे भी अवगत होता है कि इस ग्रन्थकी रचना भी वि० सं० १५५२ मार्गशीर्ष शुक्ल पक्षमें हुई है। अतएव यह स्पष्ट है कि भट्टा रक श्रुतकीतिका समय वि० सं० की १६वीं शती है।
भ० श्रुतकीत्ति बहुश्रुतज्ञ विद्वान् हैं। इनके द्वारा लिखित निम्नलिखित कृतियाँ उपलब्ध हैं
१. अनेकान्त, वर्ष १३, किरण ११-१२, पृ. २७१ ।
२. वही, पृ. २८० ।
१.हरिवंशपुराण,
२. धर्मपरीक्षा,
३, परमेष्ठीप्रकाशसार,
४. योगसार।
हरिबंशपुराण बृहद्काय रचना है। इसमें ४५ सन्धियाँ हैं और वे तीर्थ कर भगवान नेमिनाथका जीवनचरित अंकित है। प्रसंगवश इसमें श्रीकृष्ण
आदि यदुवंशियोंका संक्षिप्त जीवन परिचय भी आया है। यह ग्रन्थ काव्य, सिद्धान्त, आचार आदि सभी दृष्टियोंसे महत्त्वपूर्ण है।
इस ग्रन्थमें १७९ कड़वक हैं । इसमें पौराणिक मान्यताओंकी व्यंग्य शैलीमें समीक्षा की गयी है।
इस ग्रन्थकी पाण्डुलिपि आमेर-भण्डारमें सुरक्षित है। इसमें तीन हजार
पद्य हैं और अन्य सात परिच्छेदोंमें विभक्त है।
यह ग्रन्थ दो परिच्छेदों या सन्धियों में विभक्त है। इसमें गृहस्थोपयोगी सैद्धान्तिक बातोपर प्रकाश डाला गया है। साथ ही कुछ मुनिचर्याका भी उल्लेख किया है। श्रुतकोत्ति अपने समयके उद्भट विद्वान थे और ग्रन्धरचना करने में प्रवीण थे।
गुरु | आचार्य श्री भट्टारक त्रिभुवनकिर्ती |
शिष्य | आचार्य श्री श्रुतकीर्ती |
प्रास्ताविक
आचार्य केवल 'स्व'का उत्थान ही नहीं करते हैं, अपितु परम्पराले वाङ्मय और संस्कृतिकी रक्षा भी करते हैं । वे अपने चतुर्दिक फैले विश्वको केवल बाह्य नेत्रोंसे ही नहीं देखते, अपितु अन्तःचक्षुद्वारा उसके सौन्दर्य एवं वास्तविक रूपका अवलोकन करते हैं। जगत्के अनुभव के साथ अपना व्यक्तित्व मिला कर धरोहरके रूपमें प्राप्त बाइ मयकी परम्पराका विकास और प्रसार करते हैं। यही कारण है कि आचार्य अपने दायित्वका निर्वाह करने के लिये अपनी मौलिक प्रतिभाका पूर्णतया उपयोग करते हैं। दायित्व निर्वाहकी भावना इतनी बलवती रहती है, जिससे कभी-कभी परम्पराका पोषण मात्र ही हो पाता है।
यह सत्य है कि वाङ्मय-निर्माणको प्रतिभा किसी भी जाति था समाजकी समान नहीं रहती है । बारम्भमें जो प्रतिभाएं अपना चमत्कार दिखलाती हैं,
Book : Tirthankar Mahavir Aur Unki Acharya Parampara3
#Shrutkirti16ThCentury
Book : Tirthankar Mahavir Aur Unki Acharya Parampara3
आचार्य श्री १०८ श्रुतकीर्ति 16वीं शताब्दी
आचार्य श्री भट्टारक त्रिभुवनकीर्ति Aacharya Shri Bhattarak Tribhuvankirti
संतोष खुले जी ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 10-June- 2022
दिगजैनविकी आभारी है
बालिकाई शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
