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#Dharmdhar

कवि धर्मधर इक्ष्वाकुवंशमें समुत्पन्न गोलाराडान्वयी साहू महादेवके प्रपुत्र और आशपाल के पुत्र थे । इनकी माताका नाम हीरादेवी था। विद्याधर और देवधर धर्मधरके दो भाई थे। पं० धर्मधरकी पत्नीका नाम नन्दिका था । नन्दिकासे दो पुत्र और तीन पुत्रियां उत्पन्न हुई थीं। पुत्रोंका नाम पराशर
और मनसुख था।
कविने संस्कृत में 'नागकुमारचरित' की रचना की। इस चरिल-काव्यके आरम्भमें मुलसंघ सरस्वतीगच्छके भट्टारक पद्मनन्दी, शुभचन्द्र और जिनचन्द्र का उल्लेख किया गया है । लिखा है
भद्रे सरस्वतीगच्छे कुन्दकुन्दाभिधो गुरुः ।
तदाम्नाये गणी जात: पद्मनन्दी यतीश्वरः ॥ ५ ॥
तस्पट्टे शुभचन्द्रोऽभूज्जिनचन्द्रस्ततोऽजनि ।
नत्वा तान् सद्गुरून भवत्या करिष्ये पंचमीकथा ।। ६ ।।
शुभां नागकुमारस्य कामदेवस्य पाचनीं ।
करिष्यामि समासेन का पूर्वानुसारतः ॥ ७॥
अतएव स्पष्ट है कि कवि मूलसंघ सरस्वतीगच्छका अनुयायी था।
कवि ने नागकुमारचरितका रचनाकाल प्रन्धकी प्रशस्तिमें दिया है। इस प्रशस्तिसे ज्ञात होता है कि वि० सं० १५११ में श्रावणशुक्ला पूर्णिमा सोम- . वारके दिन इस ग्रन्थको लिया है
व्यतीते विक्रमादित्ये रुद्रेषु शशिनामनि ।
श्रावणे शुक्लपक्षे च पूर्णिमाचन्द्रवासरे ।। ५३ ।।
कविन नागकुमारचरित यदुवंशी लम्बकं चुनगोत्री साहू नन्हकी प्रेरणासे रचा है 1 साहू नल्हू चन्द्र पाट या चन्द्रपाड नगरके दत्तपल्लीके निवासी थे । नल्ह साहूके पिताका नाम धनेश्वर या धनपाल था, जो जिनदासके पुत्र थे । जिनेदासके चार पुत्र थे-शिवपाल, जयपाल, धनपाल, धुपाल । नल्हू साहूकी माताका नाम लक्षणश्री था । उस समय चौहानवंशी राजा भोजराजके पुत्र माधवचन्द्र राज्य कर रहे थे। धनपाल मन्त्री पदपर प्रतिष्ठित था साहू नल्रके भाईका नाम उदयसिंह था । साहू नल्हू भी राज्य द्वारा सम्मानित थे। इनकी दो पत्नियां थीं-दुमा और यशोमती । तेजपाल, विजयपाल, चन्दनसिंह और नरसिंह ये चार पुत्र थे । इस प्रकार साहू नल्हू सपरिवार धर्मसाधना करते थे।
नागकुमारचरितकी प्रशस्ति साहू नल्हु के समान ही चौहानवंशी राजाओं का परिचय प्राप्त होता है । सारंगदेव और उनके पुत्र अभयपालका निर्देश आया है । अभयपाल का पुत्र रामचन्द्र था, जिसका राज्य वि० सं० १४४८ में विद्यमान था ! रामचन्द्र के पुत्र प्रतापचन्द्रके राज्य में रइधूने ग्रन्थ-रचना की है। प्रतापचन्द्रका दुसरा भाई रणसिंह था । इनका पुत्र भोजराज हुआ। भोज राजकी पत्नीका नाम शीलादेवी था। इसके गर्भसे माधवचन्द्र नामका पत्र उत्पन्न हुझा । इस माधवचन्द्रके कनकसिंह और नुसिंह दो भाई थे । माधवचन्द्र के राज्यकाल में ही कवि धर्मधरने नागकुमारचरितकी रचना की है। माधव चन्द्रका राज्यकाल वि० सं० को १६ वीं शती है। अतः कषि धर्मधरका समय नागकुमारकी प्रशस्तिमें उल्लिखित पुष्ट होता है।
कवि धर्मधरको दो रचनाएँ उल्लिखित मिलती हैं... "श्रीपालचरित और नागकुमारचरित "| पुण्यपुरुष श्रीपालकी कथा बहुत ही प्रसिद्ध रही है। इस कथाका आधार ग्रहण कर विभिन्न भाषाओं में काव्य लिखे गये !
