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#Gyankirti

ज्ञानकीर्ति यति वादिभूषणके शिष्य थे। इन्होंने यशोधरचरितकी रचना नानु के वामहसे संस्कृतभाषामें की| नानु उस समय बंगालके गवर्नर महाराजा मानसिंहके प्रधान अमात्य थे। कविने सम्मेदशिखरकी यात्रा की है और वहां उन्होंने जीर्णोद्धार भी कराया है । ज्ञानकीर्ति बंगालप्रान्तके अकच्छरपुर नामक नगरमें निवास करते थे।
| गुरु | वादिभूषण |
यशोधरचरितके अन्तमें लम्बी प्रशस्ति दी गई है, जिससे अवगत होता है कि शाह श्रीनानुने यशोधरचरिस लिखाकर भट्टारक श्रीचन्द्रकीतिके शिष्य शुभचन्द्र को भेंट किया था।
इस ग्रन्थमें रचनाकाल स्वयं अंकित किया है
'शते षोडशएकोनषष्टिवास रके शुभे ।
माघे शुक्लेऽपि पंचम्यां रचितं भृगुवासरे ॥ ५ ॥
अर्थात् सोलहसौ उनसठ (१६५२.) में माघ शुक्ल पञ्चमी शुक्रवारको ग्रन्थ समाप्त हुआ | यह कान्य मानसिंहके समयमें लिखा गया है। काव्यके अन्तको प्रशस्ति निम्न प्रकार है
"इति श्रीयशोधरमहाराजचरिते भट्टारकश्रीवादिभूषणशिष्याचार्य श्रीज्ञानकीर्तिविरचिते राजाधिराजमहाराजमानसिंहप्रधानसाहनीनानूनामांकितेभट्टारकधीअभयाच्यादिदीक्षाग्रहणस्वर्गादिनासिवर्णनो नाम नवमः सर्गः॥"
स्पष्ट है कि यह यशोधरचरित भो ९ सगर्गों में पूर्ण हुआ है। ज्ञानकीर्तिने अपनी पूरी पट्टावलो अंकितकी है। बताया है कि मूल संघ कन्दपुान्दान्वयं, सरस्वती गच्छ और बलात्कार गणके भट्टारक वानिभूषणके पट्टधर वाष्य थे ।ज्ञानकीर्ति पद्मकीत्तिके गुरुभाई भी हैं।
ज्ञानकीर्तिने सोमदेव, हरिषेण, वादिराज, प्रभंजन, धनञ्जय, पुष्पदन्त और वासबसेन आदि बिद्वानोंके द्वाम लिखे गये यशोधर महाराजके चरितको अनुभद्रतापबुद्धिसे भोप में इसकी माली है: शानकीतिने पूर्ववर्ती आचार्योंमें उमास्वामि, समन्तभद्र, वादीभसिंह, पूज्याद, भट्टाकलंक और प्रभाचन्द्र आदि विद्वानोंका स्मरण किया है। ग्रन्थको भाषाशैली प्रौद्ध है। यहाँ उदाहरणार्थ एक पद्य उद्धृत किया जाता है--
दोर्दण्डचण्डन लत्रासितशत्रुलोको रत्ना दिदानपरिपोषिलपात्रओधः ।
दोनानुत्तिशरणागतदीर्घशोक: पृथ्व्यां बभूव नृपति रमानसिंहः ।।१६।।
इस प्रकार ज्ञानकीर्ति का यह काव्य काव्यगुणोंगे युक्त होने के कारण जनप्रिय है।
ज्ञानकीर्ति यति वादिभूषणके शिष्य थे। इन्होंने यशोधरचरितकी रचना नानु के वामहसे संस्कृतभाषामें की| नानु उस समय बंगालके गवर्नर महाराजा मानसिंहके प्रधान अमात्य थे। कविने सम्मेदशिखरकी यात्रा की है और वहां उन्होंने जीर्णोद्धार भी कराया है । ज्ञानकीर्ति बंगालप्रान्तके अकच्छरपुर नामक नगरमें निवास करते थे।
| गुरु | वादिभूषण |
यशोधरचरितके अन्तमें लम्बी प्रशस्ति दी गई है, जिससे अवगत होता है कि शाह श्रीनानुने यशोधरचरिस लिखाकर भट्टारक श्रीचन्द्रकीतिके शिष्य शुभचन्द्र को भेंट किया था।
इस ग्रन्थमें रचनाकाल स्वयं अंकित किया है
