हैशटैग
#PanditBhagchand
१९वीं शताब्दीके अन्तिम पाद और २०वीं शताब्दीके प्रथम पादके प्रमुख विद्वानों मेंप ण्डित भागचन्दजीकी गणना है । ये संस्कृत और प्राकृत भाषाके साथ हिन्दी भाषाके भी मर्मज्ञ विद्वान थे। ग्वालियरके अन्तर्गत ईसागढ़के निवासी थे । इनको जाति ओसवाल और धर्म दिगम्बर जैन था । दर्शनशास्त्रके विशिष्ट अभ्यासों थे । संस्कृत और हिन्दी दोनों ही भाषाओं में कविता करनेकी अपूर्व क्षमता थी । शास्त्रप्रवचन और तत्वचर्चाम इनको विशेष रस आता था। ये सोनागिरि क्षेत्रपर बाषिक मेलेमें प्रतिवर्ष सम्मिलित होते थे और शास्त्र प्रवचन द्वारा जनताको लाभान्वित करते थे। कविका अन्तिम समय माथिक कठिनाईमें व्यतीत हुआ है। इनकी 'प्रमाणपरीक्षा की टीकाका रचनाकाल सं० १२१३ है। अतः कविका समम २० वीं शताब्दीका प्रारम्भिक भाग है।
कवि द्वारा रचित पदोंसे उनके जीवन और व्यक्तित्वके सम्बन्धमें अनेक जानकारीकी बातें प्राप्त होती हैं। जिनभक्त होने के साथ कवि आत्मसाधक भी हैं, प्रतिदिन सामायिक करना तथा सांसारिक भोगोंको निस्सार समझना और साहित्यसेवा तथा सरस्वती आराधनको जीवनका प्रमुख तत्व मानना कविकी विशेषताओं के अन्तर्गत है । कविको निम्नलिखित रचनाएं उपलब्ध होती हैं
१. महावीराष्टक (संस्कृत)
२. अमितगतिश्नावकाचार व नका
३. उपदेशसिद्धान्तरलमाला वनिका
४. प्रमाणपरीक्षा वनिका
५. नेमिनाथपुराण
६. ज्ञानसूर्योदय नाटक वनिका
७. पद संग्रह
कवि भागचन्दकी प्रतिभाका परिचय उनके पदसाहित्यसे प्राप्त होता है। इनके पदों में तर्कविचार और चिन्तनकी प्रधानता है। निम्नलिखित पदमें दार्शनिक तत्वोंका सुन्दर विश्लेषण हुआ है
जे दिन तुम विवेक बिन खोये ।।टेक॥
मोह वारुणी पी अनादि लें, परसदमें चिर सोये ।
सुख करड चित्तपिद्ध आपपद, गुन अनन्त नहि जोये ।जे दिनः।।
होहि बहिर्मुख हानि राग रुख, कर्मबीज बहु बोये ।
तस फल सुख-दुःख सामग्नी ललि, चितमें हरषे रोये ।।जे दिन ।।
धवल ध्यान शुचि सलिल पूरतें, आसव मल नहिं छोये ।
परद्रव्यानिकी चाह न रोकी, विविध परियह ढोये ॥ जे दिन ॥
अब निज में चिज जान नियत तहाँ, निज परिनामसमोये |
यह शिव-मारग समरस सागर, 'भागचंद' हित तो ये॥ जे दिन ।।
विशुद्ध दार्शनिकके समान कविने तत्त्वार्थ श्रद्धानी और ज्ञानीकी प्रशंसा की है । यद्यपि वर्णनमें कविने रूपक, उत्प्रेक्षा अलंकारोंका आलम्बन लिया है, किन्तु शुष्क सैद्धान्तिकता रहनेसे भाव और इसकी कमी रह गयी है। ज्ञानी जीव किस प्रकार संसारमें निर्भय होकर विचरण करता है तथा उन्हें अपना आचार व्यवहार किस प्रकार रखना चाहिये, इत्यादि विषयका विश्लेषण करनेवाले पदोंमें कविका चिन्तन विद्यमान है, पर भावुकता नहीं है। हाँ प्रार्थनापरक पदोंमें मत-अमर्सको आलम्बन लकर कविने अपने अन्तर्जगतकी अभिव्यक्ति अन ढंगसे की है। कविके पदोंमें विराट कल्पना, अगाध दार्शनिकत्ता और सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक विशेषताएं हैं ।
निज कारज काहे न सारे रे भूले प्रानी"; "जीव तु भ्रमत सदैव अकेलासंगसाथी कोई नहीं तेरा", एवं "मोसम कौन कुटिल खल कामी । तुम सम । कलिमल दलन न नामी" पदोंमें कचिने अपनी भावनाओंका निविद्ध रूप प्रदर्शित किया है । इस प्रकार कवि भागबन्द अपने क्षेत्रके प्रसिद्ध कवि हैं।
