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#Jaisagarprachin

जयसागर नामके दिगम्बर सम्प्रदायमें दो कवि हुए हैं । एक काष्ठा संरके नन्दी तटके गच्छसे सम्बन्धित हैं। इनकी गुरुपरम्परामें सोमकोत्ति, विजयसेन यशःकोत्ति, जदयसेन, त्रिभुवनकीत्ति और रत्नभूषणके नाम आये हैं। रत्न भूषण ही जयसागरके गुरु हैं। इनका समय वि० सं० १६७४ है। जयसागर हिन्दी और संस्कृत दोनोंही भाषाओंमें काव्यरचना करते थे । संस्कृतमें इनकी पाश्चपञ्चकल्याणक और हिन्दीमें ज्येष्ठजिनवरपूजा, विमलपुराण, रत्न भूषणस्तुति और तीर्थ जयमाला नामको रचनाएं हैं।
दूसरे जयसागर ब्रह्म जयसागर है । इनका समय वि० सं० की १८वीं शती का प्रथम पाद है । ये मूलसंघ सरस्वतीगच्छ बलात्कारगणकी सूरस शाखामेंहुए हैं। इनकी गुरु परम्परामें देवेन्द्रकीति, विद्यानन्दि, मल्लिभुषण, लक्ष्मी चन्द्र, वीरचन्द्र, ज्ञानभूषण, प्रभाचन्द्र, बादिचन्द्र और महीचन्द्र के नाम आये हैं। महीचन्द्रके पश्चात् मेरुचन्द्र भट्टारक पदपर आसीन हुए हैं। ये ब्रह्म जयसागरके गुरुभाई थे । मेरुचन्द्रका समय वि० सं १७२२.१७३२ सिद्ध है। ब्रह्म जयसागरकी तीन रचनाएं उपलब्ध है
१. सीताहरण
२. अनिरुद्धहरण
३. सगरचरित
जयसागर नामके दिगम्बर सम्प्रदायमें दो कवि हुए हैं । एक काष्ठा संरके नन्दी तटके गच्छसे सम्बन्धित हैं। इनकी गुरुपरम्परामें सोमकोत्ति, विजयसेन यशःकोत्ति, जदयसेन, त्रिभुवनकीत्ति और रत्नभूषणके नाम आये हैं। रत्न भूषण ही जयसागरके गुरु हैं। इनका समय वि० सं० १६७४ है। जयसागर हिन्दी और संस्कृत दोनोंही भाषाओंमें काव्यरचना करते थे । संस्कृतमें इनकी पाश्चपञ्चकल्याणक और हिन्दीमें ज्येष्ठजिनवरपूजा, विमलपुराण, रत्न भूषणस्तुति और तीर्थ जयमाला नामको रचनाएं हैं।
दूसरे जयसागर ब्रह्म जयसागर है । इनका समय वि० सं० की १८वीं शती का प्रथम पाद है । ये मूलसंघ सरस्वतीगच्छ बलात्कारगणकी सूरस शाखामेंहुए हैं। इनकी गुरु परम्परामें देवेन्द्रकीति, विद्यानन्दि, मल्लिभुषण, लक्ष्मी चन्द्र, वीरचन्द्र, ज्ञानभूषण, प्रभाचन्द्र, बादिचन्द्र और महीचन्द्र के नाम आये हैं। महीचन्द्रके पश्चात् मेरुचन्द्र भट्टारक पदपर आसीन हुए हैं। ये ब्रह्म जयसागरके गुरुभाई थे । मेरुचन्द्रका समय वि० सं १७२२.१७३२ सिद्ध है। ब्रह्म जयसागरकी तीन रचनाएं उपलब्ध है
१. सीताहरण
२. अनिरुद्धहरण
३. सगरचरित
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आचार्यतुल्य जयसागर 17वीं शताब्दी (प्राचीन)
| Name | Phone/Mobile 1 | Which Sangh/Maharaji/Aryika Ji you are associated with |
|---|---|---|
| Sangh Common Number | +919844033717 | #VardhamanSagarJiMaharaj1950DharmSagarJi |
| Hemal Jain | +918690943133 | #SunilSagarJi1977SanmatiSagarJi |
| Abhi Bantu | +919575455473 | #SunilSagarJi1977SanmatiSagarJi |
| Purnima Didi | +918552998307 | #SunilSagarJi1977SanmatiSagarJi |
| Varna Manish Bhai | +919352199164 | #KanaknandiJiMaharajKunthusagarji |
