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#Dharsen
श्रीधरसेन
श्रीधरसेन कोष-साहित्य के रचयिताके रूपमें प्रसिद्ध हैं। इनका विषवलोचन कोष प्राप्त है। इस कोषका दूसरा नाम मुक्तावली-कोष है । कोषके अन्त में एक प्रशस्ति दी हुई है, जिससे श्रीधरसेनकी गुरुपरम्पराके सम्बन्धमें जानकारी प्राप्त होती है
सेनान्वये सकलसत्वसमापत्तश्रीः
श्रीमानजायस कविमुनिसेननामा ।
आन्वीक्षिकी सकलशास्त्रमयी च विद्या
यस्यास वादपदवी न दवीयसी स्यात् ।। १ ।।
तस्मादभूदखिलवाङ्मयपारदरना
विश्वासपात्रमवनीतलनायकानाम् ।
श्रीश्रीधरः सकलसत्कविगुम्फितत्त्व
पीयूषपानकुत्तनिर्जरभारतीकः ॥२ ।।
तस्यात्तिशायिनि कः पथि जागरूक
धीलोचनस्य गुरुशासनलोचनस्य ।
नानाकवीन्द्ररचितानभिधानकोशा
नाकृष्य लोचनमिवायमदीपि कोशः ॥ ३ ॥
साहित्यकर्मकवितागमजागरूकै
सलोकित: पदविदां च पुरे निवासी।
परमन्प्रधीत्य मिलिप्तः प्रतिभान्विताना
चेदस्ति दुर्जनचचो रहितं तदानीम् ॥ १।।
अर्थात् कोशकी प्रशस्तिके अनुसार इनके गुरुका नाम मुनिसेन था, ये सेन संघके आचार्य थे। इन्हें कवि और नैयायिक कहा गया है। श्रीधरसेन नाना शास्त्रोंके पारगामी और बड़े-बड़े राजाओं द्वारा मान्य थे | सुन्दरगणिने अपने धातुरत्नाकरमें विश्वलोचनकोशके उद्धरण दिये हैं और धातुरत्नाकरका रचनाकाल ई० १६२४ है, अतः श्रीधरसेनका समय ई० १६२४ के पहले अवश्य है। विक्रमोर्वशीय पर रंगनाथने ई०१६५६ में टोका लिखी है । इस टीकामें विश्वलोचनकोशका उल्लेख किया गया है । अत: यह सत्य है कि विश्वलोचन की रचना १६वीं शताब्दीके पूर्व हुई होगी। शैलीकी दृष्टिसे विश्वलोचनकोश पर हैम, विश्वप्रकाश और मेदिनी इन तीनों कोशोंका प्रभाव स्पष्ट लक्षित होता है। विश्वप्रकाशका रचनाकाल ई० ११०५, मेदिनीका समय इसके कुछ वर्ष पश्चात् अर्थात् १वीं शतीका उत्तरार्द्ध और हेमका १२वीं शतीका उत्तराई है । अतः विश्वलोचनकोशका समय १३वीं शतीका उत्तराध या १४वीं का पूर्वार्ध मानना उचित होगा।
गुरु | मुनिसेन |
संघ | सेन |
इस कोशमें २४५३ श्लोक हैं। स्वरवर्ण और ककार आदिके वर्णक्रमसे शब्दोंका संकलन किया गया है । इस कोशकी विशेषताकै संबंधमें इसके संपादक श्रीनन्दलाल शर्माने लिखा है "संस्कृतमें कई नानार्थ कोश हैं, परन्तु जहाँ तक हम जानते हैं, कोई भी इतना बड़ा और इतने अधिक अोंको बतलानेवाला नहीं है। इसमें एक-एक शब्दको लीजिये जहाँ अमरमें इसके चार व मेदिनी में दश अर्थ बतलाये गये हैं, वहाँ इसमें १२ अर्थ बतलाये गये हैं, यही इस कोनको विशेषता है।"
श्रीधरसेन
श्रीधरसेन कोष-साहित्य के रचयिताके रूपमें प्रसिद्ध हैं। इनका विषवलोचन कोष प्राप्त है। इस कोषका दूसरा नाम मुक्तावली-कोष है । कोषके अन्त में एक प्रशस्ति दी हुई है, जिससे श्रीधरसेनकी गुरुपरम्पराके सम्बन्धमें जानकारी प्राप्त होती है
