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#ChidanandSagarjiMaharaj1960VimalSagarJi
Acharya Shri 108 Chidanand Sagarji Maharaj was born on 23 February 1960 in Village-Bandabelai,Dist-Sagar,Madhya Pradesh.His name was Subhashchandra Ji before Diksha. He received initiation from Acharya Shri 108 Vimal Sagar Ji Maharaj.
आपके पूर्वज ग्राम जरावली जिला ललितपुर (बुन्देलखण्ड) उ. प्र. न निवासी थे आपकी जन्म भूमि के निकट २० कि.मी. पर सिद्ध क्षेत्र नैनागिरी जी पूर्वजों की जन्मभूमि के निकट सिद्ध क्षेत्र सोनागिरजी है जो जगह जगह विस्तृत पुरातत्व सम्पदा को लिए हुए है जहां तीर्थंकर और केवलियों की दिव्य देशना प्रसारित हुई तथा निर्वाण प्राप्त किया जिसका प्रभाव आप पर पड़ा, इसके साथ ही यहां पहले समाजों द्वारा शुद्ध भोजन कराया जाता था, दान और न्याय के लिए भी यहां तथा आस पास की भूमि प्रसिद्ध रहीं
जन्म २३ फरवरी सन १६६० मंगलवार तिथि फाल्गुन कृष्णा ग्यारस, पूर्वाषाढ़ नक्षत्र वि. सं. १६६० शक सं. १८८१ की शुभ वेला। स्थान बण्डा (बेलई) सागर म.प्र.
सभी भाईयों में आपके संस्कार सबसे श्रेष्ठ थे जो आगे आने वाले समय में विलक्षण प्रतिभा और वैराग्य के रूप में प्रगट हुए। वचपन में आपने अति मनोयोग से अध्ययन कर सागर विश्वविद्यालय से एम. काम. की शिक्षा तथा प्रबल शास्त्रीय ज्ञान स्वकीय पुरुषार्थ से किया। आपका मन परम लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सजग हुआ, जिससे संसार को ज्ञान ज्योति प्रदान करने के लिए समृद्धशाली परिवार छोड़कर दिगम्बर रूप धारण करने का व्रत ले काम कामना पर विजय प्राप्त करने हेतु अग्रसर हो गए ।। .
त्याग की मंजिल और विशेष शास्त्र अध्ययन - घर पर रहकर धार्मिक संस्कार अध्ययन के साथ ही जम्बूद्वीप दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान हस्तिनापर में रत्न ज्ञानमती माताजी के सानिध्य में रहकर वि.सं.२०४२ शक १९०७ सन । चार वर्ष तक रहे, जहां तत्वार्थसूत्र पुरुषार्थसिद्धि उपाय आदि ग्रन्थों का अध्ययन की पूर्ण ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर लिया
धन्य हुआ है मेरा जीवन, गुरु चरणों में आया ।
धन्य भाग्य है आज हमारे, गुरु दर्शन को पाया । तत्पश्चात आगे के सभी व्रत वात्सल्य रत्नाकर आचार्य श्री १०८ विमलसागर । के सानिध्य में वि. सं. २०४६ शक. सं. १६११ सन १९८६ फिरोजाबाद दूसरी प्रतिम संघ विहार करते हुए खानियां पहुंचा जहां भारत सागर जी के द्वारा कातन्त्र व्याकरण २३ सूत्रों का अध्ययन कर पश्चात घर आकर इसे पूर्ण कर प्रतिष्ठा आदि ग्रन्थों अध्ययन किया ।
सकल संयम -
वि. सं. २०४७ शक १६१२ सन १९९० सोनागिरी ७वीं प्रतिम क्षुल्लक ३ माह, पश्चात मुनि दीक्षा के साथ दही तेल का भी त्याग कर दिया, वि. २०५० शक. १९१५ सन १६६३ गुण शक्कर त्याग, वि. सं. २०६०.शक सं. १६२५ चै कृष्णा १४ शुक्रवार सन १६/३/४ दूध त्याग, वाहन आदि में लाए धी आटा आदि का। त्याग।
