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#Daulatram2Prachin
कवि दौलतराम द्वितीय लब्धप्रतिष्ठ कवि हैं। ये हाथ रसके निवासी और पल्लीवाल जातिके थे 1 इनका गोत्र गंगटीवाल था, पर प्राय: लोग इन्हें फतेह पूरी कहा करते थे । इनके पिसाका नाम टोडरमल था ! इनका जन्म वि.सं १८५५ या १८५६के मध्य हुआ था ।
कविके पिता दो भाई थे। छोटे भाईका नाम चुन्नीलाल था। हाथरसमें हो दानों भाई कपड़ेका व्यापार करते थे । अलोगढ़ निवासी चिन्तामणि कविके वसुर थे। जिस समय छोटका थान छापने बैठते थे, उस समय चौकीपर गोम्मटसार, त्रिलोकसार और आत्मानुशासन ग्रंथोंको विराजमान कर लेते थे और छापनेके कामके साथ-साथ ७०-८० एलोक या गाथाएं भी कण्ठाप कर लेते थे।
वि० सं० १८८२में मथुरा निवासी सेठ मनीरामजी पं० चम्पालाजोके साथ हाथरस आये और उक्त पण्डितजीको गोम्मटसारका स्वाध्याय करते हुए देखकर बहुत प्रसन्न हुए तथा अपने साथ मथुरा लिवा ले गये। वहां कुछ दिन तक रहने के पश्चात् आप सासनी या लश्करमें आकर रहने लगे ।
कवि के दो पुत्र हुए। बड़े पुत्रका नाम टीकाराम था । इनके वंशज आज कल भी लष्करमें निवास करते हैं।
कहा जाता है कि कविको अपनी मृत्युका परिज्ञान अपने स्वर्गवाससे छ: दिन पहले ही हो गया था। अत: उन्होंने अपने समस्त कुटुम्बियोंको एकत्र कर कहा-"आजसे छठवें दिन मध्याह्नके पश्चात् मैं इस शरीरसे निकलकर अन्य शरीर धारण करूंगा । अत: आप सबसे क्षमायाचना कर समाधिमरण ग्रहण करता हूँ।" सबसे क्षमायाचना कर संवत् १९२३ मार्गशीर्ष कृष्ण अमा वस्याको मध्याह्नमें दिल्ली में अपने प्राणोंका त्याग किया था।
कविवरके समकालीन विद्वानोंमें रत्नकरण्ड श्रावकाचारके वनिकाकर्ता पं० सदासुख, बुधजन विलासके कर्ता बुधजन, तीस-चौबीसी आदि कई ग्रंथोंके रचयिता वृन्दावन, चन्द्रप्रभकान्यकी बनिकाके कर्ता तनसुखदास, प्रसिद्ध भजनरचयिता भागचन्द्र और पं० बख्तावरमल आदि प्रमुख हैं।
इनकी दो रचनाएं उपलब्ध हैं-१. छहढाला और २. पदसंग्रह । छहवालाने तो कविको अमर बना दिया है। भाव, भाषा और अनुभतिको दृष्टिसे रचना बेजोड़ है। जैनागमका सार इसमें अंकित कर 'मागरमें सागर' भर देनेको कहा क्तको चरितार्थ किया है । इस अकेले ग्रंथके अध्ययनसे जैनागमके साथ परिचय
प्राप्त किया जा सकता है।
पदसंग्रहमें विविध प्रवृत्तियों का विश्लेषण किया गया है। कवि कहता है कि मनको बुरी आदत पड़ गयी है, जिससे अनादिकालसे विषयों की ओर दौड़ता रहता है। कवि कहता है---
हेमन, तेरी टेब यह, करन-विषयमें घावै है ।। टेक ।।
इन्हींके वश त अनादि तै, निज स्वरूप न लखाव है।
पराधीन छिन छिन समाकुल, दुरगति-विपति चखाचे है । हे० मन० ।।।
फरस-विषयके कारण वारन, गरत परत दुःख पाये है।
रसना इन्द्रीवश झख जलमें, कंटक कंठ छिदाचे है ।हे. मन
इनके पद विषयको दाहस १. रक्षाकी भावना, २. आत्म भर्त्सना, ३. भयदर्शन, ४. आश्वासन, ५. चेतावनी, ६. प्रमुस्मरणके प्रति आग्रह, ७. आत्मदर्शन होनेपर अस्फुट वचन, ८, सहज समाधिकी आकांक्षा ९ स्वपदकी अकांक्षा, १०. संसार विश्लेषण, ११. परसत्वबोधक और १२. आत्मानन्द श्रेणीमें विभक्त किये जा सकते हैं।