| Ankit Test | +919730016352 | #AcharyaShriVidyasagarjiMaharaj |
| Santosh Khule | +919850774639 | #PavitrasagarJiMaharaj1949SanmatiSagarJi1927 |
| Madhok Shaha | +919928058345 | #KanaknandiJiMaharajKunthusagarji |
| Siddharth jain Baddu | +917987281995 | #AcharyaShriVidyasagarjiMaharaj, #VishalSagarJiMaharaj1977VidyaSagarJi |
| Akshay Adadande | +919765069127 | #AcharyaShriVidyasagarjiMaharaj, #NiyamSagarJiMaharaj1957VidyaSagarJi |
| Mayur Jain | +918484845108 | #SundarSagarJiMaharaj1976SanmatiSagarJi, #VibhavSagarJiMaharaj1976ViragSagarJi, #PrabhavsagarjiPavitrasagarJiMaharaj1949, #MayanksagarjiRayansagarJiMaharaj1955 |
संजुल जैन ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 2 जून 2022
दिगजैनविकी आभारी है
बालिकाई शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
नेमिनाथ जी शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
परियोजना के लिए पुस्तकों को संदर्भित करने के लिए।
लेखक:- पंडित श्री नेमीचंद्र शास्त्री-ज्योतिषाचार्य
आचार्य शांति सागर छानी ग्रंथ माला
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 2 June 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
जयसागर नामके दिगम्बर सम्प्रदायमें दो कवि हुए हैं । एक काष्ठा संरके नन्दी तटके गच्छसे सम्बन्धित हैं। इनकी गुरुपरम्परामें सोमकोत्ति, विजयसेन यशःकोत्ति, जदयसेन, त्रिभुवनकीत्ति और रत्नभूषणके नाम आये हैं। रत्न भूषण ही जयसागरके गुरु हैं। इनका समय वि० सं० १६७४ है। जयसागर हिन्दी और संस्कृत दोनोंही भाषाओंमें काव्यरचना करते थे । संस्कृतमें इनकी पाश्चपञ्चकल्याणक और हिन्दीमें ज्येष्ठजिनवरपूजा, विमलपुराण, रत्न भूषणस्तुति और तीर्थ जयमाला नामको रचनाएं हैं।
दूसरे जयसागर ब्रह्म जयसागर है । इनका समय वि० सं० की १८वीं शती का प्रथम पाद है । ये मूलसंघ सरस्वतीगच्छ बलात्कारगणकी सूरस शाखामेंहुए हैं। इनकी गुरु परम्परामें देवेन्द्रकीति, विद्यानन्दि, मल्लिभुषण, लक्ष्मी चन्द्र, वीरचन्द्र, ज्ञानभूषण, प्रभाचन्द्र, बादिचन्द्र और महीचन्द्र के नाम आये हैं। महीचन्द्रके पश्चात् मेरुचन्द्र भट्टारक पदपर आसीन हुए हैं। ये ब्रह्म जयसागरके गुरुभाई थे । मेरुचन्द्रका समय वि० सं १७२२.१७३२ सिद्ध है। ब्रह्म जयसागरकी तीन रचनाएं उपलब्ध है
१. सीताहरण
२. अनिरुद्धहरण
३. सगरचरित
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 2 June 2022
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Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
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Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
#Jaisagarprachin
15000
Acharyatulya Jaisagar 17th Century (Prachin)
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