नागकुमार चरितको रचना धर्मधरने अपनशके महाकवि पुष्पदन्तके ‘णायकुमारचरिउ' के आधार पर की है । ग्रन्थके परिच्छेदके अन्त में पुष्पिका बाक्य निम्न प्रकार मिलता है
इति श्रीनागकुमारकामदेवकथावतारे शुक्लपंचमीवतमाहात्म्ये साधुर्म लहूकारापिते पण्डिताशपालात्मजधर्मघरविरचिले श्रेणिकमहाराजसमवसरण प्रवेशवर्णनो नाम प्रथमः परिच्छेद: समाप्तः।'
नागकुमारचरित सरल और बोधगम्य शैली में लिखा गया काव्य है। इसका काव्य और इतिहासकी दृष्टिसे अधिक मूल्य है ।
कवि धर्मधर इक्ष्वाकुवंशमें समुत्पन्न गोलाराडान्वयी साहू महादेवके प्रपुत्र और आशपाल के पुत्र थे । इनकी माताका नाम हीरादेवी था। विद्याधर और देवधर धर्मधरके दो भाई थे। पं० धर्मधरकी पत्नीका नाम नन्दिका था । नन्दिकासे दो पुत्र और तीन पुत्रियां उत्पन्न हुई थीं। पुत्रोंका नाम पराशर
और मनसुख था।
कविने संस्कृत में 'नागकुमारचरित' की रचना की। इस चरिल-काव्यके आरम्भमें मुलसंघ सरस्वतीगच्छके भट्टारक पद्मनन्दी, शुभचन्द्र और जिनचन्द्र का उल्लेख किया गया है । लिखा है
भद्रे सरस्वतीगच्छे कुन्दकुन्दाभिधो गुरुः ।
तदाम्नाये गणी जात: पद्मनन्दी यतीश्वरः ॥ ५ ॥
तस्पट्टे शुभचन्द्रोऽभूज्जिनचन्द्रस्ततोऽजनि ।
नत्वा तान् सद्गुरून भवत्या करिष्ये पंचमीकथा ।। ६ ।।
शुभां नागकुमारस्य कामदेवस्य पाचनीं ।
करिष्यामि समासेन का पूर्वानुसारतः ॥ ७॥
अतएव स्पष्ट है कि कवि मूलसंघ सरस्वतीगच्छका अनुयायी था।
कवि ने नागकुमारचरितका रचनाकाल प्रन्धकी प्रशस्तिमें दिया है। इस प्रशस्तिसे ज्ञात होता है कि वि० सं० १५११ में श्रावणशुक्ला पूर्णिमा सोम- . वारके दिन इस ग्रन्थको लिया है
व्यतीते विक्रमादित्ये रुद्रेषु शशिनामनि ।
श्रावणे शुक्लपक्षे च पूर्णिमाचन्द्रवासरे ।। ५३ ।।
कविन नागकुमारचरित यदुवंशी लम्बकं चुनगोत्री साहू नन्हकी प्रेरणासे रचा है 1 साहू नल्हू चन्द्र पाट या चन्द्रपाड नगरके दत्तपल्लीके निवासी थे । नल्ह साहूके पिताका नाम धनेश्वर या धनपाल था, जो जिनदासके पुत्र थे । जिनेदासके चार पुत्र थे-शिवपाल, जयपाल, धनपाल, धुपाल । नल्हू साहूकी माताका नाम लक्षणश्री था । उस समय चौहानवंशी राजा भोजराजके पुत्र माधवचन्द्र राज्य कर रहे थे। धनपाल मन्त्री पदपर प्रतिष्ठित था साहू नल्रके भाईका नाम उदयसिंह था । साहू नल्हू भी राज्य द्वारा सम्मानित थे। इनकी दो पत्नियां थीं-दुमा और यशोमती । तेजपाल, विजयपाल, चन्दनसिंह और नरसिंह ये चार पुत्र थे । इस प्रकार साहू नल्हू सपरिवार धर्मसाधना करते थे।
नागकुमारचरितकी प्रशस्ति साहू नल्हु के समान ही चौहानवंशी राजाओं का परिचय प्राप्त होता है । सारंगदेव और उनके पुत्र अभयपालका निर्देश आया है । अभयपाल का पुत्र रामचन्द्र था, जिसका राज्य वि० सं० १४४८ में विद्यमान था ! रामचन्द्र के पुत्र प्रतापचन्द्रके राज्य में रइधूने ग्रन्थ-रचना की है। प्रतापचन्द्रका दुसरा भाई रणसिंह था । इनका पुत्र भोजराज हुआ। भोज राजकी पत्नीका नाम शीलादेवी था। इसके गर्भसे माधवचन्द्र नामका पत्र उत्पन्न हुझा । इस माधवचन्द्रके कनकसिंह और नुसिंह दो भाई थे । माधवचन्द्र के राज्यकाल में ही कवि धर्मधरने नागकुमारचरितकी रचना की है। माधव चन्द्रका राज्यकाल वि० सं० को १६ वीं शती है। अतः कषि धर्मधरका समय नागकुमारकी प्रशस्तिमें उल्लिखित पुष्ट होता है।
कवि धर्मधरको दो रचनाएँ उल्लिखित मिलती हैं... "श्रीपालचरित और नागकुमारचरित "| पुण्यपुरुष श्रीपालकी कथा बहुत ही प्रसिद्ध रही है। इस कथाका आधार ग्रहण कर विभिन्न भाषाओं में काव्य लिखे गये !
