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#Kaviaswal
कवि असवालका बंश गोलाराड था। इनके पिताका नाम लक्ष्मण था । इन्होंने अपनी रचनामें मूल संघ बलात्कारगण के बाचार्य प्रभाचन्द्र, पचनन्दि, शुभचन्द्र और धर्मचन्द्र का उल्लेख किया है, जिससे यह ध्वनिस होता है कि कवि इन्हींको आम्नायका था । कविने कुशात देश में स्थित करहल नगर निवासी साहू सोगिके अनुरोधसे लिखा है । ये सोणिग यदुवंशमें उत्पन्न हुए थे।
ग्रन्श्च-रचनाके समय करहल में चौहानबंशी राजा भोजरायके पुत्र संसार चन्द (पम्बीसिंह) का राज्य था । उनकी माताका नाम नाइक्कदेवी था ! यदुवंशो अमसिंह भोजराजके मंत्री थे, जो जैनधर्म के अनुयायी थे । इनके चार भाई और भी थे, जिनके नाम करमसिंह, समरसिंह, नक्षसिंह और लक्ष्मण सिंह थे। अमरसिंहकी पत्नीका नाम कमलश्री था। इसके तोन पुत्र हुए-नन्दन, सोणिग और लोणा साह | लोणा साहू जिनयात्रा, प्रतिष्ठा आदिमें उदारतापूर्वक धन व्यय करते थे।
मल्लिनाथचरितके कर्ता कवि हल्लकी प्रशंसा भी असवाल कविने की है। लोणा साहूके अनुरोधसे ही कवि असवालने पासणाहरिउको रचना अपने ज्येष्ठ भ्राता सोणिगके लिये कराई थी। सन्धि वाक्यमें भी उक्त कथनको पुष्टि होती है।
"इय पासणाहरिए आयमसारे सुवागचहभरिए बुहअसवालविरइए संघाहिपसोणिगस्स कपणाहरणसिरिपासणाहणियाण गमणो णाम तेरहमी परिच्छेओ सम्मतो।"
कविने 'पासणाहवार को प्रशस्तिमें इस प्रयका रचनाकाल कित किया है
इगवीरहो णिब्वुई कुच्छराई, सत्तरिसह चउसयवत्थराई ।
पच्छई सिरिणियविक्कामगयाई, एउणसीदीसहुँ चउदहसयाई ।
भादव-तम-एयारसि मुणेह, परिसिको पूरिज गंथु एह ।
पंचाहियवीससयाई सुत्तु, सहसई चयारि मणिहि जुत्तु ।
अर्थात वि० सं० १४७५, भाद्रपद कृष्णा एकादशीको यह ग्रन्थ समाप्त हुभा। ग्रन्थ लिखने में कधिको एक वर्ष लगा था ।
प्रशस्तिमें वि० सं० १४७१ भोजराजके राज्यमें सम्पन्न होनेवाल प्रति शोत्सवका भी वर्णन आया है। इस चरसबमें रत्नमयी जिनबिम्बौंको प्रतिष्ठा की गई थी।
प्रशस्तिमें जिस राजवंशका उल्लेख किया है उसका अस्तित्व भी वि० सं० की १५वीं शताब्दीमें उपलब्ध होता है। अतएव कविका समय विक्रमकी १५ वीं शताब्दी है। कविको एक ही रचना 'पासणाहरित' उपलब्ध है। इसमें २३वें तीर्थकर पार्श्वनाथका जीवन-चरित अकित है । कथावस्तु १३ सन्धियों में विभक्त है। कविने इस काव्य में मरुभूति और कमठके जीवन का सुन्दर अफन किया है। सदाचार और अत्याचारकी कहानी प्रस्तुत की है। प्रत्येक जन्म में मरुभतिका जोन कमठके जीवके विद्वेषका शिकार होता है। च.