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#SuvidhiSagarJi1971SanmatiSagar
Fourth Pattadhish of anklikar Parampara Acharya Shri Suvidhisagar Maharaj ji was born on 19-March-1972 to parents Kanchanbai and Inderchand Papdiwal.
His name before diksha was Jay Kumar and he left the house on 28-April-1984 to take the way of religious journey. He took Muni Diksha from Tapasvi samrat Acharya Shri Sanmati Sagarji Maharaj on 11-May-1989 and Acharya Pad on 20-April-2004 from Acharya Shri Siddhant Chakravarthy Sanmati Sagarji Maharaj.
He is known for studying and digitalizing Jain granths and scriptures which are now available on www.vimalsagargranths.com
जन्म : १९ मार्च १९७१
माता : कंचनबाई
पिता : इन्दरचन्द जी पापड़ीवाल
स्थान : औरंगाबाद, महाराष्ट्र
जाति : खण्डेलवाल
नाम : जय कुमार
शिक्षा : मैट्रिक
गृहत्याग: 28/4/1986
आजीवन ब्रह्मचर्य : वैशाख क्षुक्ला तीज (सन् 1986)
स्थान : नेरी( जिला - जलगाँव)
नाम : ब्र. जैनेन्द्र कुमार
सात प्रतिमा : आषाढ़ शुक्ला सप्तमी ( सन् 1986)
स्थान : कचनेर
क्षुल्लक दीक्षा : 13/3/1987
नाम : क्षुल्लक रविन्द्रसागर
स्थान : शिऊर, औरंगाबाद
ऐलकदीक्षा : 23/10/1987
नाम : ऐलक रूपेन्द्रसागर
स्थान : न्यायडोंगरी, नासिक
गुरु : परम पूज्य आचार्य श्री हेम सागर जी महाराज
मुनिदीक्षा : 11/5/1989
दीक्षाप्रदाता गुरु : सिद्धांत चक्रवर्ती आचार्य श्री सन्मति सागरजी महाराज
स्थान : अतिशय क्षेत्र डेचा ( डूंगरपुर)
आचार्य पद: 20/4/2004
स्थान : नरवाली ( राजस्थान)
आचार्य पद प्रदाता : सिद्धांत चक्रवर्ती आचार्य श्री सन्मति सागरजी महाराज
उद्घोषणा :
हमारी समाधी के पश्च्यात आपको इस संघ जे संचालक पद पर नियुक्त करते है। ( अंकलीकर वाणी जुलाई 2004, अक्षय ज्योति 【आचार्य पद विशेषांक】
पट्टाचार्य पद स्वीकार - 24 दिसम्बर 2010
अनुमोदना = परम पूज्य गणधराचार्य श्री कुन्थु सागर महराज तथा परम्परा के लगभग 2⃣5⃣ आचार्यो ने।
विशेषता : संगणक पर समग्र जैन ग्रन्थकोश का निर्माण आपकी महत्वपूर्ण रचना है।
श्री सुविधिसागर महाराजजी को प्रदत विशेष पद
♦ शब्दशिल्पी - जयपुर ,आचार्य श्री सन्मति सागर जी
♦ आर्षमार्ग शिरोमणि - 2011, गणधराचार्य कुन्थुसागर जी
♦ विद्या वाचस्पति - 2005 ,शासकीय महाविद्यलय मन्दसौर
♦ तपश्चर्या चक्रवर्ती - 2011 ,पूना महाराष्ट्र
♦ जिनशासन प्रदीप - 2011 ,तामिलनाडू
♦ आकिंचन्य श्रमनेश्वर - 2012, अतिशय क्षेत्र पैठण
♦ श्रुतज्ञानेश्वर- 2014, शमनेवाड़ी कर्नाटक
♦ अध्यात्म कुलदीपक - 2014, अककोळ कर्णाटक
♦ जिनवाणी श्रुतसंरक्षक - 2018, श्रवणबेलगोला
♦ विद्यावारिधि
♦ नूत्तनोद्धारक - 2021, औरंगाबाद
समग्र जैन ग्रंथकोश :
विश्व का प्रथम संगणक कोश
ग्रंथसंख्या 623
सम्पूर्ण आवश्यक सुविधाओ से युक्त
दिगम्बर आमनाय के 403 व् श्वेताम्बर अमनाय के 220 ग्रन्थो को केवल 8 DVD में सम्मिलित किया गया है।
इसका उद्देश् शास्त्रो की सुरक्षा, जैनागम की जानकारी, ज्ञानार्जन है।
JAIA Computer GAMES :
वर्तमान में उच्चस्तरीय टेक्नॉलॉजि का युग है और बच्चों का झुकाव उस और अधिक है, इन सब परिस्थियों को देखते हुए गुरुवर आचार्य सुविधि सागर महाराजजी ने खेल खेल में संस्कार, धर्म से जोड़ने और गुण व् अवगुण में अन्तर बताने के लिए....
जैसे........
