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#TejpalPrachin
तेजपाल के तीन काव्य-ग्रन्थ उपलब्ध है। कवि मूलसंघके भट्टारक रत्न कीति, भुवनकीति, धर्मकोत्ति और विशालकीतिको आम्नायका है। वारावपुर नामक गाँवमें बरमावदह वंशमें जाल्हड़ नामके एक माहू थे। उनके पुत्रका नाम सुजल माह था। वे दयानन्त और जिनधर्म में अनुरक्त थे। उनके चार पुत्र थे रणमल, बल्लाल, ईसरु और पोल्हणु । ये चारों ही भाई खण्डेलवालकुरलक भूषण थे। रणमल माहूके पुत्र ताल्हड्य साहू हुए। इनका गुत्र कवि तेजपाल था।
कवि सुन्दर, सुभग और मेधाबी होनेके साथ भक्त भी था। उसने ग्रंथ निर्माणके साथ संस्कृति के उत्थापक प्रतिष्ठा आदि कार्योंमें भी अनुराग प्रदर्शित किया था । कविसे ग्रन्थ-रचनाओंके लिये विभिन्न लोगोंने प्रार्थना की और इसी प्रार्थना के आधारपर कविने रचनाएँ लिखी है।
कविकी रचनाओं में स्थितिकालका उल्लेख है । अतएव समयके सम्बन्धमें विवाद नहीं है। कविने रत्नकौति, भुवनकोत्ति, धर्मकीनि आदि भट्टारकोंका निर्देश किया है, जिससे कविका काल विक्रमकी १६वीं शती सिद्ध होता है | कविने वि० सं० १५०५ वैशाख शुक्ला सप्तमीके दिन 'वरंगचरित्र' को समाप्त दिया है।
'गंभवणाहरिउ' की रचना थोल्हाके अनुरोधमे वि० सं० १५०७ के लग भग सम्पन्न की गई है । 'पासपुराण' को मुनि पमनन्दिको शिष्य शिवनन्दि भतारकके संकेतमे रचा है। कविने इस ग्रंथको वि० सं० १५१५ में कात्तिक करुणा पंचमी के दिन समाप्त किया है। अलाव कविका स्थितिकाल बिनमकी १६वों तो निश्चित है।
कविको 'संभवणाहरिज' के रचने को प्रेरणा भादानक देश श्रीप्रभनगरमें दाऊदशाहने राज्यकालमें श्रौल्हासे प्राप्त हुई है। श्रीप्रभनगरके अग्रवालयंगोय मित्तल गोत्रीय साहू लक्ष्मणदेवके चतुर्थ पुत्रका नाम श्रील्हा था, जिसकी माताका नाम महादेवी और प्रथम धर्मपत्नीका नाम कोल्हाही था । और दूसरी पत्नीका नाम आसाही था, जिससे त्रिभुवनपाल और रणमल नामो पुत्र उत्पन्न हुए | शाहू श्रील्हाके पाँच भाई थे, जिनके नाम खिउसो, होल, दिबसी, मल्लिदास और कुथदास हैं। ये सभी व्यक्ति धर्मनिष्ठ, नीतिवान और न्यायपालक थे । लक्ष्मणदेवके पितामह साहू होने जिननिम्ब-प्रतिष्ठा करायी थी | उन्होंके वंशज थोल्हान अनुरोधसे कवि तेजपालने संभवणाचरिकी रचना की है। इस चरित ग्रंथम ६ सन्धियाँ और १७० काइबक हैं। इसमें तृतीय तीर्थकर संभवनाथवा जीवन गुम्फित है। कथावस्तु पौगणिक है; पर कविने अवसर मिलने पर .. वर्णनोंको अधिक जीवन्त बनाया है। सन्धिवाक्यमें बताया है--
'इस संभवजिणगिर साबणयारविहाणफलाणुरिए कइतेजपालगिणदे मज्जासंदोहर्माण-अणमणिदे मिरिमहामन्त्र-श्रील्हासवणभूमणो राभर्याजणणिचाणगमणो णाम छटो परिच्छेओ समत्तो ।। संधि ६ ॥
कविने नगरवर्णनमें भी पट्टता दिखलाई है | बह देश, नगरका सजीव चित्रण करता है । लिखा है
इह इत्यु दीबि भारहि पसिद्ध, पामेण सिरिपहु सिरि-समिद्ध ।
