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#Damodar2ndPrachin
ब्रह्म दामोदरने सिरिपालचरिज और चंदप्पहचरिउकी रचना की है। इन्होंने ग्रंथारंभमें अपनी गुरु-परम्परा अंकित की है । बताया है
मंतोहि बद्दण पुणिमिदु, पहचंदु भडारउ अगि अजिंदु ।
तहो पट्टवर-मंडल मियंकु, भब्वाण-पबोहणु बिड्डय-संकु।
सिरिपोमणदि गदिय समोह, सुहृचंदु तासु सीसुवि विमोहु
परवाइय-मयंगय-पंचमुह, परिपालिय-संजम-णियम-निहु।
तह पटसरोवर-राइंस. जिणचंदभारउ भुवणहंसु ।
बंदिवि गुरुयण-वरणाणवंत, भत्तीइ पसण्णायर सुसंत ।
' बताया है कि मलसंघ सरस्वतीगच्छ और बलात्कारगणके भट्टारक प्रभा चन्द्र, पद्मनन्दि, शुभचन्द्र, जिनचन्द्र और कवि दामोदर हए । सिरिपालचरिउके पुष्पिकावाक्यमें कविने अपना नाम ब्रह्म दामोदर बताया है और इस ग्रंथको देवराजपुत्र साहू नक्षत्र नामांकित कहा है।
"इय सिरिपालमहाराजरिए जयपयसिद्धचक्कपरमातिसबिसेस गुणियर-भरिए बहुरोर-घोर-ट्टयर-बाहि-पसर-णिण्णासगे धम्मईपुरि सत्थषय पयासणो भट्टारयसिरिजिणचन्दसामिसीसब्रह्मदामोयरविरइए सिरिदेवराज गंदण साहुणक्खत-णामंकिए सिरिपालराय-मुतिगमणविहि-यण्णणो णाम चउत्थो संधिपरिच्छेओ समत्तो।"
कविने इस अन्धको इक्ष्वाकुवंशीय देवराजसाहूके पुत्र नक्षत्रसाहूके लिये रचा है । कविके गुरु जिनचन्द्र दिल्लोपट्टको भट्टारक थे । जिनचन्द्रकी उन दिनों में प्रभावशाली भट्टारको रूपमें गणना थी। संस्कृत-प्राकृतके विद्वान होनेके साथ ये प्रतिष्ठाचार्य भी थे । इनके द्वारा प्रतिष्टित मूर्तियाँ प्रायः सभी प्रान्तोंमें पायी जाती हैं । शान्तिनाथमूत्तिके अभिलेखसे अवगत होता है कि पद्मनन्दीके पट्टपर शुभचन्द्र और शुभचन्द्रके पट्टपर जिनचन्द्र आसीन हुए थे। जिनचन्द्र वि० सं०१५०७ में भट्टारकपदपर प्रतिष्ठत हुए और ६४ वर्षों तक अवस्थित रहे । उनके अनेक विद्वान शिष्य थे, जिनमें पं० मेधावी और दामोदर प्रधान हैं ।
गुरु | जिनचन्द्र दिल्लोपट्टको भट्टारक |
"सं० १५०९ बर्षे चैत्र सुदी १३ रविवासरे श्रीमूलसंचे भ० पचनन्दिदेवाः तस्पट्टे श्रीशुभचन्द्रदेवा: तलपट्टे श्रीजिनचंद्रदेवाः श्रीधौपे ग्रामस्थाने महाराजा धिराजश्रीप्रतापचन्द्रदेव राज्ये प्रवर्तमाने यदुवंशे लंबकंचुकान्वये साधुश्रीउद्धर्णतत्युत्र असौ।"
"संवत् १५१७ ज्येष्ठ बदि ५ भ० जिनचंद्रजी गृहस्थवर्ष १२, दिक्षावर्ष १५, पट्टवर्ष ६४ मास ८ दिवस १७, अन्तरदिवस १०, सर्बवर्ष ९१ मास ८ दिवस २७ बघेरवालजातिपट्ट दिल्ली।"
कविका स्थितिकाल पट्टावली, मूर्तिलेख एवं भट्टारक जिनचन्द्र द्वारा लिखित ग्रन्य-प्रशस्तियों आदिके आधार पर वि० की १६वीं शती है । ब्रह्म दामो दर दिल्लीको भट्टारकगद्दीसे सम्बद्ध हैं और जिनचन्द्र के शिष्य है। अत: इनके समय निर्णयमें किसी भी प्रकारका विवाद नहीं है।
