हैशटैग
#KaviHarichandra(Prachin)
कवि हरिचन्द्र अपनी गुरु-परम्परामा उल्लेख किया है। बताया है कि २१४ : तोबार महावीर और उनकी
इनके गुरु पद्मनन्दि भट्टारक थे। ये मूलसंघ बलात्कारगण और सरस्वतीगच्छ के विद्वान थे । भट्टारक प्रभाचन्द्र के पट्टधर थे। पद्मनन्दि भट्टारक अपने समयके यशस्वी लेखक और संस्कृति-प्रचारक हैं। गर्वावलोमें पानन्दिको प्रशंसा करते हुए लिखा है
गुरु | पद्मनन्दि भट्टारक |
श्रीमत्प्रभाचन्द्रमुनोंद्रष्टुं शश्वत्प्रतिष्ठः प्रतिभा-रिष्ठः ।
विशुद्ध-सिवान्तरहस्य-रत्न-रत्नाकरो नंदतु पानंदी ॥२८॥
जैन सिद्धन्तभास्कर भाग १, किरण ४, पृ० ५३
दिल्लोमें वि० सं० १२९६ भाद्रपद कृष्णा त्रयोदशीको रनकीत्ति पट्टारूढ़ हुए | ये १४ वर्षों तक पट्टपर रहे। रत्नकात्तिके पट्टपर वि० सं० १३१० पौष शुक्ला पूर्णिमाको भट्टारक प्रभाचन्द्रका अभिषेक हुआ। पश्चात् वि० सं० १३८५ पौष शुक्ला सप्तमीको प्रभाचन्द्र के पट्ट पर पद्मनन्दि आसीन हुए। इन्हीं पा नन्दिके शिष्योंमें जयमित्रहल भी सम्मिलित थे ।
श्री पं० परमानन्दजी शास्त्रीने अपने प्रशस्ति-संग्रहको भूमिकामें एक घटना उद्धृत की है। बताया है कि पार्श्वनाथचरितके कती कवि अग्रवाल ( संक १४५५) ने अपने ग्रंथकी अन्तिम प्रशस्तिमें सं० १४५१की एक घटनाका उल्लेख करते हुए लिखा है कि करहलके चौहानवंशी राजा भोजराज थे। इनकी पत्नीका नाम माइक्कदेवी था। उससे संसारचन्द या पृथ्वीराज नामका एक पुत्र उत्पन्न हुआ | उसके राज्यमें सं०१४७१ माघ कृष्णा चतुर्दशी शनिवारके दिन रत्नमयी जिन-बिम्बकी स्थापना की गयी। उस समय यदुवगी अमरसिंह भोजराज के मंत्री थे। उनके पित्ताका नाम ब्रह्मदेव और माताका नाम पपलक्षणा था । इनके चार भाई और भी थे, जिनके नाम करमसिंह, समरसिंह, नक्षत्र सिंह, और लक्ष्मणसिंह थे। अमरसिंहकी पत्नी कमली पातिव्रत्य और शीलादि गुणोंसे विभूषित थी। उसके तीन पुत्र हुए--नन्दन, सोना साहु. लोणा साहु । इनमें लोणा साहू धार्मिक कार्यों में विपुल धन खर्च करते थे । इन्होंने कवि जय मित्रहलकी प्रशंसा की है। अत: जयमित्रहलका समय भट्टारक प्रभाचन्द्रका पट्टकाल है ।
कवि हरिचन्द या जयमित्रहल का समय विक्रमको १५वीं शती है। यत्त: जयमित्रहलने अपना मल्लिनाथकाव्य विक्रम सं० १४५१ से कुछ समय पूर्व लिखा है। दूसरे ग्रंथ वढमाण चरित' भी मल्लिनाथकाव्यसे एकाध वर्ष भागे-पीछे लिखा गया है।
जयमित्रहलकी दो रचनाएं उपलब्ध हैं-'बढमाणचरिउ' और 'मल्लि णाहकन्छ' । बडढमाण चरिउ' का दूसरा नाम 'सेणियरिज' भी मिलता है। इस काव्यमें ११ सन्धि या परिच्छेद बताये गये हैं । पर प्रारंभकी , सन्धियाँ उपलब्ध सभी पाण्डुलिपियों में नहीं मिलती हैं, जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि ग्रंथको छठी सम्धि ही प्रथम सन्धि है। इस ग्रंथमें अन्तिम तीर्थकर वर्द्धमान महाबीरका जीवनचरित अंकित है। साथ ही उनके ममयमें होने वाले मगधक शिशुनागवंशी सम्राट बिम्बसार या घोणकको जीवनगाथा भी अंकित है । यह
