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#JaiSagarJiMaharaj1964SanmatiSagarJi
Acharya Shri 108 Jai Sagarji Maharaj was born on 25 November 1964 in Village-Pindrai, Dist-Mandla, Madhya Pradesh. His name was Sunil Kumar Jain before Diksha. He received initiation from Acharya Shri 108 Sanmati Sagarji Maharaj.
पिता सुन्दरलाल के घर जन्मे सुनील(कल्लू )।आपकी माता जी नाम चमेली बाई था।आपका जन्म पिंडराइ ग्राम में हुआ था ।बचपन से ही आप पर आपकी दादी माँ (जो बाद में आर्यिका देव मति माता जी बनी)का बड़ा स्नेह था ।आपके अन्दर धामिक संस्कार दादी माँ के द्वारा ही आये थे।आपके बड़े भाई शरद छोटे भाई सन्देश और बहिन सुषमा के साथ खेलकर आपका बचपन निकला।सुनील को बचपन से ही दादी माँ का बहुत प्यार मिला।आपके पिता जी देहांत बहुत जल्द हो गया ।आपकी परवरिश आपकी माँ , दादी माँ ने और बड़े भाई ने की।पारस (अब मुनि पुलक सागर जी )आपके बड़े पापा (ताऊ)के लड़के थे।जब वो पिंडराइ आते तो दादी माँ उनके साथ सभी को सुबह अभिषेक पूजनके लिए ले जाया करती ।छोटी सी उम्र में धोती पहनना ,कलश देकर अभिषेक करना ये इनकी नित्य क्रिया में शामिल था ।सुनील बचपन में पारस की धोती खींच देते थे ।तब दादी माँ समझाती कोई बात नहीं हमारे भगवान् बन ने केलिए कपडे उतरने पड़ते है।कौन जनता था की ये दोनों बालक आगे चलकर आचार्य जय सागर और मुनि पुलक सागर बनकर जैन धर्म की प्रभावना करेंगे।
१ बार सुनील अपनी दादी माँ को लेकर मुक्तागिरी ले जाने का कार्यक्रम बनाया । वो लोग रायपुर आ गए।उनके परिचित के यहाँ पारिवारिक अडचने आ गयी जिससे वो मुक्तागिरी की यात्रा पर नहीं जा पाए,तभी पता चला की दुर्ग में सन्मति सागर जी महाराज विराजित है तो वो उनके दर्शन करने वह चले गए ।सुनील ने १९६८ में सर्वप्रथम आचार्य सन्मति सागर जी के दर्शन किये और दादी माँ को वह छोड़कर वापस लौट आये।तभी आचार्य श्री ने दशलक्षण के १० उपवास किये और प्रतिज्ञा ली वे पूनम को तभी आहार लेंगे जब कोई दीक्षा लेने का नियम लेगा।तब आपकी दादी माँ ने दीक्षा के लिए आचार्य श्री से निवेदन किया और वो बन गयी क्षुल्लिका देवमती।सुनील ने भी आचार्य श्री विद्यासागर जी के पास जाकर ब्रह्मचर्य व्रत का नियम ले लिया ।उनकी क्षुल्लक दीक्षा का दिन जुलाई १९८५ में तय हुआ ।परन्तु किसी कारन से आचार्य विद्या सागरजी ने अन्य ब्रह्मचारीगणों को दीक्षा दे दी और सुनील को से कहा तुम्हे बाद में देंगे।यहाँ बात सुनील को समझ में नहीं आई की पहले हां करने के बाद बाद में मना क्यों कर दी।अत: वो अपनी आर्यिका देवमती माता जी के पास आया और अपनी सारी बात उन्हें बताई।तब उन्होंने आचार्य श्री सन्मति सागर जी से सुनील को दीक्षा देने की बात कही।आचार्य श्री तैयार हो गए और ११ नव. १९८४ को पारसोला (राज.) में उन्हें उन्हें मुनि दीक्षा दी गयी और नाम पाया मुनि श्री १०८ जय सागर जी महाराज।आगे जाकर आचार्य सन्मति सागर जी ने उन्हें आचार्य पद देकर उन्हें बना दिया आचार्य श्री १०८ जय सागर जी महाराज ।
मुनिश्री जयसागरजी महाराज उपाध्याय पद : 1994 में, प्रतापगढ.(राजस्थान) में गणाधिपति गणधराचार्यश्री कन्थसागरजी महाराज द्वारा युवाचार्य पद : 1995 में, दीक्षा गुरु तपस्वी सम्राट आचार्यश्री सन्मतिसागरजी महाराज द्वारा आचार्य पद : 29 मई 2001 को, बेढ़िया (गुजरात) में । पद प्रदाता : दीक्षा गुरु तपस्वी सम्राट आचार्यश्री सन्मतिसागरजी महाराज। उसी दिन दीक्षा गुरु ने आचार्यश्री को वर्तमान इक्कीसवीं शताब्दी के प्रथम निर्ग्रन्थ भट्टारक के पद से भी अलंकृत किया।
शिष्याएं : आर्यिकाश्री पवित्रश्री माताजी, आर्यिकाश्री पावनश्री माताजी, क्षुल्लिकाश्री दिव्यश्री माताजी उपाधियां : बालयोगी, सम्यक् ज्ञान दिवाकर, युवारत्न, युवाचार्य, वात्सल्य मूर्ति आदि।
प्रभावना __ आचार्यश्री जयसागरजी महाराज के पावन सान्निध्य में संपन्न महोत्सव-तलोद, माउन्ट आबू,शिशवी, बोरिया, खैरवाड़ा, देरोल, मांडवी, पोर, नयागांव, पिंडरई, ईडर, पीठ, करजन,सौजित्रा, आहू, धार, भिलोडा आदि स्थानों में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव, जिनालयों कानिर्माण, जीर्णोद्धार आदि। योगदान : पद्मावती नगर, बेढ़िया (गुजरात) का अंकलीकर तीर्थ आचार्यश्री जयसागरजी महाराज केतपस्वी जीवन का सर्वाधिक धार्मिक योगदान है। यहां मूलनायक के रूप में देवाधिदेव भगवान पार्श्वनाथ विराजमान हैं। समस्त चौबीसी सहित त्रिमूर्ति जिनबिम्ब, समवशरण, मानस्तंभ, धरणेंद्र - माता पद्मावती की प्रतिमाएं विराजमान हैं।
जय बिंदु, कल्याण आलोचना, मंदिर, संपूर्ण वास्तु ह्रीं कल्प विधान, कालसर्प योग निवारण,पार्श्वनाथ पद्मावती महापूजन विधि आदि।
