हैशटैग
#AcharyaPujyapaadSwami4thCenturyCE
Acharya Shri Pujyapaad Swami was born in Village Kole,Karnataka.His name was Devnandi in Planetary state.Acharya Pujyapaad or Pūjyapāad(464–524 CE) was a renowned grammarian and acharya (philosopher monk) belonging to the Digambara tradition of Jains. Since it was believed that he was worshiped by demigods on account of his vast scholarship and deep piety, he was named Pujyapada. He was said to be the guru of King Durvinita of the Western Ganga dynasty.
इनके पिता का नाम माधव भट्ट और माता का नाम श्रीदेवी था। ये कर्नाटक के कोले नामक ग्राम के निवासी थे और ब्राह्मण कुल के भूषण थे। इनका घर का नाम देवनन्दि था। ये एक दिन अपनी वाटिका में विचरण कर रहे थे कि उनकी दृष्टि सांप के मुख में फँसे हुए मेंढ़क पर पड़ी इससे उन्हें विरक्ति हो गयी और ये जैनेश्वरी दीक्षा लेकर महामुनि हो गए। ये अपनी तपस्या के प्रभाव से महान प्रभावशाली मुनि हुए हैं। कथा में ऐसा वर्णन आता है कि ये अपने पैरों में गगनगामी लेप लगाकर विदेह क्षेत्र में जाया करते थे।
जिनके अप्रतिम औषधि ऋद्धि प्रगट हुई थी, विदेह क्षेत्र के जिनेन्द्रदेव के दर्शन से जिनका शरीर पवित्र हो चुका था, ऐसे पूज्यपाद स्वामी एक महान मुनि हुए हैं। इन्होंने अपने पैर के धोये हुए जल के स्पर्श के प्रभाव से लोहे को सोना बना दिया था।
कथानकों में ऐसा भी आया है कि ये पूज्यपाद मुनि बहुत दिनों तक योगाभ्यास करते रहे। किसी समय एक देव ने विमान में इन्हें बैठाकर अनेक तीर्थों की यात्रा कराई। मार्ग में एक जगह उनकी दृष्टि नष्ट हो गई अत: उन्होंने शान्त्यष्टक रचकर ज्यों की त्यों दृष्टि प्राप्त की।
पूज्यपाद के समय के सम्बन्ध में विशेष विवाद नहीं है। आचार्य अकलंक देव ने अपने तत्त्वार्थवार्तिक में सर्वार्थसिद्धि के अनेकों वाक्यों को वार्तिक का रूप दिया है। शब्दानुशासन सम्बन्धी कथन की पुष्टि के लिए इनके जैनेन्द्र व्याकरण के सूत्रों को प्रमाणरूप में उपस्थित किया है अत: पूज्यपाद अकलंकदेव के पूर्ववर्ती हैं इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है। इन्होंने अपने समाधिशतक में तो श्री कुन्दकुन्द देव के मोक्षपाहुड की अनेकों गाथायें ज्यों की त्यों संस्कृत में भाषान्तररूप की हैं तथा गृद्धपिच्छाचार्य का समय विक्रम की द्वितीय शताब्दी का अन्तिम पाद है अत: पूज्यपाद का समय विक्रम संवत् ३०० के पश्चात् ही संभव है।
पूज्यपाद स्वामी ने अपने जैनेन्द्र व्याकरण सूत्रों में भूतबलि, समन्तभद्र, श्रीदत्त, यशोभद्र और प्रभाचन्द्र नामक पूर्वाचार्यों का निर्देश किया है। नन्दिसेन की पट्टावली में देवनंदि का समय विक्रम सं. २५८-३०८ तक अंकित किया है।
श्री पूज्यपाद आचार्य द्वारा रचित अब तक निम्नलिखित रचनाएँ उपलब्ध हैं-
दशभक्ति , जन्माभिषेक (पंचामृताभिषेक), सर्वार्थसिद्धि, समाधितन्त्र, इष्टोपदेश, जैनेन्द्र व्याकरण और सिद्धिप्रिय स्तोत्र।
सिद्धभक्ति, श्रुतभक्ति आदि नाम से ये भक्तियां ‘‘धर्मध्यान दीपक’’ और क्रियाकलाप आदि ग्रन्थों में छप चुकी हैं।
वर्तमान में एक जन्माभिषेक मुद्रित ग्रंथ के रूप में उपलब्ध है इसे पूज्यपाद द्वारा रचित माना गया है। इसकी रचना प्रौढ़ और प्रवाहमय है।
https://hi.encyclopediaofjainism.com/index.php/
#AcharyaPujyapaadSwami4thCenturyCE
https://hi.encyclopediaofjainism.com/index.php/
आचार्य पूज्यपाद स्वामी - ४थी सदि