♠ कौन बनेगा जिनवाणी नन्दन,
♠ सांप सीढ़ी,
♠ क्रिकेट,
♠ खोजो तो जाने,
♠ ज्ञाननिधि
♠ तोल मोल के बोल
♠ एक के बाद एक
♠ जैन तीर्थंकर दर्शन
आदि का निर्माण किया है।
खेल खेल से बहोत कुछ सीखा जा सकता है
आचार्य श्री के त्याग :
१३ - ३ - १९८७ ---- तेल और दही का आजीवन त्याग ( शिउर महाराष्ट्र )
५ - २ - २०११ ---- घी , शक्कर और हरी पत्तियाँ का आजीवन त्याग ( उदगाव महाराष्ट्र )
४ - ५ - २०१२ ---- नमक का आजीवन त्याग (श्री अतिशय क्षेत्र पैठण )
४ - ५ - २०१२ ---- गेहूँ , चना, चावल , मूँग के अतिरिक्त समस्त प्रसिद्द अन्न का एवं पाँच फलों का आजीवन त्याग (श्री अतिशय क्षेत्र पैठण )
इनके अलावा चातुर्मासिक काल में अनेक बार सूखा मेवा, दूध, फल ऐसे अनेक त्याग लेते रहते है.
सन १९९७ में जीवकाण्ड ,कर्मकांड, लब्धिसार, क्षपणसार,धवला की १६ पुस्तके , महाबंध की ७ पुस्तके पूर्ण होने तक फलों का त्याग कर दिया था.
आज भी प्रत्येक चातुर्मास में आपके निरंतर एक उपवास एक आहार करके १६ घण्टो तक अध्ययन करते रहते है.
उपसर्ग सहिष्णु आचार्यश्री :
उपसर्ग और परिषह सहन करना तो साधुओं की जीवनचर्या का साहजिक और आवश्यक अंग है। सम्भवतः ऐसे बहुत ही कम साधू होंगे की उनके जीवन में किसी प्रकार का कोई उपसर्ग नहीं हुआ होगा।
उपसर्ग और परिषह सहन करने के लिये वैराग्य और धैर्य की आवश्यकता हुआ करती है। परम पूज्य आचार्य सुविधि सागर जी महाराज में ये दोनों ही गुण कुट कूट कर भरे हुए है। अतः वे उपसर्गादि को सहन करने में प्रवीण है।
प्रवचनकार आचार्य श्री :
आचार्य श्री का मानना है की प्रवचन का अर्थ है- जिनेन्द्र भगवान वाणी को सरल और युगीन भाषा में प्रस्तुत करने का कार्य प्रवचनकार के द्वारा किया जाना चाहिए। अतः जिनवाणी से बहिर्भूत वाक्यप्रयोग वे अपने प्रवचन में नही होने देते। विषय को स्पस्ट करने के लिये जब वे कोई प्रमाण प्रस्तुत करते है, तो उसके साथ ग्रन्थ का नाम,श्लोक क्रमांक, ग्रंथकर्ता का नाम, ग्रन्थ कर्ता की शताब्दी इत्यादि समस्त तथ्यों को उजागर करने का प्रयत्न करते है। समय पर प्रवचन प्रारम्भ करना और घोषित समय पर ही बन्द करना उनके प्रवचन की सर्वतोप्रमुख विशेषता है।
समयसार, समाधी तन्त्र, कल्याण मन्दिर, तत्वार्थ सूत्र, णमोकार मन्त्र, हमारी आचार्य परम्परा, जैनधर्म और आधुनिक विज्ञानं, 4 अनुयोग, सोलहकरण भावना,....आदि अनेक प्रवचन किये है।
वाचनाकार आचार्यश्री :
आचार्य श्री वाचन कराने की परम्परा बहुत अनोखी है। जिस विषय को वे समझाते है, उस विषय से सम्बन्धित आगम- प्रमाणों को वे तत्काल सुस्पष्ट करते जाते है।
ज्ञानोपयोगि आचार्यश्री निरन्तर स्वाध्यय करते है तथा अपने शिष्यो को अध्ययन करवाते है। वर्षायोग में तो 5 से 6 घण्टे स्वाध्यय चलता है। विहार में भी लगबघ 2 से 3 घण्टे अध्यापन में व्यतीत होता है।
वाचनाये :
धवला, आत्मानुशासन, रत्न माला, भगवती आराधना, तत्वार्थसूत्र, पंचास्तिकाय, 34 स्थान दर्शन , 24 ठाणा, छहढाला, द्रव्य संग्रह, समाधी तन्त्र, इष्टोपदेश, स्वरुप सम्बोधन.....आदि
उभयभाषाकवि आचार्य श्री :
गद्य की अपेक्षा पद्य को लिखना अपेक्षाकृत कठिन होता है, क्योंकि उसे छन्द के साँचे में ढालना पड़ता है, किन्तु आचार्यश्री इस विषय में अपवाद है। वे जितना अच्छा गद्य लिख लेते है, उतना ही अच्छा पद्य लिख लेते है। आचार्य श्री की विशेषता यह है की वे संस्कृत और हिन्दी इन 2 नो ही भाषाओं में पद्य लिखते है।
मुक्तककार आचार्यश्री :
कम शब्दों में अधिक कहने की क्षमता मुक्तक में पाई जाती है। मुक्तक काव्य की ही एक विधा है, किन्तु इसे सूत्र पद्धति कहा जा सकता है। आचार्य श्री ने 1000 से अधिक मुक्तकों की रचना की है।
आचार्य श्री के द्वारा लिखे गए मुक्तकों में भक्ति का रंग देखा जा सकता है तो धर्म का उपदेश भी। वर्तमान युगीन समस्याओं का समाधान देखा जा सकता है तो नवीन युग की आशावादिता भी ।
