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#Shrutmuni13ThCentury
श्री डॉ ज्योतिप्रसादजीने' १७ श्रतमनियोंका निर्देश किया है । पर हमारे अभीष्ट आचार्य श्रुतमुनि परमागमसार, त्रिभंगी, मार्गणा, बासव, सत्तावि च्छित्ति आदि पन्थोंके रचयिता हैं। ये श्रुतमुनि मूलसंघ देशीगण पुस्तकमच्छ और कुन्दकुन्द आम्नायके आचार्य हैं। इनके अणुवतगुरु बालेन्दु या बालचन्द्र थे। महाव्रतग अभयचन्द्र सिद्धान्तदेव एवं शास्त्रगर अभयार और प्रभाचन्द्र थे | आस्रवत्रिभंगीके अन्तमें अपने गुरु बालचन्द्र का जयघोष निम्न प्रकार किया है
इदि मागणासु.जोगो पच्चयभेदो मया समासेण ।
कहिदो सुदमुणिणा ओ भावइ सो जाइ अप्पसुहं ।।
पयकमलजुयलविणमियविणेय जणकयसुपूयमाहप्पो ।
णिज्जियमयणपहायो सो बालिंदो चिरं जयक ॥
आरा जैन सिद्धान्त भवनमें भावविभंगीकी एक ताड़पत्रीय प्राचीन प्रति
१. जैन सन्देश, शोषांक १०, पृ. ३५८-६१ ।
२. आनव-विभङ्गी, माणिकचन्द्र अन्धमाला, पन्यांक २६, पद्य ११,६२, पु२८३ ।
है, जिसमें मुद्रित प्रतिकी अपेक्षा निम्नलिखित सात गाथाएँ अधिक मिलती है । इन गाथाओंपरसे ग्रन्थरचयिताके समयके सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त होती है--
"अणुवदगुरुबालेंदु महव्वदे अभयचंदसिद्धति ।
सत्थे भयसूरि पहाचंदा खलु सुयमुणिस्त गुरू ।।
सिरिमलसघदेसिय पुस्थयगच्छ कोंडकुंदमुणिणाहं ) ।
परमपण इंगलेसबम्मिजादमुणिपद(हाण) रूस !!
सिद्धताहयचं दस्स य सिस्सो बालचंदमुणिपबरो।
मो भवियकुचालयाणं आणटकरी सया जयल ।।
सदागम-परमागम-सस्कागम-निरवसेसवेदी हुँ ।
विजिदसयलगणवादी जयउ चिरं अभयसूरिसिद्धति ।।
गयणिखेवपमाण जाणित्ता विजिदसयलपरसमझो ।
वरणिवणिवबंदियपयपम्मो चारुकित्ति मुणी ।
णाणिखिलत्यसत्यो सयलणरिदेहिं पूजिओ विमलो।
जिणमग्गगमणसूरो जयज चिरं चारकित्तिमुणी ।।
वरसारत्तयणिउणो सुई पर विरहियपरभाओ।
भवियाणं पडिबोहणयरो पहाचंदणाममुणी ॥
इन गाथाओंसे स्पष्ट है कि देशीयगण पुस्तकगच्छ इंजलेश्वरबलीके आचार्य अभयचन्द्र के शिष्य बालचन्द्रमुनि हुए । आचार्य अभयचन्द्र व्याकरण, परमागम, तर्क और समस्त शास्त्रोंके ज्ञाता थे। इन्होंने अनेक बादियोंको पराजित किया था। गाथाओंमें आये हुए आचार्यों पर विचार करनेसे इनके समयका निर्णय किया जा सकता है ।
श्रवणबेलगोलाके अभिलेखोंके अनुसार श्रुतमुनि अभयचन्द्र सिद्धान्तचक वर्ती के शिष्य थे । इनके शिष्य प्रभाचन्द्र हुए और उनके प्रिय शिष्य श्रुतकीति देव हुए । इन श्रुतकीतिका स्वर्गवास शक संवत् १३०६ (ई० सन् १३८४) में हुआ । इनके शिष्य आदिदेव मुनि हुए। पुस्तकगच्छाने श्रावकोंने एक चैत्यालय का जीर्णोद्धार कराकर उसमें, उक्त श्रुतकीतिको तथा सुमतिनाथ तीर्थंकरको प्रतिमाएं प्रतिष्ठित की थीं।
बालचन्द्रमुनिने श्रुतमुनिको प्रावक्रधर्मकी दीक्षा दी थी | आसबविभगीमें ध्रुतमुनिने इनका स्मरण किया है।
अभयचन्द्र-ये मूलसंघ देशीयगण पुस्तकगच्छ और कुन्दकुन्द आम्नायके
१. एपि कर्णाक्ष ४, हनसूर, १२३ ।
आचार्य थे और इङ्गलेश नामक स्थानके मुनियों में प्रधान थे। ये व्याकरण, धर्मशास्त्र, न्यायशास्त्र आदि विशेष विषयोंके ज्ञाता थे । बालचन्द्रभुमि इनके शिष्य थे । श्रुतमुनिने इनसे मुनि-दीक्षा ली थी और शास्त्राध्यया भी किया था।
