हैशटैग
#Gunbhadra
काक्षसंघ माथुगन्वयके भट्रारक गगढ़ माटयकीतिक क्षय थे । और भट्टारक यशःकात्तिके शिष्य थे। यं कथा-साहित्यके बचपन माने गये हैं। गणभद्रका स्मरण महाकवि रइधूने भी किया है। साथ ही नजपाल' और महिन्दुने भी किया है। धने इन्हें चरित्रवे आचरण में धौर, संयमी, गणि जनोंने गुरू, मधुरभाषी, प्रवचना सबका सन्तुष्ट करनेवाला, जितन्द्रिय, मान रूपी महागजको तर्जनाको सहन करनेवाला एवं भव्यजनोंको उद्बोधित करने वाला कहा है।
दादा गुरु | भट्टारक यशकीर्ति |
गुरु | भट्टारक गुणभद्र मलयकीर्ति |
तहो वरपट्ट वरिउंद अज्जमु ! धरिय चरितायरणु ससंजम् ।।
गुरु मममममगि प्राइमभूगण ! बयण-पउत्ति-जणिय-जणतूसणु ।।
कयकामाइय - दोस -विसज्जणू । दसिय-माग-महागम-तज्जणु ॥
मविषण-मण-उप्पाइस - बोहणु । सिरिगुणभद्दमहारिसि सोहण ।
–सम्मइ-१०।३०।२१-२४
गुणभद्र प्रतिष्ठाचार्य भी थे। मैनपुरी (उत्तरप्रदेश) के जैन मन्दिरों में कुछ मतियों एवं यंत्रों पर लेख उत्कीणित हैं, जिनसे ज्ञात होता है कि वे प्रतिष्ठा चार्य थे।
गणभद्रका स्थितिकाल उनकी गुरुपरम्परा और समकालीन राजवंशोंके आधारपर निर्णीत किया जा सकता है। इन्होंने ग्वालियरके तोमरवंशी राजा डूंगरसिंहके पुत्र की तिसिंह या कर्णसिंहके राज्यकाल में अपनी रचनाएं लिखी हैं। महाकवि रइधूने गुणभद्रका उल्लेख किया है। अतः गुणभद्रका समय रइधूके समकालीन या उनसे कुछ पूर्व होना चाहिए।
कारबाके सेनगण-भण्डारकी लिपि-प्रशस्ति वि० सं० १५१० वैशाख शुक्ला तृतीयाकी लिखी हुई है, जो गोपाचल में डूगर्गसंहके राज्यकाल में भट्टारक गुणभद्रकी आम्नायके अग्रवालवशी गगंगोत्रीय साह जिनदासने लिखाई थी।
अतएव कवि गुणभद्का समय १५वीं शतीका अंतिम पाद या १६वीं शत्तीका प्रथम पाद होना चाहिए।
भट्टारक मणभद्र ने १५ कथा-ग्रंथोंकी रचना की है, जो निम्न प्रकार हैं
१. सवणवारसिविहाणकहा (श्रावणद्वादशी-विधान-कथा)
२. पक्सवइवयकहा (पाक्षिकवतकथा)
३. आयासपंचमीकहा-आकाशपंचमीकथा
४. चंदायणवयकहा-चन्द्रायणप्रतकथा
५. चंदणछछीकहा-चन्दनषष्ठीकथा
६. नरफउतारांदुग्धारसकथा
७. गिदुखसत्तमीकहा-निदुःखसप्तमोकथा
८. मउडसत्तमीकहा-~-मुकुटसप्तमोकथा
९. पुष्पांजलीकहा-पुष्पांजलिकथा
१0. रयणत्तयवयकहा-रत्नन्नयनत्तकथा
११. दहलक्खणवयकहा- दशलक्षणव्रतकथा
१२. अगंतवयकहा- अनंतव्रतकथा
१३. लद्धिविहाणकहा--लब्धिविधानकथा
१४. सालहकारणवयकहा--बोडशकारणब्रतकथा
15. सुगंधदहमीकहा--सुगंधदशमी कथा