राजा मड़ा प्रतापी जी.. जनीतिबुशल था । इमले सनापत्ति जम्बू कुमारने केरल के राजा मृगांकपर विजय प्राप्त कर उसकी पुत्री चिलावतोसे श्रेणिकका विवाह-सम्बन्ध करवाया था। इसकी पट्टपहिषी चेटककी पुत्री नेलना थी। चलना अत्यन्त धर्मात्मा और पतिव्रता थी । थेगिकका जनधमंकी ओर लानका श्रेय चेतनाको है। थगिक सार्थकर महाबीरके प्रमुख श्रोता थे। यह ग्रंथ देव रायके पुत्र संघाधिप हालिबम्मक अनुराधसे रचा गया है ।
दुसरी रचना 'मल्लिणाहकच्च' है। इसम १९व नीर्थकर भाल्लनाथका जायचरित ऑकत है। इसकी प्रति आमेर-शास्त्र-भण्डारम भा अपूर्ण है। ग्रंथको रचना कविने पृथ्वी नामक गजाने गज्यमें स्थित माह आल्हाकेअन गवस को ह । आल्हा साहक चार पुत्र थे, जिनमें नाम बाह्य साह, तुम्बर, ३.तण और गल्हग थे । इन्होंने ही इस काम-ग्रंथको लिखवाया है |
कवि हरिचन्द्र अपनी गुरु-परम्परामा उल्लेख किया है। बताया है कि २१४ : तोबार महावीर और उनकी
इनके गुरु पद्मनन्दि भट्टारक थे। ये मूलसंघ बलात्कारगण और सरस्वतीगच्छ के विद्वान थे । भट्टारक प्रभाचन्द्र के पट्टधर थे। पद्मनन्दि भट्टारक अपने समयके यशस्वी लेखक और संस्कृति-प्रचारक हैं। गर्वावलोमें पानन्दिको प्रशंसा करते हुए लिखा है
गुरु | पद्मनन्दि भट्टारक |
श्रीमत्प्रभाचन्द्रमुनोंद्रष्टुं शश्वत्प्रतिष्ठः प्रतिभा-रिष्ठः ।
विशुद्ध-सिवान्तरहस्य-रत्न-रत्नाकरो नंदतु पानंदी ॥२८॥
जैन सिद्धन्तभास्कर भाग १, किरण ४, पृ० ५३
दिल्लोमें वि० सं० १२९६ भाद्रपद कृष्णा त्रयोदशीको रनकीत्ति पट्टारूढ़ हुए | ये १४ वर्षों तक पट्टपर रहे। रत्नकात्तिके पट्टपर वि० सं० १३१० पौष शुक्ला पूर्णिमाको भट्टारक प्रभाचन्द्रका अभिषेक हुआ। पश्चात् वि० सं० १३८५ पौष शुक्ला सप्तमीको प्रभाचन्द्र के पट्ट पर पद्मनन्दि आसीन हुए। इन्हीं पा नन्दिके शिष्योंमें जयमित्रहल भी सम्मिलित थे ।
श्री पं० परमानन्दजी शास्त्रीने अपने प्रशस्ति-संग्रहको भूमिकामें एक घटना उद्धृत की है। बताया है कि पार्श्वनाथचरितके कती कवि अग्रवाल ( संक १४५५) ने अपने ग्रंथकी अन्तिम प्रशस्तिमें सं० १४५१की एक घटनाका उल्लेख करते हुए लिखा है कि करहलके चौहानवंशी राजा भोजराज थे। इनकी पत्नीका नाम माइक्कदेवी था। उससे संसारचन्द या पृथ्वीराज नामका एक पुत्र उत्पन्न हुआ | उसके राज्यमें सं०१४७१ माघ कृष्णा चतुर्दशी शनिवारके दिन रत्नमयी जिन-बिम्बकी स्थापना की गयी। उस समय यदुवगी अमरसिंह भोजराज के मंत्री थे। उनके पित्ताका नाम ब्रह्मदेव और माताका नाम पपलक्षणा था । इनके चार भाई और भी थे, जिनके नाम करमसिंह, समरसिंह, नक्षत्र सिंह, और लक्ष्मणसिंह थे। अमरसिंहकी पत्नी कमली पातिव्रत्य और शीलादि गुणोंसे विभूषित थी। उसके तीन पुत्र हुए--नन्दन, सोना साहु. लोणा साहु । इनमें लोणा साहू धार्मिक कार्यों में विपुल धन खर्च करते थे । इन्होंने कवि जय मित्रहलकी प्रशंसा की है। अत: जयमित्रहलका समय भट्टारक प्रभाचन्द्रका पट्टकाल है ।
कवि हरिचन्द या जयमित्रहल का समय विक्रमको १५वीं शती है। यत्त: जयमित्रहलने अपना मल्लिनाथकाव्य विक्रम सं० १४५१ से कुछ समय पूर्व लिखा है। दूसरे ग्रंथ वढमाण चरित' भी मल्लिनाथकाव्यसे एकाध वर्ष भागे-पीछे लिखा गया है।
