हैशटैग
#Gunbhadra2
गुणभद्र नामके कई जैनाचार्य हुए हैं। सेनसंघो जिनसेन स्वामीके शिष्य और उत्तरपुराणके रचयिता प्रथम गणभद्र है और प्रस्तुत धन्यकुमारचरितके कर्त्ता द्वितीय गुणभद्र हैं। द्वितीय गुणभद्रके सम्बन्धमें कहा जाता है कि वे माणिक्यसेनके शिष्य और नेमिसेनके शिष्य थे । ये सिद्धान्सके विद्वान थे । मिथ्यात्व तथा कामके विनाशक और स्याद्वादरूपी रलभूषणके धारक थे । इन्होंने राजा परमादिके राज्यकालमें विलासपुरके जैन मन्दिरमें रहकर सम्बकंचुक वंशके महामना साहू शुभचन्द्र के घुत्र बल्हणके धर्मानुरागसे धन्य कुमारचरितकी रचना की थी।
दादा गुरु | माणिक्यसेन |
गुरु | नेमिसेन |
ग्रंथ की प्रशस्तिमें परमादिका नाम आता है। डा. ज्योतिप्रसादजीने परमादिका निर्णय करते हुए लिखा है-"दसवीं-चौदहवीं शतीके बीच दक्षिण भारतमें गंग, पश्चिमी चालुक्य, कलचुरी परमार आदि अनेक बंशोंके किन्हीं किन्हीं राजाओंका उपनाम या उपाधि पेर्माडि, पेमडि, पेविडि, पांडिरेक, पेमडिराय आदि किसी-न-किसी रूपमें मिलता है, किन्तु 'परमादिन' रूपमें कहीं नहीं मिलता । उत्तर भारत में महोबेके चन्देलोंमें चन्देल परमाल एक प्रसिद्ध नरेश हुआ है । वह दिल्ली, अजमेरके पृथ्वीराज चौहानका प्रबल प्रति द्वन्द्वी था और सन् १९८२ ई० में उसके हाथों पराजित भी हुआ था। ५१६७ ई. से बुन्देलखण्डके जैन शिलालेखोंमें इस राजाका नामोल्लेख मिलने लगता है और १२०३ ई० में उसकी मृत्यु हुई मानी जाती है। यह राजा चन्देलनरेश मदन वर्मदेवका पौत्र एवं उत्तराधिकारी था। इसके पिसाका नाम पृथ्वीवर्मदेव था और उसके उत्तराधिकारीका नाम त्रैलोक्यवर्मदेव था । इसके अपने शिला लेखोंमें इसका नाम 'परमादिदेव' या ‘परमादि' दिया है, जो कि धन्यकुमार चरितमें उल्लिखित 'परमादिन' से भिन्न प्रतीत नहीं होता।''
इस उद्धरणसे यह स्पष्ट है कि गुणभद्रने धन्यकुमारचरितको रचना चन्देल. परमारके राज्यमें १२ वी या १३ वीं शतीमें की होगी। विचारके लिए जब माणिक्यसेन और नेमिसेनके सेनसंघी नामोंको लिया जाता है तो एक ही माणिकसेनके शिष्य नेमिसेन मिलते हैं, जिनका निर्देश शक सं० १५१५ के प्रतिमालेखमें पाया जाता है। सम्भवतः ये कारंजाके सेनसघी भट्टारक थे।
अतः धन्यकुमार चरितके रचयिता गुणभद्र और उनके गुरु प्रगुरु भट्टारक नहीं थे।
बिजौलिया-अभिलेखके रचयिता गुणभद्र भी स्वयंको महामुनि कहते हैं। १९४२ ई० को एक चालुक्य-अभिलेखमें किन्हीं बीरसेनके शिष्य एक माणिक्य सेनका उल्लेख मिलता है। संभव है उनके कोई शिष्य नेमिसेन रहे हों, जिनके शिष्य बिजोलिया-अभिलेखके रचयिता गुणभद्र हों।
ई० सन् १३७ में रचित जिनेन्द्रकल्याणाभ्युदयमें अय्यपार्यने एक पूर्ववर्ती प्रतिष्ठाशास्त्रकारके रूपमें गुणभद्रका उल्लेख किया है। संभव है कि बिजौ लियामें मन्दिरप्रतिष्ठा करानेवाले यह आचार्य गुणभद्र ही अय्यपार्य द्वारा अभिप्रेत हो । अतएव धन्यकुमारचरितकी रचना महोबेके चन्देल नरेश परमादि देवके शासनकाल में की गई होगी। बिजोलिया-अभिलेखके रचयितासे इनकी
अभिन्नता मालूम पड़ती है।
