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इनका समय १९० ई० है । इन्होंने छन्दोम्बुधि नामक छन्दशास्त्रको रचना को है। यह ग्रन्थ संस्कृतके रिगलछन्दशास्त्रके आधारपर लिखा गया है। आनुपूर्वी और वृत्त के नामों में पिंगलकी अपेक्षा इसमें पर्याप्त अन्तर है । इसमें छह सन्धियाँ हैं। कन्नड़के मात्रिक छन्द और संस्कृत के छन्दोंका सुन्दर विवेचन किया है।
द्वितीय नामवर्माने ११४५ ई. के लगभग 'वस्तुकोश' नामक एक अन्य लिखा है। इसमें संस्कृत पदोंका अर्थ कन्नड़ पदोंमें बताया गया है। रीतिपर भो नागवाने प्रकाश डाला है और इसे काव्यके लिए आवश्यक धर्म माना है। अलंकारके अभावमें भी रीतिके रहनेसे माधुर्य और सौन्दर्य संघटित होते हैं। इन नागवर्माका 'काव्यालोचन' नामक लक्षण ग्रन्य भी है । नागवर्मने कर्नाटक भाषाभूषण लिखकर कन्नड़के ध्याकरणका भी परिचय दिया है। इस प्रन्थमें संज्ञा, सन्धि, विभक्ति, कारक, शब्दरीति, समास, तद्धित, आख्यात नियम, अन्वय निरूपण और निपात निरूपण ये दश परिच्छेद हैं । कुल मिलाकर २८० सूत्र हैं।
इनका समय १९० ई० है । इन्होंने छन्दोम्बुधि नामक छन्दशास्त्रको रचना को है। यह ग्रन्थ संस्कृतके रिगलछन्दशास्त्रके आधारपर लिखा गया है। आनुपूर्वी और वृत्त के नामों में पिंगलकी अपेक्षा इसमें पर्याप्त अन्तर है । इसमें छह सन्धियाँ हैं। कन्नड़के मात्रिक छन्द और संस्कृत के छन्दोंका सुन्दर विवेचन किया है।
द्वितीय नामवर्माने ११४५ ई. के लगभग 'वस्तुकोश' नामक एक अन्य लिखा है। इसमें संस्कृत पदोंका अर्थ कन्नड़ पदोंमें बताया गया है। रीतिपर भो नागवाने प्रकाश डाला है और इसे काव्यके लिए आवश्यक धर्म माना है। अलंकारके अभावमें भी रीतिके रहनेसे माधुर्य और सौन्दर्य संघटित होते हैं। इन नागवर्माका 'काव्यालोचन' नामक लक्षण ग्रन्य भी है । नागवर्मने कर्नाटक भाषाभूषण लिखकर कन्नड़के ध्याकरणका भी परिचय दिया है। इस प्रन्थमें संज्ञा, सन्धि, विभक्ति, कारक, शब्दरीति, समास, तद्धित, आख्यात नियम, अन्वय निरूपण और निपात निरूपण ये दश परिच्छेद हैं । कुल मिलाकर २८० सूत्र हैं।
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आचार्यतुल्य नागवर्म 11वीं शताब्दी (प्राचीन)
| Name | Phone/Mobile 1 | Which Sangh/Maharaji/Aryika Ji you are associated with |
|---|---|---|
| Sangh Common Number | +919844033717 | #VardhamanSagarJiMaharaj1950DharmSagarJi |
| Hemal Jain | +918690943133 | #SunilSagarJi1977SanmatiSagarJi |
| Abhi Bantu | +919575455473 | #SunilSagarJi1977SanmatiSagarJi |
| Purnima Didi | +918552998307 | #SunilSagarJi1977SanmatiSagarJi |
| Varna Manish Bhai | +919352199164 | #KanaknandiJiMaharajKunthusagarji |
| Ankit Test | +919730016352 | #AcharyaShriVidyasagarjiMaharaj |
| Santosh Khule | +919850774639 | #PavitrasagarJiMaharaj1949SanmatiSagarJi1927 |
| Madhok Shaha | +919928058345 | #KanaknandiJiMaharajKunthusagarji |
| Siddharth jain Baddu | +917987281995 | #AcharyaShriVidyasagarjiMaharaj, #VishalSagarJiMaharaj1977VidyaSagarJi |
| Akshay Adadande | +919765069127 | #AcharyaShriVidyasagarjiMaharaj, #NiyamSagarJiMaharaj1957VidyaSagarJi |
| Mayur Jain | +918484845108 | #SundarSagarJiMaharaj1976SanmatiSagarJi, #VibhavSagarJiMaharaj1976ViragSagarJi, #PrabhavsagarjiPavitrasagarJiMaharaj1949, #MayanksagarjiRayansagarJiMaharaj1955 |
संजुल जैन ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 3 जून 2022
दिगजैनविकी आभारी है
बालिकाई शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
नेमिनाथ जी शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
परियोजना के लिए पुस्तकों को संदर्भित करने के लिए।
लेखक:- पंडित श्री नेमीचंद्र शास्त्री-ज्योतिषाचार्य
आचार्य शांति सागर छानी ग्रंथ माला
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 3 June 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
इनका समय १९० ई० है । इन्होंने छन्दोम्बुधि नामक छन्दशास्त्रको रचना को है। यह ग्रन्थ संस्कृतके रिगलछन्दशास्त्रके आधारपर लिखा गया है। आनुपूर्वी और वृत्त के नामों में पिंगलकी अपेक्षा इसमें पर्याप्त अन्तर है । इसमें छह सन्धियाँ हैं। कन्नड़के मात्रिक छन्द और संस्कृत के छन्दोंका सुन्दर विवेचन किया है।
द्वितीय नामवर्माने ११४५ ई. के लगभग 'वस्तुकोश' नामक एक अन्य लिखा है। इसमें संस्कृत पदोंका अर्थ कन्नड़ पदोंमें बताया गया है। रीतिपर भो नागवाने प्रकाश डाला है और इसे काव्यके लिए आवश्यक धर्म माना है। अलंकारके अभावमें भी रीतिके रहनेसे माधुर्य और सौन्दर्य संघटित होते हैं। इन नागवर्माका 'काव्यालोचन' नामक लक्षण ग्रन्य भी है । नागवर्मने कर्नाटक भाषाभूषण लिखकर कन्नड़के ध्याकरणका भी परिचय दिया है। इस प्रन्थमें संज्ञा, सन्धि, विभक्ति, कारक, शब्दरीति, समास, तद्धित, आख्यात नियम, अन्वय निरूपण और निपात निरूपण ये दश परिच्छेद हैं । कुल मिलाकर २८० सूत्र हैं।
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 3 June 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
#Nagverm
15000
Acharyatulya Nagverm 11th Century (Prachin)
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