जयमित्रहलकी दो रचनाएं उपलब्ध हैं-'बढमाणचरिउ' और 'मल्लि णाहकन्छ' । बडढमाण चरिउ' का दूसरा नाम 'सेणियरिज' भी मिलता है। इस काव्यमें ११ सन्धि या परिच्छेद बताये गये हैं । पर प्रारंभकी , सन्धियाँ उपलब्ध सभी पाण्डुलिपियों में नहीं मिलती हैं, जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि ग्रंथको छठी सम्धि ही प्रथम सन्धि है। इस ग्रंथमें अन्तिम तीर्थकर वर्द्धमान महाबीरका जीवनचरित अंकित है। साथ ही उनके ममयमें होने वाले मगधक शिशुनागवंशी सम्राट बिम्बसार या घोणकको जीवनगाथा भी अंकित है । यह
राजा मड़ा प्रतापी जी.. जनीतिबुशल था । इमले सनापत्ति जम्बू कुमारने केरल के राजा मृगांकपर विजय प्राप्त कर उसकी पुत्री चिलावतोसे श्रेणिकका विवाह-सम्बन्ध करवाया था। इसकी पट्टपहिषी चेटककी पुत्री नेलना थी। चलना अत्यन्त धर्मात्मा और पतिव्रता थी । थेगिकका जनधमंकी ओर लानका श्रेय चेतनाको है। थगिक सार्थकर महाबीरके प्रमुख श्रोता थे। यह ग्रंथ देव रायके पुत्र संघाधिप हालिबम्मक अनुराधसे रचा गया है ।
दुसरी रचना 'मल्लिणाहकच्च' है। इसम १९व नीर्थकर भाल्लनाथका जायचरित ऑकत है। इसकी प्रति आमेर-शास्त्र-भण्डारम भा अपूर्ण है। ग्रंथको रचना कविने पृथ्वी नामक गजाने गज्यमें स्थित माह आल्हाकेअन गवस को ह । आल्हा साहक चार पुत्र थे, जिनमें नाम बाह्य साह, तुम्बर, ३.तण और गल्हग थे । इन्होंने ही इस काम-ग्रंथको लिखवाया है |
#KaviHarichandra(Prachin)
आचार्यतुल्य कवि हरिचन्द्र अथवा जयमित्रहल 15वीं शताब्दी (प्राचीन)
संजुल जैन ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 19 मई 2022
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 19 May 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
कवि हरिचन्द्र अपनी गुरु-परम्परामा उल्लेख किया है। बताया है कि २१४ : तोबार महावीर और उनकी
इनके गुरु पद्मनन्दि भट्टारक थे। ये मूलसंघ बलात्कारगण और सरस्वतीगच्छ के विद्वान थे । भट्टारक प्रभाचन्द्र के पट्टधर थे। पद्मनन्दि भट्टारक अपने समयके यशस्वी लेखक और संस्कृति-प्रचारक हैं। गर्वावलोमें पानन्दिको प्रशंसा करते हुए लिखा है
गुरु | पद्मनन्दि भट्टारक |
श्रीमत्प्रभाचन्द्रमुनोंद्रष्टुं शश्वत्प्रतिष्ठः प्रतिभा-रिष्ठः ।
विशुद्ध-सिवान्तरहस्य-रत्न-रत्नाकरो नंदतु पानंदी ॥२८॥
जैन सिद्धन्तभास्कर भाग १, किरण ४, पृ० ५३
दिल्लोमें वि० सं० १२९६ भाद्रपद कृष्णा त्रयोदशीको रनकीत्ति पट्टारूढ़ हुए | ये १४ वर्षों तक पट्टपर रहे। रत्नकात्तिके पट्टपर वि० सं० १३१० पौष शुक्ला पूर्णिमाको भट्टारक प्रभाचन्द्रका अभिषेक हुआ। पश्चात् वि० सं० १३८५ पौष शुक्ला सप्तमीको प्रभाचन्द्र के पट्ट पर पद्मनन्दि आसीन हुए। इन्हीं पा नन्दिके शिष्योंमें जयमित्रहल भी सम्मिलित थे ।