मठका जीव मरुभूप्ति के जीवके समान ही इस लोकम उत्पन्न होता है, किन्तु अपने सुष्कृत्यक कारण तिर्यञ्चम जन्म प्रहपाकर नरकवास भोगता है। उस छठवें भाव में पून: मनुष्य-योनिकी प्राप्ति होती है । इस प्रकार मरुभूति और कमठका बर-बिरोध १० जन्मों तक चलता है। १० वें भवमें मरूभूतिका जोच पाश्वनाथक रूपमें जन्म ग्रहण करता है। पार्व जन्मके पश्चात् अपने बल, पौरुष एवं बुद्धिका परिचय देते हैं। और ३० वर्षकी आमु पूर्ण होनेपर माघ शुक्ला एकादशाका दीक्षा ग्रहण करते हैं। वे तपश्चरण कर केवलज्ञान लाभ करते है और सम्मेदशिखरपर निर्वाण-लाभ करते हैं। कविने प्रसंगवश सम्यक्त्व, श्रावकधर्म, मुनिधर्म, कर्मसिद्धान्त और लोकके स्वरूपका विवेचन भी किया है । कविता साधारण है और भाषा लोक-भाषाके निकट है।
इस परिस-ग्रन्थमें कविने भाम, मगर भीर प्रकृतिका विवरणमा चित्रण किया है। नर-नारियोंके चित्रणमें परम्परायुक्त उपमानोंका व्यवहार किया गया है।
कवि असवालका बंश गोलाराड था। इनके पिताका नाम लक्ष्मण था । इन्होंने अपनी रचनामें मूल संघ बलात्कारगण के बाचार्य प्रभाचन्द्र, पचनन्दि, शुभचन्द्र और धर्मचन्द्र का उल्लेख किया है, जिससे यह ध्वनिस होता है कि कवि इन्हींको आम्नायका था । कविने कुशात देश में स्थित करहल नगर निवासी साहू सोगिके अनुरोधसे लिखा है । ये सोणिग यदुवंशमें उत्पन्न हुए थे।
ग्रन्श्च-रचनाके समय करहल में चौहानबंशी राजा भोजरायके पुत्र संसार चन्द (पम्बीसिंह) का राज्य था । उनकी माताका नाम नाइक्कदेवी था ! यदुवंशो अमसिंह भोजराजके मंत्री थे, जो जैनधर्म के अनुयायी थे । इनके चार भाई और भी थे, जिनके नाम करमसिंह, समरसिंह, नक्षसिंह और लक्ष्मण सिंह थे। अमरसिंहकी पत्नीका नाम कमलश्री था। इसके तोन पुत्र हुए-नन्दन, सोणिग और लोणा साह | लोणा साहू जिनयात्रा, प्रतिष्ठा आदिमें उदारतापूर्वक धन व्यय करते थे।
मल्लिनाथचरितके कर्ता कवि हल्लकी प्रशंसा भी असवाल कविने की है। लोणा साहूके अनुरोधसे ही कवि असवालने पासणाहरिउको रचना अपने ज्येष्ठ भ्राता सोणिगके लिये कराई थी। सन्धि वाक्यमें भी उक्त कथनको पुष्टि होती है।
"इय पासणाहरिए आयमसारे सुवागचहभरिए बुहअसवालविरइए संघाहिपसोणिगस्स कपणाहरणसिरिपासणाहणियाण गमणो णाम तेरहमी परिच्छेओ सम्मतो।"
कविने 'पासणाहवार को प्रशस्तिमें इस प्रयका रचनाकाल कित किया है
इगवीरहो णिब्वुई कुच्छराई, सत्तरिसह चउसयवत्थराई ।
पच्छई सिरिणियविक्कामगयाई, एउणसीदीसहुँ चउदहसयाई ।
भादव-तम-एयारसि मुणेह, परिसिको पूरिज गंथु एह ।
पंचाहियवीससयाई सुत्तु, सहसई चयारि मणिहि जुत्तु ।
अर्थात वि० सं० १४७५, भाद्रपद कृष्णा एकादशीको यह ग्रन्थ समाप्त हुभा। ग्रन्थ लिखने में कधिको एक वर्ष लगा था ।
प्रशस्तिमें वि० सं० १४७१ भोजराजके राज्यमें सम्पन्न होनेवाल प्रति शोत्सवका भी वर्णन आया है। इस चरसबमें रत्नमयी जिनबिम्बौंको प्रतिष्ठा की गई थी।
