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#SadaasukhKasliwal
वि० सं० १९ वीं शतीके विद्वानों में पण्डित सदासुख काशलीवालका महत्वपूर्ण स्थान है । इनका जन्म वि० सं० १८५२ में जयपुरनगरमें हुआ था। इनके पिताका नाम दुलीचन्द और गोत्र काशलीवाल था । इनका जन्म डेडराजवंशमें हुआ था । अर्थप्रकाशिकाकी वनिकामें अपना परिचय देते हुए लिखा है
डेडराजके वंश माहिं इक किंचित् ज्ञासा ।
दुलीचन्दका पुत्र काशलीवाल विख्याता ।।
नाम सदासुख कहें आत्मसूत्रका बहु इच्छुक ।
सो जिनवाणी प्रसाद विषयते भये निरिच्छुक।
पण्डित सदासुखजी बाई मशीर । ३ सदाचारी, आत्मनिर्भय, अध्यात्मसिक और धामिक लगनके व्यक्ति थे । ये परम संतोषी थे। बाजी विकाके लिए थोड़ा-सा कार्य कर लेने के पश्चात अध्ययन और चिन्तनमें रत रहते थे । इनके गुरु पण्डित पन्नालालजी और प्रगुरु पण्डित जयचन्दजी छाबड़ा थे। इनका ज्ञान भो अनुभबके साथ-साथ द्धिगत होता गया था। बीसपंथी आम्नायके अनुयायी होनेपर भी तेरहपंथी आम्नायके प्रति किसी भी प्रकारका चिद्वेष नहीं था। इनके शिष्यों में पण्डित पम्नालाल संगी, नाथ राम दोषी और पण्डित पारसदास निगोत्या प्रधान है। पारसदासने 'ज्ञानसूर्योदय' नाटककी टोकामें इनका परिचय देते हुए इनके स्वभाव और गुणोंपर प्रकाश डाला है
लौकिक प्रवीना तेरापंथ माहि लीना,
मिथ्याबुद्धि करि छौना जिन आतमगुण चीना है।
पढ़े औ पढ़ावें मिथ्या अलटकढ़,
ज्ञानदान देय जिन मारग बढ़ाई हैं।
दोसैं घरवासी रहें घरहते उदासी,
जिनमारग प्रकाशी जग कोरत जगमासी है।
कहाँ लो कहीजे गुणसागर सुखदास जूके,
ज्ञानामृत पीय बहु मिथ्याबुद्धि नासी है।
पण्डित सदासुखजीके गार्हस्थ्यजीवनके सम्बन्धमें विशेष जानकारी प्राप्त नहीं है, फिर भी इतना तो कहा जा सकता है कि पण्डितजीको एक पुत्र था, जिसका नाम गणेशीलाल था । यह पुत्र भी रिताके अनुरूप होनहार और विद्वान् था, पर दुर्भाग्यवश २० वर्षकी अवस्थामें हो इकलौते पुत्रका वियोग हो जानेसे पण्डिजीपर विपत्तिका पहाड़ टूट पड़ा । संसारी होने के कारण पण्डितजी भी इस आधातसे विचलितसे हो गये। फलतः अजमेर निवासी स्वनामधन्य सेठ मूलचन्द्रजी सोनीने इन्हें जयपुरसे अजमेर बुला लिया । यहाँ आनेपर इनके दुःखका उफान कुछ शान्त हुआ | इनका समाधिमरण वि० सं० १९२३में हुआ ।
1. भगवती आराधना वचनिका
२. सुत्रीको लघुवचनिका
३. अर्थ प्रकाशिकाका स्वतन्त्र ग्रन्थ
४. अकलंकाष्टक वनिका
५. रत्नकरंडश्नावकाचार वनिका
६. मत्युमहोत्सव वचनिका
७. नित्यनियम पूजा
८. समयसार नाटकपर भाषा वचनिका
9. न्यायदीपिका बचनिका
१०, ऋषिमंडलपूजा वनिका
पण्डित सदासुखजीको भाषा इंटागे होनेपर भी, पण्डित टोडरमलजी और पपिडत जपचन्दजीकी अपेक्षा अधिक परिष्कृत और खड़ी बोलीके अधिक निकट है। भगवती आराधनाको प्रशस्तिकी निम्नलित किया है.--
मेरा हित होनेको और, दोसै नाहिं जगतमें ठोर ।
या भगवति शरण जु गही, मरण आराधन पार्क सही ।।
हे भगवति तेरे परसाद, मरणसमै मति होहु विषाद ।
पंच परममुरु पदकरि बोक, संयम सहित लहू परलोक !!