धन्यकुमारचरितकी प्रशस्ति वि० सं० १५०१ की लिखी हुई है। अतः धन्यकुमारचरितका रचनाकाल इसके पूर्व होना चाहिए ।
ललितपुरके पास मदनपुरसे प्राप्त होनेवाले एक अभिलेख में बताया गया है कि ई० सन् ११२२ वि० सं० १२३९ में महोबाके चन्देलवंशी राजा परमादि देवपर सोमेश्वरके पुत्र पृथ्वीराजने आक्रमण किया था। बहुत संभव है कि इसका राज्य विलासपुर में रहा हो । अतएव धन्यकुमारचरितको रचनाकाल वि० की १३वीं शती होना चाहिए।
धन्यकुमारचरितकी कथावस्तु ७ परिच्छेदों या सौमें विभक्त है। और इसमें पुण्यपुरुष धन्यकुमारके आख्यानको प्राय: अनुष्टुपछन्दों में लिखा है। पुष्पिकावाक्पमें लिखा है
'इति धन्यकुमारचरिते सत्वार्थ भावनाफलदर्शक आचार्यश्रीगुणभद्रकृते भन्म-बल्हण-नामाङ्किते धन्यकुमारशालिभदयत्ति-सर्वार्थसिद्धिगमनो नाम सप्तम: परिच्छेदः ।'
गुणभद्र नामके कई जैनाचार्य हुए हैं। सेनसंघो जिनसेन स्वामीके शिष्य और उत्तरपुराणके रचयिता प्रथम गणभद्र है और प्रस्तुत धन्यकुमारचरितके कर्त्ता द्वितीय गुणभद्र हैं। द्वितीय गुणभद्रके सम्बन्धमें कहा जाता है कि वे माणिक्यसेनके शिष्य और नेमिसेनके शिष्य थे । ये सिद्धान्सके विद्वान थे । मिथ्यात्व तथा कामके विनाशक और स्याद्वादरूपी रलभूषणके धारक थे । इन्होंने राजा परमादिके राज्यकालमें विलासपुरके जैन मन्दिरमें रहकर सम्बकंचुक वंशके महामना साहू शुभचन्द्र के घुत्र बल्हणके धर्मानुरागसे धन्य कुमारचरितकी रचना की थी।
दादा गुरु | माणिक्यसेन |
गुरु | नेमिसेन |
ग्रंथ की प्रशस्तिमें परमादिका नाम आता है। डा. ज्योतिप्रसादजीने परमादिका निर्णय करते हुए लिखा है-"दसवीं-चौदहवीं शतीके बीच दक्षिण भारतमें गंग, पश्चिमी चालुक्य, कलचुरी परमार आदि अनेक बंशोंके किन्हीं किन्हीं राजाओंका उपनाम या उपाधि पेर्माडि, पेमडि, पेविडि, पांडिरेक, पेमडिराय आदि किसी-न-किसी रूपमें मिलता है, किन्तु 'परमादिन' रूपमें कहीं नहीं मिलता । उत्तर भारत में महोबेके चन्देलोंमें चन्देल परमाल एक प्रसिद्ध नरेश हुआ है । वह दिल्ली, अजमेरके पृथ्वीराज चौहानका प्रबल प्रति द्वन्द्वी था और सन् १९८२ ई० में उसके हाथों पराजित भी हुआ था। ५१६७ ई. से बुन्देलखण्डके जैन शिलालेखोंमें इस राजाका नामोल्लेख मिलने लगता है और १२०३ ई० में उसकी मृत्यु हुई मानी जाती है। यह राजा चन्देलनरेश मदन वर्मदेवका पौत्र एवं उत्तराधिकारी था। इसके पिसाका नाम पृथ्वीवर्मदेव था और उसके उत्तराधिकारीका नाम त्रैलोक्यवर्मदेव था । इसके अपने शिला लेखोंमें इसका नाम 'परमादिदेव' या ‘परमादि' दिया है, जो कि धन्यकुमार चरितमें उल्लिखित 'परमादिन' से भिन्न प्रतीत नहीं होता।''
इस उद्धरणसे यह स्पष्ट है कि गुणभद्रने धन्यकुमारचरितको रचना चन्देल. परमारके राज्यमें १२ वी या १३ वीं शतीमें की होगी। विचारके लिए जब माणिक्यसेन और नेमिसेनके सेनसंघी नामोंको लिया जाता है तो एक ही माणिकसेनके शिष्य नेमिसेन मिलते हैं, जिनका निर्देश शक सं० १५१५ के प्रतिमालेखमें पाया जाता है। सम्भवतः ये कारंजाके सेनसघी भट्टारक थे।
अतः धन्यकुमार चरितके रचयिता गुणभद्र और उनके गुरु प्रगुरु भट्टारक नहीं थे।
