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#KaviSinghThakur
कवि शाह ठाकुरने 'संतिणाहचरिउ' को प्रशस्तिमें अपना परिचय दिया है। अपनी गुरुपरम्परामें बताया है कि भट्टारक पपनन्दिकी आम्नायमें होने वाले भट्टारक विशालकीत्तिके वे शिष्य थे। मूलसंघ नन्याम्नाय, सरस्वतीगच्छ, बलात्कारगणके विद्वान थे। कविने भट्टारक पधनन्दि, शुभचन्द्रदेव, जिनचन्द्र, प्रभाचन्द्र, चन्द्रकीति, रत्नकीत्ति, भुवनकोसि, विशालकोत्ति, लक्ष्मीचन्द्र, सहस्र कोत्ति, नेमिचन्द्र, आयिका अनन्तश्री और दाभाडालीबाईका नामोल्लेख किया है । कविने यहां दो परम्पराके भट्टारकोंका उल्लेख किया है-अजमेर पट्ट और आमेरपट । भट्टारक विशालकोत्ति अजमेर-शाखाके विद्वान थे और वे भट्टारक चन्द्रकोत्तिके पट्टनर थे। विशालकीति नामके अनेक विद्वान हुए हैं।
"सिरि पनन्दि भट्टारकेण पलहु सुतासु सुभचन्ददेव ।
जिणचंद भट्टारक सुभगसेव।
सिरि पहाचंद पापाटि सुमत्ति ।परिभणहु भट्टारक चदकित्ति ।
तह बारह किय सुकहा-पर्वधु ।सुसहावकरण जणि जेम बंधु ।
आचारिय धुरि हुउ रयगकित्ति ।सहु सोसु भलो जग भुवर्णाकसि ।
दिक्खा-सिक्ला-गुण-गइणसार । सिरिविशालकित्ति विद्या-अपार |
तह सिखि हूपर लक्ष्मी सुचंद | भवि-बोहण सोहम भुवणमिदु ।
ता सिस्नु सुभग जगि सहसकित्ति । नेमिचंद हुबो सासनि सुयत्ति ।
अज्जिका अप्रतिसिरि ले पदेसि । दाभाडालीवाई बिसे सि ।'
कविके पितामहका नाम साह सोल्हा और पिताका नाम खेता था। जाति खंडेलवाल और गोत्र लोहडिया था। यह लोवाणिपूरके निवासी थे। इस नगरमें चन्द्रप्रभ नामका विशाल जिनालय था । इनके दो पुत्र थे—धर्मदास और गोविन्ददास । इनमें धर्मदास बहुत ही सुयोग्य और गृहभार वहन करने वाला था । उसको बुद्धि जैनधर्म में विशेष रस लेती थी। कवि देव-शास्त्र-गुरुका भक्त और विद्या-विनोदी था। विद्वानोंके प्रति उसका विशेष प्रेम था। कविने लिखा है
"खंडेलवाल साल्हा पसंसि । लोहाडिउ खेत्तात्तणि सुसंसि ।
ठाकुरसी सुकवि णामेण साह, पंडितजन प्रीति वहई उछाह ।
तह पुत्त पयड जगि जसु मईय, मानिसालोय महि मंडलीय ।
गुरुयण सुभट गोविंददास, जिगमबुद्धि प्राँ। धमदः ।
गंदाहु लुबायणिपुर लोणविद, गदह जिण सासण जर्जाग जिणिदु ।
चंदपहु जिनमंदिर विशाल, गंदह पाति मंडल सामिसाल ।"
प्रशस्तिसे अवगत होता है कि कविका वंश राजमान्य रहा है। कविने विशालकीतिको अपना गरू बताया है। पर विशालकत्ति नामके कई भट्टा रक हुए हैं । अतः यह निश्चय कर सकना कठिन है कि कौन विशालकीति इनके गुरु थे । एक विशालकोत्ति वे हैं, जिनका उल्लेख भट्टारक शुभचन्द्रकी गुरुर्वावली में ८०वें नम्बरपर आया है और जो वसन्सकोत्तिके शिष्य और शुभ कोत्तिके गुरु थे। दूसरे विशालकीत्ति वे हैं, जो भट्टारक पद्मनन्दिके पट्टधर थे, जिनके द्वारा वि० सं० १४७० में मूर्तियों को प्रतिष्ठा हुई थी। तीसरे विशाल कीत्ति वे हैं, जिनका उल्लेख नागौरफे भट्टारकोंकी नामावली में आया है, जो धर्मकीत्तिके पट्टधर थे, जिनका पट्टाभिषेक वि० सं०१६०१ में हुआ था।