सेनान्वये सकलसत्वसमापत्तश्रीः
श्रीमानजायस कविमुनिसेननामा ।
आन्वीक्षिकी सकलशास्त्रमयी च विद्या
यस्यास वादपदवी न दवीयसी स्यात् ।। १ ।।
तस्मादभूदखिलवाङ्मयपारदरना
विश्वासपात्रमवनीतलनायकानाम् ।
श्रीश्रीधरः सकलसत्कविगुम्फितत्त्व
पीयूषपानकुत्तनिर्जरभारतीकः ॥२ ।।
तस्यात्तिशायिनि कः पथि जागरूक
धीलोचनस्य गुरुशासनलोचनस्य ।
नानाकवीन्द्ररचितानभिधानकोशा
नाकृष्य लोचनमिवायमदीपि कोशः ॥ ३ ॥
साहित्यकर्मकवितागमजागरूकै
सलोकित: पदविदां च पुरे निवासी।
परमन्प्रधीत्य मिलिप्तः प्रतिभान्विताना
चेदस्ति दुर्जनचचो रहितं तदानीम् ॥ १।।
अर्थात् कोशकी प्रशस्तिके अनुसार इनके गुरुका नाम मुनिसेन था, ये सेन संघके आचार्य थे। इन्हें कवि और नैयायिक कहा गया है। श्रीधरसेन नाना शास्त्रोंके पारगामी और बड़े-बड़े राजाओं द्वारा मान्य थे | सुन्दरगणिने अपने धातुरत्नाकरमें विश्वलोचनकोशके उद्धरण दिये हैं और धातुरत्नाकरका रचनाकाल ई० १६२४ है, अतः श्रीधरसेनका समय ई० १६२४ के पहले अवश्य है। विक्रमोर्वशीय पर रंगनाथने ई०१६५६ में टोका लिखी है । इस टीकामें विश्वलोचनकोशका उल्लेख किया गया है । अत: यह सत्य है कि विश्वलोचन की रचना १६वीं शताब्दीके पूर्व हुई होगी। शैलीकी दृष्टिसे विश्वलोचनकोश पर हैम, विश्वप्रकाश और मेदिनी इन तीनों कोशोंका प्रभाव स्पष्ट लक्षित होता है। विश्वप्रकाशका रचनाकाल ई० ११०५, मेदिनीका समय इसके कुछ वर्ष पश्चात् अर्थात् १वीं शतीका उत्तरार्द्ध और हेमका १२वीं शतीका उत्तराई है । अतः विश्वलोचनकोशका समय १३वीं शतीका उत्तराध या १४वीं का पूर्वार्ध मानना उचित होगा।
गुरु | मुनिसेन |
संघ | सेन |
इस कोशमें २४५३ श्लोक हैं। स्वरवर्ण और ककार आदिके वर्णक्रमसे शब्दोंका संकलन किया गया है । इस कोशकी विशेषताकै संबंधमें इसके संपादक श्रीनन्दलाल शर्माने लिखा है "संस्कृतमें कई नानार्थ कोश हैं, परन्तु जहाँ तक हम जानते हैं, कोई भी इतना बड़ा और इतने अधिक अोंको बतलानेवाला नहीं है। इसमें एक-एक शब्दको लीजिये जहाँ अमरमें इसके चार व मेदिनी में दश अर्थ बतलाये गये हैं, वहाँ इसमें १२ अर्थ बतलाये गये हैं, यही इस कोनको विशेषता है।"
#Dharsen
आचार्यतुल्य श्री १०८ श्रीधरसेन 14वीं शताब्दी (प्राचीन)
संजुल जैन ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 05 अप्रैल 2022
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 05 April 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
श्रीधरसेन
