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#Sumatidev8ThCentury

मल्लिषेणप्रशस्तिमें सुमतिदेव नामके आचार्यका उल्लेख है, जो सुमति समकके रचयिता है । लिखा है
सुमति-देवममुं स्तुतयेन वस्सुमति-सप्तकमाप्तरायाकृतं ।
परिहत्तापथ-तत्त्व-पथास्थिनां सुमति-कोटि-वित्तिभवात्तिहृत् ॥१३॥
श्री प्रेमीजीने वादिराजसूरि द्वारा पाश्वनाथचरित उल्लिखित सन्मति आचार्य को सुमतिदेवसे अभिन्न स्वीकार किया है और इन सन्मतिने सिद्धसेनके संमतिप्रकरण नामक ग्रन्थपर टीका लिखी थी | श्री प्रेमीजीने मल्लिषेणप्रशस्ति में कुन्दकुन्द, समन्तभद्र, सिहन्दि, बक्रग्रीव, वचनन्दि और पात्रकेसरीके पश्चात् सुमतिदेवकी स्तुति किये जाने के कारण इनका समय ७वीं, ८ वीं शताब्दी अनुमानिस किया है ।
१. जनशिलालेखसंग्रह, प्रथम भाग, अभिलेखसंख्या ५४, पद्य १३ ।
| गुरु | |
| शिष्य | आचार्य श्री सुमतिदेव |
स्वतन्त्र-रचना-प्रतिभा के साथ टीका, भाष्य एवं विवृत्ति लिखनेकी क्षमता भी प्रबुद्धाचायोंमें थी । श्रुतधराचार्य और सारस्वताचार्योंने जो विषय-वस्तु प्रस्तुत की थी उसीको प्रकारान्तरसे उपस्थित करनेका कार्य प्रबुद्धाचार्योने किया है । यह सत्य है कि इन आचार्योंने अपनी मौलिक प्रतिभा द्वारा परम्परासे प्राप्त तथ्योंको नवीन रूपमें भी प्रस्तुत किया है। अतः विषयके प्रस्तुतीकरणकी दृष्टिसे इन वाचायोका अपना महत्त्व है।
प्रबुद्धाचार्यों में कई आचार्य इतने प्रतिभाशाली हैं कि उन्हें सारस्वताचार्योकी श्रेणी में परिगणित किया जा सकता है। किन्तु विषय-निरूपणको सूक्ष्म क्षमता प्रबुद्धाचार्योंमें वैसी नहीं है, जैसी सारस्वताचार्यों में पायी जाती है। यहाँ इन प्रबुद्धाचार्योंके व्यक्तित्व और कृति तत्वका विवेचन प्रस्तुत है।
Book : Tirthankar Mahavir Aur Unki Acharya Parampara3
#Sumatidev8ThCentury
Book : Tirthankar Mahavir Aur Unki Acharya Parampara3
आचार्य श्री सुमतिदेव आठवीं शताब्दी
| Name | Phone/Mobile 1 | Which Sangh/Maharaji/Aryika Ji you are associated with |
|---|---|---|
| Sangh Common Number | +919844033717 | #VardhamanSagarJiMaharaj1950DharmSagarJi |
| Hemal Jain | +918690943133 | #SunilSagarJi1977SanmatiSagarJi |
| Abhi Bantu | +919575455473 | #SunilSagarJi1977SanmatiSagarJi |
| Purnima Didi | +918552998307 | #SunilSagarJi1977SanmatiSagarJi |
| Varna Manish Bhai | +919352199164 | #KanaknandiJiMaharajKunthusagarji |
| Ankit Test | +919730016352 | #AcharyaShriVidyasagarjiMaharaj |
| Santosh Khule | +919850774639 | #PavitrasagarJiMaharaj1949SanmatiSagarJi1927 |
| Madhok Shaha | +919928058345 | #KanaknandiJiMaharajKunthusagarji |
| Siddharth jain Baddu | +917987281995 | #AcharyaShriVidyasagarjiMaharaj, #VishalSagarJiMaharaj1977VidyaSagarJi |
| Akshay Adadande | +919765069127 | #AcharyaShriVidyasagarjiMaharaj, #NiyamSagarJiMaharaj1957VidyaSagarJi |
