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#Padmnabh
राजा यशोधरको कथा जैनकवियोंको विशेष प्रिय रही है। पद्मनाभने यशोधरचरितकी रचना कर इस श्रृंखलामें एक और कमी जोड़ी है। पद्मनाभको जैनधर्मसे अत्यधिक स्नेह था और इस धर्म के सिद्धान्तोंके प्रति अपूर्व आस्था थी।
पद्मनाभ का संस्कृत भाषापर अपूर्व अधिकार था। उन्होंने भट्टारक गुण कीत्तिके सान्निध्यमें रहकर जैनधर्मके आचार-विचारों और सिद्धान्तोंका अध्ययन किया था । गुणकोत्ति के उपदेशने हो इन्होंने यशोधरचरित या दया सुन्दविधान काव्यग्रन्थ राजा वीरमदेवके राज्यकालमें लिखा है। जब कवि का काब्य पूर्ण हो गया, तो सन्तोषनामके जयसवालने उसको बहुत प्रशंसा की और विजयसिंह जयसवालके पुत्र पृथ्वीराजने उक्त ग्रन्थको अनुमोदना की।
कुशराज जयसवालकूल के भूषण थे और ये वीरमदेव के मंत्री थे। इन्हींको प्रेरणासे यशोधरचरित लिखा गया । कुशराज राज्यकार्यमें बड़े ही निपुण थे। इक पिताका नाम जैनपाल और माताका नाम लोणादेवी था। पितामहका नाम लपण और पितामहीका नाम उदितादेवी था। आपके पांच और भाई थे, जिनमें चार बड़े और एक सबसे छोटा था | हंसराज, सैराज, रैराज, भव राज और क्षेमराज । क्षेमराज सबसे बड़ा और भवराज सबसे छोटा था । कुशराज राजनीतिज्ञ होने के साथ धभत्मिा भी था। इसने ग्वालियरमें चन्द्र प्रभजिनका एक विशाल जिनमंदिर बनवाया था और उसकी प्रतिष्ठा करवायी थी।
कुशराजको तीन पलियां थीं-रल्हो, लक्षणो और कोशोरा। रल्हो गृहकार्यमें कुशल और दानशीला थी। वह नित्य जिनपूजा किया करती थी। इससे कल्याणसिंह नामका पुत्र उत्पन्न हुआ था, जो बड़ा ही रूपवान, दानी और श्रद्धालू था । शेष दोनों पत्नियाँ भी-धर्मात्मा और सुशीला थीं। कुशराज ने श्रुतभक्तिवश यशोधरचरितकी रचना कराई।
पद्मनाभ मेधावी कवि होने के साथ समाजसेवी विद्वान् थे । जन भट्टारकों और थावकोंके सम्पर्क से उनका चरित्र अत्यन्त उज्जवल और श्रावकोचित था। अन्धप्रशस्तिसे पद्मनाभके सम्बन्धमें विशेष जानकारी प्राप्त नहीं होती है, पद्म नाभने अपने प्रेरक कुशराजके वंशका विस्तृत परिचय दिया है।
पद्मनाभ ने अपना यह काव्यग्रन्थ वीरमदेवके राज्यकालमें लिखा है। वीरमदेव बड़ा ही प्रतापी राजा तोमर-वंशका भूषण था । लोकमें उसका निर्मल यश व्याप्त था। दान, मान और विवेकमें उस समय उसकी कोई समता करनेवाला नहीं था। यह विद्वानोंके लिए विशेषरूपसे भानन्दायक था । यह ग्वालियरका शासक था । वीरमदेबके पिता उद्धरणदेव थे, जो राजनीति में दक्ष और सर्वगुणसम्पन्न थे। ई० सन् १४०० या उसके आस-पास हो राज्यसत्ता बीरमदेवके हाथमें आयो । ई० सन् १४०५में मल्लू एकबालखाने ग्वालियरपर आक्रमण किया था। पर उस समय उसे निराश होकर ही लौटना पड़ा। दूसरी बार भी उसने आक्रमण किया; पर वीरमदेवने उससे सन्धि कर ली। आचार्य अमृतचन्द्रको 'तत्त्वदीपिका की लेखकप्रशस्तिसे वीरमदेवका राज्यकाल वि० सं०१४६६ तक वर्तमान रहा । अतएव उनके राज्यकालकी सीमा ई० सन् १४०५-१४१५ ई० तक जान पड़ती है । इसके पश्चात ई० सन् १४२४से पूर्व दीरमदेवकै पुत्र गणपतिदेवने राज्यका संचालन किया है। इन उल्लेखोंसे स्पष्ट है कि पानाभने ई. सन् १४०५-१४२५ ई० के मध्यमें किसी समय 'यशो धरधरित की रचना की है।