'शते षोडशएकोनषष्टिवास रके शुभे ।
माघे शुक्लेऽपि पंचम्यां रचितं भृगुवासरे ॥ ५ ॥
अर्थात् सोलहसौ उनसठ (१६५२.) में माघ शुक्ल पञ्चमी शुक्रवारको ग्रन्थ समाप्त हुआ | यह कान्य मानसिंहके समयमें लिखा गया है। काव्यके अन्तको प्रशस्ति निम्न प्रकार है
"इति श्रीयशोधरमहाराजचरिते भट्टारकश्रीवादिभूषणशिष्याचार्य श्रीज्ञानकीर्तिविरचिते राजाधिराजमहाराजमानसिंहप्रधानसाहनीनानूनामांकितेभट्टारकधीअभयाच्यादिदीक्षाग्रहणस्वर्गादिनासिवर्णनो नाम नवमः सर्गः॥"
स्पष्ट है कि यह यशोधरचरित भो ९ सगर्गों में पूर्ण हुआ है। ज्ञानकीर्तिने अपनी पूरी पट्टावलो अंकितकी है। बताया है कि मूल संघ कन्दपुान्दान्वयं, सरस्वती गच्छ और बलात्कार गणके भट्टारक वानिभूषणके पट्टधर वाष्य थे ।ज्ञानकीर्ति पद्मकीत्तिके गुरुभाई भी हैं।
ज्ञानकीर्तिने सोमदेव, हरिषेण, वादिराज, प्रभंजन, धनञ्जय, पुष्पदन्त और वासबसेन आदि बिद्वानोंके द्वाम लिखे गये यशोधर महाराजके चरितको अनुभद्रतापबुद्धिसे भोप में इसकी माली है: शानकीतिने पूर्ववर्ती आचार्योंमें उमास्वामि, समन्तभद्र, वादीभसिंह, पूज्याद, भट्टाकलंक और प्रभाचन्द्र आदि विद्वानोंका स्मरण किया है। ग्रन्थको भाषाशैली प्रौद्ध है। यहाँ उदाहरणार्थ एक पद्य उद्धृत किया जाता है--
दोर्दण्डचण्डन लत्रासितशत्रुलोको रत्ना दिदानपरिपोषिलपात्रओधः ।
दोनानुत्तिशरणागतदीर्घशोक: पृथ्व्यां बभूव नृपति रमानसिंहः ।।१६।।
इस प्रकार ज्ञानकीर्ति का यह काव्य काव्यगुणोंगे युक्त होने के कारण जनप्रिय है।
#Gyankirti
आचार्यतुल्य श्री १०८ ज्ञानकीर्ति (प्राचीन)
| Name | Phone/Mobile 1 | Which Sangh/Maharaji/Aryika Ji you are associated with |
|---|---|---|
| Sangh Common Number | +919844033717 | #VardhamanSagarJiMaharaj1950DharmSagarJi |
| Hemal Jain | +918690943133 | #SunilSagarJi1977SanmatiSagarJi |
| Abhi Bantu | +919575455473 | #SunilSagarJi1977SanmatiSagarJi |
| Purnima Didi | +918552998307 | #SunilSagarJi1977SanmatiSagarJi |
| Varna Manish Bhai | +919352199164 | #KanaknandiJiMaharajKunthusagarji |
| Ankit Test | +919730016352 | #AcharyaShriVidyasagarjiMaharaj |
| Santosh Khule | +919850774639 | #PavitrasagarJiMaharaj1949SanmatiSagarJi1927 |
| Madhok Shaha | +919928058345 | #KanaknandiJiMaharajKunthusagarji |
| Siddharth jain Baddu | +917987281995 | #AcharyaShriVidyasagarjiMaharaj, #VishalSagarJiMaharaj1977VidyaSagarJi |
| Akshay Adadande | +919765069127 | #AcharyaShriVidyasagarjiMaharaj, #NiyamSagarJiMaharaj1957VidyaSagarJi |
| Mayur Jain | +918484845108 | #SundarSagarJiMaharaj1976SanmatiSagarJi, #VibhavSagarJiMaharaj1976ViragSagarJi, #PrabhavsagarjiPavitrasagarJiMaharaj1949, #MayanksagarjiRayansagarJiMaharaj1955 |
