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#SubaahuSagarJiMaharaj1924SupaarshwaSagarJi
Acharya Shri 108 Subaahu Sagar Ji was born on 18 August 1924 in Haalga,Belgaon,Karnataka.His name was Tavnappa in Planetary state.He received initiation from Acharya Shri 108 Supaarshwa Sagar Ji Maharaj.
भारतभुमिका पावन कर्नाटक प्रान्त जो सदैव मुनियों की खान रहा है। बडे बडे आचार्य भगवंतों की जन्मभुमिका सौभाग्य इस प्रान्त ने प्राप्त किया है। जिस प्रकार चतुर्थ काल मे तीर्थकरों को जन्म देने का कार्य उत्तर भारत की भुमि ने किया वैसे ही पंचम काल मे मुनियों को जन्म देने का कार्य दक्षिण भारत की भूमि ने किया है। आचार्य कुंदकुंद से लेकर आचार्य शान्तिसागरजी, आचार्य आदिसागरजी, आचार्य विद्यासागरजी जो वर्तमान परंपरा के सर्वोच्च साधुओं की श्रेणि में आते हैं यह दक्षिण भारत की देन है। इसी श्रेणि मे हम आज जिनके जीवन चरित्र से परिचित होने का प्रयास कर रहे हैं उन बालयोगी आचार्य भगवंत १०८ श्री सुबाहु सागरजी महाराज का जन्म भी दक्षिण प्रान्त के कर्नाटक राज्य के छोटे से गांव हलगा जिला बेलगांव मे वीर निर्वाण संवत २४५३ गुरुवार दि.१८ अगस्त १९२४ को पिता वालप्पा देवप्पा के घर माँ जानकी देवी की कुक्षी से हुआ। कर्नाटक प्रान्त की प्रथा के अनुसार आपका नाम तवनप्पा रखा गया। माँ जानकी देवी की ममता की छाया में आप जैसे जैसे बड़े होते गये आपके ज्ञान और बुध्दि की प्रगाढ क्षमता भी बढ़ती गई। जन्म से ही मेधावी बध्दि को लिए आप माँ के द्वारा प्राप्त धर्म संस्कारों के साथ निर्मोही बनने के संस्कार भी अपनी आत्मा पर निरंतर डालने का प्रयास करते रहे । वैसे आपकी लौकिक शिक्षा चौथी कक्षा तक ही है किन्तु आपके धर्मध्यान मे वह कोई प्रभाव नही रखता. पर्व भव के संस्कारों से जिज्ञासाओं का समाधान शास्त्र स्वाध्याय से आप स्वयं ही प्राप्त करने के पुरुषार्थ में विजयी रहे। आपके चार बडे भाई थे पर आपका उनके प्रति भी कभी मोह नहीं रहा। पूरा परिवार परंपरागत खेती का काम करता था किन्तु वह करते हुवे भी आपने बाल्य अवस्था से ही रात्री भोजन त्याग तथा क्षुद्रजल का भी त्याग कर दिया था। पूर्व भव के संस्कारोका ही प्रभाव था कि सभी व्रत आपने बाल्यावस्था में ही ग्रहण कर लिये थे । सप्तम प्रतिमा आपने आचार्य श्री विमल सागरजी महाराज से ग्रहण की तथा क्षुल्लक दीक्षा आचार्य शान्तिसागरजी महाराज की परंपरा के पूज्य आचार्य श्री सुपार्श्वसागरजी महाराज से औरंगाबाद महाराष्ट्र मे आषाढ सुदी १३ दिनांक १ जुलाई १९५८ को ग्रहण की और नाम क्षुल्लक १०५ श्री भूतबली जी महाराज रखा। तदुपरांत आपकी विशुध्दि बढती गई उसी वर्ष केवल ५माह केउपरांत ही आपके मुनि दीक्षा लेने के भाव हुए क्षुल्लक दीक्षा प्रदाता गुरु आचार्य श्री सुपार्श्वसागरजी महाराजजी को आपने निवेदन किया तब आपके वैराग्य भाव और आपकी विनय शीलता देखकर मार्गशीर्ष शुक्ला पूर्णिमा शुकवार २६ दिसंबर १९५८ को कुंथलगिरी सिध्द क्षेत्र पर आपने मुनि दीक्षा ग्रहण की और गुरु मुख से मुनि १०८ श्री सुबाहुसागर नाम को प्राप्त किया। आपके मेधावी बुध्दि के साथ साथ तपस्या का बल भी आपको प्राप्त हुआ। लौकिक शिक्षा कम होने पर भी आपने ज्योतिषशास्त्र पर विशेष अध्ययन किया जो केवल निमित्त मात्राथा आपकी तपस्या से वह विद्या आपके चरणों में हीथी केवल उसे ग्रहण करने के निमित्त की आवश्यकताथी जो आपने पूर्ण की। बडे बडे विद्वान आपसे इस विषय पर चर्चा करने आते
