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#MahakaviDamodar
महाकवि दामोदरका वंश मेउत्तय था | इनके पिताका नाम मल्ह था, जिन्होंने रल्हका चरित लिखा था। ये सलखनपुरके वासी थे। इनके ज्येष्ठ भ्राताका नाम जिनदेव था। कवि मालबाका रहनेवाला था। यह दामोदर 'उक्ति-व्यक्ति-विवृत्ति' के रचयितासे भिन्न है। पुष्पिकावाक्यमें कविने निम्न प्रकार नामांकन किया है
"इय मिणाहचरिए महामुणिकमलभद्दपच्चक्खे महाका-कणिठ्ठ-दामो यरविरइए पंडियरामयंद-आएसिए महाकच्चे मल्ह-सुअ-जग्गएव-आवण्णिए गेमि. णिब्वाणममणं पंचमो परिच्छेओ सम्मत्तो ।।१४५।।"
इससे स्पष्ट है कि कवि दामोदरने महामुनि कमलभद्रके प्रत्यक्षमें पं० रामचन्द्रके आदेशसे इस ग्रन्थको रचना की। कविके पिताका नाम मल्ह था । उसने अपने वंशका परिचय भी निम्न प्रकार प्रस्तुत किया है
मेउत्तयवंश-उमजोण-करण, जे होण-दीण-सुइ-रोय-हरण ।
मल्ह्इ-गंदणु गुण गणपबित्तु, तेणि भणिउ दल्हविरयहि चरितु ।
मई सलखगपुरि-णिवसंतएण, किउ भत्रु कब्बु गुरु-आयरेण ।
इस बंश-परिचयसे इतना ही ज्ञात होता है कि कवि सलखनपुरका निवासी था और उसके पिताका नाम मल्ह या मल्हण और बड़े भाईका नाम जिन देव था।कबिने 'मिणाहचरिउ' की रचना की है। और यह ग्रंथ टोडाके शास्त्र भण्डारमें विद्यमान है।
इस ग्रंथकी रचनाकी प्रेरणा देनेवाले व्यक्ति मालवदेशमें स्थित्त सललन पुरके निवासी थे। ये खंडेलवालकुलभूषण, विषयविरक्त और तीर्थंकर महावीरके भक्त थे। केशवके पुत्र इन्दुक था इन्द्र थे, जो गृहस्थके षट्कर्मोंका पालन करते थे तथा मल्हके पुत्र नागदेव पुण्यात्मा और भव्यजनोंके मित्र थे । इन्हींकी प्रेरणा एवं अनुरोधसे इस गंधकी रचना की गई है।
इस ग्रंथमें रचनाकालका उल्लेख आया है। बताया है कि परमारवंशी राजा देवपालके राज्यमें वि सं० १२८७ में इस ग्रंथको रचना सम्पन्न हुई है । लिखा है
"चारह-समाई सहजपाई, जिपमसाहो कालहं ।
पमारहं पटु समुद्धरण परब्बइ देवपालहं ।।"
इस पद्यमें कचिने मालवाके परमारवंशी राजा देवपालका उल्लेख किया है। यह महाकुमार हरिश्चन्द्र वर्माका द्वितीय पुत्र था | अर्जुनवर्माको कोई सन्तान नहीं थी । अतः उसके राजसिंहासनका अधिकार इन्हींको प्राप्त हुआ था । इसका अपर नाम साइसमल्ल था। इनके समयके तीन अभिलेख और एक दामपत्र प्राप्त होते हैं। एक अभिलेख हरसोडा गाँवसे वि० सं० १२७५ में और दो अभिलेख ग्वालियर-गज्यसे वि० सं० १२८६ और वि० सं०१२८५ में प्राप्त हैं । मानधातासे वि सं० १२९.२ भाद्रपद शुक्ला पूर्णिमाका दानपत्र भी मिला है। दिल्ली सुल्तान सममुद्दीन अल्तमशने मालवा पर ई. सन् १२३१-३२ में आक्रमण किया था और एक वर्षके युद्ध के पश्चात् ग्वालियरको विजित किया था। इसके पश्चात् भेलसा और उज्जयिनीको भी जीता था । उज्जयिनीके महाकाल मंदिरको भी तोड़ा था। सुल्तान जब लूट-पाट कर रहा था, उस समय वहाँका राजा देवपाल ही था । इसीके राज्यकालमें पं० आगाधरने वि० सं० १२८५ में नलकछपुरमें 'जिनयज्ञकरन्प' नामक ग्रन्थको रखना की है। "जिनयज्ञकल्प'को प्रशस्तिमें देवपालका उल्लेख आया है !