आचार्यश्री की लेखनी जब अपनी प्रतिभा को उकेरती है तो इस लगता है की सरस्वती स्वयं आकर उपदेश देने के लिये कटिबद्ध हो गई।
शिबिर संचालक आचार्य श्री :
पाठशालाओं के बंद हो जाने के कारण ज्ञानप्राप्ति के दीर्घसूत्री उपाय समाप्त प्रायः हो गए है। ऐसे समय में जिनोपदिष्ट तत्वज्ञान का प्रसार करने के लिये और आचरण की विधि को समझाने के लिये शिबिर सर्वश्रेष्ठ पद्धति अवशिस्ट सी लगती है।
आचार्य श्री की शिबिर लेने की पद्धति अनूठी है। इस पद्धति में न अर्थ व्यय होता है न समय का दुरुपयोग।
आचार्य श्री के मंगल सानिध्य में शाहपुरा, पालोदा, सागवाड़ा,ओबरी, देवलगाँवराजा, किशनगढ़, सलूम्बर, नातेपुते आदि अनेक स्थानों पर सफल शिबिर के आयोजन हुए है।
विशिष्ट चिन्तक :
आगम के अर्थ करने की पद्धति हो अथवा सामाजिक समस्या का समाधान करने के लिये किये जाने वाले चिन्तन, आचार्य श्री इस कला में पूर्णरूप से पारंगत है।
जब वे किसी पूर्वचार्यो भगवन्त के आशय को समझाने का प्रयत्न करते है, तब ऐसा लगता है की साक्षात वे आचार्यदेव स्वयं ही समझा रहे हो।ग्रन्थो के अर्थ में नाविन्य लाने का प्रयत्न जब आपके द्वारा किया जाता है तो आश्चर्य हुए बिना नही रहता। उनका 1/1 वाक्य मर्म को प्रदर्शित करने वाला और मन को संस्कारित करने वाला है।
गौरव के क्षण :
आगमशिल्पी, विद्यावाचस्पति , माॅ जिनवाणी की सेवा मे अग्रेसर,
अंकलीकर परम्परा के चतुर्थ पट्टाधीश, आचर्यश्री सुविधीसागर जी महाराज द्वारा 2013 मे 1 मंचपर 75 कृतियोंका विमोचन कराया गया। इससे उन्हें अमेझिंग विश्व रिकाॅर्ड का अवार्ड प्राप्त हुआ। उनके इस किर्तिमान को लिमका बुक रिकाॅर्डस में उल्लेख हुआ है।
अब गुरुवर ने 150 मुलग्रन्थोंके अनुवाद का धेय बनाया है। ताडपत्र के ग्रन्थ,पाण्डुलिपि के ग्रन्थ और अप्रकाशित ग्रन्थोंके आधार से यह कार्य सम्पन्न हो रहा है।
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मुनि महाराज
आर्यिका माताजी
०६ /०५ /२०२३
Suvidhisagar ji mahara.wrote and translated 150 books related to Jainism
param poojya Tapscharya-Chakravarti, acharyshri Suvidhisagar ji maharaj He wrote and translated 150 books ) Granth related to Jainism which were released in front of the gathered populace as well as virtually at shree kshetra Arahanthgiri Jain Math tamil nadu as confirmed on April 30, 2023.
मुनि श्री सुनम्रसागर महाराज - पिता Father- Munishri Sunamra Sagar ji ( समाधी-2021)
आर्यिका सुवर्णमति माताजी - दादी GrandMother- Aaryika Suvarnmati mataji ( समाधी-1998)
क्षुल्लिका सुधेयमति माताजी - माता Mother - Kshullika Sudheymati mataji
आर्यिका सुस्नेहमती माताजी - बेहन(भुआ की लड़की) Sister - Aaryika Susnehmati mataji
संस्कृत रचनाएँ
आचार्य श्री संस्कृत भाषा के मर्मज्ञ है। उनहोंने अनेक ग्रंथो का अनुवाद किया यह - सुप्रसिद्ध है। आचार्य श्री ने इस देवभाषा में अनेक स्फुट रचनाएँ की है।
परम पूज्य गणाधिपति, गणधराचार्य कुन्थुसागर जी महाराज द्वारा लिखित आत्मचिंतन नामक कृति का आचार्य श्री ने संस्कृत रूपान्तरण किया है। पयत्थसारो नमक प्राकृतभाषीय ग्रन्थ पर आचार्य श्री ने स्वयं संस्कृत टीका भी लिखा है।
गुरु-अभिषेक नामक रचना में आचार्य श्री ने गुरुप्रतिमा और चरण-पादुका के अभिषेक के समस्त पद्य एवं मंत्र लिखे है।
ध्यानप्रमेय, सुक्तिकौमिदी, दानरहस्य, द्वादशानुप्रेक्षा इत्यादि स्वतंत्र संस्कृत ग्रन्थों की रचना कर साहित्य के श्रीभण्डार की वृद्धि की है।
चतुर्विंशति स्तोत्र (दो) और विद्यमानविंशति-तीर्थंकर स्तोत्र इत्यादि स्तोत्र आपकी काव्य प्रतिभा के दर्शायक है।
आदिसागर भक्ति , सन्मतिसागर अष्टक इत्यादि लघुकाय स्तोत्रों की रचनाएँ आचार्य श्री की महत्वपूर्ण रचनाएँ है। अस्ति ह्यावन्श्यकं भारते संस्कृतम नामक कविता भारत में संस्कृत की आवयश्कता को प्रदर्शित करने वाला अष्टक है।
क्रीड़ासाहित्य
रचित साहित्य
अनुवादित साहित्य