दुग्गु वि सुरम्मु जण जणिम-राउ, परिहा परियरियउ दोहकाउ ।
गोउर सिर कलसाइय पयंम्, णाणा लच्छिए आलिाग पंगु ।
हि जणणयणाणंदिराई, मुणि-गण-गुण-मंडियमंदिराई ।
सोहति गउरवरकइ-मणहराई, मणि-डियकिनाडई सुंदराई ।
हि वसहि महायण चुय-पमाय, पर-रमणि-परम्मुह मुक्का-माय ।
हि समय कर्चाि घड नई हड्तति, पडिसह दिसि विदिसा मुद्धति ।
जहि पवण-गमण धाषिय नुरंग, णं वारि-रासि भंगुरन्तरंग ।
जो भूसिउ णेत्त-मुहावणेहि, सरयच्च धवल-गोहागणेहि ।
सुरयणा वि समीहहिं जहि मजम्म, मेल्लेंदिणु सग्गालउ सुनम्म् ।
कविकी दूसरी रचना 'बरंग ग्ड' है । इममें चार मन्धियाँ हैं। २वं नीर्थकर यदुवंशी नेमिनाके नासनकालमें उत्पन्न हुए पुण्यपुरुष बरांगका जीवनवृत्त प्रस्तुत किया गया है। कविने इस रचनाको विपुलकीतिन प्रसादसे सम्पन्न किया है। पंचपरमेष्ठी, जिनवाणी आदिको नमस्कार करनेके पश्चात् ग्रन्थको रचना आरंभ की है। प्रथम, द्वितीय और तृतीय कड़बकमें कविने अपना परिचय अंकित किया है । अन्तिम प्रशस्सिमें भी कविका परिचय पाया जाता है।
कविको तीसरी रचना 'पासपुराण' है। यह भी खण्डकाव्य है, जो पद्धडिया छन्दमें लिखा गया है। यह रचना भट्टारक हर्षकोति-भण्डार अजमेरमें सुरक्षित है। कविने यदुवंगी साहू शिवदासके पुत्र भूधलि साहुकी प्रेरणासे रचा है । ये मुनि पद्मनन्दिके मिष्य शिवनन्दि भट्टारकको आम्नायके थे तथा जिनधर्मरत श्रावकधर्मप्रतिपालक, दयावन्त और चतुर्विध संघके संपोपक थे। मुनि पद्मनन्दिने शिवनन्दिको दीक्षा दी थी। दीक्षासे पूर्व इनका नाम सुरजन साद्ध था । सुरजन साहु संसारसे बिरक्स और निरन्सर द्वादश भावनाओक चिन्तनमें संलग्न रहते थे। प्रशस्तिमें साहु सुरजनके परिवारवा भी परिचय आया है ।
इस प्रकार कवि तेजगालने चरितकाव्योंकी रचना द्वारा अपना-माहिल्य की ममद्धि को है।
तेजपाल के तीन काव्य-ग्रन्थ उपलब्ध है। कवि मूलसंघके भट्टारक रत्न कीति, भुवनकीति, धर्मकोत्ति और विशालकीतिको आम्नायका है। वारावपुर नामक गाँवमें बरमावदह वंशमें जाल्हड़ नामके एक माहू थे। उनके पुत्रका नाम सुजल माह था। वे दयानन्त और जिनधर्म में अनुरक्त थे। उनके चार पुत्र थे रणमल, बल्लाल, ईसरु और पोल्हणु । ये चारों ही भाई खण्डेलवालकुरलक भूषण थे। रणमल माहूके पुत्र ताल्हड्य साहू हुए। इनका गुत्र कवि तेजपाल था।
कवि सुन्दर, सुभग और मेधाबी होनेके साथ भक्त भी था। उसने ग्रंथ निर्माणके साथ संस्कृति के उत्थापक प्रतिष्ठा आदि कार्योंमें भी अनुराग प्रदर्शित किया था । कविसे ग्रन्थ-रचनाओंके लिये विभिन्न लोगोंने प्रार्थना की और इसी प्रार्थना के आधारपर कविने रचनाएँ लिखी है।
कविकी रचनाओं में स्थितिकालका उल्लेख है । अतएव समयके सम्बन्धमें विवाद नहीं है। कविने रत्नकौति, भुवनकोत्ति, धर्मकीनि आदि भट्टारकोंका निर्देश किया है, जिससे कविका काल विक्रमकी १६वीं शती सिद्ध होता है | कविने वि० सं० १५०५ वैशाख शुक्ला सप्तमीके दिन 'वरंगचरित्र' को समाप्त दिया है।
