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#VajranandiPrachin
मल्लिषेणप्रशस्तिमें वज्रनन्दिका नाम आया है । इन्हें नवरडोजना एनशिता बताया है । लिखा है
नवस्तोत्रं तत्र प्रसरति कवीन्द्राः कथमपि
प्रणाम बनादो रचयत परम्नन्दिनि मुनी !
नवस्तोत्रं येन व्यरचि सकलाहप्रवचन
प्रपञ्चान्तर्भाव-प्रवण-वर-सन्दर्भसुभगं ।
आचार्य जिनसेनने अपने हरिवंशपुराणमें भी वच्चसूरिका उल्लेख किया है
वज्रसूरेबिचारिण्यः सहेत्वोबन्धमोक्षयोः ।
प्रमाणं धर्मशास्त्राणं प्रवक्तृणामित्रोक्तयः ।।
अर्थात, जो हेतुसहित बन्ध और मोक्षका विचार करनेवालो हैं, ऐसी श्री वनसुरिकी उक्तियाँ धर्मशास्त्रका व्याख्यान करनेवाले गणधरोंकी उक्तियों के समान हैं, प्रमाणरूप हैं । इस कथनसे यह ध्वनित होता है कि बज्नसूरि प्रसिद्ध सिद्धान्तशास्त्र के बेत्ता हुए हैं। अपभ्रंश भाषाके कवि धवलने अपने हरिवंश पुराणमें लिखा है
वज्जसूरि सुपसिद्धउ मुणिवरु, जेण पमाणगंथु किउ चंगर ! अर्थात् बज्रसूरि नामके प्रसिद्ध मुनिवर हुए, जिन्होंने सुन्दर प्रमाणग्रन्थ बनाया । जिनसेन और प्रवल दोनोंने ही वनसूरिका उल्लेख पूज्यपादके पश्चात् किया है। अतएव ये वही वचनन्दि मालूम होते हैं, जो पूज्यपादके शिष्य थे और जिन्हें देवसेनसूरिने अपने दर्शनसारमें द्राविडसंघका संस्थापक बतलाया है। नवस्तोत्रके अतिरिक्त इनका कोई प्रमाणग्रन्थ भी था । जिनसेनके उल्लेखसे इनके किसी सिद्धान्तग्रन्थके होनेको भी सम्भावना की जा सकती है ।
गुरु | आचार्य श्री पूज्यपाद जी |
शिष्य | आचार्य श्री वज्रनंदी जी |
स्वतन्त्र-रचना-प्रतिभा के साथ टीका, भाष्य एवं विवृत्ति लिखनेकी क्षमता भी प्रबुद्धाचायोंमें थी । श्रुतधराचार्य और सारस्वताचार्योंने जो विषय-वस्तु प्रस्तुत की थी उसीको प्रकारान्तरसे उपस्थित करनेका कार्य प्रबुद्धाचार्योने किया है । यह सत्य है कि इन आचार्योंने अपनी मौलिक प्रतिभा द्वारा परम्परासे प्राप्त तथ्योंको नवीन रूपमें भी प्रस्तुत किया है। अतः विषयके प्रस्तुतीकरणकी दृष्टिसे इन वाचायोका अपना महत्त्व है।
प्रबुद्धाचार्यों में कई आचार्य इतने प्रतिभाशाली हैं कि उन्हें सारस्वताचार्योकी श्रेणी में परिगणित किया जा सकता है। किन्तु विषय-निरूपणको सूक्ष्म क्षमता प्रबुद्धाचार्योंमें वैसी नहीं है, जैसी सारस्वताचार्यों में पायी जाती है। यहाँ इन प्रबुद्धाचार्योंके व्यक्तित्व और कृति तत्वका विवेचन प्रस्तुत है।
Book : Tirthankar Mahavir Aur Unki Acharya Parampara3
#VajranandiPrachin
Book : Tirthankar Mahavir Aur Unki Acharya Parampara3
आचार्य श्री वज्रनंदी (प्राचीन)
संतोष खुले जी ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 18-May- 2022
दिगजैनविकी आभारी है
बालिकाई शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
नेमिनाथ जी शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
परियोजना के लिए पुस्तकों को संदर्भित करने के लिए।
लेखक:- पंडित श्री नेमीचंद्र शास्त्री-ज्योतिषाचार्य
आचार्य शांति सागर छानी ग्रंथ माला
Santosh Khule Created Wiki Page Maharaj ji On Date 18-May- 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
मल्लिषेणप्रशस्तिमें वज्रनन्दिका नाम आया है । इन्हें नवरडोजना एनशिता बताया है । लिखा है
नवस्तोत्रं तत्र प्रसरति कवीन्द्राः कथमपि
प्रणाम बनादो रचयत परम्नन्दिनि मुनी !