१९वीं शताब्दीके अन्तिम पाद और २०वीं शताब्दीके प्रथम पादके प्रमुख विद्वानों मेंप ण्डित भागचन्दजीकी गणना है । ये संस्कृत और प्राकृत भाषाके साथ हिन्दी भाषाके भी मर्मज्ञ विद्वान थे। ग्वालियरके अन्तर्गत ईसागढ़के निवासी थे । इनको जाति ओसवाल और धर्म दिगम्बर जैन था । दर्शनशास्त्रके विशिष्ट अभ्यासों थे । संस्कृत और हिन्दी दोनों ही भाषाओं में कविता करनेकी अपूर्व क्षमता थी । शास्त्रप्रवचन और तत्वचर्चाम इनको विशेष रस आता था। ये सोनागिरि क्षेत्रपर बाषिक मेलेमें प्रतिवर्ष सम्मिलित होते थे और शास्त्र प्रवचन द्वारा जनताको लाभान्वित करते थे। कविका अन्तिम समय माथिक कठिनाईमें व्यतीत हुआ है। इनकी 'प्रमाणपरीक्षा की टीकाका रचनाकाल सं० १२१३ है। अतः कविका समम २० वीं शताब्दीका प्रारम्भिक भाग है।
कवि द्वारा रचित पदोंसे उनके जीवन और व्यक्तित्वके सम्बन्धमें अनेक जानकारीकी बातें प्राप्त होती हैं। जिनभक्त होने के साथ कवि आत्मसाधक भी हैं, प्रतिदिन सामायिक करना तथा सांसारिक भोगोंको निस्सार समझना और साहित्यसेवा तथा सरस्वती आराधनको जीवनका प्रमुख तत्व मानना कविकी विशेषताओं के अन्तर्गत है । कविको निम्नलिखित रचनाएं उपलब्ध होती हैं
१. महावीराष्टक (संस्कृत)
२. अमितगतिश्नावकाचार व नका
३. उपदेशसिद्धान्तरलमाला वनिका
४. प्रमाणपरीक्षा वनिका
५. नेमिनाथपुराण
६. ज्ञानसूर्योदय नाटक वनिका
७. पद संग्रह
कवि भागचन्दकी प्रतिभाका परिचय उनके पदसाहित्यसे प्राप्त होता है। इनके पदों में तर्कविचार और चिन्तनकी प्रधानता है। निम्नलिखित पदमें दार्शनिक तत्वोंका सुन्दर विश्लेषण हुआ है
जे दिन तुम विवेक बिन खोये ।।टेक॥
मोह वारुणी पी अनादि लें, परसदमें चिर सोये ।
सुख करड चित्तपिद्ध आपपद, गुन अनन्त नहि जोये ।जे दिनः।।
होहि बहिर्मुख हानि राग रुख, कर्मबीज बहु बोये ।
तस फल सुख-दुःख सामग्नी ललि, चितमें हरषे रोये ।।जे दिन ।।
धवल ध्यान शुचि सलिल पूरतें, आसव मल नहिं छोये ।
परद्रव्यानिकी चाह न रोकी, विविध परियह ढोये ॥ जे दिन ॥
अब निज में चिज जान नियत तहाँ, निज परिनामसमोये |
यह शिव-मारग समरस सागर, 'भागचंद' हित तो ये॥ जे दिन ।।
विशुद्ध दार्शनिकके समान कविने तत्त्वार्थ श्रद्धानी और ज्ञानीकी प्रशंसा की है । यद्यपि वर्णनमें कविने रूपक, उत्प्रेक्षा अलंकारोंका आलम्बन लिया है, किन्तु शुष्क सैद्धान्तिकता रहनेसे भाव और इसकी कमी रह गयी है। ज्ञानी जीव किस प्रकार संसारमें निर्भय होकर विचरण करता है तथा उन्हें अपना आचार व्यवहार किस प्रकार रखना चाहिये, इत्यादि विषयका विश्लेषण करनेवाले पदोंमें कविका चिन्तन विद्यमान है, पर भावुकता नहीं है। हाँ प्रार्थनापरक पदोंमें मत-अमर्सको आलम्बन लकर कविने अपने अन्तर्जगतकी अभिव्यक्ति अन ढंगसे की है। कविके पदोंमें विराट कल्पना, अगाध दार्शनिकत्ता और सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक विशेषताएं हैं ।
निज कारज काहे न सारे रे भूले प्रानी"; "जीव तु भ्रमत सदैव अकेलासंगसाथी कोई नहीं तेरा", एवं "मोसम कौन कुटिल खल कामी । तुम सम । कलिमल दलन न नामी" पदोंमें कचिने अपनी भावनाओंका निविद्ध रूप प्रदर्शित किया है । इस प्रकार कवि भागबन्द अपने क्षेत्रके प्रसिद्ध कवि हैं।
#PanditBhagchand
आचार्यतुल्य पंडित भागचंद 20वीं शताब्दी (प्राचीन)
संजुल जैन ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 1 जून 2022
दिगजैनविकी आभारी है
बालिकाई शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
नेमिनाथ जी शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
परियोजना के लिए पुस्तकों को संदर्भित करने के लिए।
लेखक:- पंडित श्री नेमीचंद्र शास्त्री-ज्योतिषाचार्य
आचार्य शांति सागर छानी ग्रंथ माला
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 1 June 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
