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#JagjeewanPrachin
जगजीवन आगरानिवासी जगजीवन अग्रवाल जैन थे | इनका गोत्र गर्ग था । इनके पिताका नाम अभयराज और माताका नाम मोहनदे था । ये अभयराज जाफर खकि दीवान थे, जो बादशाह शाहजहाँका पाँच हजारी जमराव था । जगजीवन अध्यात्मशैलीके कवि थे । पण्डित हीरानन्दने वि० सं० १७०१ में समवशरण विधानको रचना की है। इस रचनामें जगजीवनका परिचय निम्न प्रकार दिया है
अब सुनि नगरराज आगरा, सकल सोमा अनुपम सागरा ।
साहजहाँ भपत्ति है जहाँ, राज करें नयमारग तहाँ ।।
ताको जाफरखो उमराब, पंच हजारी प्रकट कराउ ।
ताको अगरवाल दोबान, गरग गोत सब विधि परवान ।।
संघही अभेराज जानिए, सुखी अधिक सब करि मानिए ।
बनितागण नाना परकार, तिन मैं लघु मोहनदे सार ।।
ताको प्रत पृत-सिरमौर, जगजीवन जीवनको और ।
सुन्दर सुभग रूप अभिराम, परम पुनीत घरम-धन-धान ॥
जगजीवनने सं० १७०५में बनारसीविलासका संपादन किया था। इनके अब तक ४५ पद भी उपलब्ध हो चुके हैं। इनके पदोंको तीन धगों में विभक्त किया जा सकता है
१. प्रार्थना एवं स्तुतिपरक
२. आध्यात्मिक
३. सांसारिक प्रपञ्चके विश्लेषण-मूलक
यहाँ उदाहरण के लिए एक पदकी कुछ पंक्तियां जब्त की जाती हैं । कवि ने सांसारिक प्रपञ्चको बादलकी छाया माना है और छायाका रूपक देकर पुरजन, परिजन, इन्द्रिय-विषय, राग-द्वेष-मोह, सुमति-कुमति सभोकी व्याख्या स्तुित की है । यथा
जगत सब दीसता धनकी छाया ||
पुत्र कलत्र मित्र तन संपति
उदय पुद्गल जुरि आया।
भक परनति वरषागम सोहें
आश्रय पवन बहाया ।जिगत ।।
इन्द्रियविषय लहरि तड़ता है
देखत जाय बिलाया।
राग दोष वगु पंकति दोरघ
मोह गहलघरराया जिगत०।२।।
सुमति विरहनो दुखदायक है,
कुमति संजोगति भाया ।
निज संपति रतनत्रय गहिकर
मुनि जन नर मन भाया ।
सहज अनन्त चतुष्टं मंदिर
जगजीवन सुख पाया ॥जगत०॥३॥
जगजीवन आगरानिवासी जगजीवन अग्रवाल जैन थे | इनका गोत्र गर्ग था । इनके पिताका नाम अभयराज और माताका नाम मोहनदे था । ये अभयराज जाफर खकि दीवान थे, जो बादशाह शाहजहाँका पाँच हजारी जमराव था । जगजीवन अध्यात्मशैलीके कवि थे । पण्डित हीरानन्दने वि० सं० १७०१ में समवशरण विधानको रचना की है। इस रचनामें जगजीवनका परिचय निम्न प्रकार दिया है
अब सुनि नगरराज आगरा, सकल सोमा अनुपम सागरा ।
साहजहाँ भपत्ति है जहाँ, राज करें नयमारग तहाँ ।।
ताको जाफरखो उमराब, पंच हजारी प्रकट कराउ ।
ताको अगरवाल दोबान, गरग गोत सब विधि परवान ।।
संघही अभेराज जानिए, सुखी अधिक सब करि मानिए ।
बनितागण नाना परकार, तिन मैं लघु मोहनदे सार ।।
ताको प्रत पृत-सिरमौर, जगजीवन जीवनको और ।
सुन्दर सुभग रूप अभिराम, परम पुनीत घरम-धन-धान ॥
जगजीवनने सं० १७०५में बनारसीविलासका संपादन किया था। इनके अब तक ४५ पद भी उपलब्ध हो चुके हैं। इनके पदोंको तीन धगों में विभक्त किया जा सकता है
१. प्रार्थना एवं स्तुतिपरक
२. आध्यात्मिक
३. सांसारिक प्रपञ्चके विश्लेषण-मूलक
यहाँ उदाहरण के लिए एक पदकी कुछ पंक्तियां जब्त की जाती हैं । कवि ने सांसारिक प्रपञ्चको बादलकी छाया माना है और छायाका रूपक देकर पुरजन, परिजन, इन्द्रिय-विषय, राग-द्वेष-मोह, सुमति-कुमति सभोकी व्याख्या स्तुित की है । यथा