https://hi.encyclopediaofjainism.com/index.php/
Sanjul Jain on 31-Dec-2020 created wiki page for Acharya Shri
Acharya Shri Pujyapaad Swami was born in Village Kole,Karnataka.His name was Devnandi in Planetary state.Acharya Pujyapaad or Pūjyapāad(464–524 CE) was a renowned grammarian and acharya (philosopher monk) belonging to the Digambara tradition of Jains. Since it was believed that he was worshiped by demigods on account of his vast scholarship and deep piety, he was named Pujyapada. He was said to be the guru of King Durvinita of the Western Ganga dynasty.
Pujyapada flourished in fifth or sixth century CE. He is said to have lived from 510 CE to 600 CE. His real name as a sadhu Digambara monk, was Devanandi. As the Devs from heaven used to come to do Puja of his feet Paad, a title of Pujyapaad was given to him. He was heavily influenced by the writings of his predecessors like Acharya Kundakunda and Acharya Samantabhadra. He is rated as being the greatest of the early masters of Jain literature.He was prominent preceptor, with impeccable pontifical pedigree and spiritual lineage. He was a great yogi, sublime mystic, brilliant poet, noted scholar, eminent author and master of several branches of learning. He wrote in Sanskrit, in prose as well as verse form. He was pontiff of the Nandi sangha, which was a part of the lineage of Acharya Kundakunda. He was the tenth guru of the pontifical lineage of the Nandi Sangha. He was born in a Brahmin family of Karnataka. His parents were Madhava Bhatta and Shridevi.
It is likely that he was the first Jain saint to write not only on religion but also on non-religious subjects, such as ayurveda and Sanskrit grammar. Acharya Pujyapada, besides being a profound scholar of the Jainism and a mendicant walking in the footsteps of the Jinas, was a grammarian, master of Sanskrit poetics and of ayurveda.
Acharya Pujyapaad was nephew of Pāṇini who is said to be the father of Sanskrit Vyakaran. Panini died during the composition of sanskrit Vyakaran and asked Pujyapaad swami to complete the same. Pujyapaad Swami completed Jainendra Vyakaran and then completed the Panini's vyakaran as well.
श्री पूज्यपाद आचार्य द्वारा रचित अब तक निम्नलिखित रचनाएँ उपलब्ध हैं-
दशभक्ति , जन्माभिषेक (पंचामृताभिषेक), सर्वार्थसिद्धि, समाधितन्त्र, इष्टोपदेश, जैनेन्द्र व्याकरण और सिद्धिप्रिय स्तोत्र।
सिद्धभक्ति, श्रुतभक्ति आदि नाम से ये भक्तियां ‘‘धर्मध्यान दीपक’’ और क्रियाकलाप आदि ग्रन्थों में छप चुकी हैं।
वर्तमान में एक जन्माभिषेक मुद्रित ग्रंथ के रूप में उपलब्ध है इसे पूज्यपाद द्वारा रचित माना गया है। इसकी रचना प्रौढ़ और प्रवाहमय है।
Wikipedia
https://hi.encyclopediaofjainism.com/index.php/
Acharya Pujyapaad Swami 4th Century CE
Sanjul Jain on 31-Dec-2020 created wiki page for Acharya Shri
#AcharyaPujyapaadSwami4thCenturyCE
15000
#AcharyaPujyapaadSwami4thCenturyCE
AcharyaPujyapaadSwami4thCenturyCE
You cannot copy content of this page