राजा यशोधर और रानी चन्द्रमतीका जीवन-परिचय इस काव्यम अंकित है। पौराणिक कथानकको लोकप्रिय बनानेको पूरी चेष्टा की गई है।
कथावस्तु ९ स!में विभक्त है । नवम सर्गमें अभयचि आदिका स्वगंगमन बताया गया है । कविता प्रौढ है । उत्प्रेक्षा, रूपक, अर्थान्तरन्यास, कायलिंगआदि अलंकारों द्वारा काव्यको पूर्णतया लोकप्रिय बनाया गया है।
राजा यशोधरको कथा जैनकवियोंको विशेष प्रिय रही है। पद्मनाभने यशोधरचरितकी रचना कर इस श्रृंखलामें एक और कमी जोड़ी है। पद्मनाभको जैनधर्मसे अत्यधिक स्नेह था और इस धर्म के सिद्धान्तोंके प्रति अपूर्व आस्था थी।
पद्मनाभ का संस्कृत भाषापर अपूर्व अधिकार था। उन्होंने भट्टारक गुण कीत्तिके सान्निध्यमें रहकर जैनधर्मके आचार-विचारों और सिद्धान्तोंका अध्ययन किया था । गुणकोत्ति के उपदेशने हो इन्होंने यशोधरचरित या दया सुन्दविधान काव्यग्रन्थ राजा वीरमदेवके राज्यकालमें लिखा है। जब कवि का काब्य पूर्ण हो गया, तो सन्तोषनामके जयसवालने उसको बहुत प्रशंसा की और विजयसिंह जयसवालके पुत्र पृथ्वीराजने उक्त ग्रन्थको अनुमोदना की।
कुशराज जयसवालकूल के भूषण थे और ये वीरमदेव के मंत्री थे। इन्हींको प्रेरणासे यशोधरचरित लिखा गया । कुशराज राज्यकार्यमें बड़े ही निपुण थे। इक पिताका नाम जैनपाल और माताका नाम लोणादेवी था। पितामहका नाम लपण और पितामहीका नाम उदितादेवी था। आपके पांच और भाई थे, जिनमें चार बड़े और एक सबसे छोटा था | हंसराज, सैराज, रैराज, भव राज और क्षेमराज । क्षेमराज सबसे बड़ा और भवराज सबसे छोटा था । कुशराज राजनीतिज्ञ होने के साथ धभत्मिा भी था। इसने ग्वालियरमें चन्द्र प्रभजिनका एक विशाल जिनमंदिर बनवाया था और उसकी प्रतिष्ठा करवायी थी।
कुशराजको तीन पलियां थीं-रल्हो, लक्षणो और कोशोरा। रल्हो गृहकार्यमें कुशल और दानशीला थी। वह नित्य जिनपूजा किया करती थी। इससे कल्याणसिंह नामका पुत्र उत्पन्न हुआ था, जो बड़ा ही रूपवान, दानी और श्रद्धालू था । शेष दोनों पत्नियाँ भी-धर्मात्मा और सुशीला थीं। कुशराज ने श्रुतभक्तिवश यशोधरचरितकी रचना कराई।
पद्मनाभ मेधावी कवि होने के साथ समाजसेवी विद्वान् थे । जन भट्टारकों और थावकोंके सम्पर्क से उनका चरित्र अत्यन्त उज्जवल और श्रावकोचित था। अन्धप्रशस्तिसे पद्मनाभके सम्बन्धमें विशेष जानकारी प्राप्त नहीं होती है, पद्म नाभने अपने प्रेरक कुशराजके वंशका विस्तृत परिचय दिया है।