| Mayur Jain | +918484845108 | #SundarSagarJiMaharaj1976SanmatiSagarJi, #VibhavSagarJiMaharaj1976ViragSagarJi, #PrabhavsagarjiPavitrasagarJiMaharaj1949, #MayanksagarjiRayansagarJiMaharaj1955 |
संतोष खुले जी ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 18-May- 2022
दिगजैनविकी आभारी है
बालिकाई शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
नेमिनाथ जी शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
परियोजना के लिए पुस्तकों को संदर्भित करने के लिए।
लेखक:- पंडित श्री नेमीचंद्र शास्त्री-ज्योतिषाचार्य
आचार्य शांति सागर छानी ग्रंथ माला
Santosh Khule Created Wiki Page Maharaj ji On Date 18-May- 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
मल्लिषेणप्रशस्तिमें सुमतिदेव नामके आचार्यका उल्लेख है, जो सुमति समकके रचयिता है । लिखा है
सुमति-देवममुं स्तुतयेन वस्सुमति-सप्तकमाप्तरायाकृतं ।
परिहत्तापथ-तत्त्व-पथास्थिनां सुमति-कोटि-वित्तिभवात्तिहृत् ॥१३॥
श्री प्रेमीजीने वादिराजसूरि द्वारा पाश्वनाथचरित उल्लिखित सन्मति आचार्य को सुमतिदेवसे अभिन्न स्वीकार किया है और इन सन्मतिने सिद्धसेनके संमतिप्रकरण नामक ग्रन्थपर टीका लिखी थी | श्री प्रेमीजीने मल्लिषेणप्रशस्ति में कुन्दकुन्द, समन्तभद्र, सिहन्दि, बक्रग्रीव, वचनन्दि और पात्रकेसरीके पश्चात् सुमतिदेवकी स्तुति किये जाने के कारण इनका समय ७वीं, ८ वीं शताब्दी अनुमानिस किया है ।
१. जनशिलालेखसंग्रह, प्रथम भाग, अभिलेखसंख्या ५४, पद्य १३ ।
| गुरु | |
| शिष्य | आचार्य श्री सुमतिदेव |
स्वतन्त्र-रचना-प्रतिभा के साथ टीका, भाष्य एवं विवृत्ति लिखनेकी क्षमता भी प्रबुद्धाचायोंमें थी । श्रुतधराचार्य और सारस्वताचार्योंने जो विषय-वस्तु प्रस्तुत की थी उसीको प्रकारान्तरसे उपस्थित करनेका कार्य प्रबुद्धाचार्योने किया है । यह सत्य है कि इन आचार्योंने अपनी मौलिक प्रतिभा द्वारा परम्परासे प्राप्त तथ्योंको नवीन रूपमें भी प्रस्तुत किया है। अतः विषयके प्रस्तुतीकरणकी दृष्टिसे इन वाचायोका अपना महत्त्व है।
प्रबुद्धाचार्यों में कई आचार्य इतने प्रतिभाशाली हैं कि उन्हें सारस्वताचार्योकी श्रेणी में परिगणित किया जा सकता है। किन्तु विषय-निरूपणको सूक्ष्म क्षमता प्रबुद्धाचार्योंमें वैसी नहीं है, जैसी सारस्वताचार्यों में पायी जाती है। यहाँ इन प्रबुद्धाचार्योंके व्यक्तित्व और कृति तत्वका विवेचन प्रस्तुत है।
Santosh Khule Created Wiki Page Maharaj ji On Date 18-May- 2022
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Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
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Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
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15000
Aacharya Shri Sumatidev 8 Th Century
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