जगत सब दीसता धनकी छाया ||
पुत्र कलत्र मित्र तन संपति
उदय पुद्गल जुरि आया।
भक परनति वरषागम सोहें
आश्रय पवन बहाया ।जिगत ।।
इन्द्रियविषय लहरि तड़ता है
देखत जाय बिलाया।
राग दोष वगु पंकति दोरघ
मोह गहलघरराया जिगत०।२।।
सुमति विरहनो दुखदायक है,
कुमति संजोगति भाया ।
निज संपति रतनत्रय गहिकर
मुनि जन नर मन भाया ।
सहज अनन्त चतुष्टं मंदिर
जगजीवन सुख पाया ॥जगत०॥३॥
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आचार्यतुल्य जगजीवन 18वीं शताब्दी (प्राचीन)
संजुल जैन ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 28 मई 2022
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 28 May 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
जगजीवन आगरानिवासी जगजीवन अग्रवाल जैन थे | इनका गोत्र गर्ग था । इनके पिताका नाम अभयराज और माताका नाम मोहनदे था । ये अभयराज जाफर खकि दीवान थे, जो बादशाह शाहजहाँका पाँच हजारी जमराव था । जगजीवन अध्यात्मशैलीके कवि थे । पण्डित हीरानन्दने वि० सं० १७०१ में समवशरण विधानको रचना की है। इस रचनामें जगजीवनका परिचय निम्न प्रकार दिया है
अब सुनि नगरराज आगरा, सकल सोमा अनुपम सागरा ।
साहजहाँ भपत्ति है जहाँ, राज करें नयमारग तहाँ ।।
ताको जाफरखो उमराब, पंच हजारी प्रकट कराउ ।
ताको अगरवाल दोबान, गरग गोत सब विधि परवान ।।
संघही अभेराज जानिए, सुखी अधिक सब करि मानिए ।
बनितागण नाना परकार, तिन मैं लघु मोहनदे सार ।।
ताको प्रत पृत-सिरमौर, जगजीवन जीवनको और ।
सुन्दर सुभग रूप अभिराम, परम पुनीत घरम-धन-धान ॥
जगजीवनने सं० १७०५में बनारसीविलासका संपादन किया था। इनके अब तक ४५ पद भी उपलब्ध हो चुके हैं। इनके पदोंको तीन धगों में विभक्त किया जा सकता है
१. प्रार्थना एवं स्तुतिपरक
२. आध्यात्मिक
३. सांसारिक प्रपञ्चके विश्लेषण-मूलक
यहाँ उदाहरण के लिए एक पदकी कुछ पंक्तियां जब्त की जाती हैं । कवि ने सांसारिक प्रपञ्चको बादलकी छाया माना है और छायाका रूपक देकर पुरजन, परिजन, इन्द्रिय-विषय, राग-द्वेष-मोह, सुमति-कुमति सभोकी व्याख्या स्तुित की है । यथा
जगत सब दीसता धनकी छाया ||
पुत्र कलत्र मित्र तन संपति
उदय पुद्गल जुरि आया।
भक परनति वरषागम सोहें
आश्रय पवन बहाया ।जिगत ।।
इन्द्रियविषय लहरि तड़ता है
देखत जाय बिलाया।
राग दोष वगु पंकति दोरघ
मोह गहलघरराया जिगत०।२।।
सुमति विरहनो दुखदायक है,
कुमति संजोगति भाया ।
निज संपति रतनत्रय गहिकर
मुनि जन नर मन भाया ।
सहज अनन्त चतुष्टं मंदिर
जगजीवन सुख पाया ॥जगत०॥३॥
Acharyatulya Jagjeewan 18th Century (Prachin)
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 28 May 2022
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Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
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Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
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