'महापुराणकलिका में भी कविने अपनेको विशालकीत्तिका शिष्य कहा है और नेमिचन्नका भी आदरपूर्वक स्मरण किया है। अतएव उपलब्ध सामसोने आधारपर इतना ही कहा जा सकता है कि कवि शाह ठाकुर खंडेलवाल बंशमें उत्पन्न हुए थे और इनके दादाका नाम सोहा और पिताका नाम खेता था। इनके गुरुका नाम विशालको त्ति था।
कविको दो रचनाएँ उपलब्ध हैं-१. संतिणावारिस और २. महापुराण कलिका । संतिमाहरि उकी रचना वि० सं० १६५२ भाद्रपद शुक्ला पंचमोके दिन चकत्ताशके जलालुद्दीन अकबर बादशाहके शासनकाल में पूर्ण हुई थी । उस समय हुँदाहाड़ देशके कच्छपवंशी राजा मानसिंहका राज्य वत्तंमान था । मानसिकी राजधानी उस समय अम्बावती या आमेर थी।
कविकी दूसरी रचना वि० सं० १६५० में मानसिंहके शासन में ही समाप्त हुई थी । अतएव कविका समय वि० सं० को १७वीं शताब्दी निर्णीत है |
कविकी दो रचनाएं उपलब्ध हैं-संतिणाहरिउ और महापुराणकालका । सतिशाहचरिउमें ५ सन्धियाँ हैं और १६वे तीर्थकर शान्तिनाथका जोवनवृत्त वर्णित है। शान्तिनाथ कामदेव, चक्रवती और तीर्थकर इन तीनों पदोंको अलंकृत करते थे | यह चरित ग्रन्थ वर्णनात्मक शैलीम लिखा गया है। भाषा सरस और सरल है।
महापुराणलिकामें २७ सन्धियों हैं, जिनमें ६३ शलाकापुरुषोंकी गौरव गाथा गुम्फित है। इसमें तीर्थंकर ऋषभदेवका चरित तो विस्तारके साथ अंकित किया गया है । भरत, बाहुबली, जयकुमार आदिके इतिवृत्त भी विस्तार पूर्वक दिये गये हैं 1 शेष महापुरुषोंके जीवनवृत्त संक्षेपमें ही आये हैं । २३ तीर्थ कर, ११ चक्रवर्ती, ९ नारायण, १ बलभद्र और ९ प्रतिनारायणोंके नाम, जन्म ग्राम, माता-पिता, राज्यकाल, तपश्चरण आदिका संक्षेपमें वर्णन आया है। इसप्रकार कविने अपने इस पुराणमें शलाकापुरुषोंका जोबनवृत्त निरूपित किया है।
कवि शाह ठाकुरने 'संतिणाहचरिउ' को प्रशस्तिमें अपना परिचय दिया है। अपनी गुरुपरम्परामें बताया है कि भट्टारक पपनन्दिकी आम्नायमें होने वाले भट्टारक विशालकीत्तिके वे शिष्य थे। मूलसंघ नन्याम्नाय, सरस्वतीगच्छ, बलात्कारगणके विद्वान थे। कविने भट्टारक पधनन्दि, शुभचन्द्रदेव, जिनचन्द्र, प्रभाचन्द्र, चन्द्रकीति, रत्नकीत्ति, भुवनकोसि, विशालकोत्ति, लक्ष्मीचन्द्र, सहस्र कोत्ति, नेमिचन्द्र, आयिका अनन्तश्री और दाभाडालीबाईका नामोल्लेख किया है । कविने यहां दो परम्पराके भट्टारकोंका उल्लेख किया है-अजमेर पट्ट और आमेरपट । भट्टारक विशालकोत्ति अजमेर-शाखाके विद्वान थे और वे भट्टारक चन्द्रकोत्तिके पट्टनर थे। विशालकीति नामके अनेक विद्वान हुए हैं।
"सिरि पनन्दि भट्टारकेण पलहु सुतासु सुभचन्ददेव ।
जिणचंद भट्टारक सुभगसेव।
सिरि पहाचंद पापाटि सुमत्ति ।परिभणहु भट्टारक चदकित्ति ।
तह बारह किय सुकहा-पर्वधु ।सुसहावकरण जणि जेम बंधु ।
आचारिय धुरि हुउ रयगकित्ति ।सहु सोसु भलो जग भुवर्णाकसि ।
दिक्खा-सिक्ला-गुण-गइणसार । सिरिविशालकित्ति विद्या-अपार |