भत्सना विषयक पदोंमें कविने विषय-वासनाके कारण मलिन हुए मनको फटकारा है तथा कवि अपने विकार और कषायोंका वाचा चिट्ठा प्रकट कर अपनी आत्माका परिष्कार नारमा चाहता है । भयदर्शन सम्बन्धी पदोंमें मनको भय दिखलाकर आत्मोन्मुख किया गया है । कवि आत्मानुभूतिकी ओर झुकता हुआ कहता है
मान ले या सिख मोरी, झुकै मत भोगन औरी ।।
भोग भुजंग भोग सम जानो, जिन इनसे रति जोरी।
ते अनन्त भव-भीम भरे दुख, परे अधोगति खोरी,
बँधे दृढ़ पातक होरी ।। मान ले०॥
इस प्रकार कवि दौलतरामके पदों में भावावेश, उन्मुक्त प्रवाह, आन्तरिक संगीत, कल्पनाकी तूलिका द्वारा भावचित्रोंको कमनीयता, आनन्द विह्वलता, रसानुभूतिको गम्भीरता एवं रमणीयताका पूरा समन्वय विद्यमान है ।
कवि दौलतराम द्वितीय लब्धप्रतिष्ठ कवि हैं। ये हाथ रसके निवासी और पल्लीवाल जातिके थे 1 इनका गोत्र गंगटीवाल था, पर प्राय: लोग इन्हें फतेह पूरी कहा करते थे । इनके पिसाका नाम टोडरमल था ! इनका जन्म वि.सं १८५५ या १८५६के मध्य हुआ था ।
कविके पिता दो भाई थे। छोटे भाईका नाम चुन्नीलाल था। हाथरसमें हो दानों भाई कपड़ेका व्यापार करते थे । अलोगढ़ निवासी चिन्तामणि कविके वसुर थे। जिस समय छोटका थान छापने बैठते थे, उस समय चौकीपर गोम्मटसार, त्रिलोकसार और आत्मानुशासन ग्रंथोंको विराजमान कर लेते थे और छापनेके कामके साथ-साथ ७०-८० एलोक या गाथाएं भी कण्ठाप कर लेते थे।
वि० सं० १८८२में मथुरा निवासी सेठ मनीरामजी पं० चम्पालाजोके साथ हाथरस आये और उक्त पण्डितजीको गोम्मटसारका स्वाध्याय करते हुए देखकर बहुत प्रसन्न हुए तथा अपने साथ मथुरा लिवा ले गये। वहां कुछ दिन तक रहने के पश्चात् आप सासनी या लश्करमें आकर रहने लगे ।
कवि के दो पुत्र हुए। बड़े पुत्रका नाम टीकाराम था । इनके वंशज आज कल भी लष्करमें निवास करते हैं।
कहा जाता है कि कविको अपनी मृत्युका परिज्ञान अपने स्वर्गवाससे छ: दिन पहले ही हो गया था। अत: उन्होंने अपने समस्त कुटुम्बियोंको एकत्र कर कहा-"आजसे छठवें दिन मध्याह्नके पश्चात् मैं इस शरीरसे निकलकर अन्य शरीर धारण करूंगा । अत: आप सबसे क्षमायाचना कर समाधिमरण ग्रहण करता हूँ।" सबसे क्षमायाचना कर संवत् १९२३ मार्गशीर्ष कृष्ण अमा वस्याको मध्याह्नमें दिल्ली में अपने प्राणोंका त्याग किया था।
कविवरके समकालीन विद्वानोंमें रत्नकरण्ड श्रावकाचारके वनिकाकर्ता पं० सदासुख, बुधजन विलासके कर्ता बुधजन, तीस-चौबीसी आदि कई ग्रंथोंके रचयिता वृन्दावन, चन्द्रप्रभकान्यकी बनिकाके कर्ता तनसुखदास, प्रसिद्ध भजनरचयिता भागचन्द्र और पं० बख्तावरमल आदि प्रमुख हैं।
इनकी दो रचनाएं उपलब्ध हैं-१. छहढाला और २. पदसंग्रह । छहवालाने तो कविको अमर बना दिया है। भाव, भाषा और अनुभतिको दृष्टिसे रचना बेजोड़ है। जैनागमका सार इसमें अंकित कर 'मागरमें सागर' भर देनेको कहा क्तको चरितार्थ किया है । इस अकेले ग्रंथके अध्ययनसे जैनागमके साथ परिचय
प्राप्त किया जा सकता है।
पदसंग्रहमें विविध प्रवृत्तियों का विश्लेषण किया गया है। कवि कहता है कि मनको बुरी आदत पड़ गयी है, जिससे अनादिकालसे विषयों की ओर दौड़ता रहता है। कवि कहता है---