कविको 'सिरिपालचरित' रचना काव्य और पुराण दोनों ही दृष्टियोंसे महत्वपूर्ण है । इसमें ४ सन्धियाँ हैं! और सिद्धचक्रका महात्म्य बतलानेके लिए चम्पापुरक राजा वीपाल और नयनासुन्दरीका जीवनवृत्त अंकित है। नयना सुन्दरीने सिजचक्रवतके अनुष्ठानसे अपने कुष्ठी पति राजा श्रीपाल और उनके ७०० साथियाँको कुष्ठरोगसे मुक्त किया था।
कविको दसरी रचना 'चंदप्पहचरिउ में अष्टम तीर्थंकर चन्द्रप्रभका जीवन गुम्फित है । इस ग्रन्थको पाण्डुलिपि नागौरके भट्टारकीय शास्त्रभण्डारमें सुर क्षित है।
ब्रह्म दामोदरने सिरिपालचरिज और चंदप्पहचरिउकी रचना की है। इन्होंने ग्रंथारंभमें अपनी गुरु-परम्परा अंकित की है । बताया है
मंतोहि बद्दण पुणिमिदु, पहचंदु भडारउ अगि अजिंदु ।
तहो पट्टवर-मंडल मियंकु, भब्वाण-पबोहणु बिड्डय-संकु।
सिरिपोमणदि गदिय समोह, सुहृचंदु तासु सीसुवि विमोहु
परवाइय-मयंगय-पंचमुह, परिपालिय-संजम-णियम-निहु।
तह पटसरोवर-राइंस. जिणचंदभारउ भुवणहंसु ।
बंदिवि गुरुयण-वरणाणवंत, भत्तीइ पसण्णायर सुसंत ।
' बताया है कि मलसंघ सरस्वतीगच्छ और बलात्कारगणके भट्टारक प्रभा चन्द्र, पद्मनन्दि, शुभचन्द्र, जिनचन्द्र और कवि दामोदर हए । सिरिपालचरिउके पुष्पिकावाक्यमें कविने अपना नाम ब्रह्म दामोदर बताया है और इस ग्रंथको देवराजपुत्र साहू नक्षत्र नामांकित कहा है।
"इय सिरिपालमहाराजरिए जयपयसिद्धचक्कपरमातिसबिसेस गुणियर-भरिए बहुरोर-घोर-ट्टयर-बाहि-पसर-णिण्णासगे धम्मईपुरि सत्थषय पयासणो भट्टारयसिरिजिणचन्दसामिसीसब्रह्मदामोयरविरइए सिरिदेवराज गंदण साहुणक्खत-णामंकिए सिरिपालराय-मुतिगमणविहि-यण्णणो णाम चउत्थो संधिपरिच्छेओ समत्तो।"
कविने इस अन्धको इक्ष्वाकुवंशीय देवराजसाहूके पुत्र नक्षत्रसाहूके लिये रचा है । कविके गुरु जिनचन्द्र दिल्लोपट्टको भट्टारक थे । जिनचन्द्रकी उन दिनों में प्रभावशाली भट्टारको रूपमें गणना थी। संस्कृत-प्राकृतके विद्वान होनेके साथ ये प्रतिष्ठाचार्य भी थे । इनके द्वारा प्रतिष्टित मूर्तियाँ प्रायः सभी प्रान्तोंमें पायी जाती हैं । शान्तिनाथमूत्तिके अभिलेखसे अवगत होता है कि पद्मनन्दीके पट्टपर शुभचन्द्र और शुभचन्द्रके पट्टपर जिनचन्द्र आसीन हुए थे। जिनचन्द्र वि० सं०१५०७ में भट्टारकपदपर प्रतिष्ठत हुए और ६४ वर्षों तक अवस्थित रहे । उनके अनेक विद्वान शिष्य थे, जिनमें पं० मेधावी और दामोदर प्रधान हैं ।
गुरु | जिनचन्द्र दिल्लोपट्टको भट्टारक |