दामोदर कविने वि० सं० १२८५५ में 'मिणाहचरित्र लिखा था । उमममय देवपाल जीवित था। पर जब आशाधरने वि०सं० १२९ में विष्टिरम्मतिशास्त्र लिखा, उससमय देवपालको मृत्यु हो चुकी थी और उसका पुत्र जयतुंगदेव राजा था। इससे यह ध्वनित होता है कि देवपालको मृत्यु वि० सं० १२९२ के पूर्व हो चुकी थी।
इसप्रकार कविने अपने ग्रन्थका जो रचनाकाल बतलाया है उसकी पुष्टि हो जाती है । अतः कवि दामोदरका समय वि० सं० की १३ बौं शती है !
दामोदरके नामसे कई रचनाएँ प्राप्त होती हैं। पर मिणाहचरिउकी प्रशस्तिमें जो अपना परिचय दिया है उसका मेल श्रीपालकथाकी प्रशस्तिसे नहीं बैठता है। अतएव णेमिणाहूचरिउका रचयिता दामोदर श्रीपालकथाके रचयिता दामोदरसे भिन्न है।
इस चरित-ग्रंथमें पांच सन्धियाँ है और २खें तीर्थंकर नेमिनाथकी कथा गुम्मित है ! प्रसंगवश कविने श्रीकृष्ण, पाण्डव और कौरवोंका भी जीवनवृत्त अंकित किया है। यह सुन्दर और अर्थपूर्ण स्वण्डकाभ्य है। इसमें सूक्ति और नीतिके उपदेशोंके साथ धावकवर्मका भी कथन आया है। इसी कारण कविने इस मिणाचरिउको दुर्गति-निवारक कहा है
"चबिह-संघहं सुहंसति करणु,
मिसर-चरिउ बहदुःख-हरणु ।
दुम्जीह जि किणि वय-गुणई लेहि,
भवि-भाव-सिद्धि संभवउ तेहि ।"
यह चरित-काव्य आडम्बरहीन और गंभीर अर्थपरिपूर्ण है। कविने अपने गुरुका नाम दामोदर बताया है, जो गुणभद्रके पट्टधर शिष्य थे। पृथ्वीधरके पुत्र पं० ज्ञानचन्द्र और पं० रामचन्द्रने उपदेश दिया तथा जसदेवके पुत्र जस विधानने वात्सल्यका भाव प्रदर्शित किया था ।
महाकवि दामोदरका वंश मेउत्तय था | इनके पिताका नाम मल्ह था, जिन्होंने रल्हका चरित लिखा था। ये सलखनपुरके वासी थे। इनके ज्येष्ठ भ्राताका नाम जिनदेव था। कवि मालबाका रहनेवाला था। यह दामोदर 'उक्ति-व्यक्ति-विवृत्ति' के रचयितासे भिन्न है। पुष्पिकावाक्यमें कविने निम्न प्रकार नामांकन किया है
"इय मिणाहचरिए महामुणिकमलभद्दपच्चक्खे महाका-कणिठ्ठ-दामो यरविरइए पंडियरामयंद-आएसिए महाकच्चे मल्ह-सुअ-जग्गएव-आवण्णिए गेमि. णिब्वाणममणं पंचमो परिच्छेओ सम्मत्तो ।।१४५।।"
इससे स्पष्ट है कि कवि दामोदरने महामुनि कमलभद्रके प्रत्यक्षमें पं० रामचन्द्रके आदेशसे इस ग्रन्थको रचना की। कविके पिताका नाम मल्ह था । उसने अपने वंशका परिचय भी निम्न प्रकार प्रस्तुत किया है
मेउत्तयवंश-उमजोण-करण, जे होण-दीण-सुइ-रोय-हरण ।
मल्ह्इ-गंदणु गुण गणपबित्तु, तेणि भणिउ दल्हविरयहि चरितु ।
मई सलखगपुरि-णिवसंतएण, किउ भत्रु कब्बु गुरु-आयरेण ।
