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#VeernandiSiddhantchakravarti12ThCentury
आचारसारके रचयिता बीरनन्दि सिद्धान्तचक्रवर्ती मूलसंघ पुस्तकाच्या और देशीयगणके आचार्य हैं । आचारसार ग्रंथके अन्त में जो प्रशस्ति दी गयी है, उससे इतना ही ज्ञात होता है कि इनके गुरु मेघचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती थे। लिखा है
श्रीमेपचन्द्रोज्ज्वलमत्तिकोत्तिः समस्तसैद्धान्तिकचक्रवर्ती।
श्रोबीरनन्दी कृतवानुदारमाचारसारं यत्तिवृत्तसारम् ।।
ग्रंथके प्रत्येक अधिकारके अन्समें जो पुपिका दो गयी है उसमें भी आचार्य बारनन्दिने अपने गुरु मेषचन्द्रका उल्लेख किया है
"इति श्रीमन्मेषचन्द्रविद्यदेवपादप्रसादासादितात्मप्रभावसमस्तविद्या प्रभावसकलदिबत्तिकोतिनोमबीरनंदिसवांतिकचक्रवत्तिप्रणोते श्री आचारसार' नाम्नि ग्रंधे शीलगणवर्णनात्मको द्वादशोऽधिकारः॥
१. आचारसार, माणिकचन्द्र प्रन्यमाला, ग्रन्यांक ११, १२३३ ।
इस प्रशस्ति और पुष्पिकावाक्यसे यह स्पष्ट है कि वीरनन्दि सिद्धान्तचक्र वकि गुरु मेघचन्द्र थे और इनका परिचय श्रवणबेलगोलाके अभिलेख नं०४७ में निम्न प्रकार प्राप्त होता है
तर्क॒न्यायसुबनवेदिरमलार्हत्सूक्तिसन्मौकिक:
शब्दग्रंथविशुद्धशखलित: स्याहादसद्विद्रुमः ।
व्याख्यानांजितपाषणप्रविपुल प्रजोडवीचीचयो
जीयाद्विश्रुतमेद्यचन्द्रमुनिपस्त्रविद्यरत्नाकरः ।।
श्रीमलसंघकृतपुस्तकगच्छदेशो
योद्यद्गणाधिपसुताकिकचक्रवर्ती ।
डान्तिकेश्वरशिखामणिमेषचन्द्र
स्त्रविद्यदेव इति सद्विबुधाः स्तुवन्ति ।।
सिद्धान्ते जिन-वीरसेनसदशाः शास्त्राब्जनीभास्कर:
पटतष्वकलंकदेवविबुधः साक्षादयं भतले।
सर्वव्याकरणं विपाश्चदधिपः श्रीपूज्यपादः स्वयं
त्रैविद्योत्तममेषचन्द्रमुनिषों बादीभपंचाननः ।।
इन पद्योंसे स्पष्ट है कि वीरनन्दिके गुरु मेधचन्द्र न्याय, व्याकरण, सिद्धान्त आदि सभी विषयों के अपुर्व विद्वान थे । उनके अनेक शिष्य थे, जिनमें प्रभाचन्द्र और शुभचन्द्र आदि कई प्रधान शिष्योंक स्मृतिलेख श्रवणबेलगोलाको शिलाओं पर अंकित हैं।
'कर्णाटककविचारते' से अवगत होता है कि इन मेघचन्द्रने पूज्यपादके समाधितन्त्रको एक टोका लिखी है और ये अभिनव पम्प (नागचन्द्र)के गुरु बालचन्द्र के सहाध्यायी थे। मेधचन्द्रको गुरुपरम्परा निम्न प्रकार है।
गोलाचार्य
|
अभयनन्दि
|
सोमदेव
|
सकलचन्द्र
|
मेघचन्द्र
१. जैन शिलालेखसंग्रह, प्रथम भाग, भिलेखसंख्या ४७, पत्र २८, २९, ३.