वि० सं० १९ वीं शतीके विद्वानों में पण्डित सदासुख काशलीवालका महत्वपूर्ण स्थान है । इनका जन्म वि० सं० १८५२ में जयपुरनगरमें हुआ था। इनके पिताका नाम दुलीचन्द और गोत्र काशलीवाल था । इनका जन्म डेडराजवंशमें हुआ था । अर्थप्रकाशिकाकी वनिकामें अपना परिचय देते हुए लिखा है
डेडराजके वंश माहिं इक किंचित् ज्ञासा ।
दुलीचन्दका पुत्र काशलीवाल विख्याता ।।
नाम सदासुख कहें आत्मसूत्रका बहु इच्छुक ।
सो जिनवाणी प्रसाद विषयते भये निरिच्छुक।
पण्डित सदासुखजी बाई मशीर । ३ सदाचारी, आत्मनिर्भय, अध्यात्मसिक और धामिक लगनके व्यक्ति थे । ये परम संतोषी थे। बाजी विकाके लिए थोड़ा-सा कार्य कर लेने के पश्चात अध्ययन और चिन्तनमें रत रहते थे । इनके गुरु पण्डित पन्नालालजी और प्रगुरु पण्डित जयचन्दजी छाबड़ा थे। इनका ज्ञान भो अनुभबके साथ-साथ द्धिगत होता गया था। बीसपंथी आम्नायके अनुयायी होनेपर भी तेरहपंथी आम्नायके प्रति किसी भी प्रकारका चिद्वेष नहीं था। इनके शिष्यों में पण्डित पम्नालाल संगी, नाथ राम दोषी और पण्डित पारसदास निगोत्या प्रधान है। पारसदासने 'ज्ञानसूर्योदय' नाटककी टोकामें इनका परिचय देते हुए इनके स्वभाव और गुणोंपर प्रकाश डाला है
लौकिक प्रवीना तेरापंथ माहि लीना,
मिथ्याबुद्धि करि छौना जिन आतमगुण चीना है।
पढ़े औ पढ़ावें मिथ्या अलटकढ़,
ज्ञानदान देय जिन मारग बढ़ाई हैं।
दोसैं घरवासी रहें घरहते उदासी,
जिनमारग प्रकाशी जग कोरत जगमासी है।
कहाँ लो कहीजे गुणसागर सुखदास जूके,
ज्ञानामृत पीय बहु मिथ्याबुद्धि नासी है।
पण्डित सदासुखजीके गार्हस्थ्यजीवनके सम्बन्धमें विशेष जानकारी प्राप्त नहीं है, फिर भी इतना तो कहा जा सकता है कि पण्डितजीको एक पुत्र था, जिसका नाम गणेशीलाल था । यह पुत्र भी रिताके अनुरूप होनहार और विद्वान् था, पर दुर्भाग्यवश २० वर्षकी अवस्थामें हो इकलौते पुत्रका वियोग हो जानेसे पण्डिजीपर विपत्तिका पहाड़ टूट पड़ा । संसारी होने के कारण पण्डितजी भी इस आधातसे विचलितसे हो गये। फलतः अजमेर निवासी स्वनामधन्य सेठ मूलचन्द्रजी सोनीने इन्हें जयपुरसे अजमेर बुला लिया । यहाँ आनेपर इनके दुःखका उफान कुछ शान्त हुआ | इनका समाधिमरण वि० सं० १९२३में हुआ ।
1. भगवती आराधना वचनिका
२. सुत्रीको लघुवचनिका
३. अर्थ प्रकाशिकाका स्वतन्त्र ग्रन्थ
४. अकलंकाष्टक वनिका
५. रत्नकरंडश्नावकाचार वनिका
६. मत्युमहोत्सव वचनिका
७. नित्यनियम पूजा
८. समयसार नाटकपर भाषा वचनिका
9. न्यायदीपिका बचनिका
१०, ऋषिमंडलपूजा वनिका
पण्डित सदासुखजीको भाषा इंटागे होनेपर भी, पण्डित टोडरमलजी और पपिडत जपचन्दजीकी अपेक्षा अधिक परिष्कृत और खड़ी बोलीके अधिक निकट है। भगवती आराधनाको प्रशस्तिकी निम्नलित किया है.--
मेरा हित होनेको और, दोसै नाहिं जगतमें ठोर ।
या भगवति शरण जु गही, मरण आराधन पार्क सही ।।
हे भगवति तेरे परसाद, मरणसमै मति होहु विषाद ।
पंच परममुरु पदकरि बोक, संयम सहित लहू परलोक !!