इस बंश-परिचयसे इतना ही ज्ञात होता है कि कवि सलखनपुरका निवासी था और उसके पिताका नाम मल्ह या मल्हण और बड़े भाईका नाम जिन देव था।कबिने 'मिणाहचरिउ' की रचना की है। और यह ग्रंथ टोडाके शास्त्र भण्डारमें विद्यमान है।
इस ग्रंथकी रचनाकी प्रेरणा देनेवाले व्यक्ति मालवदेशमें स्थित्त सललन पुरके निवासी थे। ये खंडेलवालकुलभूषण, विषयविरक्त और तीर्थंकर महावीरके भक्त थे। केशवके पुत्र इन्दुक था इन्द्र थे, जो गृहस्थके षट्कर्मोंका पालन करते थे तथा मल्हके पुत्र नागदेव पुण्यात्मा और भव्यजनोंके मित्र थे । इन्हींकी प्रेरणा एवं अनुरोधसे इस गंधकी रचना की गई है।
इस ग्रंथमें रचनाकालका उल्लेख आया है। बताया है कि परमारवंशी राजा देवपालके राज्यमें वि सं० १२८७ में इस ग्रंथको रचना सम्पन्न हुई है । लिखा है
"चारह-समाई सहजपाई, जिपमसाहो कालहं ।
पमारहं पटु समुद्धरण परब्बइ देवपालहं ।।"
इस पद्यमें कचिने मालवाके परमारवंशी राजा देवपालका उल्लेख किया है। यह महाकुमार हरिश्चन्द्र वर्माका द्वितीय पुत्र था | अर्जुनवर्माको कोई सन्तान नहीं थी । अतः उसके राजसिंहासनका अधिकार इन्हींको प्राप्त हुआ था । इसका अपर नाम साइसमल्ल था। इनके समयके तीन अभिलेख और एक दामपत्र प्राप्त होते हैं। एक अभिलेख हरसोडा गाँवसे वि० सं० १२७५ में और दो अभिलेख ग्वालियर-गज्यसे वि० सं० १२८६ और वि० सं०१२८५ में प्राप्त हैं । मानधातासे वि सं० १२९.२ भाद्रपद शुक्ला पूर्णिमाका दानपत्र भी मिला है। दिल्ली सुल्तान सममुद्दीन अल्तमशने मालवा पर ई. सन् १२३१-३२ में आक्रमण किया था और एक वर्षके युद्ध के पश्चात् ग्वालियरको विजित किया था। इसके पश्चात् भेलसा और उज्जयिनीको भी जीता था । उज्जयिनीके महाकाल मंदिरको भी तोड़ा था। सुल्तान जब लूट-पाट कर रहा था, उस समय वहाँका राजा देवपाल ही था । इसीके राज्यकालमें पं० आगाधरने वि० सं० १२८५ में नलकछपुरमें 'जिनयज्ञकरन्प' नामक ग्रन्थको रखना की है। "जिनयज्ञकल्प'को प्रशस्तिमें देवपालका उल्लेख आया है !
दामोदर कविने वि० सं० १२८५५ में 'मिणाहचरित्र लिखा था । उमममय देवपाल जीवित था। पर जब आशाधरने वि०सं० १२९ में विष्टिरम्मतिशास्त्र लिखा, उससमय देवपालको मृत्यु हो चुकी थी और उसका पुत्र जयतुंगदेव राजा था। इससे यह ध्वनित होता है कि देवपालको मृत्यु वि० सं० १२९२ के पूर्व हो चुकी थी।
इसप्रकार कविने अपने ग्रन्थका जो रचनाकाल बतलाया है उसकी पुष्टि हो जाती है । अतः कवि दामोदरका समय वि० सं० की १३ बौं शती है !