श्रीधरसेन कोष-साहित्य के रचयिताके रूपमें प्रसिद्ध हैं। इनका विषवलोचन कोष प्राप्त है। इस कोषका दूसरा नाम मुक्तावली-कोष है । कोषके अन्त में एक प्रशस्ति दी हुई है, जिससे श्रीधरसेनकी गुरुपरम्पराके सम्बन्धमें जानकारी प्राप्त होती है
सेनान्वये सकलसत्वसमापत्तश्रीः
श्रीमानजायस कविमुनिसेननामा ।
आन्वीक्षिकी सकलशास्त्रमयी च विद्या
यस्यास वादपदवी न दवीयसी स्यात् ।। १ ।।
तस्मादभूदखिलवाङ्मयपारदरना
विश्वासपात्रमवनीतलनायकानाम् ।
श्रीश्रीधरः सकलसत्कविगुम्फितत्त्व
पीयूषपानकुत्तनिर्जरभारतीकः ॥२ ।।
तस्यात्तिशायिनि कः पथि जागरूक
धीलोचनस्य गुरुशासनलोचनस्य ।
नानाकवीन्द्ररचितानभिधानकोशा
नाकृष्य लोचनमिवायमदीपि कोशः ॥ ३ ॥
साहित्यकर्मकवितागमजागरूकै
सलोकित: पदविदां च पुरे निवासी।
परमन्प्रधीत्य मिलिप्तः प्रतिभान्विताना
चेदस्ति दुर्जनचचो रहितं तदानीम् ॥ १।।
अर्थात् कोशकी प्रशस्तिके अनुसार इनके गुरुका नाम मुनिसेन था, ये सेन संघके आचार्य थे। इन्हें कवि और नैयायिक कहा गया है। श्रीधरसेन नाना शास्त्रोंके पारगामी और बड़े-बड़े राजाओं द्वारा मान्य थे | सुन्दरगणिने अपने धातुरत्नाकरमें विश्वलोचनकोशके उद्धरण दिये हैं और धातुरत्नाकरका रचनाकाल ई० १६२४ है, अतः श्रीधरसेनका समय ई० १६२४ के पहले अवश्य है। विक्रमोर्वशीय पर रंगनाथने ई०१६५६ में टोका लिखी है । इस टीकामें विश्वलोचनकोशका उल्लेख किया गया है । अत: यह सत्य है कि विश्वलोचन की रचना १६वीं शताब्दीके पूर्व हुई होगी। शैलीकी दृष्टिसे विश्वलोचनकोश पर हैम, विश्वप्रकाश और मेदिनी इन तीनों कोशोंका प्रभाव स्पष्ट लक्षित होता है। विश्वप्रकाशका रचनाकाल ई० ११०५, मेदिनीका समय इसके कुछ वर्ष पश्चात् अर्थात् १वीं शतीका उत्तरार्द्ध और हेमका १२वीं शतीका उत्तराई है । अतः विश्वलोचनकोशका समय १३वीं शतीका उत्तराध या १४वीं का पूर्वार्ध मानना उचित होगा।
गुरु | मुनिसेन |
संघ | सेन |
इस कोशमें २४५३ श्लोक हैं। स्वरवर्ण और ककार आदिके वर्णक्रमसे शब्दोंका संकलन किया गया है । इस कोशकी विशेषताकै संबंधमें इसके संपादक श्रीनन्दलाल शर्माने लिखा है "संस्कृतमें कई नानार्थ कोश हैं, परन्तु जहाँ तक हम जानते हैं, कोई भी इतना बड़ा और इतने अधिक अोंको बतलानेवाला नहीं है। इसमें एक-एक शब्दको लीजिये जहाँ अमरमें इसके चार व मेदिनी में दश अर्थ बतलाये गये हैं, वहाँ इसमें १२ अर्थ बतलाये गये हैं, यही इस कोनको विशेषता है।"
Acharyatulya ShriDharsen 14th Century (Prachin)
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 05 April 2022
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Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
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