पद्मनाभ ने अपना यह काव्यग्रन्थ वीरमदेवके राज्यकालमें लिखा है। वीरमदेव बड़ा ही प्रतापी राजा तोमर-वंशका भूषण था । लोकमें उसका निर्मल यश व्याप्त था। दान, मान और विवेकमें उस समय उसकी कोई समता करनेवाला नहीं था। यह विद्वानोंके लिए विशेषरूपसे भानन्दायक था । यह ग्वालियरका शासक था । वीरमदेबके पिता उद्धरणदेव थे, जो राजनीति में दक्ष और सर्वगुणसम्पन्न थे। ई० सन् १४०० या उसके आस-पास हो राज्यसत्ता बीरमदेवके हाथमें आयो । ई० सन् १४०५में मल्लू एकबालखाने ग्वालियरपर आक्रमण किया था। पर उस समय उसे निराश होकर ही लौटना पड़ा। दूसरी बार भी उसने आक्रमण किया; पर वीरमदेवने उससे सन्धि कर ली। आचार्य अमृतचन्द्रको 'तत्त्वदीपिका की लेखकप्रशस्तिसे वीरमदेवका राज्यकाल वि० सं०१४६६ तक वर्तमान रहा । अतएव उनके राज्यकालकी सीमा ई० सन् १४०५-१४१५ ई० तक जान पड़ती है । इसके पश्चात ई० सन् १४२४से पूर्व दीरमदेवकै पुत्र गणपतिदेवने राज्यका संचालन किया है। इन उल्लेखोंसे स्पष्ट है कि पानाभने ई. सन् १४०५-१४२५ ई० के मध्यमें किसी समय 'यशो धरधरित की रचना की है।
राजा यशोधर और रानी चन्द्रमतीका जीवन-परिचय इस काव्यम अंकित है। पौराणिक कथानकको लोकप्रिय बनानेको पूरी चेष्टा की गई है।
कथावस्तु ९ स!में विभक्त है । नवम सर्गमें अभयचि आदिका स्वगंगमन बताया गया है । कविता प्रौढ है । उत्प्रेक्षा, रूपक, अर्थान्तरन्यास, कायलिंगआदि अलंकारों द्वारा काव्यको पूर्णतया लोकप्रिय बनाया गया है।
#Padmnabh
आचार्यतुल्य श्री १०८ पद्मनाभ 15वीं शताब्दी (प्राचीन)
संजुल जैन ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 05 अप्रैल 2022
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 03 April 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
राजा यशोधरको कथा जैनकवियोंको विशेष प्रिय रही है। पद्मनाभने यशोधरचरितकी रचना कर इस श्रृंखलामें एक और कमी जोड़ी है। पद्मनाभको जैनधर्मसे अत्यधिक स्नेह था और इस धर्म के सिद्धान्तोंके प्रति अपूर्व आस्था थी।
पद्मनाभ का संस्कृत भाषापर अपूर्व अधिकार था। उन्होंने भट्टारक गुण कीत्तिके सान्निध्यमें रहकर जैनधर्मके आचार-विचारों और सिद्धान्तोंका अध्ययन किया था । गुणकोत्ति के उपदेशने हो इन्होंने यशोधरचरित या दया सुन्दविधान काव्यग्रन्थ राजा वीरमदेवके राज्यकालमें लिखा है। जब कवि का काब्य पूर्ण हो गया, तो सन्तोषनामके जयसवालने उसको बहुत प्रशंसा की और विजयसिंह जयसवालके पुत्र पृथ्वीराजने उक्त ग्रन्थको अनुमोदना की।
