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#Jindas
पं० जिनदास आयुर्वेदके निष्णात पंडित थे। इनके पूर्वज हरिपतिको पद्यावतीदेवीका बर प्राप्त था। ये पेरीजशाह द्वारा सम्मानित थे। इन्हीके बंशमें पद्मनामक श्रेष्ठि हुए, जिन्होंने याचकोंको बहुत-सा दान दिया । पदम अत्यन्त प्रभावशाली थे। अनेक सेठ, सामन्त और राजा इनका सम्मान करते थे। पद्मका पुत्र वैद्यराज बिझ था। बिझने शाह नसोरसे उत्कर्ष प्राप्त किया था। इनके दूसरे पुत्रका नाम सुहुजन था, जो वियेकी और बादिरूपी मृगराजोंके लिये सिंहके समान था। यह भट्टारक जिनचन्द्र के पदपर प्रतिष्ठित हुआ और इसका नाम प्रभाचन्द्र रखा गया। इसने राजाओं जैसो विभूतिका परित्याग किया था । उक्त बिझका पुत्र धर्मदास हुआ, जिसे महमूहशाहने बहुमान्यता प्रदान की थी। यह वैद्यशिरोर्माण और यशस्वी था । इनकी धर्मपत्नीका नाम धर्मश्री था, जो अद्वितीय दानी सष्टिरूपसे मन्मपविजयी और हंसमुख यो । इसका रेखा नामक पुत्र आयुर्वेदशास्त्रमें प्रवीण वैद्योंका स्वामी और लोक प्रसिद्ध था । रेखा चिकित्सक होनेके कारण रणस्तम्भ नामक दुर्ग में बादशाह शेरशाहके द्वारा सम्मानित हुए थे । प्रस्तुत जिनदास रेखाके ही पुत्र थे। इनकी माताका नाम रेखत्री और धर्मपत्नीका नाम जिनदासी था, जो रूप लावण्यादि गुणोंसे अलंकृत थी। पं० जिनदास रणस्तंभ दुर्गके समीपस्थ नव लक्षपुरके निवासी थे।
जिनदास की एक 'होली रेणकाचरित' रचना उपलब्ध है। इस रचनाके अन्तमें कविने इसका लेखन-काल दिया है । अतः जिनदासके समयमें किसी भी प्रकारका विवाद नहीं है । प्रशस्तिमें लिखा है
वसुखकायशीताशुमिते (१६०८) संवत्सरे तथा ।
ज्येष्टमासे सिते पक्षे दशम्यां शुक्रवासरे ॥६१।
अकारि ग्रंथः पूर्णोन नाम्ना प्रबोधकः ।
श्रेयसे बहुपुण्याय मिथ्यात्वापोहहेतवे ।।६।।
अर्थात् वि० सं० १६०८ ज्येष्ठ शुक्ला दशमी शुक्रवारके दिन यह ग्रन्थ पूर्ण हया है। पं० जिनदासने यह ग्रन्थ भट्टारक धर्मचन्दके शिष्य भट्टारक ललित कोत्तिके नामसे अंकित किया है। पुष्पिकावाक्यमें लिखा है
'इति श्रीपंडितजिनदासविरचिते मुनिश्रीललितकीत्तिनामाश्तेि होली रेणुकापवंचरिते दर्शनप्रबोधनाम्नि धूलिपर्व-समयधर्म-प्रशस्तिवर्णनो नाम सप्तमोऽध्यायः।
पंडित जिनदासकी एक ही रचना प्राप्त है-'होलिकारेणचरित'। इस रचनामें पञ्चनमस्कारमंत्रका महात्म्य प्रतिपादित है। रचना सात अध्यायों में विभक्त है । इलोकसंख्या ८४३ है। कविने शेरपुरके शान्तिनाथचैत्यालयमें ५१ पद्यावाली होलीरेणकाचरितकी प्रतिका अवलोकनकर ८४३ पद्यों में इसे समाप्त किया है। काव्यत्त्वकी दृष्टिसे यह रचना सामान्य है।