नवस्तोत्रं येन व्यरचि सकलाहप्रवचन
प्रपञ्चान्तर्भाव-प्रवण-वर-सन्दर्भसुभगं ।
आचार्य जिनसेनने अपने हरिवंशपुराणमें भी वच्चसूरिका उल्लेख किया है
वज्रसूरेबिचारिण्यः सहेत्वोबन्धमोक्षयोः ।
प्रमाणं धर्मशास्त्राणं प्रवक्तृणामित्रोक्तयः ।।
अर्थात, जो हेतुसहित बन्ध और मोक्षका विचार करनेवालो हैं, ऐसी श्री वनसुरिकी उक्तियाँ धर्मशास्त्रका व्याख्यान करनेवाले गणधरोंकी उक्तियों के समान हैं, प्रमाणरूप हैं । इस कथनसे यह ध्वनित होता है कि बज्नसूरि प्रसिद्ध सिद्धान्तशास्त्र के बेत्ता हुए हैं। अपभ्रंश भाषाके कवि धवलने अपने हरिवंश पुराणमें लिखा है
वज्जसूरि सुपसिद्धउ मुणिवरु, जेण पमाणगंथु किउ चंगर ! अर्थात् बज्रसूरि नामके प्रसिद्ध मुनिवर हुए, जिन्होंने सुन्दर प्रमाणग्रन्थ बनाया । जिनसेन और प्रवल दोनोंने ही वनसूरिका उल्लेख पूज्यपादके पश्चात् किया है। अतएव ये वही वचनन्दि मालूम होते हैं, जो पूज्यपादके शिष्य थे और जिन्हें देवसेनसूरिने अपने दर्शनसारमें द्राविडसंघका संस्थापक बतलाया है। नवस्तोत्रके अतिरिक्त इनका कोई प्रमाणग्रन्थ भी था । जिनसेनके उल्लेखसे इनके किसी सिद्धान्तग्रन्थके होनेको भी सम्भावना की जा सकती है ।
गुरु | आचार्य श्री पूज्यपाद जी |
शिष्य | आचार्य श्री वज्रनंदी जी |
स्वतन्त्र-रचना-प्रतिभा के साथ टीका, भाष्य एवं विवृत्ति लिखनेकी क्षमता भी प्रबुद्धाचायोंमें थी । श्रुतधराचार्य और सारस्वताचार्योंने जो विषय-वस्तु प्रस्तुत की थी उसीको प्रकारान्तरसे उपस्थित करनेका कार्य प्रबुद्धाचार्योने किया है । यह सत्य है कि इन आचार्योंने अपनी मौलिक प्रतिभा द्वारा परम्परासे प्राप्त तथ्योंको नवीन रूपमें भी प्रस्तुत किया है। अतः विषयके प्रस्तुतीकरणकी दृष्टिसे इन वाचायोका अपना महत्त्व है।
प्रबुद्धाचार्यों में कई आचार्य इतने प्रतिभाशाली हैं कि उन्हें सारस्वताचार्योकी श्रेणी में परिगणित किया जा सकता है। किन्तु विषय-निरूपणको सूक्ष्म क्षमता प्रबुद्धाचार्योंमें वैसी नहीं है, जैसी सारस्वताचार्यों में पायी जाती है। यहाँ इन प्रबुद्धाचार्योंके व्यक्तित्व और कृति तत्वका विवेचन प्रस्तुत है।
Aacharya Shri Vajranandi ( Prachin )
Santosh Khule Created Wiki Page Maharaj ji On Date 18-May- 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
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15000
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