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#Jagannath18thcentury
जगन्नाथ संस्कृत-भाषाके अच्छे कवि हैं । ये भट्टारक नरेन्द्रकीत्तिके शिष्य थे। इनका वंश खण्डेलवाल था और पोमराज श्रेष्टिके सुपुत्र थे। इनका भाई वादिराज भी संस्कृत-भाषाका प्रौढ़ कवि था। इन्होंने वि० सं० १७२९ में वाग्भटालंकारकी कविचन्द्रिका नामकी टीका लिखी थी। ये तक्षक बत्तमान टोडा नामक नगरके निवासी थे। बादिराजके रामचन्द्र, लालजो, नेमिदासऔर विमलदास ये चार पुत्र थे। विमलदासके समयमें टोडामें उपद्व हुआ था, जिसमें बहुतसे अन्य भी नष्ट हो गये थे। बादिराज राजा जयसिंहके यहां किसी उच्चपदपर प्रतिष्ठित थे।कविवर जगन्नाथने कई सुन्दर रचनाएँ लिखी हैं ।
गुरु कीर्ति | नरेन्द्र कीर्ति |
जगन्नाथने वि० सं० १६९९ में चतुर्विशतिसन्धान स्वोपाटीकासहित लिखा है। इनका समय १७ वीं शतीका अन्त और अठारहवीं शतीका प्रारंभ होना चाहिए। श्री पं० परमानन्दजी शास्त्रीले जैनगन्धप्रशत्तिसंग्रह प्रथम भागकी प्रस्तावनामें कविवर जगन्नाथकी कई रचनाओंका निर्देश किया है।
इनके अनुसार कविको सात रचनाएं हैं
१. चतुर्विशतिसन्धान स्वोपज्ञ
२. सुखनिधान
३. ज्ञानलोचनस्तोत्र
४. श्रृंगारसमुद्रकाव्य
५. श्वेताम्बर-पराजय
६. नेमिनरेन्द्रस्तोत्र
७. सुषेणचरित्र ।
चतुर्विशतिसन्धानकाच्य में एक ही पद्य है, जिसके २४ अर्थ कविने स्वयं किये हैं । पहा इस प्रकार है--
श्रेयान् श्रीवासुपूज्यो वृषभजिनपतिः श्रीगुमाकोऽय धर्मों
हयंपुष्पदन्तो मुनिसुव्रतजिनोऽनन्तवाक् श्रीसुपाश्चः ।
शान्तिः पत्रप्रभोरी विमलविभरसौ बईमानोप्यजाङको
मल्लिनेमिनमियाँ सुमतिखतु सच्छीजगनायधीरम् ॥
" इस पद्यमें २४ तीर्थंकरोंको नमस्कार किया गया है। कविने पृथक्-पृथक २४ अर्थ लिखे हैं।
दूसरी कृति सुखनिधान है, जिसकी रचना कवि जगमायने तमालपुरमें की है । इस प्रन्यमें कविने अपनी एक अन्य कृतिका भी उल्लेख किया है । 'अन्याय अस्माभिरुक्तं 'श्रृंगारसमुद्रकाव्ये वाक्य के साथ शृंगारसमुद्रकाध्यकी सूचना दी है । अतः कषिकी यह रचना भी महत्त्वपूर्ण रही होगी ।
एक अन्य कृति स्वेताम्बर-पराजय है। इसमें श्वेताम्बरसम्मत केलिभूतिका सफिक निसकरण किया है। इस संघमें भी एक अन्य कृतिका निर्देश मिलता है। वह कृति हैं 'स्वोपझनेमिनरेन्द्रस्तोत्र'।
कृतं चरित्र सुपुरांतमाले श्रीपालराश: शंधामनाम्ना ।।२०६||
इस प्रकार कवि जगन्नाथ गद्य-पद्यरचनामें सिद्धहस्त दिखलाई पड़ते हैं। सुखनिधानमें विदेहक्षेत्रस्थ श्रीपालका चरित निबद्ध किया गया है। "पोरा विशुद्धमतयो मम सच्चरित्रं कुर्वन्तु शुद्धमिह यम विपर्ययोक्तं । दीपो भवेस्किल करे न तु यस्य पुसो दोषो न चास्ति पतने खलु तस्य लोके ।। आचार्य पूर्णन्दु-समस्तकीति-सरोज
