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#Vardhaman2ndPrachin
बलात्कारगण कारन्जा शाखामें विशालकीर्ति आचार्य हुए हैं। इन्होंने सुल्तान सिकन्दर, विजयनगर के महाराज विरूपाक्ष और आरमनगर के दण्डनायक देवप्पकी सभाओं में सम्मान प्राप्त किया था। इन्हीं विशालकीर्ति के शिष्य विद्यानन्दि हुए। इन्हों ने श्रीरंगपट्टनके वीर पृथ्वीपति, सालुव कृष्णदेव, विजय
१. भट्टारक सम्प्रदाय, लेखांक ५८ ।
नगरके सम्राट् श्रीकृष्णराय और सुल्तान अल्लाउद्दीनसे सम्मान प्राप्त किया था । इन्हींके शिष्य भट्टारक देवेन्द्रकीर्ति हुए और देवेन्द्रकीर्तिके शिष्य भट्टा रक बर्द्धमान द्वितीय थे। बर्द्धमान द्वितीयने अपने दशभक्त्यादिमहाशास्त्रमें अपना परिचय संक्षेप रूपमें प्रस्तुत किया है और अपनेको देवेन्द्रकीर्तिका शिष्य बताया है । लिखा है
बलात्कारगणाम्भोजभास्करस्य महायुतेः ।
श्रीमह बेन्द्रकोाख्यभट्टारकशिरोमणेः ।।
शिष्येण ज्ञातशास्त्रार्थस्वरूपेण सुधीमता ।
जिनेन्द्रचरणाद्वैतस्मरणाधीनचेतसा ॥
वर्द्धनागमुनी च हिमान धुता ।
कथितं दशभक्त्यादिशासनं भव्यसौख्यदम् ।।
निश्चयतः बर्द्धमान द्वितीय अपने समयके प्रसिद्ध विद्वान हैं। इन्होंने पूर्ववर्ती आचार्यों में घरसेन, समन्तभद्र, आर्यसन, अजितसन, बीरसेन, जिनसेन, गुणभद्र, लोकसेन, आशाघर, कमलभद्र, नरेन्द्र सेन, धर्मसेन, रविषेण, कनकसेन, दयापाल, रामसेन, माधवसेन, लक्ष्मीसेन, जयसेन, नागसेन, मंतिसागर, रामसेन और सोमसेनका स्मरण किया है। इन आचार्योंके अतिरिक्त श्रुतकीर्ति, विजयकोति, पद्मप्रभ, भट्टाकलंक वा चन्द्रप्रभका भी स्मरण किया है। ऐतिहासिक अध्यधनकी दृष्टि से दशभक्त्यादिमहाशास्त्र बहुत ही उपयोगी है ।
इस महाशास्त्रकी रचना शक संवत् १४६४ ( चि०सं० १५९९ )में हुई है। लिखा है
शाके वह्निखब्धिचन्द्रकलिते संवत्सरे शावरे ।
शुद्धथावणभाककृतान्तधरणीतुरमैत्रमेषे रखो।
कर्किस्थे सुगुरौ जिनस्मरणतो वादीद्रवृन्दार्चित
विद्यानन्दमुनीश्वरः स गतवान् स्वर्ग चिदानंदकः ।।
-दशभक्त्यादिमहाशास्त्र, अन्तिम प्रशस्ति ।
बर्द्धमान द्वितीयकी एक ही रचना दशभक्त्यादिमहाशास्त्र उपलब्ध है। यह रचना संस्कृत में लिखी गयी है।
गुरु | आचार्य श्री भट्टारक देवेन्द्रकीर्ती |
शिष्य | आचार्य श्री वर्धमान द्वितीय |
प्रास्ताविक
आचार्य केवल 'स्व'का उत्थान ही नहीं करते हैं, अपितु परम्पराले वाङ्मय और संस्कृतिकी रक्षा भी करते हैं । वे अपने चतुर्दिक फैले विश्वको केवल बाह्य नेत्रोंसे ही नहीं देखते, अपितु अन्तःचक्षुद्वारा उसके सौन्दर्य एवं वास्तविक रूपका अवलोकन करते हैं। जगत्के अनुभव के साथ अपना व्यक्तित्व मिला कर धरोहरके रूपमें प्राप्त बाइ मयकी परम्पराका विकास और प्रसार करते हैं। यही कारण है कि आचार्य अपने दायित्वका निर्वाह करने के लिये अपनी मौलिक प्रतिभाका पूर्णतया उपयोग करते हैं। दायित्व निर्वाहकी भावना इतनी बलवती रहती है, जिससे कभी-कभी परम्पराका पोषण मात्र ही हो पाता है।
यह सत्य है कि वाङ्मय-निर्माणको प्रतिभा किसी भी जाति था समाजकी समान नहीं रहती है । बारम्भमें जो प्रतिभाएं अपना चमत्कार दिखलाती हैं,
Book : Tirthankar Mahavir Aur Unki Acharya Parampara3
#Vardhaman2ndPrachin
Book : Tirthankar Mahavir Aur Unki Acharya Parampara3
आचार्य श्री वर्धमान द्वितीय (प्राचीन)
आचार्य श्री भट्टारक देवेन्द्रकीर्ति Aacharya Shri Bhattarak Devendrakirti
संतोष खुले जी ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 13-June- 2022
दिगजैनविकी आभारी है
बालिकाई शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
नेमिनाथ जी शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
परियोजना के लिए पुस्तकों को संदर्भित करने के लिए।