प्रमाचन्द्र-समयसार, पञ्चास्तिकाय और प्रवचनसारके ज्ञाता थे, परभावोंसे रहित थे और भाजनको प्रतिबोधित करनेवाले थे ! ये शननिके विद्यागुरु थे।
चारुकीति --.ये नय, निक्षेप और प्रमाणके ज्ञाता, समस्त परवादियोंको जीतनेवाले, बड़े-बड़े राजाओं द्वारा पूजित और समस्त शास्त्रोंके ज्ञाता थे।
'कर्णाटककविचरिते' के कत्र्ताने श्रुतमुनिके गुरु बालचन्द्रका समय वि० सं० १३३० के लगभग बताया है। उनका अभिमत है कि बालचन्द्रमुनिने शक संवत् ११९५ में द्रव्यसंग्रहको एक टोका लिखी है और उसमें उन्होंने अपने गुरुका नाम अभयचन्द्र लिखा है । इससे सिद्ध है कि श्रुतमुनिका समय ई. सन् की १३वीं शताब्दी है। श्रवणबेलगोलामें श्रुतमुनिको निषद्यापर मंगराज कचिका एक ७५ पद्योंका विशाल संस्कृत अभिलेख है। यह निषद्या शक संवत् १३५५ (वि० सं० १४९०) में प्रतिष्ठित की गयी है । इसमें प्रधानतः श्रुतकोति, चारकीति, योगिराट् पण्डिताचार्य और श्रुतमुनिकी महिमावा वर्णन आया है। यह निषद्या श्रुतमुनिके १०० या १२५ वर्ष पश्चात् प्रतिष्ठित की गयो होगी । अतः श्रुतमुनिका समय ई० सन् को १३वीं शताब्दीका अन्तिम भाम है।
श्रुतमुनिको तीन रचनाएं प्राप्त होती है
१. परमागमसार
२. आस्रवत्रिभङ्गी
३. भावत्रिभनी
१. आस्रवत्रिभङ्गीमें ६२ गाथाएँ हैं। आसबके ५७ भेदोंका गुणस्थानों में कथन किया गया है तथा सन्दष्टि भी दी गयी है। इसी प्रकार योग, कषाय आदिका भी गुणस्थानक्रमसे वर्णन आया है !
२. भावविभङ्गीमें ११६ गाथाएं हैं । पर जैनसिद्धान्त भवन आराफी प्रतिमें इसके आगे प्रशस्तिमूलक सात गाथाएँ भी मिलती हैं। इस ग्रन्थमें गुणस्थान और मार्गणाक्रमानुसार भावोंका वर्णन आया है। औपशामक, क्षायिक, क्षायो पशमिक, औदयिक और परिणामिक इन भावोंका विशेष वर्णन किया गया
है। पांच झानोंमें कौन क्षायिक होते हैं और कौन क्षायोपशामक, इस वर्णन के पश्चात् मिथ्यात्वगुणस्थानमें कौन-कौनसे ज्ञान रहते हैं तथा शेष गुणस्थानों में कौन-कौनसे ज्ञान सम्भव है । इसी प्रकार चक्षु-दर्शन, अचक्षु-दर्शन, अवधि-दर्शन और केवलज्ञान-दर्शनका भी कथन किया है। गुणस्थान और मार्गणा प्रत्ययोंमें भाबोंको अवगत करने के लिए यह अन्य उपयोगी है ।
३.परमागमसारग २३० गाथाएं हैं और आगमके स्वरूप तथा भेद-अभेदोंका वर्णन आया है। श्रुतमुनिकी ये तीनों रचनाएं उनके सिद्धान्तज्ञानका महत्त्व प्रकट करती हैं। इन रचनाओं पर गोम्मटसार कर्मकाण्ड और 'जीवकाण्डका प्रभाव पूर्णतया ज्ञात होता है। भावविभङ्गी में पांचों भावोंके उत्तर भेदों से किस स्थानमें कितने भाव होते हैं और कितने नहीं होते और कितने भाव उसी स्थान में होकर आगे नहीं होते इन तीनों बातोंका स्पष्टीकरण किया है। इसी कारण इस ग्रन्धका नाम त्रिभंगी है। इसी प्रकार आस्रवप्रत्यय किस गुणस्थान में कितने होते हैं, कितने नहीं होते और कितने प्रत्यय उसी गुणस्थान तक होते हैं, आगे नहीं होते इन तीनोंका कथन किया है। दोनों विभंगी पन्थ माणिकचन्द्र ग्रन्थमाला ग्रन्थसंख्या २० में प्रकाशित हैं।