पृष्ठ ६२ ।
इस ग्रंथको प्रशस्तिसे तथा श्रवणबेलगोलाके ५०वें अभिलेखसे यह भी जात होता है कि आचार्य चोरनन्दि सिमान्तचक्रवर्तीका मेघचन्द्र के साथ गुरु-शिष्य के साथ पिता-पुत्रका भी सम्बन्ध था
वेदाध्यश्रावधूटोपतिरतुलगुणालंकृतिर्मेषचन्द्र
त्रैविद्यस्यात्मजातो मदनमहिभृतो भेदने बज्रपातः ।
सैद्धान्तब्यूहचूडामणिरनुपचिन्तामणि जनानां
योऽभूत्सौजन्यरून्द्रश्रियमवति महो वीरनन्दी मुनोन्द्रः ॥
यही पच अभिलेखसंख्या ५० का ५० वाँ पद्य भी है। इससे स्पष्ट है कि मेधचन्द्र के पुत्र वीरभन्दी थे।
श्रवणबेलगोलके अभिलेखसंख्या ४७.५० और १२ से ज्ञात होता है कि आचार्य मेषचन्द्रका स्वर्गवास शक संवत् १०३७ (वि० सं० १९७२) में और जनके शुभचन्द्रदेवनामक शिष्यका स्वर्गवास शक संवत् १०६६ (वि० सं० १२०३) में हुआ था तथा उनके द्वितीय शिष्य प्रभाबन्द्र देवने शक संवत् १०४१ (दि सं० ११७६) में एक महापूजा प्रतिष्ठा करायी थी। इससे प्रतीत होता है कि आचारसारके कर्ता वीरनन्दि सिद्धान्तचक्रवर्ती इसी समयके लगभग अर्थात् ई० सन्को १२वीं शताब्दीके पूर्वाध में हुए होंगे।
कर्णाटककवचरिते के अनुसार नागचन्द्रका समय वि सं० १९६२ के लगभग निश्चित किया गया है और इनके गुरु बालचन्द्रको मेषचन्द्रका सहा ध्यायी बताया है। असएव स्पष्ट है कि मेधचन्द्रके शिष्य वीरनन्दीका समय ई० सन्की १२वीं शताब्दीका मध्य भाग है।
प्रस्तुत बीरनन्दि चन्द्रप्रभचरित' के कर्ता भाचार्य वीरनन्दिसे मिल हैं। अभयनन्दिके शिष्य और गुणन्दिके प्रशिष्य थे।
वीरनन्दि सिद्धान्तचक्रवर्तीकी एक हो कृति प्राप्त है-'आचारसार' । इसमें मुनियों के आचारका विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। अन्य १२ परि च्छेदोंमें विभक्त है। ग्रन्धका प्रमाण स्वयं ही ग्रन्धक ने बताया है
ग्रन्थप्रमाणमाचारसारस्य लोकसम्मितम्।
भवेत्सहनं द्विशतं पंचाशचनकत्तस्तथा ॥'
१. बापारसार, १३२ ।
२. वही, अन्तिम पर।
प्रथम अधिकारमें ४९ पद्य हैं और २८ मलगुणोंका कथन आया है। द्वितीय अधिकारमें २४ पद्य हैं और मुनिके रहन-सहन आचार-विचार, क्रिया-कलाप आदिका वर्णन किया गया है। तृतीय अधिकारमें ७५ पद्य हैं और दर्शनाचारका वर्णन आया है । चनु जधिकारमें १७ पछा समाधारका ग किया गया है। पंचम अधिकारमें १५१ पद्य हैं और चारित्राचारका विस्तार पूर्वक निरूपण किया गया है। षष्ठ अधिकारमें १०२ पद्य हैं और तपाचारकर वर्णन आया है । सप्तम अधिकारमें २६ पद्य हैं और वीर्याचारका कथन किया है । अष्टम अधिकारमें ८४ पद्य हैं और 'अष्टशुद्धियों का विस्तारपूर्वक कथन वाया है | नवम अधिकारमें स्वाध्याय, पर्व कर्तव्य एवं समताका वर्णन आया है। दशम अधिकारक ६३ पद्यों में ध्यानका वर्णन है । एकादश अधिकारमें १९७ पध हैं और जीव तथा कर्माकी प्ररूपणा की गयी है। द्वादश अधिकारमें ३३ पद्य है और शीलका वर्णन आया है । इस प्रकार यह ग्रन्थ मुनियोंके आचार-विचारको अवगत करने के लिए उपादेय है। पंचाचार और षडावश्यकोंका मुलाचारके समान ही वर्णन आया है । व्यवहारचर्याक वर्णनमें कतिपय नवीन बातें भी सम्मिलित की गयो हैं, जिनका सम्बन्ध लोकाचारके साथ है।