संजुल जैन ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 05 अप्रैल 2022
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 05 April 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
ज्ञानकीर्ति यति वादिभूषणके शिष्य थे। इन्होंने यशोधरचरितकी रचना नानु के वामहसे संस्कृतभाषामें की| नानु उस समय बंगालके गवर्नर महाराजा मानसिंहके प्रधान अमात्य थे। कविने सम्मेदशिखरकी यात्रा की है और वहां उन्होंने जीर्णोद्धार भी कराया है । ज्ञानकीर्ति बंगालप्रान्तके अकच्छरपुर नामक नगरमें निवास करते थे।
| गुरु | वादिभूषण |
यशोधरचरितके अन्तमें लम्बी प्रशस्ति दी गई है, जिससे अवगत होता है कि शाह श्रीनानुने यशोधरचरिस लिखाकर भट्टारक श्रीचन्द्रकीतिके शिष्य शुभचन्द्र को भेंट किया था।
इस ग्रन्थमें रचनाकाल स्वयं अंकित किया है
'शते षोडशएकोनषष्टिवास रके शुभे ।
माघे शुक्लेऽपि पंचम्यां रचितं भृगुवासरे ॥ ५ ॥
अर्थात् सोलहसौ उनसठ (१६५२.) में माघ शुक्ल पञ्चमी शुक्रवारको ग्रन्थ समाप्त हुआ | यह कान्य मानसिंहके समयमें लिखा गया है। काव्यके अन्तको प्रशस्ति निम्न प्रकार है
"इति श्रीयशोधरमहाराजचरिते भट्टारकश्रीवादिभूषणशिष्याचार्य श्रीज्ञानकीर्तिविरचिते राजाधिराजमहाराजमानसिंहप्रधानसाहनीनानूनामांकितेभट्टारकधीअभयाच्यादिदीक्षाग्रहणस्वर्गादिनासिवर्णनो नाम नवमः सर्गः॥"
स्पष्ट है कि यह यशोधरचरित भो ९ सगर्गों में पूर्ण हुआ है। ज्ञानकीर्तिने अपनी पूरी पट्टावलो अंकितकी है। बताया है कि मूल संघ कन्दपुान्दान्वयं, सरस्वती गच्छ और बलात्कार गणके भट्टारक वानिभूषणके पट्टधर वाष्य थे ।ज्ञानकीर्ति पद्मकीत्तिके गुरुभाई भी हैं।
ज्ञानकीर्तिने सोमदेव, हरिषेण, वादिराज, प्रभंजन, धनञ्जय, पुष्पदन्त और वासबसेन आदि बिद्वानोंके द्वाम लिखे गये यशोधर महाराजके चरितको अनुभद्रतापबुद्धिसे भोप में इसकी माली है: शानकीतिने पूर्ववर्ती आचार्योंमें उमास्वामि, समन्तभद्र, वादीभसिंह, पूज्याद, भट्टाकलंक और प्रभाचन्द्र आदि विद्वानोंका स्मरण किया है। ग्रन्थको भाषाशैली प्रौद्ध है। यहाँ उदाहरणार्थ एक पद्य उद्धृत किया जाता है--
दोर्दण्डचण्डन लत्रासितशत्रुलोको रत्ना दिदानपरिपोषिलपात्रओधः ।
दोनानुत्तिशरणागतदीर्घशोक: पृथ्व्यां बभूव नृपति रमानसिंहः ।।१६।।
इस प्रकार ज्ञानकीर्ति का यह काव्य काव्यगुणोंगे युक्त होने के कारण जनप्रिय है।
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 05 April 2022
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Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
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Acharyatulya Gyankirti (Prachin)
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