पं० जिनदास आयुर्वेदके निष्णात पंडित थे। इनके पूर्वज हरिपतिको पद्यावतीदेवीका बर प्राप्त था। ये पेरीजशाह द्वारा सम्मानित थे। इन्हीके बंशमें पद्मनामक श्रेष्ठि हुए, जिन्होंने याचकोंको बहुत-सा दान दिया । पदम अत्यन्त प्रभावशाली थे। अनेक सेठ, सामन्त और राजा इनका सम्मान करते थे। पद्मका पुत्र वैद्यराज बिझ था। बिझने शाह नसोरसे उत्कर्ष प्राप्त किया था। इनके दूसरे पुत्रका नाम सुहुजन था, जो वियेकी और बादिरूपी मृगराजोंके लिये सिंहके समान था। यह भट्टारक जिनचन्द्र के पदपर प्रतिष्ठित हुआ और इसका नाम प्रभाचन्द्र रखा गया। इसने राजाओं जैसो विभूतिका परित्याग किया था । उक्त बिझका पुत्र धर्मदास हुआ, जिसे महमूहशाहने बहुमान्यता प्रदान की थी। यह वैद्यशिरोर्माण और यशस्वी था । इनकी धर्मपत्नीका नाम धर्मश्री था, जो अद्वितीय दानी सष्टिरूपसे मन्मपविजयी और हंसमुख यो । इसका रेखा नामक पुत्र आयुर्वेदशास्त्रमें प्रवीण वैद्योंका स्वामी और लोक प्रसिद्ध था । रेखा चिकित्सक होनेके कारण रणस्तम्भ नामक दुर्ग में बादशाह शेरशाहके द्वारा सम्मानित हुए थे । प्रस्तुत जिनदास रेखाके ही पुत्र थे। इनकी माताका नाम रेखत्री और धर्मपत्नीका नाम जिनदासी था, जो रूप लावण्यादि गुणोंसे अलंकृत थी। पं० जिनदास रणस्तंभ दुर्गके समीपस्थ नव लक्षपुरके निवासी थे।
जिनदास की एक 'होली रेणकाचरित' रचना उपलब्ध है। इस रचनाके अन्तमें कविने इसका लेखन-काल दिया है । अतः जिनदासके समयमें किसी भी प्रकारका विवाद नहीं है । प्रशस्तिमें लिखा है
वसुखकायशीताशुमिते (१६०८) संवत्सरे तथा ।
ज्येष्टमासे सिते पक्षे दशम्यां शुक्रवासरे ॥६१।
अकारि ग्रंथः पूर्णोन नाम्ना प्रबोधकः ।
श्रेयसे बहुपुण्याय मिथ्यात्वापोहहेतवे ।।६।।
अर्थात् वि० सं० १६०८ ज्येष्ठ शुक्ला दशमी शुक्रवारके दिन यह ग्रन्थ पूर्ण हया है। पं० जिनदासने यह ग्रन्थ भट्टारक धर्मचन्दके शिष्य भट्टारक ललित कोत्तिके नामसे अंकित किया है। पुष्पिकावाक्यमें लिखा है
'इति श्रीपंडितजिनदासविरचिते मुनिश्रीललितकीत्तिनामाश्तेि होली रेणुकापवंचरिते दर्शनप्रबोधनाम्नि धूलिपर्व-समयधर्म-प्रशस्तिवर्णनो नाम सप्तमोऽध्यायः।
पंडित जिनदासकी एक ही रचना प्राप्त है-'होलिकारेणचरित'। इस रचनामें पञ्चनमस्कारमंत्रका महात्म्य प्रतिपादित है। रचना सात अध्यायों में विभक्त है । इलोकसंख्या ८४३ है। कविने शेरपुरके शान्तिनाथचैत्यालयमें ५१ पद्यावाली होलीरेणकाचरितकी प्रतिका अवलोकनकर ८४३ पद्यों में इसे समाप्त किया है। काव्यत्त्वकी दृष्टिसे यह रचना सामान्य है।
#Jindas
आचार्यतुल्य पंडित जिनदास (प्राचीन)
संजुल जैन ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 11 अप्रैल 2022
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 11 April 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
