हैशटैग
#NemisagarJiMaharaj1907JaiSagarji
Pujya Acharya Nemi Sagar Maharaj was born in present day Haryana in Gurgaon in Akda district in 1907. At the age of 3, his parents died. You came as the adopted son of Johri Lal Ranjit Singh Jain of Dehli at the age of 3 years.
इस युग के महान आचार्य श्री १०८ नेमि सागर जी महाराज का जन्म भारतवर्ष के वर्तमान प्रदेश हरियाणा के अकेड़ा जिला गुड़गांव में सन् १९०७ के लगभग हुआ था। २ माह की अल्प आयु में आपके माता पिता का स्वर्गवास हो गया था।आप ३ वर्ष की आयु में देहली के जोहरी लाल रणजीत सिंह जैन के यहाँ दत्तक पुत्र के रूप में आये जहा आपकी बुआ श्रीमती रिक्खी बाई लाला रणजीत सिंह जैन की बहन ने आपका लालन पोषण किया ।
दुर्भाग्य कहिये या सौभाग्य कुछ समय उपरान्त देहली में आपके पितामह के यहाँ मकान में भयंकर आग लग गई तथा दुकान में चोरी हो गई परिणाम स्वरूप समस्त सम्पदा समाप्त हो गई इसको सौभाग्य इस कारण से कहा जा सकता है, कि आपको तो परमेष्ठी पद में विराजमान होना था न कि सांसारिक आपदाओं में फसना था। बाल्य काल से ही आपको समागम इस प्रकार से मिलते गये कि संसार मिथ्या जान पड़ने लगा आपकी शिक्षा भारत की राजधानी देली के बाल आश्रम दरियागज में प्रवेश दिलाया गया आपके पितामह धर्मनिष्ठ एव सच्चे देव के उपासक थे एक बार आपको भयंकर बड़ी माता (चेक) का रोग हो गया जिसमें अनेकों उपचार कराये गये किसी व्यक्ति ने आपके पिता जी से यह कहा कि आप एक चांदी की माता बनाकर चढ़ाओ तो यह असाध्य रोग शांत हो जायेगा, आपके पिता जी को जैन धर्म का सच्चा ज्ञान होने से कहा कि मैं यह अनर्थ क्रियायें किसी भी प्रकार से नहीं करूंगा चाहे मेरा पूत्र जीवित रहे या मर जाए। अभी आप युवा अवस्था में प्रवेश नहीं कर पाये थे आप के पिता जी का स्वर्गवास हो गया और आप इस संसार में अकेले रह गये आप अपना गृहस्थ जीवन सावधानी पूर्वक व्यतीत करते रहे।
१६३१ में देहली में प्रातः स्मरणीय चरित्र चड़ामणि आचार्य श्री १०८ शान्ती सागर जी महाराज का देहली में चतुर्मास हुआ आप बराबर उनके समागम में आते रहें
जब आप सिद्ध क्षेत्र शिखर जी की यात्रा पर गए थे तब वही बुआ के देहावसान का तार मिला ।इस घटना से आपकी वैराग्य भावना बढ़ गयी और आप घर नही लौटे ।
आपने १९४० में ब्रह्मचर्य व्रत,१९४४ में क्षुल्लक दीक्षा और १९५६ में आचार्य श्री जय सागर जी से गुजरात के टाका टुन्का में मुनि दीक्षा ली।आपने गृहस्थ जीवन में आप सादा जीवन उच्च विचार और स्वाधीनता के पक्षधर थे।१९३१ में गाँधी जी द्वारा आहवान करने पर आप स्वाधीनता आन्दोलान्मे कूद पदेऔर ११माह लाहौर जेल में रहे।आप सदैव शुद्ध भोजन करते थे ।अत: जेल की रोटी नहीं खायी ।कई दिनों तक उपवास किया।अंत में जेल में ही शुद्ध भोजन की व्यवस्था हुई।१९८२ में आपका चातुर्मास सिकंदराबाद (बुलंद शहर ,उ.प्र.)में हुआ था।इस अवसर पर १ पुस्तक भी प्रकाशित हुई ।
संक्षिप्त परिचय
जन्म: सन १९०७
जन्म स्थान : अकेडा जिला गुडगाँव
नाम :
माता का नाम :
पिता का नाम :
ब्रह्मचर्य व्रत : सन १९४०
क्षुल्लक दीक्षा : सन १९४४
मुनि दीक्षा गुरु : आचार्य श्री जय सागर जी
मुनि दीक्षा तिथि: सन १९५६
मुनि दीक्षा स्थान : गुजरात के टाका टुन्का
मुनि दीक्षा नाम : मुनि श्री १०८ नेमिसागर जी महाराज
समाधि :
आचार्य पद त्याग :
#NemisagarJiMaharaj1907JaiSagarji
आचार्य श्री १०८ नेमिसागरजी महाराज
Acharya Shri 108 Jai Sagarji Maharaj
आचार्य श्री जय सागर जी महाराज Acharya Shri 108 Jai Sagarji Maharaj
Dhaval Patil Pune-9623981049
Dhaval Patil Pune-9623981049
JaiSagarJiMaharaj1964SanmatiSagarJi
Pujya Acharya Nemi Sagar Maharaj was born in present day Haryana in Gurgaon in Akda district in 1907. At the age of 3, his parents died. You came as the adopted son of Johri Lal Ranjit Singh Jain of Dehli at the age of 3 years.
Pujya Acharya Nemi Sagar Maharaj was born in present day Haryana in Gurgaon in Akda district in 1907. At the age of 3, his parents died. You came as the adopted son of Johri Lal Ranjit Singh Jain of Dehli at the age of 3 years. Aunt of aunt Mrs. Rikkhi Bai Lala Ranjit Singh Jain nurtured you. When you went to visit Siddha Kshetra Shikhar ji, that same aunt got the wiring of his aunt. This incident increased your sense of quietness and you did not return home. You took Brahmacharya fast in 1940, Chhoolacharya Diksha in 1944 and Muni Diksha in 1956 from Acharya Shri Jai Sagar Ji in Taka Tunka, Gujarat. In your household life you favored a simple life of high thought and freedom. In 1931 Gandhiji called for But you jumped into freedom movement and stayed in Lahore jail for 11 months. You always had pure food. So did not eat jail bread. Fasted for many days. Finally, pure food was arranged in the jail itself. In 1982 your Chaturmas Secunderabad ( It was held in Buland city, U.P.) 1 book was also published on this occasion.
Acharya Shri 108 Nemisagarji Maharaj
आचार्य श्री जय सागर जी महाराज Acharya Shri 108 Jai Sagarji Maharaj
आचार्य श्री जय सागर जी महाराज Acharya Shri 108 Jai Sagarji Maharaj
Acharya Shri 108 Jai Sagarji Maharaj
Acharya Shri 108 Jai Sagarji Maharaj
Dhaval Patil Pune-9623981049
#NemisagarJiMaharaj1907JaiSagarji
JaiSagarJiMaharaj1964SanmatiSagarJi
JaiSagarJiMaharaj1964SanmatiSagarJi
1000
#NemisagarJiMaharaj1907JaiSagarji
NemisagarJiMaharaj1907JaiSagarji
You cannot copy content of this page