गुरु | आचार्य श्री बालचंद्र |
शिष्य | आचार्य श्री श्रुतमुनी |
स्वतन्त्र-रचना-प्रतिभा के साथ टीका, भाष्य एवं विवृत्ति लिखनेकी क्षमता भी प्रबुद्धाचायोंमें थी । श्रुतधराचार्य और सारस्वताचार्योंने जो विषय-वस्तु प्रस्तुत की थी उसीको प्रकारान्तरसे उपस्थित करनेका कार्य प्रबुद्धाचार्योने किया है । यह सत्य है कि इन आचार्योंने अपनी मौलिक प्रतिभा द्वारा परम्परासे प्राप्त तथ्योंको नवीन रूपमें भी प्रस्तुत किया है। अतः विषयके प्रस्तुतीकरणकी दृष्टिसे इन वाचायोका अपना महत्त्व है।
प्रबुद्धाचार्यों में कई आचार्य इतने प्रतिभाशाली हैं कि उन्हें सारस्वताचार्योकी श्रेणी में परिगणित किया जा सकता है। किन्तु विषय-निरूपणको सूक्ष्म क्षमता प्रबुद्धाचार्योंमें वैसी नहीं है, जैसी सारस्वताचार्यों में पायी जाती है। यहाँ इन प्रबुद्धाचार्योंके व्यक्तित्व और कृति तत्वका विवेचन प्रस्तुत है।
Book : Tirthankar Mahavir Aur Unki Acharya Parampara3
#Shrutmuni13ThCentury
Book : Tirthankar Mahavir Aur Unki Acharya Parampara3
आचार्य श्री श्रुतमुनि 13वीं शताब्दी
संतोष खुले जी ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 14-May- 2022
दिगजैनविकी आभारी है
बालिकाई शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
नेमिनाथ जी शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
परियोजना के लिए पुस्तकों को संदर्भित करने के लिए।
लेखक:- पंडित श्री नेमीचंद्र शास्त्री-ज्योतिषाचार्य
आचार्य शांति सागर छानी ग्रंथ माला
Santosh Khule Created Wiki Page Maharaj ji On Date 14-May- 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
श्री डॉ ज्योतिप्रसादजीने' १७ श्रतमनियोंका निर्देश किया है । पर हमारे अभीष्ट आचार्य श्रुतमुनि परमागमसार, त्रिभंगी, मार्गणा, बासव, सत्तावि च्छित्ति आदि पन्थोंके रचयिता हैं। ये श्रुतमुनि मूलसंघ देशीगण पुस्तकमच्छ और कुन्दकुन्द आम्नायके आचार्य हैं। इनके अणुवतगुरु बालेन्दु या बालचन्द्र थे। महाव्रतग अभयचन्द्र सिद्धान्तदेव एवं शास्त्रगर अभयार और प्रभाचन्द्र थे | आस्रवत्रिभंगीके अन्तमें अपने गुरु बालचन्द्र का जयघोष निम्न प्रकार किया है
इदि मागणासु.जोगो पच्चयभेदो मया समासेण ।
कहिदो सुदमुणिणा ओ भावइ सो जाइ अप्पसुहं ।।
पयकमलजुयलविणमियविणेय जणकयसुपूयमाहप्पो ।
णिज्जियमयणपहायो सो बालिंदो चिरं जयक ॥
आरा जैन सिद्धान्त भवनमें भावविभंगीकी एक ताड़पत्रीय प्राचीन प्रति
१. जैन सन्देश, शोषांक १०, पृ. ३५८-६१ ।
२. आनव-विभङ्गी, माणिकचन्द्र अन्धमाला, पन्यांक २६, पद्य ११,६२, पु२८३ ।
है, जिसमें मुद्रित प्रतिकी अपेक्षा निम्नलिखित सात गाथाएँ अधिक मिलती है । इन गाथाओंपरसे ग्रन्थरचयिताके समयके सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त होती है--
"अणुवदगुरुबालेंदु महव्वदे अभयचंदसिद्धति ।
सत्थे भयसूरि पहाचंदा खलु सुयमुणिस्त गुरू ।।
सिरिमलसघदेसिय पुस्थयगच्छ कोंडकुंदमुणिणाहं ) ।
परमपण इंगलेसबम्मिजादमुणिपद(हाण) रूस !!