दामोदरके नामसे कई रचनाएँ प्राप्त होती हैं। पर मिणाहचरिउकी प्रशस्तिमें जो अपना परिचय दिया है उसका मेल श्रीपालकथाकी प्रशस्तिसे नहीं बैठता है। अतएव णेमिणाहूचरिउका रचयिता दामोदर श्रीपालकथाके रचयिता दामोदरसे भिन्न है।
इस चरित-ग्रंथमें पांच सन्धियाँ है और २खें तीर्थंकर नेमिनाथकी कथा गुम्मित है ! प्रसंगवश कविने श्रीकृष्ण, पाण्डव और कौरवोंका भी जीवनवृत्त अंकित किया है। यह सुन्दर और अर्थपूर्ण स्वण्डकाभ्य है। इसमें सूक्ति और नीतिके उपदेशोंके साथ धावकवर्मका भी कथन आया है। इसी कारण कविने इस मिणाचरिउको दुर्गति-निवारक कहा है
"चबिह-संघहं सुहंसति करणु,
मिसर-चरिउ बहदुःख-हरणु ।
दुम्जीह जि किणि वय-गुणई लेहि,
भवि-भाव-सिद्धि संभवउ तेहि ।"
यह चरित-काव्य आडम्बरहीन और गंभीर अर्थपरिपूर्ण है। कविने अपने गुरुका नाम दामोदर बताया है, जो गुणभद्रके पट्टधर शिष्य थे। पृथ्वीधरके पुत्र पं० ज्ञानचन्द्र और पं० रामचन्द्रने उपदेश दिया तथा जसदेवके पुत्र जस विधानने वात्सल्यका भाव प्रदर्शित किया था ।
#MahakaviDamodar
आचार्यतुल्य महाकवि दामोदर 13वीं शताब्दी (प्राचीन)
संजुल जैन ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 27 अप्रैल 2022
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 27 April 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
महाकवि दामोदरका वंश मेउत्तय था | इनके पिताका नाम मल्ह था, जिन्होंने रल्हका चरित लिखा था। ये सलखनपुरके वासी थे। इनके ज्येष्ठ भ्राताका नाम जिनदेव था। कवि मालबाका रहनेवाला था। यह दामोदर 'उक्ति-व्यक्ति-विवृत्ति' के रचयितासे भिन्न है। पुष्पिकावाक्यमें कविने निम्न प्रकार नामांकन किया है
"इय मिणाहचरिए महामुणिकमलभद्दपच्चक्खे महाका-कणिठ्ठ-दामो यरविरइए पंडियरामयंद-आएसिए महाकच्चे मल्ह-सुअ-जग्गएव-आवण्णिए गेमि. णिब्वाणममणं पंचमो परिच्छेओ सम्मत्तो ।।१४५।।"
इससे स्पष्ट है कि कवि दामोदरने महामुनि कमलभद्रके प्रत्यक्षमें पं० रामचन्द्रके आदेशसे इस ग्रन्थको रचना की। कविके पिताका नाम मल्ह था । उसने अपने वंशका परिचय भी निम्न प्रकार प्रस्तुत किया है
मेउत्तयवंश-उमजोण-करण, जे होण-दीण-सुइ-रोय-हरण ।
मल्ह्इ-गंदणु गुण गणपबित्तु, तेणि भणिउ दल्हविरयहि चरितु ।
मई सलखगपुरि-णिवसंतएण, किउ भत्रु कब्बु गुरु-आयरेण ।
इस बंश-परिचयसे इतना ही ज्ञात होता है कि कवि सलखनपुरका निवासी था और उसके पिताका नाम मल्ह या मल्हण और बड़े भाईका नाम जिन देव था।कबिने 'मिणाहचरिउ' की रचना की है। और यह ग्रंथ टोडाके शास्त्र भण्डारमें विद्यमान है।
इस ग्रंथकी रचनाकी प्रेरणा देनेवाले व्यक्ति मालवदेशमें स्थित्त सललन पुरके निवासी थे। ये खंडेलवालकुलभूषण, विषयविरक्त और तीर्थंकर महावीरके भक्त थे। केशवके पुत्र इन्दुक था इन्द्र थे, जो गृहस्थके षट्कर्मोंका पालन करते थे तथा मल्हके पुत्र नागदेव पुण्यात्मा और भव्यजनोंके मित्र थे । इन्हींकी प्रेरणा एवं अनुरोधसे इस गंधकी रचना की गई है।
इस ग्रंथमें रचनाकालका उल्लेख आया है। बताया है कि परमारवंशी राजा देवपालके राज्यमें वि सं० १२८७ में इस ग्रंथको रचना सम्पन्न हुई है । लिखा है