नेमिनाथ जी शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
परियोजना के लिए पुस्तकों को संदर्भित करने के लिए।
लेखक:- पंडित श्री नेमीचंद्र शास्त्री-ज्योतिषाचार्य
आचार्य शांति सागर छानी ग्रंथ माला
Santosh Khule Created Wiki Page Maharaj ji On Date 10-June- 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
भट्टारक श्रुतकीर्ति नन्दिसंघ बलात्कारगण और सरस्वतीगच्छके विद्वान् हैं। यह भट्टारक देवेन्द्रकीतिके प्रशिष्य और त्रिभुबनकोतिके शिष्य थे। श्नुत कीर्ति सुलेखक, चिन्तक और प्रभावक चिद्वान हैं । इन्होंने अनेक ग्रन्थोंकी रचना की है।
श्रुतकीतिका समय उनकी रचनाओंके आधारपर बिक्रम संवत्की १६वीं शती सिद्ध होता है । इनकी रचनाओं में हरिबंशपुराण सबसे बड़ा है । जैन सिद्धान्त भवन आरामें उसकी पाण्डुलिपि वि०सं० १५५३की है, जो मण्डपाचलदुर्गके
१. भट्रारक सम्प्रदाय, लेखांक ६३९ ।
२. अनेकान्त, वर्ष १३, किरण ४, पृ० ११०, श्लोक २१-२५ ।
सुल्तान गयासुद्दीनके राज्यकालमें दमोत्रा देशके जोरहट नगरके महाखान और भोजखान के समयमें लिखी गयी है । ये महाखान और भोजखान जोरहट नगरके सूबेदार जान पड़ते हैं। इतिहाससे स्पष्ट है कि सन् १४०६ में मालवाके सुबेदार दिलबरखाँको उसके पुत्र अलफखाने विष देकर मार डाला था और मालवाको स्वतन्त्र उद्घोषित कर स्वयं राजा बन गया था । इसकी उपाधि हुशंगशाह थी। इसने माण्डवगढ़को सुहड़ कर अपनी राजधानी बनाया था । उसीके चशमें शाह गयासुद्दीन हुआ। जिसने माण्डवगढ़से मालबाका राज्य वि० सं०१५२६ से १५५७ तक किया। इसके पुत्रका नाम नसीरशाह था । भट्टारक श्रुतकीतिने जेरहट नगरके नेमिनाथचैत्यालयमें हरिवंशपुराणको रचना वि० सं० १५५२ माघ कृष्णा पन्चमी सोमबारके दिन हस्तनक्षत्रमें की है।
संवबिक्कमसेण-नरेसह, साहिगयासुपयावअसेसई ।
णयरजेरहटजिणहरु चंगउ, मिणाजिबिनु अभंगउ ।
गंधसड़ण्णु तत्त्व इहु जायउ, चविहुसंसुणिसुणिअणुरायउ ।
माकिण्हपंचमिससिबारई, हत्थणखत्तसमत्तगुणालई ।
गंभु सःणु गाल पति, कमाल मित्त जं उत्तर ।
भ. श्रुतकीतिने वि०सं०१५५२में धर्मपरीक्षाकी भी रचना की है। 'परमेष्ठी प्रकाशसार'को रचना भी वि० सं० १५५३ को श्रावण मास पञ्चमीक दिन हुई है। इस समय गयासुद्दीनका राज्य था और उसका पुत्र राज्यकार्यमें अनुराम रखता आ । पूज्यराज नामके वणिक उस समय नसौरशाहके मन्त्री थे।
दहपणसयतेवण गयवासइ,
पूण विक्कमणिवसंवच्छरहे
तह सावण मासहु गुरुपंचमि,
सह गंथु पुण्णु तय सहस' तहे ।।
योगसार ग्रन्थकी प्रशस्तिसे भी अवगत होता है कि इस ग्रन्थकी रचना भी वि० सं० १५५२ मार्गशीर्ष शुक्ल पक्षमें हुई है। अतएव यह स्पष्ट है कि भट्टा रक श्रुतकीतिका समय वि० सं० की १६वीं शती है।
