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#Surendrabhushan18ThCentury
साहित्य और संस्कृतिक परिपोषकोंमें बलात्कारगण और अटेर शाखाका भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस शाखामें सिंहकीर्ति,, धर्मकीर्ति, शीलभूषण, ज्ञानभूषण, जगतभषण, विश्वभूषण, देवेन्द्रभूषण और सुरेन्द्रभूषण का नामोल्लेख मिलता है । सुरेन्द्रभूषण देवेन्द्रभूषणके शिष्य थे। इन्होंने संवत् १७६० फाल्गुन शुक्ला प्रतिपदाको सम्यग्ज्ञानयन्त्र; सं० १७६६ माघ शुक्ला पंचमीको षोडशकारण यन्त्र; सं०१७७२ फाल्गुन कृष्णा नवमीको सम्यग्दर्शनयन्त्र और सं० १७९१ को फाल्गुन कृष्णा नवमीको अटेरमें दशलक्षणयन्त्रको स्थापना की। अतएव सुरेन्द्रभूषण भट्टारकका समय वि० सं० को १८वीं शतोका उत्तरार्द्ध है । सम्य ग्दर्शनयन्त्रपर निम्नलिखित अभिलेख अंकित है
__ "सं० १७७२ वर्षे फाल्गुन बदि ९ चंद्रे श्रीमूलसंघे ''भ: श्रीदेवेन्द्रभूषण देवाः तत्पदे भ० श्रीसुरेन्द्रभूषणदेवाः तस्मात् ब्रह्म जगतसिंह गुरूपदेशात् तदा म्नाये लंबकंचुकान्वये बुढेले जातीये ककौआ गोत्रे श्री सा सिषरामदाम भार्या देवजावी...!"।
सुरेन्द्रभूषणकी एक ही रचना 'ऋषिपंचमी कया उपलब्ध है। इस ग्रन्थकी . प्रशस्तिमें रचनाकाल वि० सं० १७५७ अंकित है। कविने इसे श्रावकोंके पढ़ने पढ़ाने के लिये लिखा है।
१. भट्टारक सम्प्रदाय, लेखांक ३२१
गुरु | आचार्य श्री देवेन्द्रभूषण |
शिष्य | आचार्य श्री सुरेन्द्रभूषण |
प्रास्ताविक
आचार्य केवल 'स्व'का उत्थान ही नहीं करते हैं, अपितु परम्पराले वाङ्मय और संस्कृतिकी रक्षा भी करते हैं । वे अपने चतुर्दिक फैले विश्वको केवल बाह्य नेत्रोंसे ही नहीं देखते, अपितु अन्तःचक्षुद्वारा उसके सौन्दर्य एवं वास्तविक रूपका अवलोकन करते हैं। जगत्के अनुभव के साथ अपना व्यक्तित्व मिला कर धरोहरके रूपमें प्राप्त बाइ मयकी परम्पराका विकास और प्रसार करते हैं। यही कारण है कि आचार्य अपने दायित्वका निर्वाह करने के लिये अपनी मौलिक प्रतिभाका पूर्णतया उपयोग करते हैं। दायित्व निर्वाहकी भावना इतनी बलवती रहती है, जिससे कभी-कभी परम्पराका पोषण मात्र ही हो पाता है।
यह सत्य है कि वाङ्मय-निर्माणको प्रतिभा किसी भी जाति था समाजकी समान नहीं रहती है । बारम्भमें जो प्रतिभाएं अपना चमत्कार दिखलाती हैं,
Book : Tirthankar Mahavir Aur Unki Acharya Parampara3
#Surendrabhushan18ThCentury
Book : Tirthankar Mahavir Aur Unki Acharya Parampara3
आचार्य श्री सुरेंद्रभूषण 18वीं शताब्दी
आचार्य श्री देवेन्द्रभूषण Aacharya Shri Devendrabhushan
संतोष खुले जी ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 14-June- 2022
दिगजैनविकी आभारी है
बालिकाई शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
नेमिनाथ जी शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
परियोजना के लिए पुस्तकों को संदर्भित करने के लिए।
लेखक:- पंडित श्री नेमीचंद्र शास्त्री-ज्योतिषाचार्य
आचार्य शांति सागर छानी ग्रंथ माला