लेखक:- पंडित श्री नेमीचंद्र शास्त्री-ज्योतिषाचार्य
आचार्य शांति सागर छानी ग्रंथ माला
Santosh Khule Created Wiki Page Maharaj ji On Date 13-June- 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
बलात्कारगण कारन्जा शाखामें विशालकीर्ति आचार्य हुए हैं। इन्होंने सुल्तान सिकन्दर, विजयनगर के महाराज विरूपाक्ष और आरमनगर के दण्डनायक देवप्पकी सभाओं में सम्मान प्राप्त किया था। इन्हीं विशालकीर्ति के शिष्य विद्यानन्दि हुए। इन्हों ने श्रीरंगपट्टनके वीर पृथ्वीपति, सालुव कृष्णदेव, विजय
१. भट्टारक सम्प्रदाय, लेखांक ५८ ।
नगरके सम्राट् श्रीकृष्णराय और सुल्तान अल्लाउद्दीनसे सम्मान प्राप्त किया था । इन्हींके शिष्य भट्टारक देवेन्द्रकीर्ति हुए और देवेन्द्रकीर्तिके शिष्य भट्टा रक बर्द्धमान द्वितीय थे। बर्द्धमान द्वितीयने अपने दशभक्त्यादिमहाशास्त्रमें अपना परिचय संक्षेप रूपमें प्रस्तुत किया है और अपनेको देवेन्द्रकीर्तिका शिष्य बताया है । लिखा है
बलात्कारगणाम्भोजभास्करस्य महायुतेः ।
श्रीमह बेन्द्रकोाख्यभट्टारकशिरोमणेः ।।
शिष्येण ज्ञातशास्त्रार्थस्वरूपेण सुधीमता ।
जिनेन्द्रचरणाद्वैतस्मरणाधीनचेतसा ॥
वर्द्धनागमुनी च हिमान धुता ।
कथितं दशभक्त्यादिशासनं भव्यसौख्यदम् ।।
निश्चयतः बर्द्धमान द्वितीय अपने समयके प्रसिद्ध विद्वान हैं। इन्होंने पूर्ववर्ती आचार्यों में घरसेन, समन्तभद्र, आर्यसन, अजितसन, बीरसेन, जिनसेन, गुणभद्र, लोकसेन, आशाघर, कमलभद्र, नरेन्द्र सेन, धर्मसेन, रविषेण, कनकसेन, दयापाल, रामसेन, माधवसेन, लक्ष्मीसेन, जयसेन, नागसेन, मंतिसागर, रामसेन और सोमसेनका स्मरण किया है। इन आचार्योंके अतिरिक्त श्रुतकीर्ति, विजयकोति, पद्मप्रभ, भट्टाकलंक वा चन्द्रप्रभका भी स्मरण किया है। ऐतिहासिक अध्यधनकी दृष्टि से दशभक्त्यादिमहाशास्त्र बहुत ही उपयोगी है ।
इस महाशास्त्रकी रचना शक संवत् १४६४ ( चि०सं० १५९९ )में हुई है। लिखा है
शाके वह्निखब्धिचन्द्रकलिते संवत्सरे शावरे ।
शुद्धथावणभाककृतान्तधरणीतुरमैत्रमेषे रखो।
कर्किस्थे सुगुरौ जिनस्मरणतो वादीद्रवृन्दार्चित
विद्यानन्दमुनीश्वरः स गतवान् स्वर्ग चिदानंदकः ।।
-दशभक्त्यादिमहाशास्त्र, अन्तिम प्रशस्ति ।
बर्द्धमान द्वितीयकी एक ही रचना दशभक्त्यादिमहाशास्त्र उपलब्ध है। यह रचना संस्कृत में लिखी गयी है।
गुरु | आचार्य श्री भट्टारक देवेन्द्रकीर्ती |
शिष्य | आचार्य श्री वर्धमान द्वितीय |
प्रास्ताविक
आचार्य केवल 'स्व'का उत्थान ही नहीं करते हैं, अपितु परम्पराले वाङ्मय और संस्कृतिकी रक्षा भी करते हैं । वे अपने चतुर्दिक फैले विश्वको केवल बाह्य नेत्रोंसे ही नहीं देखते, अपितु अन्तःचक्षुद्वारा उसके सौन्दर्य एवं वास्तविक रूपका अवलोकन करते हैं। जगत्के अनुभव के साथ अपना व्यक्तित्व मिला कर धरोहरके रूपमें प्राप्त बाइ मयकी परम्पराका विकास और प्रसार करते हैं। यही कारण है कि आचार्य अपने दायित्वका निर्वाह करने के लिये अपनी मौलिक प्रतिभाका पूर्णतया उपयोग करते हैं। दायित्व निर्वाहकी भावना इतनी बलवती रहती है, जिससे कभी-कभी परम्पराका पोषण मात्र ही हो पाता है।
यह सत्य है कि वाङ्मय-निर्माणको प्रतिभा किसी भी जाति था समाजकी समान नहीं रहती है । बारम्भमें जो प्रतिभाएं अपना चमत्कार दिखलाती हैं,
Aacharya Shri Vardhaman 2nd (Prachin)
आचार्य श्री भट्टारक देवेन्द्रकीर्ति Aacharya Shri Bhattarak Devendrakirti
आचार्य श्री भट्टारक देवेन्द्रकीर्ति Aacharya Shri Bhattarak Devendrakirti
Santosh Khule Created Wiki Page Maharaj ji On Date 13-June- 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
#Vardhaman2ndPrachin
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Vardhaman2ndPrachin
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