कुशराज जयसवालकूल के भूषण थे और ये वीरमदेव के मंत्री थे। इन्हींको प्रेरणासे यशोधरचरित लिखा गया । कुशराज राज्यकार्यमें बड़े ही निपुण थे। इक पिताका नाम जैनपाल और माताका नाम लोणादेवी था। पितामहका नाम लपण और पितामहीका नाम उदितादेवी था। आपके पांच और भाई थे, जिनमें चार बड़े और एक सबसे छोटा था | हंसराज, सैराज, रैराज, भव राज और क्षेमराज । क्षेमराज सबसे बड़ा और भवराज सबसे छोटा था । कुशराज राजनीतिज्ञ होने के साथ धभत्मिा भी था। इसने ग्वालियरमें चन्द्र प्रभजिनका एक विशाल जिनमंदिर बनवाया था और उसकी प्रतिष्ठा करवायी थी।
कुशराजको तीन पलियां थीं-रल्हो, लक्षणो और कोशोरा। रल्हो गृहकार्यमें कुशल और दानशीला थी। वह नित्य जिनपूजा किया करती थी। इससे कल्याणसिंह नामका पुत्र उत्पन्न हुआ था, जो बड़ा ही रूपवान, दानी और श्रद्धालू था । शेष दोनों पत्नियाँ भी-धर्मात्मा और सुशीला थीं। कुशराज ने श्रुतभक्तिवश यशोधरचरितकी रचना कराई।
पद्मनाभ मेधावी कवि होने के साथ समाजसेवी विद्वान् थे । जन भट्टारकों और थावकोंके सम्पर्क से उनका चरित्र अत्यन्त उज्जवल और श्रावकोचित था। अन्धप्रशस्तिसे पद्मनाभके सम्बन्धमें विशेष जानकारी प्राप्त नहीं होती है, पद्म नाभने अपने प्रेरक कुशराजके वंशका विस्तृत परिचय दिया है।
पद्मनाभ ने अपना यह काव्यग्रन्थ वीरमदेवके राज्यकालमें लिखा है। वीरमदेव बड़ा ही प्रतापी राजा तोमर-वंशका भूषण था । लोकमें उसका निर्मल यश व्याप्त था। दान, मान और विवेकमें उस समय उसकी कोई समता करनेवाला नहीं था। यह विद्वानोंके लिए विशेषरूपसे भानन्दायक था । यह ग्वालियरका शासक था । वीरमदेबके पिता उद्धरणदेव थे, जो राजनीति में दक्ष और सर्वगुणसम्पन्न थे। ई० सन् १४०० या उसके आस-पास हो राज्यसत्ता बीरमदेवके हाथमें आयो । ई० सन् १४०५में मल्लू एकबालखाने ग्वालियरपर आक्रमण किया था। पर उस समय उसे निराश होकर ही लौटना पड़ा। दूसरी बार भी उसने आक्रमण किया; पर वीरमदेवने उससे सन्धि कर ली। आचार्य अमृतचन्द्रको 'तत्त्वदीपिका की लेखकप्रशस्तिसे वीरमदेवका राज्यकाल वि० सं०१४६६ तक वर्तमान रहा । अतएव उनके राज्यकालकी सीमा ई० सन् १४०५-१४१५ ई० तक जान पड़ती है । इसके पश्चात ई० सन् १४२४से पूर्व दीरमदेवकै पुत्र गणपतिदेवने राज्यका संचालन किया है। इन उल्लेखोंसे स्पष्ट है कि पानाभने ई. सन् १४०५-१४२५ ई० के मध्यमें किसी समय 'यशो धरधरित की रचना की है।
राजा यशोधर और रानी चन्द्रमतीका जीवन-परिचय इस काव्यम अंकित है। पौराणिक कथानकको लोकप्रिय बनानेको पूरी चेष्टा की गई है।
कथावस्तु ९ स!में विभक्त है । नवम सर्गमें अभयचि आदिका स्वगंगमन बताया गया है । कविता प्रौढ है । उत्प्रेक्षा, रूपक, अर्थान्तरन्यास, कायलिंगआदि अलंकारों द्वारा काव्यको पूर्णतया लोकप्रिय बनाया गया है।
Acharyatulya Padmnabh 15th Century (Prachin)
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 03 April 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
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Padmnabh
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