विधान साहित्य
भजनसाहित्य
Vidhan Granth
Pathya Granth
Anuvadit Granth
Sampadit Granth
Pujan vidhan
Book Name
विद्या वाचस्पति - पूज्य आचार्य श्री सुविधिसागर जी जीवन परिचय Download from given below site
download the pdf at www.vimalsagargranths.com
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Play store app ( For स्तोत्र पाठ, ग्रंथ पाठ )
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सुविधि आगम देशना
जिनवाणी श्रुतसंरक्षक सुविधिसागर महाराज जी
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आचार्य श्री १०८ सुविधि सागरजी महाराज
आचार्य श्री १०८ सन्मति सागरजी १९३८ (अंकलिकार) Acharya Shri 108 Sanmati Sagarji 1938 (Ankalikar)
क्रमांक | वर्षायोग | स्थान | राज्य |
1 | 1986 | औरंगाबाद | महाराष्ट्र (ब्रम्हचारी) |
2 | 1987 | न्यायडोंगरी | महाराष्ट्र (क्षुल्लक) |
3 | 1988 | कुशलगढ | राजस्थान (ऐलक) |
4 | 1989 | सागवाड़ा | राजस्थान ( मुनि) |
5 | 1990 | बड़नगर | मध्यप्रदेश (मुनि) |
6 | 1991 | परसोड़ा | महाराष्ट्र (मुनि) |
7 | 1992 | सोनगिर | महाराष्ट्र (मुनि) |
8 | 1993 | बड़नगर | मध्यप्रदेश (मुनि) |
9 | 1994 | पचेवर | राजस्थान (मुनि) |
10 | 1995 | चंवलेश्वर | राजस्थान (मुनि) |
11 | 1996 | ब्यावर | राजस्थान (मुनि) |
12 | 1997 | मदनगंज-किशनगढ़ | राजस्थान (मुनि) |
13 | 1998 | सुजानगढ़ | राजस्थान (मुनि) |
14 | 1999 | आरा | बिहार (मुनि) |
15 | 2000 | राँची | झारखंड (मुनि) |
16 | 2001 | दुर्ग | छत्तीसगढ़ (मुनि) |
17 | 2002 | नागपुर | महाराष्ट्र (मुनि) |
18 | 2003 | देवलगावराजा | महाराष्ट्र (मुनि) |
19 | 2004 | ओबरी | राजस्थान (आचार्य) |
20 | 2005 | मन्दसौर | मध्यप्रदेश (आचार्य) |
21 | 2006 | केशरियाजी | राजस्थान (आचार्य) |
22 | 2007 | सूरत | गुजरात (आचार्य) |
23 | 2008 | नरवाली | राजस्थान (आचार्य) |
24 | 2009 | मदनगंज-किशनगढ़ | राजस्थान (आचार्य) |
25 | 2010 | श्रवणबेलगोला | कर्णाटक (आचार्य) |
26 | 2011 | पानशेत-पूना | महाराष्ट्र (पट्टाचार्य) |
27 | 2012 | औरंगाबाद | महाराष्ट्र (पट्टाचार्य) |
28 | 2013 | कुन्थुगिरि | महाराष्ट्र (पट्टाचार्य) |
29 | 2014 | शमनेवाड़ी | कर्णाटक (पट्टाचार्य) |
30 | 2015 | विजापुर | कर्णाटक (पट्टाचार्य) |
31 | 2016 | नसलापुर | कर्णाटक (पट्टाचार्य) |
32 | 2017 | शान्ति सागर त्यागी आश्रम, भूतनाळ | महाराष्ट्र (पट्टाचार्य) |
33 | 2018 | श्रवणबेलगोला | कर्णाटक (पट्टाचार्य) |
34 | 2019 | पुडुचेरी | तमिलनाडु (पट्टाचार्य) |
35 | 2020 | puzhal, चेन्नई | तमिलनाडु (पट्टाचार्य) |
36 | 2021 | चेन्नई | तमिलनाडु (पट्टाचार्य) |
1] मुनिश्री सुबोध सागरजी(बड़नगर 1993)
2] मुनिश्री सुधेश सागरजी(रामटेक 2002)
3] मुनिश्री सुविज्ञसागर जी(औरंगाबाद 2003)
4] मुनिश्री सुवंद्य सागर जी(गजपंथा 2004)
5] मुनिश्री सुनम्र सागर जी(डेचा 2004)
6] मुनिश्री सुहर्ष सागर जी(उज्जैन 2005)
7] मुनिश्री सुलक्षण सागर जी(उज्जैन 2005)
8] मुनिश्री सुमित्र सागर जी (पुना २०११)
9] मुनिश्री सुहितसागर जी (फलटण २०१२)
10] मुनिश्री सुभुषण सागर जी
1]आ.श्री सुगतमति माताजी(सोनगिर 1992)
2]आ. श्री सुवर्णमति माताजी(इन्दौर 1993)
3]आ.श्री सुविधिमति माताजी (इन्दौर 1993)
4] आ.श्री सुयोगमति माताजी(बड़नगर 1993)
5] आ. श्री सुनिर्णयमति माताजी(दुर्ग 2001)
6] आ.श्री सुप्रभमति माताजी(नागपुर 2002)
7] आ.श्री सुचन्द्र मति माताजी( चन्द्रपुर 2003)
8] आ.श्री सुवत्सलमति माताजी (औरंगाबाद 2003)
9] आ.श्री सुहृदयमति माताजी (औरंगाबाद 2003)
10] आ. श्री सुखदमति माताजी(उज्जैन 2005)
11] आ. श्री सुदृढ़मति माताजी (मन्दसौर 2005)
12] आ. श्री सुनिधिमति माताजी (चितरि 2006)
13] आ. श्री सुस्नेहमति माताजी ( गिरनार 2007)
14] आ. श्री सुभव्यमति माताजी ( सूरत 2007)
15] आ. श्री सुनीतिमति माताजी ( डेचा 2008)