बिजौलिया-अभिलेखके रचयिता गुणभद्र भी स्वयंको महामुनि कहते हैं। १९४२ ई० को एक चालुक्य-अभिलेखमें किन्हीं बीरसेनके शिष्य एक माणिक्य सेनका उल्लेख मिलता है। संभव है उनके कोई शिष्य नेमिसेन रहे हों, जिनके शिष्य बिजोलिया-अभिलेखके रचयिता गुणभद्र हों।
ई० सन् १३७ में रचित जिनेन्द्रकल्याणाभ्युदयमें अय्यपार्यने एक पूर्ववर्ती प्रतिष्ठाशास्त्रकारके रूपमें गुणभद्रका उल्लेख किया है। संभव है कि बिजौ लियामें मन्दिरप्रतिष्ठा करानेवाले यह आचार्य गुणभद्र ही अय्यपार्य द्वारा अभिप्रेत हो । अतएव धन्यकुमारचरितकी रचना महोबेके चन्देल नरेश परमादि देवके शासनकाल में की गई होगी। बिजोलिया-अभिलेखके रचयितासे इनकी
अभिन्नता मालूम पड़ती है।
धन्यकुमारचरितकी प्रशस्ति वि० सं० १५०१ की लिखी हुई है। अतः धन्यकुमारचरितका रचनाकाल इसके पूर्व होना चाहिए ।
ललितपुरके पास मदनपुरसे प्राप्त होनेवाले एक अभिलेख में बताया गया है कि ई० सन् ११२२ वि० सं० १२३९ में महोबाके चन्देलवंशी राजा परमादि देवपर सोमेश्वरके पुत्र पृथ्वीराजने आक्रमण किया था। बहुत संभव है कि इसका राज्य विलासपुर में रहा हो । अतएव धन्यकुमारचरितको रचनाकाल वि० की १३वीं शती होना चाहिए।
धन्यकुमारचरितकी कथावस्तु ७ परिच्छेदों या सौमें विभक्त है। और इसमें पुण्यपुरुष धन्यकुमारके आख्यानको प्राय: अनुष्टुपछन्दों में लिखा है। पुष्पिकावाक्पमें लिखा है
'इति धन्यकुमारचरिते सत्वार्थ भावनाफलदर्शक आचार्यश्रीगुणभद्रकृते भन्म-बल्हण-नामाङ्किते धन्यकुमारशालिभदयत्ति-सर्वार्थसिद्धिगमनो नाम सप्तम: परिच्छेदः ।'
#Gunbhadra2
आचार्यतुल्य श्री १०८ गुणभद्र द्वितीय 13वीं शताब्दी (प्राचीन)
संजुल जैन ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 05 अप्रैल 2022
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 05 April 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
गुणभद्र नामके कई जैनाचार्य हुए हैं। सेनसंघो जिनसेन स्वामीके शिष्य और उत्तरपुराणके रचयिता प्रथम गणभद्र है और प्रस्तुत धन्यकुमारचरितके कर्त्ता द्वितीय गुणभद्र हैं। द्वितीय गुणभद्रके सम्बन्धमें कहा जाता है कि वे माणिक्यसेनके शिष्य और नेमिसेनके शिष्य थे । ये सिद्धान्सके विद्वान थे । मिथ्यात्व तथा कामके विनाशक और स्याद्वादरूपी रलभूषणके धारक थे । इन्होंने राजा परमादिके राज्यकालमें विलासपुरके जैन मन्दिरमें रहकर सम्बकंचुक वंशके महामना साहू शुभचन्द्र के घुत्र बल्हणके धर्मानुरागसे धन्य कुमारचरितकी रचना की थी।
दादा गुरु | माणिक्यसेन |
गुरु | नेमिसेन |
