हैशटैग
#AcharyaYativrashabh6thCentury
Yativṛṣabha, also known as Jadivasaha, was a mathematician and Jain monk. He is believed to have lived during the 6th century, probably during 500–570. He lived and worked between the periods of two great Indian mathematicians, Aryabhata (476 – 550) and Brahmagupta (598-668). He wrote the book named Tiloyapannatti which describes cosmology from the point of view of Jain religion and philosophy. "The work also gives various units for measuring distances and time." Tiloya Panatti postulated different concepts about infinity.
श्री गुणधर आचार्य रचित कषायपाहुड गाथासूत्रों पर चूर्णिसूत्रों की रचना करने वाले आचार्य का नाम यतिवृषभ है। जयधवला टीका के निर्देशानुसार आचार्य यतिवृषभ ने आर्यमंक्षु और नागहस्ति से कसायपाहुड की गाथाओं का सम्यक् प्रकार अध्ययन कर अर्थ अवधारण किया और कसायपाहुड पर चूर्णिसूत्रों की रचना की। इस प्रकार से इन आचार्य महोदय ने चूर्णिसूत्रों की रचना संक्षिप्त शब्दावली में प्रस्तुत कर महान अर्थ को निबद्ध किया है। यदि ये आचार्य चूर्णिसूत्रों की रचना न करते तो सम्भव है कि कसायपाहुड का अर्थ ही स्पष्ट न हो पाता अत: दिगम्बर सम्प्रदाय में चूर्णिसूत्रों के प्रथम रचयिता होने के कारण इन यतिवृषभ आचार्य का अत्यधिक महत्त्व है। श्री वीरसेनाचार्य ने अपनी धवला टीका में षट्खण्डागम के सूत्रों को भी चुण्णिसुत्त कहा है। इससे यह अर्थ स्पष्ट हो जाता है कि यतिवृषभ के चूर्णिसूत्रों का महत्त्व कसायपाहुड की गाथाओं में किसी तरह कम नहीं है। आचार्य वीरसेन के उल्लेखानुसार चूर्णिसूत्रकार श्री यतिवृषभ का मत कसायपाहुड और षट्खण्डागम के मत के समान ही प्रामाणिक एवं महत्त्वपूर्ण है। विक्रम सं. की ११वीं शताब्दी में आचार्य श्री नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती ने लब्धिसार नामक ग्रन्थ में पहले यतिवृषभ के मत का निर्देश किया है, तदनन्तर भूतबलि के मत का निर्देश किया है। इससे भी स्पष्ट हो जाता है कि इनके चूर्णिसूत्र मूलग्रन्थों के समान ही महत्त्वपूर्ण और उपयोगी थे।
इनके विद्यागुरु के नाम आर्यमंक्षु और नागहस्ति बताए गए हैं।
न आर्यमंक्षु और नागहस्ति ने गुणधराचार्य के मुखकमल से विनिर्गत कसापाहुड़ की गाथाओं के समस्त अर्थ को अवधारण किया वे हमें वर प्रदान करें। जो आर्यमंक्षु के शिष्य और नागहस्ति के अंतेवासी हैं, वृत्तिसूत्र के कत्र्ता वे यतिवृषभ मुझे वर प्रदान करें।
इस प्रकरण से यह स्पष्ट झलकता है कि आर्यमंक्षु और नागहस्ति समकालीन थे तथा यतिवृषभ के गुरू थे।
इन्द्रनंदि के श्रुतावतार में आर्यमंक्षु और नागहस्ति को श्री गुणधर आचार्य का शिष्य कहा है।
गुणधराचार्य ने पन्द्रह महाधिकारों में गाथा सूत्रों को रचकर नागहस्ति और आर्यमंक्षु को उसका व्याख्यान किया तथा उपर्युक्त प्रमाण से यह भी स्पष्ट है कि यतिवृषभ ने नागहस्ति और आर्यमंक्षु से ज्ञान प्राप्त कर चूर्णिसूत्र रचना की है। इस दृष्टि से इनका समय वीर निर्वाण सं. की सातवीं शताब्दी आता है। चूंकि ये भूतबलि आचार्य के समकालीन अथवा उनके कुछ ही उत्तरवर्ती प्रतीत होते हैं।
अत: यतिवृषभ का समय वि. सं. ६६६ के पश्चात् नहीं हो सकता है।