भ० श्रुतकीत्ति बहुश्रुतज्ञ विद्वान् हैं। इनके द्वारा लिखित निम्नलिखित कृतियाँ उपलब्ध हैं
१. अनेकान्त, वर्ष १३, किरण ११-१२, पृ. २७१ ।
२. वही, पृ. २८० ।
१.हरिवंशपुराण,
२. धर्मपरीक्षा,
३, परमेष्ठीप्रकाशसार,
४. योगसार।
हरिबंशपुराण बृहद्काय रचना है। इसमें ४५ सन्धियाँ हैं और वे तीर्थ कर भगवान नेमिनाथका जीवनचरित अंकित है। प्रसंगवश इसमें श्रीकृष्ण
आदि यदुवंशियोंका संक्षिप्त जीवन परिचय भी आया है। यह ग्रन्थ काव्य, सिद्धान्त, आचार आदि सभी दृष्टियोंसे महत्त्वपूर्ण है।
इस ग्रन्थमें १७९ कड़वक हैं । इसमें पौराणिक मान्यताओंकी व्यंग्य शैलीमें समीक्षा की गयी है।
इस ग्रन्थकी पाण्डुलिपि आमेर-भण्डारमें सुरक्षित है। इसमें तीन हजार
पद्य हैं और अन्य सात परिच्छेदोंमें विभक्त है।
यह ग्रन्थ दो परिच्छेदों या सन्धियों में विभक्त है। इसमें गृहस्थोपयोगी सैद्धान्तिक बातोपर प्रकाश डाला गया है। साथ ही कुछ मुनिचर्याका भी उल्लेख किया है। श्रुतकोत्ति अपने समयके उद्भट विद्वान थे और ग्रन्धरचना करने में प्रवीण थे।
गुरु | आचार्य श्री भट्टारक त्रिभुवनकिर्ती |
शिष्य | आचार्य श्री श्रुतकीर्ती |
प्रास्ताविक
आचार्य केवल 'स्व'का उत्थान ही नहीं करते हैं, अपितु परम्पराले वाङ्मय और संस्कृतिकी रक्षा भी करते हैं । वे अपने चतुर्दिक फैले विश्वको केवल बाह्य नेत्रोंसे ही नहीं देखते, अपितु अन्तःचक्षुद्वारा उसके सौन्दर्य एवं वास्तविक रूपका अवलोकन करते हैं। जगत्के अनुभव के साथ अपना व्यक्तित्व मिला कर धरोहरके रूपमें प्राप्त बाइ मयकी परम्पराका विकास और प्रसार करते हैं। यही कारण है कि आचार्य अपने दायित्वका निर्वाह करने के लिये अपनी मौलिक प्रतिभाका पूर्णतया उपयोग करते हैं। दायित्व निर्वाहकी भावना इतनी बलवती रहती है, जिससे कभी-कभी परम्पराका पोषण मात्र ही हो पाता है।
यह सत्य है कि वाङ्मय-निर्माणको प्रतिभा किसी भी जाति था समाजकी समान नहीं रहती है । बारम्भमें जो प्रतिभाएं अपना चमत्कार दिखलाती हैं,
Aacharya Shri Shrutkirti 16th Century
आचार्य श्री भट्टारक त्रिभुवनकीर्ति Aacharya Shri Bhattarak Tribhuvankirti
आचार्य श्री भट्टारक त्रिभुवनकीर्ति Aacharya Shri Bhattarak Tribhuvankirti
Santosh Khule Created Wiki Page Maharaj ji On Date 10-June- 2022
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Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
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Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
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15000
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