केश लोंच - व्रती बनते ही अपने ही हाथ से केश लोंच करना इतना ही नहीं क'हाथों में दर्द होने पर एक ही हाथ से केश लोंच किया करते हैं।
वि.सं. २०४८ शक सं. १६१३ सन १९६२ संघ सानिध्य रहते हुए करीब ४० वन्दनाएं, सप्तम प्रतिमा में ३ वन्दना तथा समय समय पर गिरन आदि क्षेत्रों की भी वन्दना की।
दिगम्बर दीक्षा के साथ ही असाध्य रोग से ग्रसित । जिसके निवारण हेतु गुरु आज्ञा से प्रारंभिक उपचार किया जो निरर्थक रहा, समाथि । प्रार्थना करने पर गुरुदेव ने कहा अभी समय नहीं है, संघ में कलह अधिक रहती है ता मेरी वृद्ध अवस्था है आपके ज्ञान ध्यान और तप पर हमें पूर्ण विश्वास है उस सम स्वाध्याय में गुरु वाचना पांडव पुराण में युधिष्ठिर के साथ कमला के विवाह का प्रकर तीसरी बार चल रहा था सो गुरुदेव ने कहा प्रश्न का उत्तर दो तो संघ से विहार करने की स्वीकृति दे देगें। आपके मुख स उत्तर पाकर आशीर्वाद के साथ ही विहार करने की आज्ञा प्रदान की जो इस प्रकार संघ से बाहर जाकर रोग निवारण, अध्ययन पर्ण तथा सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो गी।
पहले यहा से शिखरजी चलकर वहां से इच्छानुसार विहार करना। गुरु आशा नसार शिखर जी से चैत्र शुदि १३ सन १९९३ को गोमटेश्वर महामस्तकाभिषेक हेतु यात्रा रंभ की, रास्ते में नागपुर में वर्षायोग करके समयानसार २७ दिसम्बर की प्रातः बेला गोमटेश्वर पहुंचकर महामस्तकाभिषेक देखा २६ जनवरी से दो लाख जाप प्रारंभ किया, अचात मातृभूमि की ओर जाने की इच्छा होने से विहार किया, रास्ते में समनेवाड़ी चिक्कोड़ी) बेलगांव (कर्नाटक) में वर्षायोग स्थापना के कुछ दिन पश्चात पद्मावती देवी जो पदमावती .... कहते हुए प्रकट हो सामने आती दिखी और यह कहते हुए अदृश्य हो गई की मोक्ष सप्तमी को दर्शन करेगें। पश्चात मोक्ष सप्तमी को पद्मावती ने दर्शन किए बीमारी का निदान बताया जो धीरे धीरे भोसे ग्राम (कोथली) में ठीक हुई।
सन १९८४ से प्रतिदिन लगभग १८ घण्टे आपका विभिन्न स्तोत्र और मन्त्रों पर साधना चली जिनमें से जिनका कुछ ध्यान है का विवरण - । भक्तामर ६० दिन प्रतिदिन ४८ बार, ओम् ह्रीं लक्ष्मीसुख विधायकाय श्री महावीराय नमः का जाप करीब २ लाख, ओंम् ही श्रीं क्लीं ऐं अर्ह श्री वृषभनाथ तीर्थकराय नमः २ माह में बीस लाख, सरस्वती मन्त्र, भक्तामर के अनेकों काव्य रिद्धी मन्त्र, शान्तिमन्त्र लगभग तीनों प्रकार के लाखों में, शान्तिधारा छोटी २००० बार, बड़ी १००० बार, वज्रपंजर, रक्षा - कवच, घंटाकरण स्तोत्र और भी अन्य मन्त्र; इस प्रकार महाराजा पंचाल की राजधानी पंचालेश्वर में यह संख्या ओम् सिद्ध नमामी के प्रमाण से २० करोड़ से भी अधिक पहुंच गई, उस समय हाथों पर कुछ चमकते हुए दिखा, सीमा से अधिक मुख कड़वा होने लगा तब आषाढ़ी