नागकुमार चरितको रचना धर्मधरने अपनशके महाकवि पुष्पदन्तके ‘णायकुमारचरिउ' के आधार पर की है । ग्रन्थके परिच्छेदके अन्त में पुष्पिका बाक्य निम्न प्रकार मिलता है
इति श्रीनागकुमारकामदेवकथावतारे शुक्लपंचमीवतमाहात्म्ये साधुर्म लहूकारापिते पण्डिताशपालात्मजधर्मघरविरचिले श्रेणिकमहाराजसमवसरण प्रवेशवर्णनो नाम प्रथमः परिच्छेद: समाप्तः।'
नागकुमारचरित सरल और बोधगम्य शैली में लिखा गया काव्य है। इसका काव्य और इतिहासकी दृष्टिसे अधिक मूल्य है ।
#Dharmdhar
आचार्यतुल्य श्री १०८ धर्मधर 15वीं शताब्दी (प्राचीन)
| Name | Phone/Mobile 1 | Which Sangh/Maharaji/Aryika Ji you are associated with |
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| Hemal Jain | +918690943133 | #SunilSagarJi1977SanmatiSagarJi |
| Abhi Bantu | +919575455473 | #SunilSagarJi1977SanmatiSagarJi |
| Purnima Didi | +918552998307 | #SunilSagarJi1977SanmatiSagarJi |
| Varna Manish Bhai | +919352199164 | #KanaknandiJiMaharajKunthusagarji |
| Ankit Test | +919730016352 | #AcharyaShriVidyasagarjiMaharaj |
| Santosh Khule | +919850774639 | #PavitrasagarJiMaharaj1949SanmatiSagarJi1927 |
| Madhok Shaha | +919928058345 | #KanaknandiJiMaharajKunthusagarji |
| Siddharth jain Baddu | +917987281995 | #AcharyaShriVidyasagarjiMaharaj, #VishalSagarJiMaharaj1977VidyaSagarJi |
| Akshay Adadande | +919765069127 | #AcharyaShriVidyasagarjiMaharaj, #NiyamSagarJiMaharaj1957VidyaSagarJi |
| Mayur Jain | +918484845108 | #SundarSagarJiMaharaj1976SanmatiSagarJi, #VibhavSagarJiMaharaj1976ViragSagarJi, #PrabhavsagarjiPavitrasagarJiMaharaj1949, #MayanksagarjiRayansagarJiMaharaj1955 |
संजुल जैन ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 05 अप्रैल 2022
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 05 April 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
कवि धर्मधर इक्ष्वाकुवंशमें समुत्पन्न गोलाराडान्वयी साहू महादेवके प्रपुत्र और आशपाल के पुत्र थे । इनकी माताका नाम हीरादेवी था। विद्याधर और देवधर धर्मधरके दो भाई थे। पं० धर्मधरकी पत्नीका नाम नन्दिका था । नन्दिकासे दो पुत्र और तीन पुत्रियां उत्पन्न हुई थीं। पुत्रोंका नाम पराशर
और मनसुख था।
कविने संस्कृत में 'नागकुमारचरित' की रचना की। इस चरिल-काव्यके आरम्भमें मुलसंघ सरस्वतीगच्छके भट्टारक पद्मनन्दी, शुभचन्द्र और जिनचन्द्र का उल्लेख किया गया है । लिखा है
भद्रे सरस्वतीगच्छे कुन्दकुन्दाभिधो गुरुः ।
तदाम्नाये गणी जात: पद्मनन्दी यतीश्वरः ॥ ५ ॥
तस्पट्टे शुभचन्द्रोऽभूज्जिनचन्द्रस्ततोऽजनि ।
नत्वा तान् सद्गुरून भवत्या करिष्ये पंचमीकथा ।। ६ ।।
शुभां नागकुमारस्य कामदेवस्य पाचनीं ।
करिष्यामि समासेन का पूर्वानुसारतः ॥ ७॥