इन बल-कथाओंम व्रतका स्वरूप, आचरणा-विधि और उनका फल प्राप्ति प्रतिपादित की गयी है । आत्मशोधन के लिये प्रतोंका नितान्त आवश्यकता है, क्योंकि आत्मशुद्धिके बिना कल्याण राभव नहीं है। पाक्षिकश्रावक-कथा और अनन्तनत-कथा ये दा कथा-गन्ध ता प्रचालियरनिवासी संघपति साहू उद्धरणके जिनमंदिरम निवास करते हुए साहू सारंगदेवके पुत्र देवदासको प्ररणासे रचे गय है। और अनन्त व्रतकथा, पुष्पांजलिवतकथा और दशलक्षणव्रतकथा ये सोन कथाकृतियाँ ग्वालियरनिवासी जयसबालबंशी चौधरी लक्ष्मण सिंहके पुत्र पं० भीमसेनके अनुरोध लिखी गई हैं। निदुःख सप्तमीकथा गोपाचल वासी साहू बोधाके पुत्र सहजपालको अनुरोधसे लिखी गई है। शेष कथा-ग्रन्थ धार्मिक भावनासे प्रेरित होकर लिखे हैं । नामानुसार कथाओंमें व्रतोंका स्व रूपादि वर्णित है।
काक्षसंघ माथुगन्वयके भट्रारक गगढ़ माटयकीतिक क्षय थे । और भट्टारक यशःकात्तिके शिष्य थे। यं कथा-साहित्यके बचपन माने गये हैं। गणभद्रका स्मरण महाकवि रइधूने भी किया है। साथ ही नजपाल' और महिन्दुने भी किया है। धने इन्हें चरित्रवे आचरण में धौर, संयमी, गणि जनोंने गुरू, मधुरभाषी, प्रवचना सबका सन्तुष्ट करनेवाला, जितन्द्रिय, मान रूपी महागजको तर्जनाको सहन करनेवाला एवं भव्यजनोंको उद्बोधित करने वाला कहा है।
दादा गुरु | भट्टारक यशकीर्ति |
गुरु | भट्टारक गुणभद्र मलयकीर्ति |
तहो वरपट्ट वरिउंद अज्जमु ! धरिय चरितायरणु ससंजम् ।।
गुरु मममममगि प्राइमभूगण ! बयण-पउत्ति-जणिय-जणतूसणु ।।
कयकामाइय - दोस -विसज्जणू । दसिय-माग-महागम-तज्जणु ॥
मविषण-मण-उप्पाइस - बोहणु । सिरिगुणभद्दमहारिसि सोहण ।
–सम्मइ-१०।३०।२१-२४
गुणभद्र प्रतिष्ठाचार्य भी थे। मैनपुरी (उत्तरप्रदेश) के जैन मन्दिरों में कुछ मतियों एवं यंत्रों पर लेख उत्कीणित हैं, जिनसे ज्ञात होता है कि वे प्रतिष्ठा चार्य थे।
गणभद्रका स्थितिकाल उनकी गुरुपरम्परा और समकालीन राजवंशोंके आधारपर निर्णीत किया जा सकता है। इन्होंने ग्वालियरके तोमरवंशी राजा डूंगरसिंहके पुत्र की तिसिंह या कर्णसिंहके राज्यकाल में अपनी रचनाएं लिखी हैं। महाकवि रइधूने गुणभद्रका उल्लेख किया है। अतः गुणभद्रका समय रइधूके समकालीन या उनसे कुछ पूर्व होना चाहिए।
कारबाके सेनगण-भण्डारकी लिपि-प्रशस्ति वि० सं० १५१० वैशाख शुक्ला तृतीयाकी लिखी हुई है, जो गोपाचल में डूगर्गसंहके राज्यकाल में भट्टारक गुणभद्रकी आम्नायके अग्रवालवशी गगंगोत्रीय साह जिनदासने लिखाई थी।
अतएव कवि गुणभद्का समय १५वीं शतीका अंतिम पाद या १६वीं शत्तीका प्रथम पाद होना चाहिए।
भट्टारक मणभद्र ने १५ कथा-ग्रंथोंकी रचना की है, जो निम्न प्रकार हैं
१. सवणवारसिविहाणकहा (श्रावणद्वादशी-विधान-कथा)