प्रशस्तिमें जिस राजवंशका उल्लेख किया है उसका अस्तित्व भी वि० सं० की १५वीं शताब्दीमें उपलब्ध होता है। अतएव कविका समय विक्रमकी १५ वीं शताब्दी है। कविको एक ही रचना 'पासणाहरित' उपलब्ध है। इसमें २३वें तीर्थकर पार्श्वनाथका जीवन-चरित अकित है । कथावस्तु १३ सन्धियों में विभक्त है। कविने इस काव्य में मरुभूति और कमठके जीवन का सुन्दर अफन किया है। सदाचार और अत्याचारकी कहानी प्रस्तुत की है। प्रत्येक जन्म में मरुभतिका जोन कमठके जीवके विद्वेषका शिकार होता है। च.मठका जीव मरुभूप्ति के जीवके समान ही इस लोकम उत्पन्न होता है, किन्तु अपने सुष्कृत्यक कारण तिर्यञ्चम जन्म प्रहपाकर नरकवास भोगता है। उस छठवें भाव में पून: मनुष्य-योनिकी प्राप्ति होती है । इस प्रकार मरुभूति और कमठका बर-बिरोध १० जन्मों तक चलता है। १० वें भवमें मरूभूतिका जोच पाश्वनाथक रूपमें जन्म ग्रहण करता है। पार्व जन्मके पश्चात् अपने बल, पौरुष एवं बुद्धिका परिचय देते हैं। और ३० वर्षकी आमु पूर्ण होनेपर माघ शुक्ला एकादशाका दीक्षा ग्रहण करते हैं। वे तपश्चरण कर केवलज्ञान लाभ करते है और सम्मेदशिखरपर निर्वाण-लाभ करते हैं। कविने प्रसंगवश सम्यक्त्व, श्रावकधर्म, मुनिधर्म, कर्मसिद्धान्त और लोकके स्वरूपका विवेचन भी किया है । कविता साधारण है और भाषा लोक-भाषाके निकट है।
इस परिस-ग्रन्थमें कविने भाम, मगर भीर प्रकृतिका विवरणमा चित्रण किया है। नर-नारियोंके चित्रणमें परम्परायुक्त उपमानोंका व्यवहार किया गया है।
#Kaviaswal
आचार्यतुल्य कवि असवाल 15वीं शताब्दी (प्राचीन)
संजुल जैन ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 20 मई 2022
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 20 May 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
कवि असवालका बंश गोलाराड था। इनके पिताका नाम लक्ष्मण था । इन्होंने अपनी रचनामें मूल संघ बलात्कारगण के बाचार्य प्रभाचन्द्र, पचनन्दि, शुभचन्द्र और धर्मचन्द्र का उल्लेख किया है, जिससे यह ध्वनिस होता है कि कवि इन्हींको आम्नायका था । कविने कुशात देश में स्थित करहल नगर निवासी साहू सोगिके अनुरोधसे लिखा है । ये सोणिग यदुवंशमें उत्पन्न हुए थे।
ग्रन्श्च-रचनाके समय करहल में चौहानबंशी राजा भोजरायके पुत्र संसार चन्द (पम्बीसिंह) का राज्य था । उनकी माताका नाम नाइक्कदेवी था ! यदुवंशो अमसिंह भोजराजके मंत्री थे, जो जैनधर्म के अनुयायी थे । इनके चार भाई और भी थे, जिनके नाम करमसिंह, समरसिंह, नक्षसिंह और लक्ष्मण सिंह थे। अमरसिंहकी पत्नीका नाम कमलश्री था। इसके तोन पुत्र हुए-नन्दन, सोणिग और लोणा साह | लोणा साहू जिनयात्रा, प्रतिष्ठा आदिमें उदारतापूर्वक धन व्यय करते थे।