तह सिखि हूपर लक्ष्मी सुचंद | भवि-बोहण सोहम भुवणमिदु ।
ता सिस्नु सुभग जगि सहसकित्ति । नेमिचंद हुबो सासनि सुयत्ति ।
अज्जिका अप्रतिसिरि ले पदेसि । दाभाडालीवाई बिसे सि ।'
कविके पितामहका नाम साह सोल्हा और पिताका नाम खेता था। जाति खंडेलवाल और गोत्र लोहडिया था। यह लोवाणिपूरके निवासी थे। इस नगरमें चन्द्रप्रभ नामका विशाल जिनालय था । इनके दो पुत्र थे—धर्मदास और गोविन्ददास । इनमें धर्मदास बहुत ही सुयोग्य और गृहभार वहन करने वाला था । उसको बुद्धि जैनधर्म में विशेष रस लेती थी। कवि देव-शास्त्र-गुरुका भक्त और विद्या-विनोदी था। विद्वानोंके प्रति उसका विशेष प्रेम था। कविने लिखा है
"खंडेलवाल साल्हा पसंसि । लोहाडिउ खेत्तात्तणि सुसंसि ।
ठाकुरसी सुकवि णामेण साह, पंडितजन प्रीति वहई उछाह ।
तह पुत्त पयड जगि जसु मईय, मानिसालोय महि मंडलीय ।
गुरुयण सुभट गोविंददास, जिगमबुद्धि प्राँ। धमदः ।
गंदाहु लुबायणिपुर लोणविद, गदह जिण सासण जर्जाग जिणिदु ।
चंदपहु जिनमंदिर विशाल, गंदह पाति मंडल सामिसाल ।"
प्रशस्तिसे अवगत होता है कि कविका वंश राजमान्य रहा है। कविने विशालकीतिको अपना गरू बताया है। पर विशालकत्ति नामके कई भट्टा रक हुए हैं । अतः यह निश्चय कर सकना कठिन है कि कौन विशालकीति इनके गुरु थे । एक विशालकोत्ति वे हैं, जिनका उल्लेख भट्टारक शुभचन्द्रकी गुरुर्वावली में ८०वें नम्बरपर आया है और जो वसन्सकोत्तिके शिष्य और शुभ कोत्तिके गुरु थे। दूसरे विशालकीत्ति वे हैं, जो भट्टारक पद्मनन्दिके पट्टधर थे, जिनके द्वारा वि० सं० १४७० में मूर्तियों को प्रतिष्ठा हुई थी। तीसरे विशाल कीत्ति वे हैं, जिनका उल्लेख नागौरफे भट्टारकोंकी नामावली में आया है, जो धर्मकीत्तिके पट्टधर थे, जिनका पट्टाभिषेक वि० सं०१६०१ में हुआ था।
'महापुराणकलिका में भी कविने अपनेको विशालकीत्तिका शिष्य कहा है और नेमिचन्नका भी आदरपूर्वक स्मरण किया है। अतएव उपलब्ध सामसोने आधारपर इतना ही कहा जा सकता है कि कवि शाह ठाकुर खंडेलवाल बंशमें उत्पन्न हुए थे और इनके दादाका नाम सोहा और पिताका नाम खेता था। इनके गुरुका नाम विशालको त्ति था।
कविको दो रचनाएँ उपलब्ध हैं-१. संतिणावारिस और २. महापुराण कलिका । संतिमाहरि उकी रचना वि० सं० १६५२ भाद्रपद शुक्ला पंचमोके दिन चकत्ताशके जलालुद्दीन अकबर बादशाहके शासनकाल में पूर्ण हुई थी । उस समय हुँदाहाड़ देशके कच्छपवंशी राजा मानसिंहका राज्य वत्तंमान था । मानसिकी राजधानी उस समय अम्बावती या आमेर थी।
कविकी दूसरी रचना वि० सं० १६५० में मानसिंहके शासन में ही समाप्त हुई थी । अतएव कविका समय वि० सं० को १७वीं शताब्दी निर्णीत है |
कविकी दो रचनाएं उपलब्ध हैं-संतिणाहरिउ और महापुराणकालका । सतिशाहचरिउमें ५ सन्धियाँ हैं और १६वे तीर्थकर शान्तिनाथका जोवनवृत्त वर्णित है। शान्तिनाथ कामदेव, चक्रवती और तीर्थकर इन तीनों पदोंको अलंकृत करते थे | यह चरित ग्रन्थ वर्णनात्मक शैलीम लिखा गया है। भाषा सरस और सरल है।