२. पक्सवइवयकहा (पाक्षिकवतकथा)
३. आयासपंचमीकहा-आकाशपंचमीकथा
४. चंदायणवयकहा-चन्द्रायणप्रतकथा
५. चंदणछछीकहा-चन्दनषष्ठीकथा
६. नरफउतारांदुग्धारसकथा
७. गिदुखसत्तमीकहा-निदुःखसप्तमोकथा
८. मउडसत्तमीकहा-~-मुकुटसप्तमोकथा
९. पुष्पांजलीकहा-पुष्पांजलिकथा
१0. रयणत्तयवयकहा-रत्नन्नयनत्तकथा
११. दहलक्खणवयकहा- दशलक्षणव्रतकथा
१२. अगंतवयकहा- अनंतव्रतकथा
१३. लद्धिविहाणकहा--लब्धिविधानकथा
१४. सालहकारणवयकहा--बोडशकारणब्रतकथा
15. सुगंधदहमीकहा--सुगंधदशमी कथा
इन बल-कथाओंम व्रतका स्वरूप, आचरणा-विधि और उनका फल प्राप्ति प्रतिपादित की गयी है । आत्मशोधन के लिये प्रतोंका नितान्त आवश्यकता है, क्योंकि आत्मशुद्धिके बिना कल्याण राभव नहीं है। पाक्षिकश्रावक-कथा और अनन्तनत-कथा ये दा कथा-गन्ध ता प्रचालियरनिवासी संघपति साहू उद्धरणके जिनमंदिरम निवास करते हुए साहू सारंगदेवके पुत्र देवदासको प्ररणासे रचे गय है। और अनन्त व्रतकथा, पुष्पांजलिवतकथा और दशलक्षणव्रतकथा ये सोन कथाकृतियाँ ग्वालियरनिवासी जयसबालबंशी चौधरी लक्ष्मण सिंहके पुत्र पं० भीमसेनके अनुरोध लिखी गई हैं। निदुःख सप्तमीकथा गोपाचल वासी साहू बोधाके पुत्र सहजपालको अनुरोधसे लिखी गई है। शेष कथा-ग्रन्थ धार्मिक भावनासे प्रेरित होकर लिखे हैं । नामानुसार कथाओंमें व्रतोंका स्व रूपादि वर्णित है।
#Gunbhadra
आचार्यतुल्य गुणभद्र 16वीं शताब्दी (प्राचीन)
संजुल जैन ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 19 मई 2022
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 19 May 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
काक्षसंघ माथुगन्वयके भट्रारक गगढ़ माटयकीतिक क्षय थे । और भट्टारक यशःकात्तिके शिष्य थे। यं कथा-साहित्यके बचपन माने गये हैं। गणभद्रका स्मरण महाकवि रइधूने भी किया है। साथ ही नजपाल' और महिन्दुने भी किया है। धने इन्हें चरित्रवे आचरण में धौर, संयमी, गणि जनोंने गुरू, मधुरभाषी, प्रवचना सबका सन्तुष्ट करनेवाला, जितन्द्रिय, मान रूपी महागजको तर्जनाको सहन करनेवाला एवं भव्यजनोंको उद्बोधित करने वाला कहा है।
दादा गुरु | भट्टारक यशकीर्ति |
गुरु | भट्टारक गुणभद्र मलयकीर्ति |
तहो वरपट्ट वरिउंद अज्जमु ! धरिय चरितायरणु ससंजम् ।।
गुरु मममममगि प्राइमभूगण ! बयण-पउत्ति-जणिय-जणतूसणु ।।
कयकामाइय - दोस -विसज्जणू । दसिय-माग-महागम-तज्जणु ॥
मविषण-मण-उप्पाइस - बोहणु । सिरिगुणभद्दमहारिसि सोहण ।
–सम्मइ-१०।३०।२१-२४
गुणभद्र प्रतिष्ठाचार्य भी थे। मैनपुरी (उत्तरप्रदेश) के जैन मन्दिरों में कुछ मतियों एवं यंत्रों पर लेख उत्कीणित हैं, जिनसे ज्ञात होता है कि वे प्रतिष्ठा चार्य थे।