16] आ. सुविधेय मति माताजी (पुणे 2011)
17] आ. श्री सुप्रभाव मति माताजी (औरंगाबाद 2012)
18] आ. श्री सुप्रभात मति माताजी ( औरंगाबाद 2012)
19] आ. श्री सुप्रणव मति माताजी ( औरंगाबाद 2012)
1] क्षुल्लक श्री सुदैवसागर जी ( नागपुर 2002)
2] क्षुल्लक श्री सुप्रतिष्ठसागर जी( गजपंथा 2003)
3] क्षुल्लक श्री सुप्रबुद्धसागर जी ( डेचा 2004)
4] क्षुल्लक श्री सुगमसागर जी (चेन्नई २०२१ )
1] क्षुल्लिका श्री सुदेवमति माताजी( नागपुर 2002)
2] क्षुल्लिका श्री सुश्रेयमति माताजी ( डेचा 2005)
3] क्षुल्लिका श्री सुद्दत मति माताजी (तारंगा २००६ )
4] क्षुल्लिका श्री सुविक्षमति माताजी ( गिरनार 2007)
5] क्षुल्लिका श्री सुध्येयमति माताजी ( किशनगढ़ 2009)
6] क्षुल्लिका श्री सुसमयमति माताजी (औरंगाबाद 2012 )
7] क्षुल्लिका सुच्चित्तमति माताजी (औरंगाबाद 2012)
8] क्षुल्लिका सुमनमति माताजी (औरंगाबाद 2012)
9] क्षुल्लिका सुकल्पमति माताजी (नातेपुते 2016)
Shivani- (suvidhichennal@gmail.com)
Shivani- (suvidhichennal@gmail.com) , Updated wiki page for Maharaji on 25-Nov-2021
SuvidhiSagarJi1971SanmatiSagar
Fourth Pattadhish of anklikar Parampara Acharya Shri Suvidhisagar Maharaj ji was born on 19-March-1972 to parents Kanchanbai and Inderchand Papdiwal.
His name before diksha was Jay Kumar and he left the house on 28-April-1984 to take the way of religious journey. He took Muni Diksha from Tapasvi samrat Acharya Shri Sanmati Sagarji Maharaj on 11-May-1989 and Acharya Pad on 20-April-2004 from Acharya Shri Siddhant Chakravarthy Sanmati Sagarji Maharaj.
He is known for studying and digitalizing Jain granths and scriptures which are now available on www.vimalsagargranths.com
Acharya Shri Suvidhisagar Maharaj ji
Fourth Pattadhish of Anklikar Parampara Acharya Shri Suvidhisagar Maharaj ji was born on 19-March-1972 to parents Kanchanbai and Inderchand Papdiwal.
His name before diksha was Jay Kumar and he left the house on 28-April-1984 to take the way of religious journey. He received Muni Diksha from Acharya Shri Hem Sagarji Maharaj on 11-May-1989 and Acharya Pad on 20-April-2004 from Acharya Shri Siddhant Chakravarthy Sanmati Sagarji Maharaj.
He is known for studying and digitalizing Jain granths and scriptures which are now available on vimalgranths.com
Announcement:
After my samadhi, you are appointed to the post of director of this sangh. (Anklikar Vani July 2004, Akshay Jyoti '(Acharya Pad vishehsnak - patrika ')
Pattacharya post accepted - 24 December 2010
Approval = Most revered Gandharacharya Shri Kunthu Sagar Maharaj and about 25 Acharyas of the tradition.
Specialty:
The creation of a comprehensive Jain book on the computer is your important work.
Special Pad:
♦ Shabd shilpi – Jaiur, Acharya shri sanmati sagar ji
♦ Vidya Vachaspati – 2005, Mandsour mp
♦ Aarshmarg Shiromani – 2011, Gandharacharya Kunthusagar ji
♦ Tapashcharya Chakravarti – 2011, pune
♦ Jinshasan Pradip – 2011, Tamilnadu
♦ Adhyatm kuldipak – 2014, Akkol Karnataka
♦ Aakinchanya Shramneshwar – 2012, Paithan Maharashtra
♦ Shrutgyaneshwar – 2014, shemnewadi karnataka
♦ Jinvani Shrutsarakshak – 2018, shravanbelgola
♦ Nutannodharak – 2021, Aurangabad Maharashtra
♦ Vidyavaridhi
Digitalizing Jain Granthkosh :
The world's first computer Jain Shabhkosh book 623 containing all the necessary facilities,
403 of Digambar Amnaya and 220 books of Shvetambara Amnaya have been included in only 8 DVDs.