महापुराणलिकामें २७ सन्धियों हैं, जिनमें ६३ शलाकापुरुषोंकी गौरव गाथा गुम्फित है। इसमें तीर्थंकर ऋषभदेवका चरित तो विस्तारके साथ अंकित किया गया है । भरत, बाहुबली, जयकुमार आदिके इतिवृत्त भी विस्तार पूर्वक दिये गये हैं 1 शेष महापुरुषोंके जीवनवृत्त संक्षेपमें ही आये हैं । २३ तीर्थ कर, ११ चक्रवर्ती, ९ नारायण, १ बलभद्र और ९ प्रतिनारायणोंके नाम, जन्म ग्राम, माता-पिता, राज्यकाल, तपश्चरण आदिका संक्षेपमें वर्णन आया है। इसप्रकार कविने अपने इस पुराणमें शलाकापुरुषोंका जोबनवृत्त निरूपित किया है।
#KaviSinghThakur
आचार्यतुल्य कवि शाह ठाकुर (प्राचीन)
संजुल जैन ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 23 मई 2022
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 23 May 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
कवि शाह ठाकुरने 'संतिणाहचरिउ' को प्रशस्तिमें अपना परिचय दिया है। अपनी गुरुपरम्परामें बताया है कि भट्टारक पपनन्दिकी आम्नायमें होने वाले भट्टारक विशालकीत्तिके वे शिष्य थे। मूलसंघ नन्याम्नाय, सरस्वतीगच्छ, बलात्कारगणके विद्वान थे। कविने भट्टारक पधनन्दि, शुभचन्द्रदेव, जिनचन्द्र, प्रभाचन्द्र, चन्द्रकीति, रत्नकीत्ति, भुवनकोसि, विशालकोत्ति, लक्ष्मीचन्द्र, सहस्र कोत्ति, नेमिचन्द्र, आयिका अनन्तश्री और दाभाडालीबाईका नामोल्लेख किया है । कविने यहां दो परम्पराके भट्टारकोंका उल्लेख किया है-अजमेर पट्ट और आमेरपट । भट्टारक विशालकोत्ति अजमेर-शाखाके विद्वान थे और वे भट्टारक चन्द्रकोत्तिके पट्टनर थे। विशालकीति नामके अनेक विद्वान हुए हैं।
"सिरि पनन्दि भट्टारकेण पलहु सुतासु सुभचन्ददेव ।
जिणचंद भट्टारक सुभगसेव।
सिरि पहाचंद पापाटि सुमत्ति ।परिभणहु भट्टारक चदकित्ति ।
तह बारह किय सुकहा-पर्वधु ।सुसहावकरण जणि जेम बंधु ।
आचारिय धुरि हुउ रयगकित्ति ।सहु सोसु भलो जग भुवर्णाकसि ।
दिक्खा-सिक्ला-गुण-गइणसार । सिरिविशालकित्ति विद्या-अपार |
तह सिखि हूपर लक्ष्मी सुचंद | भवि-बोहण सोहम भुवणमिदु ।
ता सिस्नु सुभग जगि सहसकित्ति । नेमिचंद हुबो सासनि सुयत्ति ।
अज्जिका अप्रतिसिरि ले पदेसि । दाभाडालीवाई बिसे सि ।'
कविके पितामहका नाम साह सोल्हा और पिताका नाम खेता था। जाति खंडेलवाल और गोत्र लोहडिया था। यह लोवाणिपूरके निवासी थे। इस नगरमें चन्द्रप्रभ नामका विशाल जिनालय था । इनके दो पुत्र थे—धर्मदास और गोविन्ददास । इनमें धर्मदास बहुत ही सुयोग्य और गृहभार वहन करने वाला था । उसको बुद्धि जैनधर्म में विशेष रस लेती थी। कवि देव-शास्त्र-गुरुका भक्त और विद्या-विनोदी था। विद्वानोंके प्रति उसका विशेष प्रेम था। कविने लिखा है
"खंडेलवाल साल्हा पसंसि । लोहाडिउ खेत्तात्तणि सुसंसि ।
ठाकुरसी सुकवि णामेण साह, पंडितजन प्रीति वहई उछाह ।