पं० जिनदास आयुर्वेदके निष्णात पंडित थे। इनके पूर्वज हरिपतिको पद्यावतीदेवीका बर प्राप्त था। ये पेरीजशाह द्वारा सम्मानित थे। इन्हीके बंशमें पद्मनामक श्रेष्ठि हुए, जिन्होंने याचकोंको बहुत-सा दान दिया । पदम अत्यन्त प्रभावशाली थे। अनेक सेठ, सामन्त और राजा इनका सम्मान करते थे। पद्मका पुत्र वैद्यराज बिझ था। बिझने शाह नसोरसे उत्कर्ष प्राप्त किया था। इनके दूसरे पुत्रका नाम सुहुजन था, जो वियेकी और बादिरूपी मृगराजोंके लिये सिंहके समान था। यह भट्टारक जिनचन्द्र के पदपर प्रतिष्ठित हुआ और इसका नाम प्रभाचन्द्र रखा गया। इसने राजाओं जैसो विभूतिका परित्याग किया था । उक्त बिझका पुत्र धर्मदास हुआ, जिसे महमूहशाहने बहुमान्यता प्रदान की थी। यह वैद्यशिरोर्माण और यशस्वी था । इनकी धर्मपत्नीका नाम धर्मश्री था, जो अद्वितीय दानी सष्टिरूपसे मन्मपविजयी और हंसमुख यो । इसका रेखा नामक पुत्र आयुर्वेदशास्त्रमें प्रवीण वैद्योंका स्वामी और लोक प्रसिद्ध था । रेखा चिकित्सक होनेके कारण रणस्तम्भ नामक दुर्ग में बादशाह शेरशाहके द्वारा सम्मानित हुए थे । प्रस्तुत जिनदास रेखाके ही पुत्र थे। इनकी माताका नाम रेखत्री और धर्मपत्नीका नाम जिनदासी था, जो रूप लावण्यादि गुणोंसे अलंकृत थी। पं० जिनदास रणस्तंभ दुर्गके समीपस्थ नव लक्षपुरके निवासी थे।
जिनदास की एक 'होली रेणकाचरित' रचना उपलब्ध है। इस रचनाके अन्तमें कविने इसका लेखन-काल दिया है । अतः जिनदासके समयमें किसी भी प्रकारका विवाद नहीं है । प्रशस्तिमें लिखा है
वसुखकायशीताशुमिते (१६०८) संवत्सरे तथा ।
ज्येष्टमासे सिते पक्षे दशम्यां शुक्रवासरे ॥६१।
अकारि ग्रंथः पूर्णोन नाम्ना प्रबोधकः ।
श्रेयसे बहुपुण्याय मिथ्यात्वापोहहेतवे ।।६।।
अर्थात् वि० सं० १६०८ ज्येष्ठ शुक्ला दशमी शुक्रवारके दिन यह ग्रन्थ पूर्ण हया है। पं० जिनदासने यह ग्रन्थ भट्टारक धर्मचन्दके शिष्य भट्टारक ललित कोत्तिके नामसे अंकित किया है। पुष्पिकावाक्यमें लिखा है
'इति श्रीपंडितजिनदासविरचिते मुनिश्रीललितकीत्तिनामाश्तेि होली रेणुकापवंचरिते दर्शनप्रबोधनाम्नि धूलिपर्व-समयधर्म-प्रशस्तिवर्णनो नाम सप्तमोऽध्यायः।
पंडित जिनदासकी एक ही रचना प्राप्त है-'होलिकारेणचरित'। इस रचनामें पञ्चनमस्कारमंत्रका महात्म्य प्रतिपादित है। रचना सात अध्यायों में विभक्त है । इलोकसंख्या ८४३ है। कविने शेरपुरके शान्तिनाथचैत्यालयमें ५१ पद्यावाली होलीरेणकाचरितकी प्रतिका अवलोकनकर ८४३ पद्यों में इसे समाप्त किया है। काव्यत्त्वकी दृष्टिसे यह रचना सामान्य है।
Acharyatulya Pandit Jindas (Prachin)
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 11 April 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
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