Its purpose is the protection of scriptures, knowledge of Jainagam, acquisition of knowledge.
JAIA Computer GAMES :
Acharya Suvidhi Sagar Maharajj realized the importance of the impact of digital technology on young generation and has suggested to connect Games with Sanskar (Virtues), religion and to tell the difference between virtues and demerits.
♦ Khojo to Jane
♦ Gyannidhi
♦ Tol Mol Ke Bol
♦ Sapsidhi
♦ Kaun Banega Jinvaninandan
♦ Ek ke bad Ek
♦ Jain Tirthankar Darshan
♦ Aao khele cricket.
These games have created the wealth of knowledge etc. A lot can be learned from playing sports.
Acharya Shree's Renunciation:
13 - 3 - 1987 ---- Lifelong renunciation of oil and curd ( shiur Maharashtra)
5 - 2 - 2011 ---- Ghee, sugar and lifelong renunciation of green leaves (Udgao Maharashtra)
4 - 5 - 2012 ---- Lifelong renunciation of salt (Shri Atishaya Kshetra Paithan)
4 - 5 - 2012 ---- Lifelong renunciation of all famous food grains and five fruits except wheat, gram, rice, moong (Shri Atishaya Kshetra Paithan)
Apart from these, many times during the Chaturmasik period many such dry fruits, milk and fruits are discarded.
In the year 1997, 16 books of Jivakand, Karmkand, Labdhisara, Khapanasar, Dhavala, 7 books of Mahabandha had given up fruits till completion.
Even today, in every Chaturmas, you continue to study for 16 hours by doing one fasting one diet.
Tolerating prefix and parishah is an essential and necessary part of the life of sadhus. Probably there will be very few such sages that there will be no prefix of any kind in their life.
To bear prefixes and parishes, detachment and patience are needed. Param Pujya Acharya SuvidhiSagar Ji Maharaj is full of both these qualities. Therefore, he is adept at tolerating prefixes.
Preacher Acharya Shri :
Acharya Shri believes that the meaning of the discourse is - the work of presenting the speech of Lord Jinendra in a simple and age-old language should be done by the preacher. Therefore, he does not allow the use of extraneous sentences in his discourse. To clarify the subject, when they present any evidence, they try to reveal all the facts along with the name of the book, verse number, name of the author, century of the author, etc. Starting the discourse on time and closing it at the declared time is the most important feature of his discourse.
Samaysar, Samadhi Tantra, Kalyan Mandir, Tatvartha Sutra, Namokar Mantra, Our Acharya Tradition, Jainism and Modern Science, 4 Anuyoga, Solahkaran Bhavna, etc. have given many discourses.
Reader Acharya Shri :
The tradition of conducting Acharya Shree reading is very unique. The subject which they explain, they immediately clarify the proofs related to that subject.
Gyanopayogi Acharyashree does self-study continuously and makes his disciples study. In Varsha Yoga, self-study goes for 5 to 6 hours. Even in Vihar, about 2 to 3 hours are spent in teaching.
read
Dhavala, Aatmanushasan , Ratn Mala, Bhagwati Aaradhana, Tattvarthasutra, Panchastikaya, 34 sthan Darshan, 24 Thana, chahdhala, Dravya Sangrah, Samadhi Tantra, Ishtopadesha, Swaroop Sambodhan.....etc.
Bilingual poet Acharya Shri :
It is relatively difficult to write poetry as compared to prose, because it has to be cast in the mold of verses, but Acharyashree is an exception in this matter. The better they write prose, the better they write poetry. The specialty of Acharya Shree is that he writes poetry in two languages, Sanskrit and Hindi.
Muktakkar Acharyashree :
The ability to say more in less words is found in Muktak. Muktaka is a form of poetry itself, but it can be called sutra system. Acharya Shree has composed more than 1000 Muktakas.
The color of devotion can be seen in the Muktakas written by Acharya Shri, so can the preaching of religion. Solutions to the problems of the present era can be seen, so can the optimism of the new era.
When Acharya Shree's writing engraves her talent, it seems that Saraswati herself has come and committed to preach.
Camp Director Acharya Shri :
Due to the closure of the schools, the protracted methods of attainment of knowledge have almost come to an end. In such a time, the best method for spreading Jinopadishta philosophy and for explaining the method of conduct seems like a wasteful camp.
The method of taking Acharya Shri's camp is unique. In this method no money is spent nor time is wasted.
Successful camps have been organized at many places like Shahpura, Paloda, Sagwara, Obari, Devalgaonraja, Kishangarh, Salumbar, Natepute etc. under the blessings of Acharya Shri.
Distinguished Thinker :
Be it the method of meaning of Agam or the contemplation to be done to solve the social problem, Acharya Shri is fully versed in this art.
When he tries to explain the meaning of any Purvacharyayo Bhagwant, then it seems that he himself is actually explaining. His 1/1 sentence is about showing the meaning and cultivating the mind.