Santosh Khule Created Wiki Page Maharaj ji On Date 14-June- 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
साहित्य और संस्कृतिक परिपोषकोंमें बलात्कारगण और अटेर शाखाका भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस शाखामें सिंहकीर्ति,, धर्मकीर्ति, शीलभूषण, ज्ञानभूषण, जगतभषण, विश्वभूषण, देवेन्द्रभूषण और सुरेन्द्रभूषण का नामोल्लेख मिलता है । सुरेन्द्रभूषण देवेन्द्रभूषणके शिष्य थे। इन्होंने संवत् १७६० फाल्गुन शुक्ला प्रतिपदाको सम्यग्ज्ञानयन्त्र; सं० १७६६ माघ शुक्ला पंचमीको षोडशकारण यन्त्र; सं०१७७२ फाल्गुन कृष्णा नवमीको सम्यग्दर्शनयन्त्र और सं० १७९१ को फाल्गुन कृष्णा नवमीको अटेरमें दशलक्षणयन्त्रको स्थापना की। अतएव सुरेन्द्रभूषण भट्टारकका समय वि० सं० को १८वीं शतोका उत्तरार्द्ध है । सम्य ग्दर्शनयन्त्रपर निम्नलिखित अभिलेख अंकित है
__ "सं० १७७२ वर्षे फाल्गुन बदि ९ चंद्रे श्रीमूलसंघे ''भ: श्रीदेवेन्द्रभूषण देवाः तत्पदे भ० श्रीसुरेन्द्रभूषणदेवाः तस्मात् ब्रह्म जगतसिंह गुरूपदेशात् तदा म्नाये लंबकंचुकान्वये बुढेले जातीये ककौआ गोत्रे श्री सा सिषरामदाम भार्या देवजावी...!"।
सुरेन्द्रभूषणकी एक ही रचना 'ऋषिपंचमी कया उपलब्ध है। इस ग्रन्थकी . प्रशस्तिमें रचनाकाल वि० सं० १७५७ अंकित है। कविने इसे श्रावकोंके पढ़ने पढ़ाने के लिये लिखा है।
१. भट्टारक सम्प्रदाय, लेखांक ३२१
गुरु | आचार्य श्री देवेन्द्रभूषण |
शिष्य | आचार्य श्री सुरेन्द्रभूषण |
प्रास्ताविक
आचार्य केवल 'स्व'का उत्थान ही नहीं करते हैं, अपितु परम्पराले वाङ्मय और संस्कृतिकी रक्षा भी करते हैं । वे अपने चतुर्दिक फैले विश्वको केवल बाह्य नेत्रोंसे ही नहीं देखते, अपितु अन्तःचक्षुद्वारा उसके सौन्दर्य एवं वास्तविक रूपका अवलोकन करते हैं। जगत्के अनुभव के साथ अपना व्यक्तित्व मिला कर धरोहरके रूपमें प्राप्त बाइ मयकी परम्पराका विकास और प्रसार करते हैं। यही कारण है कि आचार्य अपने दायित्वका निर्वाह करने के लिये अपनी मौलिक प्रतिभाका पूर्णतया उपयोग करते हैं। दायित्व निर्वाहकी भावना इतनी बलवती रहती है, जिससे कभी-कभी परम्पराका पोषण मात्र ही हो पाता है।
यह सत्य है कि वाङ्मय-निर्माणको प्रतिभा किसी भी जाति था समाजकी समान नहीं रहती है । बारम्भमें जो प्रतिभाएं अपना चमत्कार दिखलाती हैं,
Aacharya Shri Surendrabhushan 18th Century
आचार्य श्री देवेन्द्रभूषण Aacharya Shri Devendrabhushan
आचार्य श्री देवेन्द्रभूषण Aacharya Shri Devendrabhushan
Santosh Khule Created Wiki Page Maharaj ji On Date 14-June- 2022
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Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
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Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
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15000
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