#JaiSagarJiMaharaj1964SanmatiSagarJi
आचार्य श्री १०८ जय सागरजी महाराज
Acharya Shri 108 Sanmati Sagarji 1938 (Ankalikar)
आचार्य श्री १०८ सन्मति सागरजी १९३८ (अंकलिकार) Acharya Shri 108 Sanmati Sagarji 1938 (Ankalikar)
Talod (1986), Dhar, Ahmedabad, Eider, Narwali, Mount Abu, Dahod, Pavagadh, Pratapgarh - Bedia (two), Patna, Bedia (two), Dahod (2000), Bedia, Narwali, Peetha, Bedia (two), Eider (2006), Bedia (2007 to 2013), Ahmedabad, Sammedshikharji, Bedia (2016) 2017)
SanmatiSagarJi1938(Ankalikar)Vimalsagarji
Acharya Shri 108 Jai Sagarji Maharaj was born on 25 November 1964 in Village-Pindrai, Dist-Mandla, Madhya Pradesh. His name was Sunil Kumar Jain before Diksha. He received initiation from Acharya Shri 108 Sanmati Sagarji Maharaj.
Sunil (Kallu), born in father Sunderlal's house. Your mother's name was Chameli Bai. You were born in Pindrai village. Since childhood, you had great affection for your grandmother (who later became Aryika Dev Mati Mata ji). The religious rites in you came from the grandmother. Your childhood came out by playing with your elder brother Sharad, younger brother Sandesh and sister Sushma. Sunil got a lot of love from his grandmother since childhood. Your father died very soon. You were raised by your mother, grandmother and elder brother. Paras (now Muni Pulak Sagar ji) was your elder father's (tau) boy. When he came to Pindarai, Grandmother would take everyone along with him to worship Abhishek in the morning. Wearing a dhoti at a young age, anointing it with an urn was part of their daily rituals. Sunil used to draw the dhoti of Paras in his childhood. Then there was nothing to explain to my grandmother that our God had to get dressed. Who was the public That these two children will go on to become influencers of Jainism by becoming Acharya Jai Sagar and Muni Pulak Sagar.
1 time Sunil made a program to take his grandmother to Muktagiri. Those people came to Raipur. His acquaintance came to the family in trouble, so that he could not go on a trip to Muktagiri, then it came to know that Sanmati Sagar Ji Maharaj is enthroned in the fort, then he went to see him. Sunil first started in 1979. Acharya saw Sanmati Sagar ji and he left his grandmother and returned. Then Acharya Sri fasted for 10 times of dashalakshana and vowed that he would eat Poonam only when someone takes the rules of initiation. Acharya requested Shri and she became Chhullika Devmati. Sunil also went to Acharya Shri Vidyasagar ji and took the rule of Brahmacharya fast. The day of his ecstatic initiation was fixed in July 1975. He gave initiation to Brahmacharias and told Sunil to give you later. Here Sunil did not understand why he refused later after doing first. So he came to his Aryika Devmati Mata ji and all his He told them the thing. Then he asked Acharya Shri Sanmati Sagar to initiate Sunil. Shree agreed and 11th In Parsola (raj.) On 1949, he was given a Muni initiation and got the name Muni Sri 108 Jai Sagar Ji Maharaj. Later, Acharya Sanmati Sagar Ji gave him the post of Acharya and made him Acharya Shri 108 Jai Sagar Ji Maharaj.
जय बिंदु, कल्याण आलोचना, मंदिर, संपूर्ण वास्तु ह्रीं कल्प विधान, कालसर्प योग निवारण,पार्श्वनाथ पद्मावती महापूजन विधि आदि।
Acharya Shri 108 Jai Sagarji Maharaj
आचार्य श्री १०८ सन्मति सागरजी १९३८ (अंकलिकार) Acharya Shri 108 Sanmati Sagarji 1938 (Ankalikar)
आचार्य श्री १०८ सन्मति सागरजी १९३८ (अंकलिकार) Acharya Shri 108 Sanmati Sagarji 1938 (Ankalikar)
Acharya Shri 108 Sanmati Sagarji 1938 (Ankalikar)
Talod (1986), Dhar, Ahmedabad, Eider, Narwali, Mount Abu, Dahod, Pavagadh, Pratapgarh - Bedia (two), Patna, Bedia (two), Dahod (2000), Bedia, Narwali, Peetha, Bedia (two), Eider (2006), Bedia (2007 to 2013), Ahmedabad, Sammedshikharji, Bedia (2016) 2017)
Acharya Shri 108 Sanmati Sagarji Maharaj
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