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#Manikchand
डॉ. देवेन्द्रकुमार शास्त्रीने भरतपुरके जैनशास्त्र भण्डारसे कवि माणिक चन्दको 'सत्तवसणकहर' को प्रति प्राप्त की हैं। इस कथाग्रन्यके रचयिता जयसवालकुलोत्पन्न कवि माणिकचन्द हैं। इस कथाकी रचना टोडरसाहूके पुत्र ऋषभदासके हेतु हुई है। कवि मलयकोत्ति भट्टारकके वंश में उत्पन्न हुआ था। ये मलयकीत्ति यशःकत्तिके पट्टघर थे ।
ग्रंथका रचनाकाल वि० सं० १६३४ है।' अतः कविका समय १७वीं शती निश्चित है।
इसमें सप्तव्यसनोंको सात कथाएँ निबद्ध हैं | कथा ग्रंथ सात सन्धियोंमें विभक्त है | यह प्रबन्ध शैली में लिखा गया है। कथा में वस्तु वर्णनोंका आधिक्य नहीं है | कथा सीधे और सरल रूपमें चलती है। संबाद योजना बड़ा मधुर है। माषा सरल और स्पष्ट है । युद्ध-वर्णन विस्तृत रूपम मिलता है । यहाँ उदाहरणार्थ कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं
सा उहय बालहि संगामु जाउ, भड भहि रहह भिडिउ ताउ ।
गउ गहि पुणु हसहयहि वग, खश खण करत करिवार अम्गु ।
बरसहि समरंगण वाणपति, णाबइ धाराहर घणहु जुत्ति ।
रणभूमें भउहिम मडु णिरुगु, गउ गहि तुरिउ तुरएहि कुद्ध ! (७.२४)
इस कथाकाव्यमें कृष्ण और जरासंघका युद्ध, नेमीश्वरका विवाह यत कीड़ा आदिका वर्णन आया है। इन वर्णनोंसे यह स्पष्ट है कि यह एक कथा कामात्मक संग्रह है, जिसमें " व्यसनोंकी कथाएं अलग-अलग काव्यात्मक रूपमें लिखी गई है। इसमें लोकोक्तियों और देशी शब्दोंकी भी प्रचुरता है।
डॉ. देवेन्द्रकुमार शास्त्रीने भरतपुरके जैनशास्त्र भण्डारसे कवि माणिक चन्दको 'सत्तवसणकहर' को प्रति प्राप्त की हैं। इस कथाग्रन्यके रचयिता जयसवालकुलोत्पन्न कवि माणिकचन्द हैं। इस कथाकी रचना टोडरसाहूके पुत्र ऋषभदासके हेतु हुई है। कवि मलयकोत्ति भट्टारकके वंश में उत्पन्न हुआ था। ये मलयकीत्ति यशःकत्तिके पट्टघर थे ।
ग्रंथका रचनाकाल वि० सं० १६३४ है।' अतः कविका समय १७वीं शती निश्चित है।
इसमें सप्तव्यसनोंको सात कथाएँ निबद्ध हैं | कथा ग्रंथ सात सन्धियोंमें विभक्त है | यह प्रबन्ध शैली में लिखा गया है। कथा में वस्तु वर्णनोंका आधिक्य नहीं है | कथा सीधे और सरल रूपमें चलती है। संबाद योजना बड़ा मधुर है। माषा सरल और स्पष्ट है । युद्ध-वर्णन विस्तृत रूपम मिलता है । यहाँ उदाहरणार्थ कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं
सा उहय बालहि संगामु जाउ, भड भहि रहह भिडिउ ताउ ।
गउ गहि पुणु हसहयहि वग, खश खण करत करिवार अम्गु ।
बरसहि समरंगण वाणपति, णाबइ धाराहर घणहु जुत्ति ।
रणभूमें भउहिम मडु णिरुगु, गउ गहि तुरिउ तुरएहि कुद्ध ! (७.२४)
इस कथाकाव्यमें कृष्ण और जरासंघका युद्ध, नेमीश्वरका विवाह यत कीड़ा आदिका वर्णन आया है। इन वर्णनोंसे यह स्पष्ट है कि यह एक कथा कामात्मक संग्रह है, जिसमें " व्यसनोंकी कथाएं अलग-अलग काव्यात्मक रूपमें लिखी गई है। इसमें लोकोक्तियों और देशी शब्दोंकी भी प्रचुरता है।
#Manikchand
आचार्यतुल्य कवि माणिकचंद 17वीं शताब्दी (प्राचीन)
संजुल जैन ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 23 मई 2022
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 23 May 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
डॉ. देवेन्द्रकुमार शास्त्रीने भरतपुरके जैनशास्त्र भण्डारसे कवि माणिक चन्दको 'सत्तवसणकहर' को प्रति प्राप्त की हैं। इस कथाग्रन्यके रचयिता जयसवालकुलोत्पन्न कवि माणिकचन्द हैं। इस कथाकी रचना टोडरसाहूके पुत्र ऋषभदासके हेतु हुई है। कवि मलयकोत्ति भट्टारकके वंश में उत्पन्न हुआ था। ये मलयकीत्ति यशःकत्तिके पट्टघर थे ।
ग्रंथका रचनाकाल वि० सं० १६३४ है।' अतः कविका समय १७वीं शती निश्चित है।
इसमें सप्तव्यसनोंको सात कथाएँ निबद्ध हैं | कथा ग्रंथ सात सन्धियोंमें विभक्त है | यह प्रबन्ध शैली में लिखा गया है। कथा में वस्तु वर्णनोंका आधिक्य नहीं है | कथा सीधे और सरल रूपमें चलती है। संबाद योजना बड़ा मधुर है। माषा सरल और स्पष्ट है । युद्ध-वर्णन विस्तृत रूपम मिलता है । यहाँ उदाहरणार्थ कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं
सा उहय बालहि संगामु जाउ, भड भहि रहह भिडिउ ताउ ।
गउ गहि पुणु हसहयहि वग, खश खण करत करिवार अम्गु ।
बरसहि समरंगण वाणपति, णाबइ धाराहर घणहु जुत्ति ।
रणभूमें भउहिम मडु णिरुगु, गउ गहि तुरिउ तुरएहि कुद्ध ! (७.२४)
इस कथाकाव्यमें कृष्ण और जरासंघका युद्ध, नेमीश्वरका विवाह यत कीड़ा आदिका वर्णन आया है। इन वर्णनोंसे यह स्पष्ट है कि यह एक कथा कामात्मक संग्रह है, जिसमें " व्यसनोंकी कथाएं अलग-अलग काव्यात्मक रूपमें लिखी गई है। इसमें लोकोक्तियों और देशी शब्दोंकी भी प्रचुरता है।
Acharyatulya Kavi Manikchand 17th Century (Prachin)
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 23 May 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
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15000
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