"सं० १५०९ बर्षे चैत्र सुदी १३ रविवासरे श्रीमूलसंचे भ० पचनन्दिदेवाः तस्पट्टे श्रीशुभचन्द्रदेवा: तलपट्टे श्रीजिनचंद्रदेवाः श्रीधौपे ग्रामस्थाने महाराजा धिराजश्रीप्रतापचन्द्रदेव राज्ये प्रवर्तमाने यदुवंशे लंबकंचुकान्वये साधुश्रीउद्धर्णतत्युत्र असौ।"
"संवत् १५१७ ज्येष्ठ बदि ५ भ० जिनचंद्रजी गृहस्थवर्ष १२, दिक्षावर्ष १५, पट्टवर्ष ६४ मास ८ दिवस १७, अन्तरदिवस १०, सर्बवर्ष ९१ मास ८ दिवस २७ बघेरवालजातिपट्ट दिल्ली।"
कविका स्थितिकाल पट्टावली, मूर्तिलेख एवं भट्टारक जिनचन्द्र द्वारा लिखित ग्रन्य-प्रशस्तियों आदिके आधार पर वि० की १६वीं शती है । ब्रह्म दामो दर दिल्लीको भट्टारकगद्दीसे सम्बद्ध हैं और जिनचन्द्र के शिष्य है। अत: इनके समय निर्णयमें किसी भी प्रकारका विवाद नहीं है।
कविको 'सिरिपालचरित' रचना काव्य और पुराण दोनों ही दृष्टियोंसे महत्वपूर्ण है । इसमें ४ सन्धियाँ हैं! और सिद्धचक्रका महात्म्य बतलानेके लिए चम्पापुरक राजा वीपाल और नयनासुन्दरीका जीवनवृत्त अंकित है। नयना सुन्दरीने सिजचक्रवतके अनुष्ठानसे अपने कुष्ठी पति राजा श्रीपाल और उनके ७०० साथियाँको कुष्ठरोगसे मुक्त किया था।
कविको दसरी रचना 'चंदप्पहचरिउ में अष्टम तीर्थंकर चन्द्रप्रभका जीवन गुम्फित है । इस ग्रन्थको पाण्डुलिपि नागौरके भट्टारकीय शास्त्रभण्डारमें सुर क्षित है।
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आचार्यतुल्य दामोदर द्वितीय 16वीं शताब्दी (प्राचीन)
संजुल जैन ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 27 अप्रैल 2022
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 27 April 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
ब्रह्म दामोदरने सिरिपालचरिज और चंदप्पहचरिउकी रचना की है। इन्होंने ग्रंथारंभमें अपनी गुरु-परम्परा अंकित की है । बताया है
मंतोहि बद्दण पुणिमिदु, पहचंदु भडारउ अगि अजिंदु ।
तहो पट्टवर-मंडल मियंकु, भब्वाण-पबोहणु बिड्डय-संकु।
सिरिपोमणदि गदिय समोह, सुहृचंदु तासु सीसुवि विमोहु
परवाइय-मयंगय-पंचमुह, परिपालिय-संजम-णियम-निहु।
तह पटसरोवर-राइंस. जिणचंदभारउ भुवणहंसु ।
बंदिवि गुरुयण-वरणाणवंत, भत्तीइ पसण्णायर सुसंत ।
' बताया है कि मलसंघ सरस्वतीगच्छ और बलात्कारगणके भट्टारक प्रभा चन्द्र, पद्मनन्दि, शुभचन्द्र, जिनचन्द्र और कवि दामोदर हए । सिरिपालचरिउके पुष्पिकावाक्यमें कविने अपना नाम ब्रह्म दामोदर बताया है और इस ग्रंथको देवराजपुत्र साहू नक्षत्र नामांकित कहा है।