हेमन, तेरी टेब यह, करन-विषयमें घावै है ।। टेक ।।
इन्हींके वश त अनादि तै, निज स्वरूप न लखाव है।
पराधीन छिन छिन समाकुल, दुरगति-विपति चखाचे है । हे० मन० ।।।
फरस-विषयके कारण वारन, गरत परत दुःख पाये है।
रसना इन्द्रीवश झख जलमें, कंटक कंठ छिदाचे है ।हे. मन
इनके पद विषयको दाहस १. रक्षाकी भावना, २. आत्म भर्त्सना, ३. भयदर्शन, ४. आश्वासन, ५. चेतावनी, ६. प्रमुस्मरणके प्रति आग्रह, ७. आत्मदर्शन होनेपर अस्फुट वचन, ८, सहज समाधिकी आकांक्षा ९ स्वपदकी अकांक्षा, १०. संसार विश्लेषण, ११. परसत्वबोधक और १२. आत्मानन्द श्रेणीमें विभक्त किये जा सकते हैं।
भत्सना विषयक पदोंमें कविने विषय-वासनाके कारण मलिन हुए मनको फटकारा है तथा कवि अपने विकार और कषायोंका वाचा चिट्ठा प्रकट कर अपनी आत्माका परिष्कार नारमा चाहता है । भयदर्शन सम्बन्धी पदोंमें मनको भय दिखलाकर आत्मोन्मुख किया गया है । कवि आत्मानुभूतिकी ओर झुकता हुआ कहता है
मान ले या सिख मोरी, झुकै मत भोगन औरी ।।
भोग भुजंग भोग सम जानो, जिन इनसे रति जोरी।
ते अनन्त भव-भीम भरे दुख, परे अधोगति खोरी,
बँधे दृढ़ पातक होरी ।। मान ले०॥
इस प्रकार कवि दौलतरामके पदों में भावावेश, उन्मुक्त प्रवाह, आन्तरिक संगीत, कल्पनाकी तूलिका द्वारा भावचित्रोंको कमनीयता, आनन्द विह्वलता, रसानुभूतिको गम्भीरता एवं रमणीयताका पूरा समन्वय विद्यमान है ।
#Daulatram2Prachin
आचार्यतुल्य पंडित दौलतराम (द्वितीय) 19वीं शताब्दी
संजुल जैन ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 30 मई 2022
दिगजैनविकी आभारी है
बालिकाई शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
नेमिनाथ जी शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
परियोजना के लिए पुस्तकों को संदर्भित करने के लिए।
लेखक:- पंडित श्री नेमीचंद्र शास्त्री-ज्योतिषाचार्य
आचार्य शांति सागर छानी ग्रंथ माला
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 30 May 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
कवि दौलतराम द्वितीय लब्धप्रतिष्ठ कवि हैं। ये हाथ रसके निवासी और पल्लीवाल जातिके थे 1 इनका गोत्र गंगटीवाल था, पर प्राय: लोग इन्हें फतेह पूरी कहा करते थे । इनके पिसाका नाम टोडरमल था ! इनका जन्म वि.सं १८५५ या १८५६के मध्य हुआ था ।
कविके पिता दो भाई थे। छोटे भाईका नाम चुन्नीलाल था। हाथरसमें हो दानों भाई कपड़ेका व्यापार करते थे । अलोगढ़ निवासी चिन्तामणि कविके वसुर थे। जिस समय छोटका थान छापने बैठते थे, उस समय चौकीपर गोम्मटसार, त्रिलोकसार और आत्मानुशासन ग्रंथोंको विराजमान कर लेते थे और छापनेके कामके साथ-साथ ७०-८० एलोक या गाथाएं भी कण्ठाप कर लेते थे।
वि० सं० १८८२में मथुरा निवासी सेठ मनीरामजी पं० चम्पालाजोके साथ हाथरस आये और उक्त पण्डितजीको गोम्मटसारका स्वाध्याय करते हुए देखकर बहुत प्रसन्न हुए तथा अपने साथ मथुरा लिवा ले गये। वहां कुछ दिन तक रहने के पश्चात् आप सासनी या लश्करमें आकर रहने लगे ।