जगन्नाथ संस्कृत-भाषाके अच्छे कवि हैं । ये भट्टारक नरेन्द्रकीत्तिके शिष्य थे। इनका वंश खण्डेलवाल था और पोमराज श्रेष्टिके सुपुत्र थे। इनका भाई वादिराज भी संस्कृत-भाषाका प्रौढ़ कवि था। इन्होंने वि० सं० १७२९ में वाग्भटालंकारकी कविचन्द्रिका नामकी टीका लिखी थी। ये तक्षक बत्तमान टोडा नामक नगरके निवासी थे। बादिराजके रामचन्द्र, लालजो, नेमिदासऔर विमलदास ये चार पुत्र थे। विमलदासके समयमें टोडामें उपद्व हुआ था, जिसमें बहुतसे अन्य भी नष्ट हो गये थे। बादिराज राजा जयसिंहके यहां किसी उच्चपदपर प्रतिष्ठित थे।कविवर जगन्नाथने कई सुन्दर रचनाएँ लिखी हैं ।
गुरु कीर्ति | नरेन्द्र कीर्ति |
जगन्नाथने वि० सं० १६९९ में चतुर्विशतिसन्धान स्वोपाटीकासहित लिखा है। इनका समय १७ वीं शतीका अन्त और अठारहवीं शतीका प्रारंभ होना चाहिए। श्री पं० परमानन्दजी शास्त्रीले जैनगन्धप्रशत्तिसंग्रह प्रथम भागकी प्रस्तावनामें कविवर जगन्नाथकी कई रचनाओंका निर्देश किया है।
इनके अनुसार कविको सात रचनाएं हैं
१. चतुर्विशतिसन्धान स्वोपज्ञ
२. सुखनिधान
३. ज्ञानलोचनस्तोत्र
४. श्रृंगारसमुद्रकाव्य
५. श्वेताम्बर-पराजय
६. नेमिनरेन्द्रस्तोत्र
७. सुषेणचरित्र ।
चतुर्विशतिसन्धानकाच्य में एक ही पद्य है, जिसके २४ अर्थ कविने स्वयं किये हैं । पहा इस प्रकार है--
श्रेयान् श्रीवासुपूज्यो वृषभजिनपतिः श्रीगुमाकोऽय धर्मों
हयंपुष्पदन्तो मुनिसुव्रतजिनोऽनन्तवाक् श्रीसुपाश्चः ।
शान्तिः पत्रप्रभोरी विमलविभरसौ बईमानोप्यजाङको
मल्लिनेमिनमियाँ सुमतिखतु सच्छीजगनायधीरम् ॥
" इस पद्यमें २४ तीर्थंकरोंको नमस्कार किया गया है। कविने पृथक्-पृथक २४ अर्थ लिखे हैं।
दूसरी कृति सुखनिधान है, जिसकी रचना कवि जगमायने तमालपुरमें की है । इस प्रन्यमें कविने अपनी एक अन्य कृतिका भी उल्लेख किया है । 'अन्याय अस्माभिरुक्तं 'श्रृंगारसमुद्रकाव्ये वाक्य के साथ शृंगारसमुद्रकाध्यकी सूचना दी है । अतः कषिकी यह रचना भी महत्त्वपूर्ण रही होगी ।
एक अन्य कृति स्वेताम्बर-पराजय है। इसमें श्वेताम्बरसम्मत केलिभूतिका सफिक निसकरण किया है। इस संघमें भी एक अन्य कृतिका निर्देश मिलता है। वह कृति हैं 'स्वोपझनेमिनरेन्द्रस्तोत्र'।
कृतं चरित्र सुपुरांतमाले श्रीपालराश: शंधामनाम्ना ।।२०६||
इस प्रकार कवि जगन्नाथ गद्य-पद्यरचनामें सिद्धहस्त दिखलाई पड़ते हैं। सुखनिधानमें विदेहक्षेत्रस्थ श्रीपालका चरित निबद्ध किया गया है। "पोरा विशुद्धमतयो मम सच्चरित्रं कुर्वन्तु शुद्धमिह यम विपर्ययोक्तं । दीपो भवेस्किल करे न तु यस्य पुसो दोषो न चास्ति पतने खलु तस्य लोके ।। आचार्य पूर्णन्दु-समस्तकीति-सरोज
#Jagannath18thcentury
आचार्यतुल्य जगन्नाथ 18वीं शताब्दी (प्राचीन)
संजुल जैन ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 12 अप्रैल 2022
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 12 April 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