आचार्य आर्यमंक्षु और नागहस्ति दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों ही परम्पराओं में समानरूप सम्मानित हुए हैं।
श्री नेमिचन्द्र ज्योतिषाचार्य ने यतिवृषभ का समय ईस्वी सन् की द्वितीय शती माना है।
कसायपाहुड में तो चूर्णिसूत्रों को भगवान महावीर की दिव्यध्वनि की किरण माना है।
अर्थात् विपुलाचल के ऊपर स्थित भगवान महावीररूपी दिवाकर से निकलकर गौतम, लोहार्य, जम्बूस्वामी आदि आचार्य परम्परा से आकर गुणधराचार्य को प्राप्त होकर वहाँ गाथारूप से परिणमन करके पुन: आर्यमंक्षु और नागहस्ति आचार्य के द्वारा यतिवृषभाचार्य को प्राप्त होकर चूर्णिसूत्ररूप से परिणत हुई दिव्यध्वनि किरणरूप से हमने जाना है।
इस प्रकार से यतिवृषभाचार्य के वचनों की प्रमाणता को समझकर उनके ग्रन्थों पर पूर्ण श्रद्धान रखना हमारा कत्र्तव्य हो जाता है।
इस इतिहास को पढ़कर निम्नलिखित तथ्यों को ध्यान में रखना चाहिए-
यतिवृषभाचार्य की दो ही कृतियाँ प्रसिद्ध हैं-
१. कषायपाहुड पर रचित ‘‘चूर्णिसूत्र’’ और २. तिलोयपण्णत्ति।
पं. हीरालाल जी शास्त्री के मतानुसार आचार्य यतिवृषभ की एक अन्य रचना कम्मपयडि चूर्णि भी है। जिसका उल्लेख उन्होंने कसायपाहुडसुत्त ग्रन्थ की प्रस्तावना में किया है।
https://hi.encyclopediaofjainism.com/index.php/
#AcharyaYativrashabh6thCentury
https://hi.encyclopediaofjainism.com/index.php/
आचार्य श्री १०८ यतिवृषभ छठी शताब्दी
Sanjul Jain created wikipage for Acharya Shri on 25-Feb-2021
Yativṛṣabha, also known as Jadivasaha, was a mathematician and Jain monk. He is believed to have lived during the 6th century, probably during 500–570. He lived and worked between the periods of two great Indian mathematicians, Aryabhata (476 – 550) and Brahmagupta (598-668). He wrote the book named Tiloyapannatti which describes cosmology from the point of view of Jain religion and philosophy. "The work also gives various units for measuring distances and time." Tiloya Panatti postulated different concepts about infinity.
Yativrishbhacharya studied the stories of the Kasayapaudha near Aryanmakshu and Nagahasti Acharya. The Churnasutra and Tiloyapannatti texts composed by him fall in the category of great authenticity. These Acharyas were highly scholarly in the doctrinal and geographical subjects and algebra etc.
यतिवृषभाचार्य की दो ही कृतियाँ प्रसिद्ध हैं-
१. कषायपाहुड पर रचित ‘‘चूर्णिसूत्र’’ और २. तिलोयपण्णत्ति।
पं. हीरालाल जी शास्त्री के मतानुसार आचार्य यतिवृषभ की एक अन्य रचना कम्मपयडि चूर्णि भी है। जिसका उल्लेख उन्होंने कसायपाहुडसुत्त ग्रन्थ की प्रस्तावना में किया है।
https://en.wikipedia.org/wiki/Yativrasabh
https://hi.encyclopediaofjainism.com/index.php/
Acharya Yativrashabh 6th Century
Sanjul Jain created wikipage for Acharya Shri on 25-Feb-2021
#AcharyaYativrashabh6thCentury
15000
#AcharyaYativrashabh6thCentury
AcharyaYativrashabh6thCentury
You cannot copy content of this page