ग्रंथ की प्रशस्तिमें परमादिका नाम आता है। डा. ज्योतिप्रसादजीने परमादिका निर्णय करते हुए लिखा है-"दसवीं-चौदहवीं शतीके बीच दक्षिण भारतमें गंग, पश्चिमी चालुक्य, कलचुरी परमार आदि अनेक बंशोंके किन्हीं किन्हीं राजाओंका उपनाम या उपाधि पेर्माडि, पेमडि, पेविडि, पांडिरेक, पेमडिराय आदि किसी-न-किसी रूपमें मिलता है, किन्तु 'परमादिन' रूपमें कहीं नहीं मिलता । उत्तर भारत में महोबेके चन्देलोंमें चन्देल परमाल एक प्रसिद्ध नरेश हुआ है । वह दिल्ली, अजमेरके पृथ्वीराज चौहानका प्रबल प्रति द्वन्द्वी था और सन् १९८२ ई० में उसके हाथों पराजित भी हुआ था। ५१६७ ई. से बुन्देलखण्डके जैन शिलालेखोंमें इस राजाका नामोल्लेख मिलने लगता है और १२०३ ई० में उसकी मृत्यु हुई मानी जाती है। यह राजा चन्देलनरेश मदन वर्मदेवका पौत्र एवं उत्तराधिकारी था। इसके पिसाका नाम पृथ्वीवर्मदेव था और उसके उत्तराधिकारीका नाम त्रैलोक्यवर्मदेव था । इसके अपने शिला लेखोंमें इसका नाम 'परमादिदेव' या ‘परमादि' दिया है, जो कि धन्यकुमार चरितमें उल्लिखित 'परमादिन' से भिन्न प्रतीत नहीं होता।''
इस उद्धरणसे यह स्पष्ट है कि गुणभद्रने धन्यकुमारचरितको रचना चन्देल. परमारके राज्यमें १२ वी या १३ वीं शतीमें की होगी। विचारके लिए जब माणिक्यसेन और नेमिसेनके सेनसंघी नामोंको लिया जाता है तो एक ही माणिकसेनके शिष्य नेमिसेन मिलते हैं, जिनका निर्देश शक सं० १५१५ के प्रतिमालेखमें पाया जाता है। सम्भवतः ये कारंजाके सेनसघी भट्टारक थे।
अतः धन्यकुमार चरितके रचयिता गुणभद्र और उनके गुरु प्रगुरु भट्टारक नहीं थे।
बिजौलिया-अभिलेखके रचयिता गुणभद्र भी स्वयंको महामुनि कहते हैं। १९४२ ई० को एक चालुक्य-अभिलेखमें किन्हीं बीरसेनके शिष्य एक माणिक्य सेनका उल्लेख मिलता है। संभव है उनके कोई शिष्य नेमिसेन रहे हों, जिनके शिष्य बिजोलिया-अभिलेखके रचयिता गुणभद्र हों।
ई० सन् १३७ में रचित जिनेन्द्रकल्याणाभ्युदयमें अय्यपार्यने एक पूर्ववर्ती प्रतिष्ठाशास्त्रकारके रूपमें गुणभद्रका उल्लेख किया है। संभव है कि बिजौ लियामें मन्दिरप्रतिष्ठा करानेवाले यह आचार्य गुणभद्र ही अय्यपार्य द्वारा अभिप्रेत हो । अतएव धन्यकुमारचरितकी रचना महोबेके चन्देल नरेश परमादि देवके शासनकाल में की गई होगी। बिजोलिया-अभिलेखके रचयितासे इनकी
अभिन्नता मालूम पड़ती है।
धन्यकुमारचरितकी प्रशस्ति वि० सं० १५०१ की लिखी हुई है। अतः धन्यकुमारचरितका रचनाकाल इसके पूर्व होना चाहिए ।
ललितपुरके पास मदनपुरसे प्राप्त होनेवाले एक अभिलेख में बताया गया है कि ई० सन् ११२२ वि० सं० १२३९ में महोबाके चन्देलवंशी राजा परमादि देवपर सोमेश्वरके पुत्र पृथ्वीराजने आक्रमण किया था। बहुत संभव है कि इसका राज्य विलासपुर में रहा हो । अतएव धन्यकुमारचरितको रचनाकाल वि० की १३वीं शती होना चाहिए।
धन्यकुमारचरितकी कथावस्तु ७ परिच्छेदों या सौमें विभक्त है। और इसमें पुण्यपुरुष धन्यकुमारके आख्यानको प्राय: अनुष्टुपछन्दों में लिखा है। पुष्पिकावाक्पमें लिखा है
'इति धन्यकुमारचरिते सत्वार्थ भावनाफलदर्शक आचार्यश्रीगुणभद्रकृते भन्म-बल्हण-नामाङ्किते धन्यकुमारशालिभदयत्ति-सर्वार्थसिद्धिगमनो नाम सप्तम: परिच्छेदः ।'
Acharyatulya Gunbhadra II 13th Century(Prachin)
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 05 April 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
#Gunbhadra2
15000
#Gunbhadra2
Gunbhadra2
You cannot copy content of this page