सिद्धताहयचं दस्स य सिस्सो बालचंदमुणिपबरो।
मो भवियकुचालयाणं आणटकरी सया जयल ।।
सदागम-परमागम-सस्कागम-निरवसेसवेदी हुँ ।
विजिदसयलगणवादी जयउ चिरं अभयसूरिसिद्धति ।।
गयणिखेवपमाण जाणित्ता विजिदसयलपरसमझो ।
वरणिवणिवबंदियपयपम्मो चारुकित्ति मुणी ।
णाणिखिलत्यसत्यो सयलणरिदेहिं पूजिओ विमलो।
जिणमग्गगमणसूरो जयज चिरं चारकित्तिमुणी ।।
वरसारत्तयणिउणो सुई पर विरहियपरभाओ।
भवियाणं पडिबोहणयरो पहाचंदणाममुणी ॥
इन गाथाओंसे स्पष्ट है कि देशीयगण पुस्तकगच्छ इंजलेश्वरबलीके आचार्य अभयचन्द्र के शिष्य बालचन्द्रमुनि हुए । आचार्य अभयचन्द्र व्याकरण, परमागम, तर्क और समस्त शास्त्रोंके ज्ञाता थे। इन्होंने अनेक बादियोंको पराजित किया था। गाथाओंमें आये हुए आचार्यों पर विचार करनेसे इनके समयका निर्णय किया जा सकता है ।
श्रवणबेलगोलाके अभिलेखोंके अनुसार श्रुतमुनि अभयचन्द्र सिद्धान्तचक वर्ती के शिष्य थे । इनके शिष्य प्रभाचन्द्र हुए और उनके प्रिय शिष्य श्रुतकीति देव हुए । इन श्रुतकीतिका स्वर्गवास शक संवत् १३०६ (ई० सन् १३८४) में हुआ । इनके शिष्य आदिदेव मुनि हुए। पुस्तकगच्छाने श्रावकोंने एक चैत्यालय का जीर्णोद्धार कराकर उसमें, उक्त श्रुतकीतिको तथा सुमतिनाथ तीर्थंकरको प्रतिमाएं प्रतिष्ठित की थीं।
बालचन्द्रमुनिने श्रुतमुनिको प्रावक्रधर्मकी दीक्षा दी थी | आसबविभगीमें ध्रुतमुनिने इनका स्मरण किया है।
अभयचन्द्र-ये मूलसंघ देशीयगण पुस्तकगच्छ और कुन्दकुन्द आम्नायके
१. एपि कर्णाक्ष ४, हनसूर, १२३ ।
आचार्य थे और इङ्गलेश नामक स्थानके मुनियों में प्रधान थे। ये व्याकरण, धर्मशास्त्र, न्यायशास्त्र आदि विशेष विषयोंके ज्ञाता थे । बालचन्द्रभुमि इनके शिष्य थे । श्रुतमुनिने इनसे मुनि-दीक्षा ली थी और शास्त्राध्यया भी किया था।
प्रमाचन्द्र-समयसार, पञ्चास्तिकाय और प्रवचनसारके ज्ञाता थे, परभावोंसे रहित थे और भाजनको प्रतिबोधित करनेवाले थे ! ये शननिके विद्यागुरु थे।
चारुकीति --.ये नय, निक्षेप और प्रमाणके ज्ञाता, समस्त परवादियोंको जीतनेवाले, बड़े-बड़े राजाओं द्वारा पूजित और समस्त शास्त्रोंके ज्ञाता थे।
'कर्णाटककविचरिते' के कत्र्ताने श्रुतमुनिके गुरु बालचन्द्रका समय वि० सं० १३३० के लगभग बताया है। उनका अभिमत है कि बालचन्द्रमुनिने शक संवत् ११९५ में द्रव्यसंग्रहको एक टोका लिखी है और उसमें उन्होंने अपने गुरुका नाम अभयचन्द्र लिखा है । इससे सिद्ध है कि श्रुतमुनिका समय ई. सन् की १३वीं शताब्दी है। श्रवणबेलगोलामें श्रुतमुनिको निषद्यापर मंगराज कचिका एक ७५ पद्योंका विशाल संस्कृत अभिलेख है। यह निषद्या शक संवत् १३५५ (वि० सं० १४९०) में प्रतिष्ठित की गयी है । इसमें प्रधानतः श्रुतकोति, चारकीति, योगिराट् पण्डिताचार्य और श्रुतमुनिकी महिमावा वर्णन आया है। यह निषद्या श्रुतमुनिके १०० या १२५ वर्ष पश्चात् प्रतिष्ठित की गयो होगी । अतः श्रुतमुनिका समय ई० सन् को १३वीं शताब्दीका अन्तिम भाम है।
श्रुतमुनिको तीन रचनाएं प्राप्त होती है
१. परमागमसार
२. आस्रवत्रिभङ्गी
३. भावत्रिभनी
१. आस्रवत्रिभङ्गीमें ६२ गाथाएँ हैं। आसबके ५७ भेदोंका गुणस्थानों में कथन किया गया है तथा सन्दष्टि भी दी गयी है। इसी प्रकार योग, कषाय आदिका भी गुणस्थानक्रमसे वर्णन आया है !