गणभद्रका स्थितिकाल उनकी गुरुपरम्परा और समकालीन राजवंशोंके आधारपर निर्णीत किया जा सकता है। इन्होंने ग्वालियरके तोमरवंशी राजा डूंगरसिंहके पुत्र की तिसिंह या कर्णसिंहके राज्यकाल में अपनी रचनाएं लिखी हैं। महाकवि रइधूने गुणभद्रका उल्लेख किया है। अतः गुणभद्रका समय रइधूके समकालीन या उनसे कुछ पूर्व होना चाहिए।
कारबाके सेनगण-भण्डारकी लिपि-प्रशस्ति वि० सं० १५१० वैशाख शुक्ला तृतीयाकी लिखी हुई है, जो गोपाचल में डूगर्गसंहके राज्यकाल में भट्टारक गुणभद्रकी आम्नायके अग्रवालवशी गगंगोत्रीय साह जिनदासने लिखाई थी।
अतएव कवि गुणभद्का समय १५वीं शतीका अंतिम पाद या १६वीं शत्तीका प्रथम पाद होना चाहिए।
भट्टारक मणभद्र ने १५ कथा-ग्रंथोंकी रचना की है, जो निम्न प्रकार हैं
१. सवणवारसिविहाणकहा (श्रावणद्वादशी-विधान-कथा)
२. पक्सवइवयकहा (पाक्षिकवतकथा)
३. आयासपंचमीकहा-आकाशपंचमीकथा
४. चंदायणवयकहा-चन्द्रायणप्रतकथा
५. चंदणछछीकहा-चन्दनषष्ठीकथा
६. नरफउतारांदुग्धारसकथा
७. गिदुखसत्तमीकहा-निदुःखसप्तमोकथा
८. मउडसत्तमीकहा-~-मुकुटसप्तमोकथा
९. पुष्पांजलीकहा-पुष्पांजलिकथा
१0. रयणत्तयवयकहा-रत्नन्नयनत्तकथा
११. दहलक्खणवयकहा- दशलक्षणव्रतकथा
१२. अगंतवयकहा- अनंतव्रतकथा
१३. लद्धिविहाणकहा--लब्धिविधानकथा
१४. सालहकारणवयकहा--बोडशकारणब्रतकथा
15. सुगंधदहमीकहा--सुगंधदशमी कथा
इन बल-कथाओंम व्रतका स्वरूप, आचरणा-विधि और उनका फल प्राप्ति प्रतिपादित की गयी है । आत्मशोधन के लिये प्रतोंका नितान्त आवश्यकता है, क्योंकि आत्मशुद्धिके बिना कल्याण राभव नहीं है। पाक्षिकश्रावक-कथा और अनन्तनत-कथा ये दा कथा-गन्ध ता प्रचालियरनिवासी संघपति साहू उद्धरणके जिनमंदिरम निवास करते हुए साहू सारंगदेवके पुत्र देवदासको प्ररणासे रचे गय है। और अनन्त व्रतकथा, पुष्पांजलिवतकथा और दशलक्षणव्रतकथा ये सोन कथाकृतियाँ ग्वालियरनिवासी जयसबालबंशी चौधरी लक्ष्मण सिंहके पुत्र पं० भीमसेनके अनुरोध लिखी गई हैं। निदुःख सप्तमीकथा गोपाचल वासी साहू बोधाके पुत्र सहजपालको अनुरोधसे लिखी गई है। शेष कथा-ग्रन्थ धार्मिक भावनासे प्रेरित होकर लिखे हैं । नामानुसार कथाओंमें व्रतोंका स्व रूपादि वर्णित है।
Acharyatulya Gunbhadra 16th Century (Prachin)
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 19 May 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
#Gunbhadra
15000
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