गुरु | आचार्य श्री मेघचंद्र सिद्धांतचक्रवर्ती |
शिष्य | आचार्य श्री वीरनन्दी सिद्धांतचक्रवर्ती |
स्वतन्त्र-रचना-प्रतिभा के साथ टीका, भाष्य एवं विवृत्ति लिखनेकी क्षमता भी प्रबुद्धाचायोंमें थी । श्रुतधराचार्य और सारस्वताचार्योंने जो विषय-वस्तु प्रस्तुत की थी उसीको प्रकारान्तरसे उपस्थित करनेका कार्य प्रबुद्धाचार्योने किया है । यह सत्य है कि इन आचार्योंने अपनी मौलिक प्रतिभा द्वारा परम्परासे प्राप्त तथ्योंको नवीन रूपमें भी प्रस्तुत किया है। अतः विषयके प्रस्तुतीकरणकी दृष्टिसे इन वाचायोका अपना महत्त्व है।
प्रबुद्धाचार्यों में कई आचार्य इतने प्रतिभाशाली हैं कि उन्हें सारस्वताचार्योकी श्रेणी में परिगणित किया जा सकता है। किन्तु विषय-निरूपणको सूक्ष्म क्षमता प्रबुद्धाचार्योंमें वैसी नहीं है, जैसी सारस्वताचार्यों में पायी जाती है। यहाँ इन प्रबुद्धाचार्योंके व्यक्तित्व और कृति तत्वका विवेचन प्रस्तुत है।
Book : Tirthankar Mahavir Aur Unki Acharya Parampara3
#VeernandiSiddhantchakravarti12ThCentury
Book : Tirthankar Mahavir Aur Unki Acharya Parampara3
आचार्य श्री वीरनन्दी सिद्धांतचक्रवर्ती 12वीं शताब्दी
संतोष खुले जी ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 13-May- 2022
दिगजैनविकी आभारी है
बालिकाई शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
नेमिनाथ जी शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
परियोजना के लिए पुस्तकों को संदर्भित करने के लिए।
लेखक:- पंडित श्री नेमीचंद्र शास्त्री-ज्योतिषाचार्य
आचार्य शांति सागर छानी ग्रंथ माला
Santosh Khule Created Wiki Page Maharaj ji On Date 13-May- 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
आचारसारके रचयिता बीरनन्दि सिद्धान्तचक्रवर्ती मूलसंघ पुस्तकाच्या और देशीयगणके आचार्य हैं । आचारसार ग्रंथके अन्त में जो प्रशस्ति दी गयी है, उससे इतना ही ज्ञात होता है कि इनके गुरु मेघचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती थे। लिखा है
श्रीमेपचन्द्रोज्ज्वलमत्तिकोत्तिः समस्तसैद्धान्तिकचक्रवर्ती।
श्रोबीरनन्दी कृतवानुदारमाचारसारं यत्तिवृत्तसारम् ।।
ग्रंथके प्रत्येक अधिकारके अन्समें जो पुपिका दो गयी है उसमें भी आचार्य बारनन्दिने अपने गुरु मेषचन्द्रका उल्लेख किया है
"इति श्रीमन्मेषचन्द्रविद्यदेवपादप्रसादासादितात्मप्रभावसमस्तविद्या प्रभावसकलदिबत्तिकोतिनोमबीरनंदिसवांतिकचक्रवत्तिप्रणोते श्री आचारसार' नाम्नि ग्रंधे शीलगणवर्णनात्मको द्वादशोऽधिकारः॥
१. आचारसार, माणिकचन्द्र प्रन्यमाला, ग्रन्यांक ११, १२३३ ।
इस प्रशस्ति और पुष्पिकावाक्यसे यह स्पष्ट है कि वीरनन्दि सिद्धान्तचक्र वकि गुरु मेघचन्द्र थे और इनका परिचय श्रवणबेलगोलाके अभिलेख नं०४७ में निम्न प्रकार प्राप्त होता है
तर्क॒न्यायसुबनवेदिरमलार्हत्सूक्तिसन्मौकिक:
शब्दग्रंथविशुद्धशखलित: स्याहादसद्विद्रुमः ।
व्याख्यानांजितपाषणप्रविपुल प्रजोडवीचीचयो
जीयाद्विश्रुतमेद्यचन्द्रमुनिपस्त्रविद्यरत्नाकरः ।।
श्रीमलसंघकृतपुस्तकगच्छदेशो
योद्यद्गणाधिपसुताकिकचक्रवर्ती ।
डान्तिकेश्वरशिखामणिमेषचन्द्र
स्त्रविद्यदेव इति सद्विबुधाः स्तुवन्ति ।।
सिद्धान्ते जिन-वीरसेनसदशाः शास्त्राब्जनीभास्कर:
पटतष्वकलंकदेवविबुधः साक्षादयं भतले।
सर्वव्याकरणं विपाश्चदधिपः श्रीपूज्यपादः स्वयं
त्रैविद्योत्तममेषचन्द्रमुनिषों बादीभपंचाननः ।।
इन पद्योंसे स्पष्ट है कि वीरनन्दिके गुरु मेधचन्द्र न्याय, व्याकरण, सिद्धान्त आदि सभी विषयों के अपुर्व विद्वान थे । उनके अनेक शिष्य थे, जिनमें प्रभाचन्द्र और शुभचन्द्र आदि कई प्रधान शिष्योंक स्मृतिलेख श्रवणबेलगोलाको शिलाओं पर अंकित हैं।
'कर्णाटककविचारते' से अवगत होता है कि इन मेघचन्द्रने पूज्यपादके समाधितन्त्रको एक टोका लिखी है और ये अभिनव पम्प (नागचन्द्र)के गुरु बालचन्द्र के सहाध्यायी थे। मेधचन्द्रको गुरुपरम्परा निम्न प्रकार है।
गोलाचार्य
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अभयनन्दि
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सोमदेव
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सकलचन्द्र
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मेघचन्द्र
१. जैन शिलालेखसंग्रह, प्रथम भाग, भिलेखसंख्या ४७, पत्र २८, २९, ३.
पृष्ठ ६२ ।
इस ग्रंथको प्रशस्तिसे तथा श्रवणबेलगोलाके ५०वें अभिलेखसे यह भी जात होता है कि आचार्य चोरनन्दि सिमान्तचक्रवर्तीका मेघचन्द्र के साथ गुरु-शिष्य के साथ पिता-पुत्रका भी सम्बन्ध था
वेदाध्यश्रावधूटोपतिरतुलगुणालंकृतिर्मेषचन्द्र
त्रैविद्यस्यात्मजातो मदनमहिभृतो भेदने बज्रपातः ।
सैद्धान्तब्यूहचूडामणिरनुपचिन्तामणि जनानां
योऽभूत्सौजन्यरून्द्रश्रियमवति महो वीरनन्दी मुनोन्द्रः ॥
यही पच अभिलेखसंख्या ५० का ५० वाँ पद्य भी है। इससे स्पष्ट है कि मेधचन्द्र के पुत्र वीरभन्दी थे।
श्रवणबेलगोलके अभिलेखसंख्या ४७.५० और १२ से ज्ञात होता है कि आचार्य मेषचन्द्रका स्वर्गवास शक संवत् १०३७ (वि० सं० १९७२) में और जनके शुभचन्द्रदेवनामक शिष्यका स्वर्गवास शक संवत् १०६६ (वि० सं० १२०३) में हुआ था तथा उनके द्वितीय शिष्य प्रभाबन्द्र देवने शक संवत् १०४१ (दि सं० ११७६) में एक महापूजा प्रतिष्ठा करायी थी। इससे प्रतीत होता है कि आचारसारके कर्ता वीरनन्दि सिद्धान्तचक्रवर्ती इसी समयके लगभग अर्थात् ई० सन्को १२वीं शताब्दीके पूर्वाध में हुए होंगे।
कर्णाटककवचरिते के अनुसार नागचन्द्रका समय वि सं० १९६२ के लगभग निश्चित किया गया है और इनके गुरु बालचन्द्रको मेषचन्द्रका सहा ध्यायी बताया है। असएव स्पष्ट है कि मेधचन्द्रके शिष्य वीरनन्दीका समय ई० सन्की १२वीं शताब्दीका मध्य भाग है।
प्रस्तुत बीरनन्दि चन्द्रप्रभचरित' के कर्ता भाचार्य वीरनन्दिसे मिल हैं। अभयनन्दिके शिष्य और गुणन्दिके प्रशिष्य थे।