Proud moment :
Agamshilpi, Vidyavachaspati, a pioneer in the service of Maa Jinvani,
In 2013, 75 granth were released on one platform by Acharyashri Suvidhisagar Ji Maharaj, the fourth Pattadhish of the Anklikar tradition. This earned him the Amazing World Record Award. This record of his has been mentioned in Limca Book Records.
Now Guruvar has made the goal of translation of 150 texts. This work is being accomplished on the basis of palm leaves, manuscripts and unpublished texts.
World Records India
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1] मुनिश्री सुबोध सागरजी(बड़नगर 1993)
2] मुनिश्री सुधेश सागरजी(रामटेक 2002)
3] मुनिश्री सुविज्ञसागर जी(औरंगाबाद 2003)
4] मुनिश्री सुवंद्य सागर जी(गजपंथा 2004)
5] मुनिश्री सुनम्र सागर जी(डेचा 2004)
6] मुनिश्री सुहर्ष सागर जी(उज्जैन 2005)
7] मुनिश्री सुलक्षण सागर जी(उज्जैन 2005)
8] मुनिश्री सुमित्र सागर जी (पुना २०११)
9] मुनिश्री सुहितसागर जी (फलटण २०१२)
10] मुनिश्री सुभुषण सागर जी
1]आ.श्री सुगतमति माताजी(सोनगिर 1992)
2]आ. श्री सुवर्णमति माताजी(इन्दौर 1993)
3]आ.श्री सुविधिमति माताजी (इन्दौर 1993)
4] आ.श्री सुयोगमति माताजी(बड़नगर 1993)
5] आ. श्री सुनिर्णयमति माताजी(दुर्ग 2001)
6] आ.श्री सुप्रभमति माताजी(नागपुर 2002)
7] आ.श्री सुचन्द्र मति माताजी( चन्द्रपुर 2003)
8] आ.श्री सुवत्सलमति माताजी (औरंगाबाद 2003)
9] आ.श्री सुहृदयमति माताजी (औरंगाबाद 2003)
10] आ. श्री सुखदमति माताजी(उज्जैन 2005)
11] आ. श्री सुदृढ़मति माताजी (मन्दसौर 2005)
12] आ. श्री सुनिधिमति माताजी (चितरि 2006)
13] आ. श्री सुस्नेहमति माताजी ( गिरनार 2007)
14] आ. श्री सुभव्यमति माताजी ( सूरत 2007)
15] आ. श्री सुनीतिमति माताजी ( डेचा 2008)
16] आ. सुविधेय मति माताजी (पुणे 2011)
17] आ. श्री सुप्रभाव मति माताजी (औरंगाबाद 2012)
18] आ. श्री सुप्रभात मति माताजी ( औरंगाबाद 2012)
19] आ. श्री सुप्रणव मति माताजी ( औरंगाबाद 2012)
1] क्षुल्लक श्री सुदैवसागर जी ( नागपुर 2002)
2] क्षुल्लक श्री सुप्रतिष्ठसागर जी( गजपंथा 2003)
3] क्षुल्लक श्री सुप्रबुद्धसागर जी ( डेचा 2004)
4] क्षुल्लक श्री सुगमसागर जी (चेन्नई २०२१ )
1] क्षुल्लिका श्री सुदेवमति माताजी( नागपुर 2002)
2] क्षुल्लिका श्री सुश्रेयमति माताजी ( डेचा 2005)
3] क्षुल्लिका श्री सुद्दत मति माताजी (तारंगा २००६ )
4] क्षुल्लिका श्री सुविक्षमति माताजी ( गिरनार 2007)
5] क्षुल्लिका श्री सुध्येयमति माताजी ( किशनगढ़ 2009)
6] क्षुल्लिका श्री सुसमयमति माताजी (औरंगाबाद 2012 )
7] क्षुल्लिका सुच्चित्तमति माताजी (औरंगाबाद 2012)
8] क्षुल्लिका सुमनमति माताजी (औरंगाबाद 2012)
9] क्षुल्लिका सुकल्पमति माताजी (नातेपुते 2016)
संस्कृत रचनाएँ
आचार्य श्री संस्कृत भाषा के मर्मज्ञ है। उनहोंने अनेक ग्रंथो का अनुवाद किया यह - सुप्रसिद्ध है। आचार्य श्री ने इस देवभाषा में अनेक स्फुट रचनाएँ की है।
परम पूज्य गणाधिपति, गणधराचार्य कुन्थुसागर जी महाराज द्वारा लिखित आत्मचिंतन नामक कृति का आचार्य श्री ने संस्कृत रूपान्तरण किया है। पयत्थसारो नमक प्राकृतभाषीय ग्रन्थ पर आचार्य श्री ने स्वयं संस्कृत टीका भी लिखा है।
गुरु-अभिषेक नामक रचना में आचार्य श्री ने गुरुप्रतिमा और चरण-पादुका के अभिषेक के समस्त पद्य एवं मंत्र लिखे है।
ध्यानप्रमेय, सुक्तिकौमिदी, दानरहस्य, द्वादशानुप्रेक्षा इत्यादि स्वतंत्र संस्कृत ग्रन्थों की रचना कर साहित्य के श्रीभण्डार की वृद्धि की है।
