हैशटैग
#Harichand
इन हरिचन्दका वंश अग्रवाल था। इनके पिताका नाम जंडू और माताका जाम बील्हा देवी था । कविने 'अणमियका' की रचना की है। इस कृति में रचनाकाल निर्दिष्ट नहीं किया गया है; पर पाण्डुलिपिपरसे यह रचना १५वीं शताब्दीको प्रतीत होती है। कबिने थकी अन्तिम प्रशस्ति में अपने वंशका परिचय दिया है--
पाबिल वोल्हा जंड तणाा जाएं, गरुत्तिए सरसइहि पसाएं ।
अयस्वालबसे पणई, मई हरियंदण।
भत्तिय जिण पणदेवि पडिउ पद्धडिया-छंदेण ॥१॥
या प्रति लगभग ३०० वर्ष पुरानी है। अतएव शैली, भाषा, विषय आदिको दृष्टिसे कनिका समय १५वीं शताब्दी प्रायः निश्चित है । कविकी एक ही रचना 'अणत्यामय कहा' उपलब्ध है। मंथम १६ कड़वक हैं, जिनमें रात्रि-भोजनसे हानेवाली हानियों का वर्णन किया गया है। सूर्यास्तके पश्चात रात्रिमें भोजन करनेवाले सूक्ष्म-जीवोंके संचार से रक्षा नहीं कर सकते । बहुत विषले कीटाणु भोजन के साथ प्रविष्ट हो नानाप्रकारके रोग उत्पन्न करते हैं।
कविने ती कार वर्धमानको बहुत ही सुन्दर रूप में स्तुति की है और अनन्त र शनि-भोजन के दोषोंका निरूपण किया है । यहो स्तुति-सम्बन्धी कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत की जाती हैं
जय चड्ढमाण सिवउरि पहाण, तइलोय-पयासण विमल-गाण ।
जग सयल-सुरासुर-मिय-पाय, जय धम्म-पयासण वीयराय ।
जय सोल-भार-धुर-धरण-धवल, जय काम-कलंक-विमुक्का अमल ।
जय इंदिय-मय-गल-बहण-वाह, जय सयल-जीव-असरण सणाह।
जय मोह-लोह-मच्छर-विणास, जय दुदृढ़-चिट्ठ-कम्मटर-णास ।
जब चउदह-मल-वज्जिय-सरीर, जय पंचमहम्बय-धरण-धीर ।
जय जिगवर केवलणाण-किरण, जय दंसण-गाण-चरित्त-चरण !
कवि हरिचन्दकी अन्य रचनाएं भी होनी चाहिए ।
इन हरिचन्दका वंश अग्रवाल था। इनके पिताका नाम जंडू और माताका जाम बील्हा देवी था । कविने 'अणमियका' की रचना की है। इस कृति में रचनाकाल निर्दिष्ट नहीं किया गया है; पर पाण्डुलिपिपरसे यह रचना १५वीं शताब्दीको प्रतीत होती है। कबिने थकी अन्तिम प्रशस्ति में अपने वंशका परिचय दिया है--
पाबिल वोल्हा जंड तणाा जाएं, गरुत्तिए सरसइहि पसाएं ।
अयस्वालबसे पणई, मई हरियंदण।
भत्तिय जिण पणदेवि पडिउ पद्धडिया-छंदेण ॥१॥
या प्रति लगभग ३०० वर्ष पुरानी है। अतएव शैली, भाषा, विषय आदिको दृष्टिसे कनिका समय १५वीं शताब्दी प्रायः निश्चित है । कविकी एक ही रचना 'अणत्यामय कहा' उपलब्ध है। मंथम १६ कड़वक हैं, जिनमें रात्रि-भोजनसे हानेवाली हानियों का वर्णन किया गया है। सूर्यास्तके पश्चात रात्रिमें भोजन करनेवाले सूक्ष्म-जीवोंके संचार से रक्षा नहीं कर सकते । बहुत विषले कीटाणु भोजन के साथ प्रविष्ट हो नानाप्रकारके रोग उत्पन्न करते हैं।
कविने ती कार वर्धमानको बहुत ही सुन्दर रूप में स्तुति की है और अनन्त र शनि-भोजन के दोषोंका निरूपण किया है । यहो स्तुति-सम्बन्धी कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत की जाती हैं
जय चड्ढमाण सिवउरि पहाण, तइलोय-पयासण विमल-गाण ।
जग सयल-सुरासुर-मिय-पाय, जय धम्म-पयासण वीयराय ।
जय सोल-भार-धुर-धरण-धवल, जय काम-कलंक-विमुक्का अमल ।
जय इंदिय-मय-गल-बहण-वाह, जय सयल-जीव-असरण सणाह।
जय मोह-लोह-मच्छर-विणास, जय दुदृढ़-चिट्ठ-कम्मटर-णास ।
जब चउदह-मल-वज्जिय-सरीर, जय पंचमहम्बय-धरण-धीर ।
जय जिगवर केवलणाण-किरण, जय दंसण-गाण-चरित्त-चरण !