अतएव स्पष्ट है कि कवि मूलसंघ सरस्वतीगच्छका अनुयायी था।
कवि ने नागकुमारचरितका रचनाकाल प्रन्धकी प्रशस्तिमें दिया है। इस प्रशस्तिसे ज्ञात होता है कि वि० सं० १५११ में श्रावणशुक्ला पूर्णिमा सोम- . वारके दिन इस ग्रन्थको लिया है
व्यतीते विक्रमादित्ये रुद्रेषु शशिनामनि ।
श्रावणे शुक्लपक्षे च पूर्णिमाचन्द्रवासरे ।। ५३ ।।
कविन नागकुमारचरित यदुवंशी लम्बकं चुनगोत्री साहू नन्हकी प्रेरणासे रचा है 1 साहू नल्हू चन्द्र पाट या चन्द्रपाड नगरके दत्तपल्लीके निवासी थे । नल्ह साहूके पिताका नाम धनेश्वर या धनपाल था, जो जिनदासके पुत्र थे । जिनेदासके चार पुत्र थे-शिवपाल, जयपाल, धनपाल, धुपाल । नल्हू साहूकी माताका नाम लक्षणश्री था । उस समय चौहानवंशी राजा भोजराजके पुत्र माधवचन्द्र राज्य कर रहे थे। धनपाल मन्त्री पदपर प्रतिष्ठित था साहू नल्रके भाईका नाम उदयसिंह था । साहू नल्हू भी राज्य द्वारा सम्मानित थे। इनकी दो पत्नियां थीं-दुमा और यशोमती । तेजपाल, विजयपाल, चन्दनसिंह और नरसिंह ये चार पुत्र थे । इस प्रकार साहू नल्हू सपरिवार धर्मसाधना करते थे।
नागकुमारचरितकी प्रशस्ति साहू नल्हु के समान ही चौहानवंशी राजाओं का परिचय प्राप्त होता है । सारंगदेव और उनके पुत्र अभयपालका निर्देश आया है । अभयपाल का पुत्र रामचन्द्र था, जिसका राज्य वि० सं० १४४८ में विद्यमान था ! रामचन्द्र के पुत्र प्रतापचन्द्रके राज्य में रइधूने ग्रन्थ-रचना की है। प्रतापचन्द्रका दुसरा भाई रणसिंह था । इनका पुत्र भोजराज हुआ। भोज राजकी पत्नीका नाम शीलादेवी था। इसके गर्भसे माधवचन्द्र नामका पत्र उत्पन्न हुझा । इस माधवचन्द्रके कनकसिंह और नुसिंह दो भाई थे । माधवचन्द्र के राज्यकाल में ही कवि धर्मधरने नागकुमारचरितकी रचना की है। माधव चन्द्रका राज्यकाल वि० सं० को १६ वीं शती है। अतः कषि धर्मधरका समय नागकुमारकी प्रशस्तिमें उल्लिखित पुष्ट होता है।
कवि धर्मधरको दो रचनाएँ उल्लिखित मिलती हैं... "श्रीपालचरित और नागकुमारचरित "| पुण्यपुरुष श्रीपालकी कथा बहुत ही प्रसिद्ध रही है। इस कथाका आधार ग्रहण कर विभिन्न भाषाओं में काव्य लिखे गये !
नागकुमार चरितको रचना धर्मधरने अपनशके महाकवि पुष्पदन्तके ‘णायकुमारचरिउ' के आधार पर की है । ग्रन्थके परिच्छेदके अन्त में पुष्पिका बाक्य निम्न प्रकार मिलता है
इति श्रीनागकुमारकामदेवकथावतारे शुक्लपंचमीवतमाहात्म्ये साधुर्म लहूकारापिते पण्डिताशपालात्मजधर्मघरविरचिले श्रेणिकमहाराजसमवसरण प्रवेशवर्णनो नाम प्रथमः परिच्छेद: समाप्तः।'
नागकुमारचरित सरल और बोधगम्य शैली में लिखा गया काव्य है। इसका काव्य और इतिहासकी दृष्टिसे अधिक मूल्य है ।
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Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
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15000
Acharyatulya Dharmdhar 15th Century (Prachin)
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