पूर्णिमा वर्षायोग स्थापना के दूसरे दिन इन निमित्तों, व्याकरण और बीजकोष ना के माध्यम से दिनांक १३ जुलाई १९६५ गुरुवार श्रावण कृष्णा प्रतिपदा गोदावरी नदी किनारे नीलगिरी वृक्ष के नीचे सिद्धेभ्यः की चतुर्थी और नमः अव्यय संबंधि अशुद्धि से उच्चाटन की अवस्था रूप गलती को जाना। धीरे धीरे हाथरस वर्षायोग तक, बहुत सी गलतियां शुजात हुई। मन्त्र शद्ध कर पूनः जाप पंचालेश्वर से ही प्रारंभ कर दिया तथा गणना भी यहीं से ग्रहण की गई है। जो प्रतिदिन २ लाख श्री सिद्धं नमामी के आधार पर जानना चाहिए। यह जाप सभी कछ छट जाने पर भी अन्तिम स्वांस तक चलता रहेगा। यदि इसमें परिवर्तन होता है तो ही श्री आदि बीजों के योग तक ही रहेगा। शेष सभी मन्त्र पन्याकरण और बीजकोष संबंधि गलतियां होने के कारण बन्द कर दिये हैं।
इन गलतियों के माध्यम से हजारों वर्षों से चली आ रहीं शास्त्रों में विद्यार शत तक गलतियां, शास्त्रों की निश्प्रयोजनी ता तथा वर्तमान में गलत मन्त्रों के " क्रियाओं के माध्यम से होने वाली महान हानी को भी जाना है।
एकावलीव्रत - समनेवाडी में वर्षायोग के पहले माह यह व्रत पूर्ण किया. दो विला व्रत प्रारंभ किया जिसमें २ उपवास किए कि वहां की श्राविका कमला टोप आग नहीं करने दिये जिससे आगे व्रतों की उन्नति रुक गई ।
प्रभाव - सन २००० में परतापुर में प्रथमबार महावीर जयन्ति पर शारीरिक का प्रकोप कुछ कम देखा गया। अजमेर में सन २००४ का मौसम परिवर्तन यह दो है जैसा की शास्त्रों में वर्णित है जहां साधु विद्यमान होते हैं वहां एक सा मौसम हो है, वैसा ही हो सकता है।
उपलब्धि - सन १९६८ में कक्षा पांच में पड़ते समय अचानक लिखाई जो पहले व ही अच्छी थी बिगड़ गई, सन १९८० के लगभग आंखों में बीमारी आने लगी थी जो। ६३ में उग्ररूप धारण कर गई जिसके शमन करने को बीच बीच में औषधी का सत लेना पड़ा सितम्बर ६८ में शरीर में आन्तरिक गर्मी ने उग्ररूप धारण कर लिया जि. तीव्र ठण्डी में भी शरीर का पानी घट जाता था जिससे आहार चर्या में भी परेश आई। जप तप के प्रभाव से २०० वर्षायोग तक धीरे धीरे शरीर की गर्मी कम महा हुई जो आन्शिक रूप में है आंखों की बीमारी भी अधिकांश खत्म हई, लिखाई भी। बीच में अच्छी दिखने लगती है।
कार्य - वर्तमान में आपने नियमित जाप के साथ ही शास्त्रों को सहीरूप देने का। किया। इस प्रकार आपने एक साथ २ कार्य कर इतिहास में एक मिशाल कायम ! गलतियों को जानकर उन्हें सुधारते हुए आगे बढ़ने से आप प्रमुख आचार्यों की श्रेणी प्राप्त हुए।
आपकी राह पर हम चलने लगें, सन्त जीवन है क्या समझने लगें । आपके आगमन से जो शिक्षा मिली, अन्तर हृदय में जमाने लगें ।टेका आप इस तरह आगम समझायेंगे, वीतरागता के निकट पहुंच जायेंगे । भटकता पथिक पा जाता है किनारा, अपना जीवन धन्य बनाने लगें । १।आपके निकट जो भी आयेगा, चिदानंद जीवन का पथ पा जायेगा ।।