श्री पं० परमानन्दजी शास्त्रीने अपने प्रशस्ति-संग्रहको भूमिकामें एक घटना उद्धृत की है। बताया है कि पार्श्वनाथचरितके कती कवि अग्रवाल ( संक १४५५) ने अपने ग्रंथकी अन्तिम प्रशस्तिमें सं० १४५१की एक घटनाका उल्लेख करते हुए लिखा है कि करहलके चौहानवंशी राजा भोजराज थे। इनकी पत्नीका नाम माइक्कदेवी था। उससे संसारचन्द या पृथ्वीराज नामका एक पुत्र उत्पन्न हुआ | उसके राज्यमें सं०१४७१ माघ कृष्णा चतुर्दशी शनिवारके दिन रत्नमयी जिन-बिम्बकी स्थापना की गयी। उस समय यदुवगी अमरसिंह भोजराज के मंत्री थे। उनके पित्ताका नाम ब्रह्मदेव और माताका नाम पपलक्षणा था । इनके चार भाई और भी थे, जिनके नाम करमसिंह, समरसिंह, नक्षत्र सिंह, और लक्ष्मणसिंह थे। अमरसिंहकी पत्नी कमली पातिव्रत्य और शीलादि गुणोंसे विभूषित थी। उसके तीन पुत्र हुए--नन्दन, सोना साहु. लोणा साहु । इनमें लोणा साहू धार्मिक कार्यों में विपुल धन खर्च करते थे । इन्होंने कवि जय मित्रहलकी प्रशंसा की है। अत: जयमित्रहलका समय भट्टारक प्रभाचन्द्रका पट्टकाल है ।
कवि हरिचन्द या जयमित्रहल का समय विक्रमको १५वीं शती है। यत्त: जयमित्रहलने अपना मल्लिनाथकाव्य विक्रम सं० १४५१ से कुछ समय पूर्व लिखा है। दूसरे ग्रंथ वढमाण चरित' भी मल्लिनाथकाव्यसे एकाध वर्ष भागे-पीछे लिखा गया है।
जयमित्रहलकी दो रचनाएं उपलब्ध हैं-'बढमाणचरिउ' और 'मल्लि णाहकन्छ' । बडढमाण चरिउ' का दूसरा नाम 'सेणियरिज' भी मिलता है। इस काव्यमें ११ सन्धि या परिच्छेद बताये गये हैं । पर प्रारंभकी , सन्धियाँ उपलब्ध सभी पाण्डुलिपियों में नहीं मिलती हैं, जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि ग्रंथको छठी सम्धि ही प्रथम सन्धि है। इस ग्रंथमें अन्तिम तीर्थकर वर्द्धमान महाबीरका जीवनचरित अंकित है। साथ ही उनके ममयमें होने वाले मगधक शिशुनागवंशी सम्राट बिम्बसार या घोणकको जीवनगाथा भी अंकित है । यह
राजा मड़ा प्रतापी जी.. जनीतिबुशल था । इमले सनापत्ति जम्बू कुमारने केरल के राजा मृगांकपर विजय प्राप्त कर उसकी पुत्री चिलावतोसे श्रेणिकका विवाह-सम्बन्ध करवाया था। इसकी पट्टपहिषी चेटककी पुत्री नेलना थी। चलना अत्यन्त धर्मात्मा और पतिव्रता थी । थेगिकका जनधमंकी ओर लानका श्रेय चेतनाको है। थगिक सार्थकर महाबीरके प्रमुख श्रोता थे। यह ग्रंथ देव रायके पुत्र संघाधिप हालिबम्मक अनुराधसे रचा गया है ।
दुसरी रचना 'मल्लिणाहकच्च' है। इसम १९व नीर्थकर भाल्लनाथका जायचरित ऑकत है। इसकी प्रति आमेर-शास्त्र-भण्डारम भा अपूर्ण है। ग्रंथको रचना कविने पृथ्वी नामक गजाने गज्यमें स्थित माह आल्हाकेअन गवस को ह । आल्हा साहक चार पुत्र थे, जिनमें नाम बाह्य साह, तुम्बर, ३.तण और गल्हग थे । इन्होंने ही इस काम-ग्रंथको लिखवाया है |
Acharyatulya Kavi Harichandra Or Jaimitrahal 15th Century (Prachin)
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 19 May 2022
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Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
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Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
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