#SadaasukhKasliwal
आचार्यतुल्य सदासुख कासलीवाल 19वीं शताब्दी (प्राचीन)
संजुल जैन ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 1 जून 2022
दिगजैनविकी आभारी है
बालिकाई शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
नेमिनाथ जी शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
परियोजना के लिए पुस्तकों को संदर्भित करने के लिए।
लेखक:- पंडित श्री नेमीचंद्र शास्त्री-ज्योतिषाचार्य
आचार्य शांति सागर छानी ग्रंथ माला
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 1 June 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
वि० सं० १९ वीं शतीके विद्वानों में पण्डित सदासुख काशलीवालका महत्वपूर्ण स्थान है । इनका जन्म वि० सं० १८५२ में जयपुरनगरमें हुआ था। इनके पिताका नाम दुलीचन्द और गोत्र काशलीवाल था । इनका जन्म डेडराजवंशमें हुआ था । अर्थप्रकाशिकाकी वनिकामें अपना परिचय देते हुए लिखा है
डेडराजके वंश माहिं इक किंचित् ज्ञासा ।
दुलीचन्दका पुत्र काशलीवाल विख्याता ।।
नाम सदासुख कहें आत्मसूत्रका बहु इच्छुक ।
सो जिनवाणी प्रसाद विषयते भये निरिच्छुक।
पण्डित सदासुखजी बाई मशीर । ३ सदाचारी, आत्मनिर्भय, अध्यात्मसिक और धामिक लगनके व्यक्ति थे । ये परम संतोषी थे। बाजी विकाके लिए थोड़ा-सा कार्य कर लेने के पश्चात अध्ययन और चिन्तनमें रत रहते थे । इनके गुरु पण्डित पन्नालालजी और प्रगुरु पण्डित जयचन्दजी छाबड़ा थे। इनका ज्ञान भो अनुभबके साथ-साथ द्धिगत होता गया था। बीसपंथी आम्नायके अनुयायी होनेपर भी तेरहपंथी आम्नायके प्रति किसी भी प्रकारका चिद्वेष नहीं था। इनके शिष्यों में पण्डित पम्नालाल संगी, नाथ राम दोषी और पण्डित पारसदास निगोत्या प्रधान है। पारसदासने 'ज्ञानसूर्योदय' नाटककी टोकामें इनका परिचय देते हुए इनके स्वभाव और गुणोंपर प्रकाश डाला है
लौकिक प्रवीना तेरापंथ माहि लीना,
मिथ्याबुद्धि करि छौना जिन आतमगुण चीना है।
पढ़े औ पढ़ावें मिथ्या अलटकढ़,
ज्ञानदान देय जिन मारग बढ़ाई हैं।
दोसैं घरवासी रहें घरहते उदासी,
जिनमारग प्रकाशी जग कोरत जगमासी है।
कहाँ लो कहीजे गुणसागर सुखदास जूके,
ज्ञानामृत पीय बहु मिथ्याबुद्धि नासी है।
पण्डित सदासुखजीके गार्हस्थ्यजीवनके सम्बन्धमें विशेष जानकारी प्राप्त नहीं है, फिर भी इतना तो कहा जा सकता है कि पण्डितजीको एक पुत्र था, जिसका नाम गणेशीलाल था । यह पुत्र भी रिताके अनुरूप होनहार और विद्वान् था, पर दुर्भाग्यवश २० वर्षकी अवस्थामें हो इकलौते पुत्रका वियोग हो जानेसे पण्डिजीपर विपत्तिका पहाड़ टूट पड़ा । संसारी होने के कारण पण्डितजी भी इस आधातसे विचलितसे हो गये। फलतः अजमेर निवासी स्वनामधन्य सेठ मूलचन्द्रजी सोनीने इन्हें जयपुरसे अजमेर बुला लिया । यहाँ आनेपर इनके दुःखका उफान कुछ शान्त हुआ | इनका समाधिमरण वि० सं० १९२३में हुआ ।
1. भगवती आराधना वचनिका
२. सुत्रीको लघुवचनिका
३. अर्थ प्रकाशिकाका स्वतन्त्र ग्रन्थ
४. अकलंकाष्टक वनिका
५. रत्नकरंडश्नावकाचार वनिका
६. मत्युमहोत्सव वचनिका
७. नित्यनियम पूजा
८. समयसार नाटकपर भाषा वचनिका
9. न्यायदीपिका बचनिका
१०, ऋषिमंडलपूजा वनिका
पण्डित सदासुखजीको भाषा इंटागे होनेपर भी, पण्डित टोडरमलजी और पपिडत जपचन्दजीकी अपेक्षा अधिक परिष्कृत और खड़ी बोलीके अधिक निकट है। भगवती आराधनाको प्रशस्तिकी निम्नलित किया है.--
मेरा हित होनेको और, दोसै नाहिं जगतमें ठोर ।
या भगवति शरण जु गही, मरण आराधन पार्क सही ।।
हे भगवति तेरे परसाद, मरणसमै मति होहु विषाद ।
पंच परममुरु पदकरि बोक, संयम सहित लहू परलोक !!
Acharyatulya Sadaasukh Kasliwal 19th Century (Prachin)
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 1 June 2022
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