कवि के दो पुत्र हुए। बड़े पुत्रका नाम टीकाराम था । इनके वंशज आज कल भी लष्करमें निवास करते हैं।
कहा जाता है कि कविको अपनी मृत्युका परिज्ञान अपने स्वर्गवाससे छ: दिन पहले ही हो गया था। अत: उन्होंने अपने समस्त कुटुम्बियोंको एकत्र कर कहा-"आजसे छठवें दिन मध्याह्नके पश्चात् मैं इस शरीरसे निकलकर अन्य शरीर धारण करूंगा । अत: आप सबसे क्षमायाचना कर समाधिमरण ग्रहण करता हूँ।" सबसे क्षमायाचना कर संवत् १९२३ मार्गशीर्ष कृष्ण अमा वस्याको मध्याह्नमें दिल्ली में अपने प्राणोंका त्याग किया था।
कविवरके समकालीन विद्वानोंमें रत्नकरण्ड श्रावकाचारके वनिकाकर्ता पं० सदासुख, बुधजन विलासके कर्ता बुधजन, तीस-चौबीसी आदि कई ग्रंथोंके रचयिता वृन्दावन, चन्द्रप्रभकान्यकी बनिकाके कर्ता तनसुखदास, प्रसिद्ध भजनरचयिता भागचन्द्र और पं० बख्तावरमल आदि प्रमुख हैं।
इनकी दो रचनाएं उपलब्ध हैं-१. छहढाला और २. पदसंग्रह । छहवालाने तो कविको अमर बना दिया है। भाव, भाषा और अनुभतिको दृष्टिसे रचना बेजोड़ है। जैनागमका सार इसमें अंकित कर 'मागरमें सागर' भर देनेको कहा क्तको चरितार्थ किया है । इस अकेले ग्रंथके अध्ययनसे जैनागमके साथ परिचय
प्राप्त किया जा सकता है।
पदसंग्रहमें विविध प्रवृत्तियों का विश्लेषण किया गया है। कवि कहता है कि मनको बुरी आदत पड़ गयी है, जिससे अनादिकालसे विषयों की ओर दौड़ता रहता है। कवि कहता है---
हेमन, तेरी टेब यह, करन-विषयमें घावै है ।। टेक ।।
इन्हींके वश त अनादि तै, निज स्वरूप न लखाव है।
पराधीन छिन छिन समाकुल, दुरगति-विपति चखाचे है । हे० मन० ।।।
फरस-विषयके कारण वारन, गरत परत दुःख पाये है।
रसना इन्द्रीवश झख जलमें, कंटक कंठ छिदाचे है ।हे. मन
इनके पद विषयको दाहस १. रक्षाकी भावना, २. आत्म भर्त्सना, ३. भयदर्शन, ४. आश्वासन, ५. चेतावनी, ६. प्रमुस्मरणके प्रति आग्रह, ७. आत्मदर्शन होनेपर अस्फुट वचन, ८, सहज समाधिकी आकांक्षा ९ स्वपदकी अकांक्षा, १०. संसार विश्लेषण, ११. परसत्वबोधक और १२. आत्मानन्द श्रेणीमें विभक्त किये जा सकते हैं।
भत्सना विषयक पदोंमें कविने विषय-वासनाके कारण मलिन हुए मनको फटकारा है तथा कवि अपने विकार और कषायोंका वाचा चिट्ठा प्रकट कर अपनी आत्माका परिष्कार नारमा चाहता है । भयदर्शन सम्बन्धी पदोंमें मनको भय दिखलाकर आत्मोन्मुख किया गया है । कवि आत्मानुभूतिकी ओर झुकता हुआ कहता है
मान ले या सिख मोरी, झुकै मत भोगन औरी ।।
भोग भुजंग भोग सम जानो, जिन इनसे रति जोरी।
ते अनन्त भव-भीम भरे दुख, परे अधोगति खोरी,
बँधे दृढ़ पातक होरी ।। मान ले०॥
इस प्रकार कवि दौलतरामके पदों में भावावेश, उन्मुक्त प्रवाह, आन्तरिक संगीत, कल्पनाकी तूलिका द्वारा भावचित्रोंको कमनीयता, आनन्द विह्वलता, रसानुभूतिको गम्भीरता एवं रमणीयताका पूरा समन्वय विद्यमान है ।
Acharyatulya Pandit Daulatram (2nd) 19th Century (Prachin)
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 30 May 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
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