"चारह-समाई सहजपाई, जिपमसाहो कालहं ।
पमारहं पटु समुद्धरण परब्बइ देवपालहं ।।"
इस पद्यमें कचिने मालवाके परमारवंशी राजा देवपालका उल्लेख किया है। यह महाकुमार हरिश्चन्द्र वर्माका द्वितीय पुत्र था | अर्जुनवर्माको कोई सन्तान नहीं थी । अतः उसके राजसिंहासनका अधिकार इन्हींको प्राप्त हुआ था । इसका अपर नाम साइसमल्ल था। इनके समयके तीन अभिलेख और एक दामपत्र प्राप्त होते हैं। एक अभिलेख हरसोडा गाँवसे वि० सं० १२७५ में और दो अभिलेख ग्वालियर-गज्यसे वि० सं० १२८६ और वि० सं०१२८५ में प्राप्त हैं । मानधातासे वि सं० १२९.२ भाद्रपद शुक्ला पूर्णिमाका दानपत्र भी मिला है। दिल्ली सुल्तान सममुद्दीन अल्तमशने मालवा पर ई. सन् १२३१-३२ में आक्रमण किया था और एक वर्षके युद्ध के पश्चात् ग्वालियरको विजित किया था। इसके पश्चात् भेलसा और उज्जयिनीको भी जीता था । उज्जयिनीके महाकाल मंदिरको भी तोड़ा था। सुल्तान जब लूट-पाट कर रहा था, उस समय वहाँका राजा देवपाल ही था । इसीके राज्यकालमें पं० आगाधरने वि० सं० १२८५ में नलकछपुरमें 'जिनयज्ञकरन्प' नामक ग्रन्थको रखना की है। "जिनयज्ञकल्प'को प्रशस्तिमें देवपालका उल्लेख आया है !
दामोदर कविने वि० सं० १२८५५ में 'मिणाहचरित्र लिखा था । उमममय देवपाल जीवित था। पर जब आशाधरने वि०सं० १२९ में विष्टिरम्मतिशास्त्र लिखा, उससमय देवपालको मृत्यु हो चुकी थी और उसका पुत्र जयतुंगदेव राजा था। इससे यह ध्वनित होता है कि देवपालको मृत्यु वि० सं० १२९२ के पूर्व हो चुकी थी।
इसप्रकार कविने अपने ग्रन्थका जो रचनाकाल बतलाया है उसकी पुष्टि हो जाती है । अतः कवि दामोदरका समय वि० सं० की १३ बौं शती है !
दामोदरके नामसे कई रचनाएँ प्राप्त होती हैं। पर मिणाहचरिउकी प्रशस्तिमें जो अपना परिचय दिया है उसका मेल श्रीपालकथाकी प्रशस्तिसे नहीं बैठता है। अतएव णेमिणाहूचरिउका रचयिता दामोदर श्रीपालकथाके रचयिता दामोदरसे भिन्न है।
इस चरित-ग्रंथमें पांच सन्धियाँ है और २खें तीर्थंकर नेमिनाथकी कथा गुम्मित है ! प्रसंगवश कविने श्रीकृष्ण, पाण्डव और कौरवोंका भी जीवनवृत्त अंकित किया है। यह सुन्दर और अर्थपूर्ण स्वण्डकाभ्य है। इसमें सूक्ति और नीतिके उपदेशोंके साथ धावकवर्मका भी कथन आया है। इसी कारण कविने इस मिणाचरिउको दुर्गति-निवारक कहा है
"चबिह-संघहं सुहंसति करणु,
मिसर-चरिउ बहदुःख-हरणु ।
दुम्जीह जि किणि वय-गुणई लेहि,
भवि-भाव-सिद्धि संभवउ तेहि ।"
यह चरित-काव्य आडम्बरहीन और गंभीर अर्थपरिपूर्ण है। कविने अपने गुरुका नाम दामोदर बताया है, जो गुणभद्रके पट्टधर शिष्य थे। पृथ्वीधरके पुत्र पं० ज्ञानचन्द्र और पं० रामचन्द्रने उपदेश दिया तथा जसदेवके पुत्र जस विधानने वात्सल्यका भाव प्रदर्शित किया था ।
Acharyatulya Mahakavi Damodar 13th Century (Prachin)
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 27 April 2022
Digjainwiki is Thankful to
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Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
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