तह पुत्त पयड जगि जसु मईय, मानिसालोय महि मंडलीय ।
गुरुयण सुभट गोविंददास, जिगमबुद्धि प्राँ। धमदः ।
गंदाहु लुबायणिपुर लोणविद, गदह जिण सासण जर्जाग जिणिदु ।
चंदपहु जिनमंदिर विशाल, गंदह पाति मंडल सामिसाल ।"
प्रशस्तिसे अवगत होता है कि कविका वंश राजमान्य रहा है। कविने विशालकीतिको अपना गरू बताया है। पर विशालकत्ति नामके कई भट्टा रक हुए हैं । अतः यह निश्चय कर सकना कठिन है कि कौन विशालकीति इनके गुरु थे । एक विशालकोत्ति वे हैं, जिनका उल्लेख भट्टारक शुभचन्द्रकी गुरुर्वावली में ८०वें नम्बरपर आया है और जो वसन्सकोत्तिके शिष्य और शुभ कोत्तिके गुरु थे। दूसरे विशालकीत्ति वे हैं, जो भट्टारक पद्मनन्दिके पट्टधर थे, जिनके द्वारा वि० सं० १४७० में मूर्तियों को प्रतिष्ठा हुई थी। तीसरे विशाल कीत्ति वे हैं, जिनका उल्लेख नागौरफे भट्टारकोंकी नामावली में आया है, जो धर्मकीत्तिके पट्टधर थे, जिनका पट्टाभिषेक वि० सं०१६०१ में हुआ था।
'महापुराणकलिका में भी कविने अपनेको विशालकीत्तिका शिष्य कहा है और नेमिचन्नका भी आदरपूर्वक स्मरण किया है। अतएव उपलब्ध सामसोने आधारपर इतना ही कहा जा सकता है कि कवि शाह ठाकुर खंडेलवाल बंशमें उत्पन्न हुए थे और इनके दादाका नाम सोहा और पिताका नाम खेता था। इनके गुरुका नाम विशालको त्ति था।
कविको दो रचनाएँ उपलब्ध हैं-१. संतिणावारिस और २. महापुराण कलिका । संतिमाहरि उकी रचना वि० सं० १६५२ भाद्रपद शुक्ला पंचमोके दिन चकत्ताशके जलालुद्दीन अकबर बादशाहके शासनकाल में पूर्ण हुई थी । उस समय हुँदाहाड़ देशके कच्छपवंशी राजा मानसिंहका राज्य वत्तंमान था । मानसिकी राजधानी उस समय अम्बावती या आमेर थी।
कविकी दूसरी रचना वि० सं० १६५० में मानसिंहके शासन में ही समाप्त हुई थी । अतएव कविका समय वि० सं० को १७वीं शताब्दी निर्णीत है |
कविकी दो रचनाएं उपलब्ध हैं-संतिणाहरिउ और महापुराणकालका । सतिशाहचरिउमें ५ सन्धियाँ हैं और १६वे तीर्थकर शान्तिनाथका जोवनवृत्त वर्णित है। शान्तिनाथ कामदेव, चक्रवती और तीर्थकर इन तीनों पदोंको अलंकृत करते थे | यह चरित ग्रन्थ वर्णनात्मक शैलीम लिखा गया है। भाषा सरस और सरल है।
महापुराणलिकामें २७ सन्धियों हैं, जिनमें ६३ शलाकापुरुषोंकी गौरव गाथा गुम्फित है। इसमें तीर्थंकर ऋषभदेवका चरित तो विस्तारके साथ अंकित किया गया है । भरत, बाहुबली, जयकुमार आदिके इतिवृत्त भी विस्तार पूर्वक दिये गये हैं 1 शेष महापुरुषोंके जीवनवृत्त संक्षेपमें ही आये हैं । २३ तीर्थ कर, ११ चक्रवर्ती, ९ नारायण, १ बलभद्र और ९ प्रतिनारायणोंके नाम, जन्म ग्राम, माता-पिता, राज्यकाल, तपश्चरण आदिका संक्षेपमें वर्णन आया है। इसप्रकार कविने अपने इस पुराणमें शलाकापुरुषोंका जोबनवृत्त निरूपित किया है।
Acharyatulya Kavi Shah Thakur (Prachin)
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 23 May 2022
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