वीरनन्दि सिद्धान्तचक्रवर्तीकी एक हो कृति प्राप्त है-'आचारसार' । इसमें मुनियों के आचारका विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। अन्य १२ परि च्छेदोंमें विभक्त है। ग्रन्धका प्रमाण स्वयं ही ग्रन्धक ने बताया है
ग्रन्थप्रमाणमाचारसारस्य लोकसम्मितम्।
भवेत्सहनं द्विशतं पंचाशचनकत्तस्तथा ॥'
१. बापारसार, १३२ ।
२. वही, अन्तिम पर।
प्रथम अधिकारमें ४९ पद्य हैं और २८ मलगुणोंका कथन आया है। द्वितीय अधिकारमें २४ पद्य हैं और मुनिके रहन-सहन आचार-विचार, क्रिया-कलाप आदिका वर्णन किया गया है। तृतीय अधिकारमें ७५ पद्य हैं और दर्शनाचारका वर्णन आया है । चनु जधिकारमें १७ पछा समाधारका ग किया गया है। पंचम अधिकारमें १५१ पद्य हैं और चारित्राचारका विस्तार पूर्वक निरूपण किया गया है। षष्ठ अधिकारमें १०२ पद्य हैं और तपाचारकर वर्णन आया है । सप्तम अधिकारमें २६ पद्य हैं और वीर्याचारका कथन किया है । अष्टम अधिकारमें ८४ पद्य हैं और 'अष्टशुद्धियों का विस्तारपूर्वक कथन वाया है | नवम अधिकारमें स्वाध्याय, पर्व कर्तव्य एवं समताका वर्णन आया है। दशम अधिकारक ६३ पद्यों में ध्यानका वर्णन है । एकादश अधिकारमें १९७ पध हैं और जीव तथा कर्माकी प्ररूपणा की गयी है। द्वादश अधिकारमें ३३ पद्य है और शीलका वर्णन आया है । इस प्रकार यह ग्रन्थ मुनियोंके आचार-विचारको अवगत करने के लिए उपादेय है। पंचाचार और षडावश्यकोंका मुलाचारके समान ही वर्णन आया है । व्यवहारचर्याक वर्णनमें कतिपय नवीन बातें भी सम्मिलित की गयो हैं, जिनका सम्बन्ध लोकाचारके साथ है।
गुरु | आचार्य श्री मेघचंद्र सिद्धांतचक्रवर्ती |
शिष्य | आचार्य श्री वीरनन्दी सिद्धांतचक्रवर्ती |
स्वतन्त्र-रचना-प्रतिभा के साथ टीका, भाष्य एवं विवृत्ति लिखनेकी क्षमता भी प्रबुद्धाचायोंमें थी । श्रुतधराचार्य और सारस्वताचार्योंने जो विषय-वस्तु प्रस्तुत की थी उसीको प्रकारान्तरसे उपस्थित करनेका कार्य प्रबुद्धाचार्योने किया है । यह सत्य है कि इन आचार्योंने अपनी मौलिक प्रतिभा द्वारा परम्परासे प्राप्त तथ्योंको नवीन रूपमें भी प्रस्तुत किया है। अतः विषयके प्रस्तुतीकरणकी दृष्टिसे इन वाचायोका अपना महत्त्व है।
प्रबुद्धाचार्यों में कई आचार्य इतने प्रतिभाशाली हैं कि उन्हें सारस्वताचार्योकी श्रेणी में परिगणित किया जा सकता है। किन्तु विषय-निरूपणको सूक्ष्म क्षमता प्रबुद्धाचार्योंमें वैसी नहीं है, जैसी सारस्वताचार्यों में पायी जाती है। यहाँ इन प्रबुद्धाचार्योंके व्यक्तित्व और कृति तत्वका विवेचन प्रस्तुत है।
Aacharya Shri Veernandi Siddhantchakravarti 12 Th Century
Santosh Khule Created Wiki Page Maharaj ji On Date 13-May- 2022
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Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
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Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
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