जगन्नाथ संस्कृत-भाषाके अच्छे कवि हैं । ये भट्टारक नरेन्द्रकीत्तिके शिष्य थे। इनका वंश खण्डेलवाल था और पोमराज श्रेष्टिके सुपुत्र थे। इनका भाई वादिराज भी संस्कृत-भाषाका प्रौढ़ कवि था। इन्होंने वि० सं० १७२९ में वाग्भटालंकारकी कविचन्द्रिका नामकी टीका लिखी थी। ये तक्षक बत्तमान टोडा नामक नगरके निवासी थे। बादिराजके रामचन्द्र, लालजो, नेमिदासऔर विमलदास ये चार पुत्र थे। विमलदासके समयमें टोडामें उपद्व हुआ था, जिसमें बहुतसे अन्य भी नष्ट हो गये थे। बादिराज राजा जयसिंहके यहां किसी उच्चपदपर प्रतिष्ठित थे।कविवर जगन्नाथने कई सुन्दर रचनाएँ लिखी हैं ।
गुरु कीर्ति | नरेन्द्र कीर्ति |
जगन्नाथने वि० सं० १६९९ में चतुर्विशतिसन्धान स्वोपाटीकासहित लिखा है। इनका समय १७ वीं शतीका अन्त और अठारहवीं शतीका प्रारंभ होना चाहिए। श्री पं० परमानन्दजी शास्त्रीले जैनगन्धप्रशत्तिसंग्रह प्रथम भागकी प्रस्तावनामें कविवर जगन्नाथकी कई रचनाओंका निर्देश किया है।
इनके अनुसार कविको सात रचनाएं हैं
१. चतुर्विशतिसन्धान स्वोपज्ञ
२. सुखनिधान
३. ज्ञानलोचनस्तोत्र
४. श्रृंगारसमुद्रकाव्य
५. श्वेताम्बर-पराजय
६. नेमिनरेन्द्रस्तोत्र
७. सुषेणचरित्र ।
चतुर्विशतिसन्धानकाच्य में एक ही पद्य है, जिसके २४ अर्थ कविने स्वयं किये हैं । पहा इस प्रकार है--
श्रेयान् श्रीवासुपूज्यो वृषभजिनपतिः श्रीगुमाकोऽय धर्मों
हयंपुष्पदन्तो मुनिसुव्रतजिनोऽनन्तवाक् श्रीसुपाश्चः ।
शान्तिः पत्रप्रभोरी विमलविभरसौ बईमानोप्यजाङको
मल्लिनेमिनमियाँ सुमतिखतु सच्छीजगनायधीरम् ॥
" इस पद्यमें २४ तीर्थंकरोंको नमस्कार किया गया है। कविने पृथक्-पृथक २४ अर्थ लिखे हैं।
दूसरी कृति सुखनिधान है, जिसकी रचना कवि जगमायने तमालपुरमें की है । इस प्रन्यमें कविने अपनी एक अन्य कृतिका भी उल्लेख किया है । 'अन्याय अस्माभिरुक्तं 'श्रृंगारसमुद्रकाव्ये वाक्य के साथ शृंगारसमुद्रकाध्यकी सूचना दी है । अतः कषिकी यह रचना भी महत्त्वपूर्ण रही होगी ।
एक अन्य कृति स्वेताम्बर-पराजय है। इसमें श्वेताम्बरसम्मत केलिभूतिका सफिक निसकरण किया है। इस संघमें भी एक अन्य कृतिका निर्देश मिलता है। वह कृति हैं 'स्वोपझनेमिनरेन्द्रस्तोत्र'।
कृतं चरित्र सुपुरांतमाले श्रीपालराश: शंधामनाम्ना ।।२०६||
इस प्रकार कवि जगन्नाथ गद्य-पद्यरचनामें सिद्धहस्त दिखलाई पड़ते हैं। सुखनिधानमें विदेहक्षेत्रस्थ श्रीपालका चरित निबद्ध किया गया है। "पोरा विशुद्धमतयो मम सच्चरित्रं कुर्वन्तु शुद्धमिह यम विपर्ययोक्तं । दीपो भवेस्किल करे न तु यस्य पुसो दोषो न चास्ति पतने खलु तस्य लोके ।। आचार्य पूर्णन्दु-समस्तकीति-सरोज
Acharyatulya Jagannath 18th Century (Prachin)
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 12 April 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
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