२. भावविभङ्गीमें ११६ गाथाएं हैं । पर जैनसिद्धान्त भवन आराफी प्रतिमें इसके आगे प्रशस्तिमूलक सात गाथाएँ भी मिलती हैं। इस ग्रन्थमें गुणस्थान और मार्गणाक्रमानुसार भावोंका वर्णन आया है। औपशामक, क्षायिक, क्षायो पशमिक, औदयिक और परिणामिक इन भावोंका विशेष वर्णन किया गया
है। पांच झानोंमें कौन क्षायिक होते हैं और कौन क्षायोपशामक, इस वर्णन के पश्चात् मिथ्यात्वगुणस्थानमें कौन-कौनसे ज्ञान रहते हैं तथा शेष गुणस्थानों में कौन-कौनसे ज्ञान सम्भव है । इसी प्रकार चक्षु-दर्शन, अचक्षु-दर्शन, अवधि-दर्शन और केवलज्ञान-दर्शनका भी कथन किया है। गुणस्थान और मार्गणा प्रत्ययोंमें भाबोंको अवगत करने के लिए यह अन्य उपयोगी है ।
३.परमागमसारग २३० गाथाएं हैं और आगमके स्वरूप तथा भेद-अभेदोंका वर्णन आया है। श्रुतमुनिकी ये तीनों रचनाएं उनके सिद्धान्तज्ञानका महत्त्व प्रकट करती हैं। इन रचनाओं पर गोम्मटसार कर्मकाण्ड और 'जीवकाण्डका प्रभाव पूर्णतया ज्ञात होता है। भावविभङ्गी में पांचों भावोंके उत्तर भेदों से किस स्थानमें कितने भाव होते हैं और कितने नहीं होते और कितने भाव उसी स्थान में होकर आगे नहीं होते इन तीनों बातोंका स्पष्टीकरण किया है। इसी कारण इस ग्रन्धका नाम त्रिभंगी है। इसी प्रकार आस्रवप्रत्यय किस गुणस्थान में कितने होते हैं, कितने नहीं होते और कितने प्रत्यय उसी गुणस्थान तक होते हैं, आगे नहीं होते इन तीनोंका कथन किया है। दोनों विभंगी पन्थ माणिकचन्द्र ग्रन्थमाला ग्रन्थसंख्या २० में प्रकाशित हैं।
गुरु | आचार्य श्री बालचंद्र |
शिष्य | आचार्य श्री श्रुतमुनी |
स्वतन्त्र-रचना-प्रतिभा के साथ टीका, भाष्य एवं विवृत्ति लिखनेकी क्षमता भी प्रबुद्धाचायोंमें थी । श्रुतधराचार्य और सारस्वताचार्योंने जो विषय-वस्तु प्रस्तुत की थी उसीको प्रकारान्तरसे उपस्थित करनेका कार्य प्रबुद्धाचार्योने किया है । यह सत्य है कि इन आचार्योंने अपनी मौलिक प्रतिभा द्वारा परम्परासे प्राप्त तथ्योंको नवीन रूपमें भी प्रस्तुत किया है। अतः विषयके प्रस्तुतीकरणकी दृष्टिसे इन वाचायोका अपना महत्त्व है।
प्रबुद्धाचार्यों में कई आचार्य इतने प्रतिभाशाली हैं कि उन्हें सारस्वताचार्योकी श्रेणी में परिगणित किया जा सकता है। किन्तु विषय-निरूपणको सूक्ष्म क्षमता प्रबुद्धाचार्योंमें वैसी नहीं है, जैसी सारस्वताचार्यों में पायी जाती है। यहाँ इन प्रबुद्धाचार्योंके व्यक्तित्व और कृति तत्वका विवेचन प्रस्तुत है।
Aacharya Shri Shrutmuni 13 Th Century
Santosh Khule Created Wiki Page Maharaj ji On Date 14-May- 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
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