"इय सिरिपालमहाराजरिए जयपयसिद्धचक्कपरमातिसबिसेस गुणियर-भरिए बहुरोर-घोर-ट्टयर-बाहि-पसर-णिण्णासगे धम्मईपुरि सत्थषय पयासणो भट्टारयसिरिजिणचन्दसामिसीसब्रह्मदामोयरविरइए सिरिदेवराज गंदण साहुणक्खत-णामंकिए सिरिपालराय-मुतिगमणविहि-यण्णणो णाम चउत्थो संधिपरिच्छेओ समत्तो।"
कविने इस अन्धको इक्ष्वाकुवंशीय देवराजसाहूके पुत्र नक्षत्रसाहूके लिये रचा है । कविके गुरु जिनचन्द्र दिल्लोपट्टको भट्टारक थे । जिनचन्द्रकी उन दिनों में प्रभावशाली भट्टारको रूपमें गणना थी। संस्कृत-प्राकृतके विद्वान होनेके साथ ये प्रतिष्ठाचार्य भी थे । इनके द्वारा प्रतिष्टित मूर्तियाँ प्रायः सभी प्रान्तोंमें पायी जाती हैं । शान्तिनाथमूत्तिके अभिलेखसे अवगत होता है कि पद्मनन्दीके पट्टपर शुभचन्द्र और शुभचन्द्रके पट्टपर जिनचन्द्र आसीन हुए थे। जिनचन्द्र वि० सं०१५०७ में भट्टारकपदपर प्रतिष्ठत हुए और ६४ वर्षों तक अवस्थित रहे । उनके अनेक विद्वान शिष्य थे, जिनमें पं० मेधावी और दामोदर प्रधान हैं ।
गुरु | जिनचन्द्र दिल्लोपट्टको भट्टारक |
"सं० १५०९ बर्षे चैत्र सुदी १३ रविवासरे श्रीमूलसंचे भ० पचनन्दिदेवाः तस्पट्टे श्रीशुभचन्द्रदेवा: तलपट्टे श्रीजिनचंद्रदेवाः श्रीधौपे ग्रामस्थाने महाराजा धिराजश्रीप्रतापचन्द्रदेव राज्ये प्रवर्तमाने यदुवंशे लंबकंचुकान्वये साधुश्रीउद्धर्णतत्युत्र असौ।"
"संवत् १५१७ ज्येष्ठ बदि ५ भ० जिनचंद्रजी गृहस्थवर्ष १२, दिक्षावर्ष १५, पट्टवर्ष ६४ मास ८ दिवस १७, अन्तरदिवस १०, सर्बवर्ष ९१ मास ८ दिवस २७ बघेरवालजातिपट्ट दिल्ली।"
कविका स्थितिकाल पट्टावली, मूर्तिलेख एवं भट्टारक जिनचन्द्र द्वारा लिखित ग्रन्य-प्रशस्तियों आदिके आधार पर वि० की १६वीं शती है । ब्रह्म दामो दर दिल्लीको भट्टारकगद्दीसे सम्बद्ध हैं और जिनचन्द्र के शिष्य है। अत: इनके समय निर्णयमें किसी भी प्रकारका विवाद नहीं है।
कविको 'सिरिपालचरित' रचना काव्य और पुराण दोनों ही दृष्टियोंसे महत्वपूर्ण है । इसमें ४ सन्धियाँ हैं! और सिद्धचक्रका महात्म्य बतलानेके लिए चम्पापुरक राजा वीपाल और नयनासुन्दरीका जीवनवृत्त अंकित है। नयना सुन्दरीने सिजचक्रवतके अनुष्ठानसे अपने कुष्ठी पति राजा श्रीपाल और उनके ७०० साथियाँको कुष्ठरोगसे मुक्त किया था।
कविको दसरी रचना 'चंदप्पहचरिउ में अष्टम तीर्थंकर चन्द्रप्रभका जीवन गुम्फित है । इस ग्रन्थको पाण्डुलिपि नागौरके भट्टारकीय शास्त्रभण्डारमें सुर क्षित है।
Acharyatulya Damodar 2nd 16th Century (Prachin)
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 27 April 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
#Damodar2ndPrachin
15000
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