१९वीं शताब्दीके अन्तिम पाद और २०वीं शताब्दीके प्रथम पादके प्रमुख विद्वानों मेंप ण्डित भागचन्दजीकी गणना है । ये संस्कृत और प्राकृत भाषाके साथ हिन्दी भाषाके भी मर्मज्ञ विद्वान थे। ग्वालियरके अन्तर्गत ईसागढ़के निवासी थे । इनको जाति ओसवाल और धर्म दिगम्बर जैन था । दर्शनशास्त्रके विशिष्ट अभ्यासों थे । संस्कृत और हिन्दी दोनों ही भाषाओं में कविता करनेकी अपूर्व क्षमता थी । शास्त्रप्रवचन और तत्वचर्चाम इनको विशेष रस आता था। ये सोनागिरि क्षेत्रपर बाषिक मेलेमें प्रतिवर्ष सम्मिलित होते थे और शास्त्र प्रवचन द्वारा जनताको लाभान्वित करते थे। कविका अन्तिम समय माथिक कठिनाईमें व्यतीत हुआ है। इनकी 'प्रमाणपरीक्षा की टीकाका रचनाकाल सं० १२१३ है। अतः कविका समम २० वीं शताब्दीका प्रारम्भिक भाग है।
कवि द्वारा रचित पदोंसे उनके जीवन और व्यक्तित्वके सम्बन्धमें अनेक जानकारीकी बातें प्राप्त होती हैं। जिनभक्त होने के साथ कवि आत्मसाधक भी हैं, प्रतिदिन सामायिक करना तथा सांसारिक भोगोंको निस्सार समझना और साहित्यसेवा तथा सरस्वती आराधनको जीवनका प्रमुख तत्व मानना कविकी विशेषताओं के अन्तर्गत है । कविको निम्नलिखित रचनाएं उपलब्ध होती हैं
१. महावीराष्टक (संस्कृत)
२. अमितगतिश्नावकाचार व नका
३. उपदेशसिद्धान्तरलमाला वनिका
४. प्रमाणपरीक्षा वनिका
५. नेमिनाथपुराण
६. ज्ञानसूर्योदय नाटक वनिका
७. पद संग्रह
कवि भागचन्दकी प्रतिभाका परिचय उनके पदसाहित्यसे प्राप्त होता है। इनके पदों में तर्कविचार और चिन्तनकी प्रधानता है। निम्नलिखित पदमें दार्शनिक तत्वोंका सुन्दर विश्लेषण हुआ है
जे दिन तुम विवेक बिन खोये ।।टेक॥
मोह वारुणी पी अनादि लें, परसदमें चिर सोये ।
सुख करड चित्तपिद्ध आपपद, गुन अनन्त नहि जोये ।जे दिनः।।
होहि बहिर्मुख हानि राग रुख, कर्मबीज बहु बोये ।
तस फल सुख-दुःख सामग्नी ललि, चितमें हरषे रोये ।।जे दिन ।।
धवल ध्यान शुचि सलिल पूरतें, आसव मल नहिं छोये ।
परद्रव्यानिकी चाह न रोकी, विविध परियह ढोये ॥ जे दिन ॥
अब निज में चिज जान नियत तहाँ, निज परिनामसमोये |
यह शिव-मारग समरस सागर, 'भागचंद' हित तो ये॥ जे दिन ।।
विशुद्ध दार्शनिकके समान कविने तत्त्वार्थ श्रद्धानी और ज्ञानीकी प्रशंसा की है । यद्यपि वर्णनमें कविने रूपक, उत्प्रेक्षा अलंकारोंका आलम्बन लिया है, किन्तु शुष्क सैद्धान्तिकता रहनेसे भाव और इसकी कमी रह गयी है। ज्ञानी जीव किस प्रकार संसारमें निर्भय होकर विचरण करता है तथा उन्हें अपना आचार व्यवहार किस प्रकार रखना चाहिये, इत्यादि विषयका विश्लेषण करनेवाले पदोंमें कविका चिन्तन विद्यमान है, पर भावुकता नहीं है। हाँ प्रार्थनापरक पदोंमें मत-अमर्सको आलम्बन लकर कविने अपने अन्तर्जगतकी अभिव्यक्ति अन ढंगसे की है। कविके पदोंमें विराट कल्पना, अगाध दार्शनिकत्ता और सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक विशेषताएं हैं ।
निज कारज काहे न सारे रे भूले प्रानी"; "जीव तु भ्रमत सदैव अकेलासंगसाथी कोई नहीं तेरा", एवं "मोसम कौन कुटिल खल कामी । तुम सम । कलिमल दलन न नामी" पदोंमें कचिने अपनी भावनाओंका निविद्ध रूप प्रदर्शित किया है । इस प्रकार कवि भागबन्द अपने क्षेत्रके प्रसिद्ध कवि हैं।
Acharyatulya Pandit Bhagchand 20th Century (Prachin)
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 1 June 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
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