'गंभवणाहरिउ' की रचना थोल्हाके अनुरोधमे वि० सं० १५०७ के लग भग सम्पन्न की गई है । 'पासपुराण' को मुनि पमनन्दिको शिष्य शिवनन्दि भतारकके संकेतमे रचा है। कविने इस ग्रंथको वि० सं० १५१५ में कात्तिक करुणा पंचमी के दिन समाप्त किया है। अलाव कविका स्थितिकाल बिनमकी १६वों तो निश्चित है।
कविको 'संभवणाहरिज' के रचने को प्रेरणा भादानक देश श्रीप्रभनगरमें दाऊदशाहने राज्यकालमें श्रौल्हासे प्राप्त हुई है। श्रीप्रभनगरके अग्रवालयंगोय मित्तल गोत्रीय साहू लक्ष्मणदेवके चतुर्थ पुत्रका नाम श्रील्हा था, जिसकी माताका नाम महादेवी और प्रथम धर्मपत्नीका नाम कोल्हाही था । और दूसरी पत्नीका नाम आसाही था, जिससे त्रिभुवनपाल और रणमल नामो पुत्र उत्पन्न हुए | शाहू श्रील्हाके पाँच भाई थे, जिनके नाम खिउसो, होल, दिबसी, मल्लिदास और कुथदास हैं। ये सभी व्यक्ति धर्मनिष्ठ, नीतिवान और न्यायपालक थे । लक्ष्मणदेवके पितामह साहू होने जिननिम्ब-प्रतिष्ठा करायी थी | उन्होंके वंशज थोल्हान अनुरोधसे कवि तेजपालने संभवणाचरिकी रचना की है। इस चरित ग्रंथम ६ सन्धियाँ और १७० काइबक हैं। इसमें तृतीय तीर्थकर संभवनाथवा जीवन गुम्फित है। कथावस्तु पौगणिक है; पर कविने अवसर मिलने पर .. वर्णनोंको अधिक जीवन्त बनाया है। सन्धिवाक्यमें बताया है--
'इस संभवजिणगिर साबणयारविहाणफलाणुरिए कइतेजपालगिणदे मज्जासंदोहर्माण-अणमणिदे मिरिमहामन्त्र-श्रील्हासवणभूमणो राभर्याजणणिचाणगमणो णाम छटो परिच्छेओ समत्तो ।। संधि ६ ॥
कविने नगरवर्णनमें भी पट्टता दिखलाई है | बह देश, नगरका सजीव चित्रण करता है । लिखा है
इह इत्यु दीबि भारहि पसिद्ध, पामेण सिरिपहु सिरि-समिद्ध ।
दुग्गु वि सुरम्मु जण जणिम-राउ, परिहा परियरियउ दोहकाउ ।
गोउर सिर कलसाइय पयंम्, णाणा लच्छिए आलिाग पंगु ।
हि जणणयणाणंदिराई, मुणि-गण-गुण-मंडियमंदिराई ।
सोहति गउरवरकइ-मणहराई, मणि-डियकिनाडई सुंदराई ।
हि वसहि महायण चुय-पमाय, पर-रमणि-परम्मुह मुक्का-माय ।
हि समय कर्चाि घड नई हड्तति, पडिसह दिसि विदिसा मुद्धति ।
जहि पवण-गमण धाषिय नुरंग, णं वारि-रासि भंगुरन्तरंग ।
जो भूसिउ णेत्त-मुहावणेहि, सरयच्च धवल-गोहागणेहि ।
सुरयणा वि समीहहिं जहि मजम्म, मेल्लेंदिणु सग्गालउ सुनम्म् ।
कविकी दूसरी रचना 'बरंग ग्ड' है । इममें चार मन्धियाँ हैं। २वं नीर्थकर यदुवंशी नेमिनाके नासनकालमें उत्पन्न हुए पुण्यपुरुष बरांगका जीवनवृत्त प्रस्तुत किया गया है। कविने इस रचनाको विपुलकीतिन प्रसादसे सम्पन्न किया है। पंचपरमेष्ठी, जिनवाणी आदिको नमस्कार करनेके पश्चात् ग्रन्थको रचना आरंभ की है। प्रथम, द्वितीय और तृतीय कड़बकमें कविने अपना परिचय अंकित किया है । अन्तिम प्रशस्सिमें भी कविका परिचय पाया जाता है।