आओ मिलकर करें संसार परिभ्रमण का मनन । कैसे कटे भव भव भ्रमण, कैसे हो कर्मों का हनन ।
आत्मा में रमणता करने लगे, आपकी राह । आपकी वर्तमान में साहित्य के साथ ही साथ मणि मुक्ताओं से निर्मित अछार स्वस्तिक आदि महान शोभा को प्रकाशित कर रहें हैं। जिसमें से समाधि सम्राट प्राचार्य सन्मति सागर को अछार स्वस्तिक और मोति आदि की माला भेंट दी गई, तथा रत सागर जी को स्वस्तिक और माला भेंट में दिये ।
पशु पक्षियों पर उपकार - वर्षायोग नैनागिरी में कुत्ता के द्वारा शिर खाई गई बांदरी चे, सागबाड़ा में कबूतर कबूतरी के जोड़े को, इटावा कोटा में कोडा पक्षी को संरक्षण कर बचाया । इस प्रकार प्राणिमात्र के लिए आपके महान उपकार हैं ।
शांत मुद्रा छवि मनोहर, शुभ्र पावन अंग । निर्विकार निरावरण, जो क्लेष मुक्त असंग ।। द्विविध लौकिक पारलौकिक, कर रहे कल्याण । मम हृदय विराजो, श्री चिदानंद गुरुवर महान ।।
#ChidanandSagarjiMaharaj1960VimalSagarJi
आचार्य श्री १०८ चिदानन्द सागरजी महाराज
आचार्य श्री १०८ विमलसागरजी १९१५ (अंकलिकार) Acharya Shri 108 VimalSagarji 1915 (Ankalikar)
Sonagirji, Sammed shikharji, Nagpur, Shamnewadi, Panchaleshwar, Hathras, Nainagiri, In Karavali, Etawah (Kota), Bhiluda, Sagwara, Dahod, Eider, Beed, Owerri (Dungarpur), Muktagiri (2008), Barwani (2009) etc. Places from the year 2010 to 2015 Could not be known Begu-Rajasthan (2016) and Gwalior-Madhya Pradesh (2017)
ChidanandSagarJiMaharaj1960VimalSagarJi
Acharya Shri 108 Chidanand Sagarji Maharaj was born on 23 February 1960 in Village-Bandabelai,Dist-Sagar,Madhya Pradesh.His name was Subhashchandra Ji before Diksha. He received initiation from Acharya Shri 108 Vimal Sagar Ji Maharaj.
Acharya Shri 108 Chidanand Sagarji Maharaj was born on 23 February 1960 in Village-Bandabelai,Dist-Sagar,Madhya Pradesh.His name was Subhashchandra Ji before Diksha. He received initiation from Acharya Shri 108 Vimal Sagar Ji Maharaj.
Acharya Shri 108 Chidanand Sagarji Maharaj
आचार्य श्री १०८ विमलसागरजी १९१५ (अंकलिकार) Acharya Shri 108 VimalSagarji 1915 (Ankalikar)
आचार्य श्री १०८ विमलसागरजी १९१५ (अंकलिकार) Acharya Shri 108 VimalSagarji 1915 (Ankalikar)
Sonagirji, Sammed shikharji, Nagpur, Shamnewadi, Panchaleshwar, Hathras, Nainagiri, In Karavali, Etawah (Kota), Bhiluda, Sagwara, Dahod, Eider, Beed, Owerri (Dungarpur), Muktagiri (2008), Barwani (2009) etc. Places from the year 2010 to 2015 Could not be known Begu-Rajasthan (2016) and Gwalior-Madhya Pradesh (2017)
#ChidanandSagarjiMaharaj1960VimalSagarJi
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