और लाभान्वित होकर जाते। ज्योतिष शास्त्र के आप प्रगाढ विद्वान के रुप मे प्रसिध्द हुए। सन १९८० मे अहमदाबाद चातुर्मास के उपरांत गुजरात से दक्षिण की ओर श्रवण बेलगोल में होनेवाले मस्तकाभिषेक मे अपनी गरीमामय उपस्थिति देने हेतू विहार किया तब १२ जनवरी १९८१ को हलगा मे चतुर्विध संघ एवं अनेक विद्वानों की उपस्थिति मे पूज्य श्री को आचार्य पद की उपाधि प्रदान की गई। पोदनपूर मुंबई मे आप के संघ द्वारा महती प्रभावना हुई अनेक उद्योगपती आपकी सेवा मे लगे रहते थे। आत्मराधना मे लीन रहते हुए आपकी पोदनपूर बोरीवली अतिशय क्षेत्र पर अष्टान्हिका पर्व पर कार्तिक शुक्ला नवमी के दिन ४ नवंबर २०११ को दोपहर ३ बजे आपकी समाधि हुई। श्री. सूर्यसागरजी महाराज, सुनंदामती माताजी, ब्र. इंदु अम्मा वर्तमान की क्षु. सुलोचना मती माताजी, सुनीता दिदी लगातार आपकी सेवा में लगे रहे। पूज्य सुबाहु सागरजी महाराज के समाधिमरण के उपरान्त उनका आचार्य पद १०८ सूर्यसागरजी महाराज को प्रदान किया गया । आचार्य सूर्यसागरजी महाराज का जन्मस्थान भी हलगा जि. बेलगाव ही है। आपका जन्म १३ सितंबर १९३७ में श्री तवनाप्पाजी के घर माँ गंगादेवी के कुक्षी से हुआ | आपका परिवार गांव के ही जिन मंदिर की परी व्यवस्था में लगा था भ. पारसनाथजी की भक्ति में लिन रहने से परिवार वालोने आपका नाम पारस ही रख दिया। परीवार मे आपकी केवल ३ बहने हीथी। वैसे आपको गुरु सानिध्य देरी से मिला तब तक परीवार वालों ने आपका विवाह कर दिया था । आपके २ बेटो का हरा भरा परिवार तजकर सन १९९४ में विजयनगर गुजरात में सर्वप्रथम क्षुल्लक दीक्षा आ. सुबाहुसागरजी महाराज से ग्रहण की। तथा मुनिदीक्षा जन्मस्थली हलगा में ही ग्रहण की । आप मे गुरु भक्ति कुट कुट कर भरी हई थी प्रत्यक्षदर्शी भी आपके गरु भक्ति से प्रभावित होकर आपके शिष्य बने। गुरु। सेवा के साथ साथ आप आत्मा के पोषक गुणों की भी सेवा करतेथेयही कारण था कि आपने कईव्रतों को करने की कठोर साधना का अवलंबन लिया। आपने कर्मदहन के १५६-१५६ उपवास तीन बार तथा सोलहकारण के ३२-३२उपवासभी तीन बार किये। मुबई मे सिंह निष्किडीत के १५६ उपवास की साधना सहित आपके उपवासों की संख्या करीब २२५४ है। पूज्य आचार्य श्री ने गुरु सानिध्य सेही १२ वर्ष की नियमसंल्लेखना ले लीथी जो फरवरी २०१७ मे पूर्ण होने वाली थी।
#SubaahuSagarJiMaharaj1924SupaarshwaSagarJi
आचार्य श्री १०८ सुबाहु सागरजी महाराज
आचार्य श्री १०८ सुपार्श्व सागरजी महाराज १९५५ Acharya Shri 108 Suparshwa Sagarji Maharaj 1955
Approx 50 years Chaturmas
संतोष खुले जी ने महाराजजी का विकीपेज बनाया है | दिनांक १० जुलै २०२२
Sanjul Jain on 23-01-2021 created wiki page for Maharaj Ji
SuparshwaSagarJiMaharaj1955VidyaSagarJi
Acharya Shri 108 Subaahu Sagar Ji was born on 18 August 1924 in Haalga,Belgaon,Karnataka.His name was Tavnappa in Planetary state.He received initiation from Acharya Shri 108 Supaarshwa Sagar Ji Maharaj.
Book-Jain Digamberacharya;Prerak Sant Avam Sadvichar
Acharya Shri 108 Subaahu Sagarji Maharaj
आचार्य श्री १०८ सुपार्श्व सागरजी महाराज १९५५ Acharya Shri 108 Suparshwa Sagarji Maharaj 1955
आचार्य श्री १०८ सुपार्श्व सागरजी महाराज १९५५ Acharya Shri 108 Suparshwa Sagarji Maharaj 1955
Approx 50 years Chaturmas
Sanjul Jain on 23-01-2021 created wiki page for Maharaj Ji
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SuparshwaSagarJiMaharaj1955VidyaSagarJi
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