कविको तीसरी रचना 'पासपुराण' है। यह भी खण्डकाव्य है, जो पद्धडिया छन्दमें लिखा गया है। यह रचना भट्टारक हर्षकोति-भण्डार अजमेरमें सुरक्षित है। कविने यदुवंगी साहू शिवदासके पुत्र भूधलि साहुकी प्रेरणासे रचा है । ये मुनि पद्मनन्दिके मिष्य शिवनन्दि भट्टारकको आम्नायके थे तथा जिनधर्मरत श्रावकधर्मप्रतिपालक, दयावन्त और चतुर्विध संघके संपोपक थे। मुनि पद्मनन्दिने शिवनन्दिको दीक्षा दी थी। दीक्षासे पूर्व इनका नाम सुरजन साद्ध था । सुरजन साहु संसारसे बिरक्स और निरन्सर द्वादश भावनाओक चिन्तनमें संलग्न रहते थे। प्रशस्तिमें साहु सुरजनके परिवारवा भी परिचय आया है ।
इस प्रकार कवि तेजगालने चरितकाव्योंकी रचना द्वारा अपना-माहिल्य की ममद्धि को है।
#TejpalPrachin
आचार्यतुल्य तेजपाल 16वीं शताब्दी (प्राचीन)
संजुल जैन ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 18 मई 2022
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 18 May 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
तेजपाल के तीन काव्य-ग्रन्थ उपलब्ध है। कवि मूलसंघके भट्टारक रत्न कीति, भुवनकीति, धर्मकोत्ति और विशालकीतिको आम्नायका है। वारावपुर नामक गाँवमें बरमावदह वंशमें जाल्हड़ नामके एक माहू थे। उनके पुत्रका नाम सुजल माह था। वे दयानन्त और जिनधर्म में अनुरक्त थे। उनके चार पुत्र थे रणमल, बल्लाल, ईसरु और पोल्हणु । ये चारों ही भाई खण्डेलवालकुरलक भूषण थे। रणमल माहूके पुत्र ताल्हड्य साहू हुए। इनका गुत्र कवि तेजपाल था।
कवि सुन्दर, सुभग और मेधाबी होनेके साथ भक्त भी था। उसने ग्रंथ निर्माणके साथ संस्कृति के उत्थापक प्रतिष्ठा आदि कार्योंमें भी अनुराग प्रदर्शित किया था । कविसे ग्रन्थ-रचनाओंके लिये विभिन्न लोगोंने प्रार्थना की और इसी प्रार्थना के आधारपर कविने रचनाएँ लिखी है।
कविकी रचनाओं में स्थितिकालका उल्लेख है । अतएव समयके सम्बन्धमें विवाद नहीं है। कविने रत्नकौति, भुवनकोत्ति, धर्मकीनि आदि भट्टारकोंका निर्देश किया है, जिससे कविका काल विक्रमकी १६वीं शती सिद्ध होता है | कविने वि० सं० १५०५ वैशाख शुक्ला सप्तमीके दिन 'वरंगचरित्र' को समाप्त दिया है।
'गंभवणाहरिउ' की रचना थोल्हाके अनुरोधमे वि० सं० १५०७ के लग भग सम्पन्न की गई है । 'पासपुराण' को मुनि पमनन्दिको शिष्य शिवनन्दि भतारकके संकेतमे रचा है। कविने इस ग्रंथको वि० सं० १५१५ में कात्तिक करुणा पंचमी के दिन समाप्त किया है। अलाव कविका स्थितिकाल बिनमकी १६वों तो निश्चित है।
कविको 'संभवणाहरिज' के रचने को प्रेरणा भादानक देश श्रीप्रभनगरमें दाऊदशाहने राज्यकालमें श्रौल्हासे प्राप्त हुई है। श्रीप्रभनगरके अग्रवालयंगोय मित्तल गोत्रीय साहू लक्ष्मणदेवके चतुर्थ पुत्रका नाम श्रील्हा था, जिसकी माताका नाम महादेवी और प्रथम धर्मपत्नीका नाम कोल्हाही था । और दूसरी पत्नीका नाम आसाही था, जिससे त्रिभुवनपाल और रणमल नामो पुत्र उत्पन्न हुए | शाहू श्रील्हाके पाँच भाई थे, जिनके नाम खिउसो, होल, दिबसी, मल्लिदास और कुथदास हैं। ये सभी व्यक्ति धर्मनिष्ठ, नीतिवान और न्यायपालक थे । लक्ष्मणदेवके पितामह साहू होने जिननिम्ब-प्रतिष्ठा करायी थी | उन्होंके वंशज थोल्हान अनुरोधसे कवि तेजपालने संभवणाचरिकी रचना की है। इस चरित ग्रंथम ६ सन्धियाँ और १७० काइबक हैं। इसमें तृतीय तीर्थकर संभवनाथवा जीवन गुम्फित है। कथावस्तु पौगणिक है; पर कविने अवसर मिलने पर .. वर्णनोंको अधिक जीवन्त बनाया है। सन्धिवाक्यमें बताया है--