कवि हरिचन्दकी अन्य रचनाएं भी होनी चाहिए ।
#Harichand
आचार्यतुल्य हरिचंद 2 (प्राचीन) 15वीं शताब्दी
संजुल जैन ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 19 मई 2022
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 19 May 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
इन हरिचन्दका वंश अग्रवाल था। इनके पिताका नाम जंडू और माताका जाम बील्हा देवी था । कविने 'अणमियका' की रचना की है। इस कृति में रचनाकाल निर्दिष्ट नहीं किया गया है; पर पाण्डुलिपिपरसे यह रचना १५वीं शताब्दीको प्रतीत होती है। कबिने थकी अन्तिम प्रशस्ति में अपने वंशका परिचय दिया है--
पाबिल वोल्हा जंड तणाा जाएं, गरुत्तिए सरसइहि पसाएं ।
अयस्वालबसे पणई, मई हरियंदण।
भत्तिय जिण पणदेवि पडिउ पद्धडिया-छंदेण ॥१॥
या प्रति लगभग ३०० वर्ष पुरानी है। अतएव शैली, भाषा, विषय आदिको दृष्टिसे कनिका समय १५वीं शताब्दी प्रायः निश्चित है । कविकी एक ही रचना 'अणत्यामय कहा' उपलब्ध है। मंथम १६ कड़वक हैं, जिनमें रात्रि-भोजनसे हानेवाली हानियों का वर्णन किया गया है। सूर्यास्तके पश्चात रात्रिमें भोजन करनेवाले सूक्ष्म-जीवोंके संचार से रक्षा नहीं कर सकते । बहुत विषले कीटाणु भोजन के साथ प्रविष्ट हो नानाप्रकारके रोग उत्पन्न करते हैं।
कविने ती कार वर्धमानको बहुत ही सुन्दर रूप में स्तुति की है और अनन्त र शनि-भोजन के दोषोंका निरूपण किया है । यहो स्तुति-सम्बन्धी कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत की जाती हैं
जय चड्ढमाण सिवउरि पहाण, तइलोय-पयासण विमल-गाण ।
जग सयल-सुरासुर-मिय-पाय, जय धम्म-पयासण वीयराय ।
जय सोल-भार-धुर-धरण-धवल, जय काम-कलंक-विमुक्का अमल ।
जय इंदिय-मय-गल-बहण-वाह, जय सयल-जीव-असरण सणाह।
जय मोह-लोह-मच्छर-विणास, जय दुदृढ़-चिट्ठ-कम्मटर-णास ।
जब चउदह-मल-वज्जिय-सरीर, जय पंचमहम्बय-धरण-धीर ।
जय जिगवर केवलणाण-किरण, जय दंसण-गाण-चरित्त-चरण !
कवि हरिचन्दकी अन्य रचनाएं भी होनी चाहिए ।
Acharyatulya Harichand 2 (Prachin) 15th Century
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 19 May 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
#Harichand
15000
#Harichand
Harichand
You cannot copy content of this page