चतुर्विंशति स्तोत्र (दो) और विद्यमानविंशति-तीर्थंकर स्तोत्र इत्यादि स्तोत्र आपकी काव्य प्रतिभा के दर्शायक है।
आदिसागर भक्ति , सन्मतिसागर अष्टक इत्यादि लघुकाय स्तोत्रों की रचनाएँ आचार्य श्री की महत्वपूर्ण रचनाएँ है। अस्ति ह्यावन्श्यकं भारते संस्कृतम नामक कविता भारत में संस्कृत की आवयश्कता को प्रदर्शित करने वाला अष्टक है।
क्रीड़ासाहित्य
रचित साहित्य
अनुवादित साहित्य
विधान साहित्य
भजनसाहित्य
Vidhan Granth
Pathya Granth
Anuvadit Granth
Sampadit Granth
Pujan vidhan
Book Name
विद्या वाचस्पति - पूज्य आचार्य श्री सुविधिसागर जी जीवन परिचय Download from given below site
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सुविधि आगम देशना
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मुनि श्री सुनम्रसागर महाराज - पिता Father- Munishri Sunamra Sagar ji ( समाधी-2021)
आर्यिका सुवर्णमति माताजी - दादी GrandMother- Aaryika Suvarnmati mataji ( समाधी-1998)
क्षुल्लिका सुधेयमति माताजी - माता Mother - Kshullika Sudheymati mataji
आर्यिका सुस्नेहमती माताजी - बेहन(भुआ की लड़की) Sister - Aaryika Susnehmati mataji
Acharya Shri 108 Suvidhi Sagarji Maharaj
आचार्य श्री १०८ सन्मति सागरजी १९३८ (अंकलिकार) Acharya Shri 108 Sanmati Sagarji 1938 (Ankalikar)
आचार्य श्री १०८ सन्मति सागरजी १९३८ (अंकलिकार) Acharya Shri 108 Sanmati Sagarji 1938 (Ankalikar)
क्रमांक | वर्षायोग | स्थान | राज्य |
1 | 1986 | औरंगाबाद | महाराष्ट्र (ब्रम्हचारी) |
2 | 1987 | न्यायडोंगरी | महाराष्ट्र (क्षुल्लक) |
3 | 1988 | कुशलगढ | राजस्थान (ऐलक) |
4 | 1989 | सागवाड़ा | राजस्थान ( मुनि) |
5 | 1990 | बड़नगर | मध्यप्रदेश (मुनि) |
6 | 1991 | परसोड़ा | महाराष्ट्र (मुनि) |
7 | 1992 | सोनगिर | महाराष्ट्र (मुनि) |
8 | 1993 | बड़नगर | मध्यप्रदेश (मुनि) |
9 | 1994 | पचेवर | राजस्थान (मुनि) |
10 | 1995 | चंवलेश्वर | राजस्थान (मुनि) |
11 | 1996 | ब्यावर | राजस्थान (मुनि) |
12 | 1997 | मदनगंज-किशनगढ़ | राजस्थान (मुनि) |
13 | 1998 | सुजानगढ़ | राजस्थान (मुनि) |
14 | 1999 | आरा | बिहार (मुनि) |
15 | 2000 | राँची | झारखंड (मुनि) |
16 | 2001 | दुर्ग | छत्तीसगढ़ (मुनि) |
17 | 2002 | नागपुर | महाराष्ट्र (मुनि) |
18 | 2003 | देवलगावराजा | महाराष्ट्र (मुनि) |
19 | 2004 | ओबरी | राजस्थान (आचार्य) |
20 | 2005 | मन्दसौर | मध्यप्रदेश (आचार्य) |
21 | 2006 | केशरियाजी | राजस्थान (आचार्य) |
22 | 2007 | सूरत | गुजरात (आचार्य) |
23 | 2008 | नरवाली | राजस्थान (आचार्य) |
24 | 2009 | मदनगंज-किशनगढ़ | राजस्थान (आचार्य) |
25 | 2010 | श्रवणबेलगोला | कर्णाटक (आचार्य) |
26 | 2011 | पानशेत-पूना | महाराष्ट्र (पट्टाचार्य) |
27 | 2012 | औरंगाबाद | महाराष्ट्र (पट्टाचार्य) |
28 | 2013 | कुन्थुगिरि | महाराष्ट्र (पट्टाचार्य) |
29 | 2014 | शमनेवाड़ी | कर्णाटक (पट्टाचार्य) |
30 | 2015 | विजापुर | कर्णाटक (पट्टाचार्य) |
31 | 2016 | नसलापुर | कर्णाटक (पट्टाचार्य) |
32 | 2017 | शान्ति सागर त्यागी आश्रम, भूतनाळ | महाराष्ट्र (पट्टाचार्य) |
33 | 2018 | श्रवणबेलगोला | कर्णाटक (पट्टाचार्य) |
34 | 2019 | पुडुचेरी | तमिलनाडु (पट्टाचार्य) |
35 | 2020 | puzhal, चेन्नई | तमिलनाडु (पट्टाचार्य) |
36 | 2021 | चेन्नई | तमिलनाडु (पट्टाचार्य) |
Aacharya Shri Sanmati Sagar ji Maharaj
Shivani- (suvidhichennal@gmail.com) , Updated wiki page for Maharaji on 25-Nov-2021
#SuvidhiSagarJi1971SanmatiSagar
SuvidhiSagarJi1971SanmatiSagar
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