'इस संभवजिणगिर साबणयारविहाणफलाणुरिए कइतेजपालगिणदे मज्जासंदोहर्माण-अणमणिदे मिरिमहामन्त्र-श्रील्हासवणभूमणो राभर्याजणणिचाणगमणो णाम छटो परिच्छेओ समत्तो ।। संधि ६ ॥
कविने नगरवर्णनमें भी पट्टता दिखलाई है | बह देश, नगरका सजीव चित्रण करता है । लिखा है
इह इत्यु दीबि भारहि पसिद्ध, पामेण सिरिपहु सिरि-समिद्ध ।
दुग्गु वि सुरम्मु जण जणिम-राउ, परिहा परियरियउ दोहकाउ ।
गोउर सिर कलसाइय पयंम्, णाणा लच्छिए आलिाग पंगु ।
हि जणणयणाणंदिराई, मुणि-गण-गुण-मंडियमंदिराई ।
सोहति गउरवरकइ-मणहराई, मणि-डियकिनाडई सुंदराई ।
हि वसहि महायण चुय-पमाय, पर-रमणि-परम्मुह मुक्का-माय ।
हि समय कर्चाि घड नई हड्तति, पडिसह दिसि विदिसा मुद्धति ।
जहि पवण-गमण धाषिय नुरंग, णं वारि-रासि भंगुरन्तरंग ।
जो भूसिउ णेत्त-मुहावणेहि, सरयच्च धवल-गोहागणेहि ।
सुरयणा वि समीहहिं जहि मजम्म, मेल्लेंदिणु सग्गालउ सुनम्म् ।
कविकी दूसरी रचना 'बरंग ग्ड' है । इममें चार मन्धियाँ हैं। २वं नीर्थकर यदुवंशी नेमिनाके नासनकालमें उत्पन्न हुए पुण्यपुरुष बरांगका जीवनवृत्त प्रस्तुत किया गया है। कविने इस रचनाको विपुलकीतिन प्रसादसे सम्पन्न किया है। पंचपरमेष्ठी, जिनवाणी आदिको नमस्कार करनेके पश्चात् ग्रन्थको रचना आरंभ की है। प्रथम, द्वितीय और तृतीय कड़बकमें कविने अपना परिचय अंकित किया है । अन्तिम प्रशस्सिमें भी कविका परिचय पाया जाता है।
कविको तीसरी रचना 'पासपुराण' है। यह भी खण्डकाव्य है, जो पद्धडिया छन्दमें लिखा गया है। यह रचना भट्टारक हर्षकोति-भण्डार अजमेरमें सुरक्षित है। कविने यदुवंगी साहू शिवदासके पुत्र भूधलि साहुकी प्रेरणासे रचा है । ये मुनि पद्मनन्दिके मिष्य शिवनन्दि भट्टारकको आम्नायके थे तथा जिनधर्मरत श्रावकधर्मप्रतिपालक, दयावन्त और चतुर्विध संघके संपोपक थे। मुनि पद्मनन्दिने शिवनन्दिको दीक्षा दी थी। दीक्षासे पूर्व इनका नाम सुरजन साद्ध था । सुरजन साहु संसारसे बिरक्स और निरन्सर द्वादश भावनाओक चिन्तनमें संलग्न रहते थे। प्रशस्तिमें साहु सुरजनके परिवारवा भी परिचय आया है ।
इस प्रकार कवि तेजगालने चरितकाव्योंकी रचना द्वारा अपना-माहिल्य की ममद्धि को है।
Acharyatulya Tejpal 16th Century (Prachin)
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 18 May 2022
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Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
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