मल्लिनाथचरितके कर्ता कवि हल्लकी प्रशंसा भी असवाल कविने की है। लोणा साहूके अनुरोधसे ही कवि असवालने पासणाहरिउको रचना अपने ज्येष्ठ भ्राता सोणिगके लिये कराई थी। सन्धि वाक्यमें भी उक्त कथनको पुष्टि होती है।
"इय पासणाहरिए आयमसारे सुवागचहभरिए बुहअसवालविरइए संघाहिपसोणिगस्स कपणाहरणसिरिपासणाहणियाण गमणो णाम तेरहमी परिच्छेओ सम्मतो।"
कविने 'पासणाहवार को प्रशस्तिमें इस प्रयका रचनाकाल कित किया है
इगवीरहो णिब्वुई कुच्छराई, सत्तरिसह चउसयवत्थराई ।
पच्छई सिरिणियविक्कामगयाई, एउणसीदीसहुँ चउदहसयाई ।
भादव-तम-एयारसि मुणेह, परिसिको पूरिज गंथु एह ।
पंचाहियवीससयाई सुत्तु, सहसई चयारि मणिहि जुत्तु ।
अर्थात वि० सं० १४७५, भाद्रपद कृष्णा एकादशीको यह ग्रन्थ समाप्त हुभा। ग्रन्थ लिखने में कधिको एक वर्ष लगा था ।
प्रशस्तिमें वि० सं० १४७१ भोजराजके राज्यमें सम्पन्न होनेवाल प्रति शोत्सवका भी वर्णन आया है। इस चरसबमें रत्नमयी जिनबिम्बौंको प्रतिष्ठा की गई थी।
प्रशस्तिमें जिस राजवंशका उल्लेख किया है उसका अस्तित्व भी वि० सं० की १५वीं शताब्दीमें उपलब्ध होता है। अतएव कविका समय विक्रमकी १५ वीं शताब्दी है। कविको एक ही रचना 'पासणाहरित' उपलब्ध है। इसमें २३वें तीर्थकर पार्श्वनाथका जीवन-चरित अकित है । कथावस्तु १३ सन्धियों में विभक्त है। कविने इस काव्य में मरुभूति और कमठके जीवन का सुन्दर अफन किया है। सदाचार और अत्याचारकी कहानी प्रस्तुत की है। प्रत्येक जन्म में मरुभतिका जोन कमठके जीवके विद्वेषका शिकार होता है। च.मठका जीव मरुभूप्ति के जीवके समान ही इस लोकम उत्पन्न होता है, किन्तु अपने सुष्कृत्यक कारण तिर्यञ्चम जन्म प्रहपाकर नरकवास भोगता है। उस छठवें भाव में पून: मनुष्य-योनिकी प्राप्ति होती है । इस प्रकार मरुभूति और कमठका बर-बिरोध १० जन्मों तक चलता है। १० वें भवमें मरूभूतिका जोच पाश्वनाथक रूपमें जन्म ग्रहण करता है। पार्व जन्मके पश्चात् अपने बल, पौरुष एवं बुद्धिका परिचय देते हैं। और ३० वर्षकी आमु पूर्ण होनेपर माघ शुक्ला एकादशाका दीक्षा ग्रहण करते हैं। वे तपश्चरण कर केवलज्ञान लाभ करते है और सम्मेदशिखरपर निर्वाण-लाभ करते हैं। कविने प्रसंगवश सम्यक्त्व, श्रावकधर्म, मुनिधर्म, कर्मसिद्धान्त और लोकके स्वरूपका विवेचन भी किया है । कविता साधारण है और भाषा लोक-भाषाके निकट है।
इस परिस-ग्रन्थमें कविने भाम, मगर भीर प्रकृतिका विवरणमा चित्रण किया है। नर-नारियोंके चित्रणमें परम्परायुक्त उपमानोंका व्यवहार किया गया है।
Acharyatulya Kavi Aswal 15th Century (Prachin)
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 20 May 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
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