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#RaajulmatiMataJi(Karanja)ShivSagarJiMaharaj
Aryika Shri 105 Raajulmati Mata ji was born in Village Karanja,Dist-Akola,Maharashtra.Her name was Rupa bai before diksha.She received the initiation from Acharya Shri 108 Shiv Sagar Ji Maharaj.
विक्रम सम्वत् 1964 में अकोला क्षेत्र के कारंजा नामक ग्राम में बघेलवाल गोत्रोत्पन्न पिता श्री बबनसाजी के घर माता श्री बजाबाईजी की कुक्षि से आपका जन्म हुआ था। आपको दो भाइयों तथा दो बहिनों का संयोग भी मिला। भाइयों में श्री मोतीलालजी व श्री झब्बूलालजी हैं । तथा बहिनों में ज्येष्ठ आप एवं छोटी बहिन श्री मौनाबाईजी हैं।
माता पिता ने आपका जन्म नाम श्री रूपाबाईजी रखा था। आपके पिताश्री अच्छी स्थिति के सम्पन्नशाली व्यक्ति थे तथा सराफा की दुकान करते थे । यह उदार हृदयी, सन्तोषी और शान्त प्रवत्ति के योग्य व्यक्तियों में से एक थे । यही कारण था कि इनके सुलक्षणों का पूरा पूरा प्रभाव होनहार सन्तान पर भी पड़ा।
जब आपकी उम्र मात्र १२ वर्ष की थी तब आपके पिता श्री ने आपका पाणिग्रहण कारंजा ग्राम में ही श्रीमान् सेठ नागोसाजी के पुत्र श्री देवमनसाजी के साथ किया। भाग्य की बात थी कि उसी ग्राम में माता पिता और उसी ग्राम में सास स्वसुर, दोनों ही कुल श्रेष्ठ सम्पन्न तथा ऐश्वर्यशाली थे। आपकी सास श्री सोनाबाईजो भी एक आदर्श महिला थीं।
विवाह हुये डेढ़ वर्ष ही व्यतीत हुआ था कि दुर्दैव का चक्र चला और आपके पतिश्री का स्वर्गवास हो गया। उस समय आप १४ वर्ष की अबोध बालिका ही थीं। इस दुःखदायी वज्र प्रहार के हो जाने से आपको अध्ययन के उद्देश्य से सोलापुर आश्रम का सहारा लेना पड़ा। अपनी कुशाग्र और आदर्श कार्य कुशलता का परिचय देते हुये अध्ययन के बाद, उसी आश्रम में आपने अध्यापन कार्य सम्हाला । इस कार्य में आपको जितनी भी सफलता मिली वह आपकी यश: कीति के लिए पर्याप्त है।
इस प्रकार अध्ययन और अध्यापन का लगभग १६ वर्षीय लम्बा समय आश्रम में व्यतीत हुआ। आपने आश्रम में एक अबोध असहाय बालिका के रूप में प्रवेश लिया और एक सुयोग्य विदुषी महिला के रूप में अधिष्ठात्री बनकर आश्रम से विदा ली।
"जैसा खावे अन्न वैसा होवे मन्न, जैसा पीये पानी वैसी बोले बानी' इस लोकोक्ति को शब्दश: चरितार्थ करती हुई आपके अन्तर में संसार की असारता के साथ आत्मोन्नति की भावना का उदय हुआ और परम पूज्य श्री समन्तभद्र जी महाराज से ७ वी प्रतिमा के व्रत अंगीकार कर लिये । यह मुनि श्री अत्यन्त सुयोग्य महातपस्वी बाल ब्रह्मचारी और आचार्यवर हैं । यही आपकी आत्मा को सत्पथ पर लाने वाले मूल मार्ग दर्शक व आदि गुरु हैं।
समय अपनी अबाधगति से निकलता गया तदनुसार आपके भावों में निर्मलता आई, परिणामों में वैराग्य ने प्रवेश किया और सद्गुरु आचार्य श्री शिवसागरजी महाराज के सद्उपदेशों ने प्रभावित किया, फलतः चैत्र बदी पड़वा विक्रम सम्वत् २०१२ में गिरनारजी सिद्ध क्षेत्र पर आचार्य श्री से क्षुल्लिका की दीक्षा ग्रहण करली । आचार्य श्री ने आपका दीक्षित नाम राजमतीजी रखा। अपनी कठिन साधना के साथ ज्ञानाभ्यास के द्वारा ज्ञान और चारित्र में उत्तरोत्तर वृद्धि की, फलतः आपके अन्तर में शुद्ध वैराग्य की ज्योति जगमगा उठी ।
आपने लोक में स्थित जीवों की रक्षा के लिये पीछी, शुद्धि के लिए कमन्डलु तथा शारीरिक लज्जा की मर्यादा बनाए रखने के लिए मात्र एक धोती को छोड़कर समस्त अन्तरंग बहिरंग परिग्रह का त्याग करने का निश्चय किया, और कार्तिक शुक्ला चतुर्थी सम्बत् २०१८ के दिन सीकर में परम पूज्य दिगम्बर जैनाचार्य श्री शिवसागरजी महाराज से आर्यिका की दीक्षा ग्रहण की।
आप अनेक भव्य जीवों को सतपथ का अवलोकन कराती हुई आत्म कल्याण की ओर अग्रसर हैं । ऐसी भव्य आत्मा के श्री चरणों में नमन है।
Book written by Pandit Dharmchandra Ji Shashtri -Digambar Jain Sadhu
#RaajulmatiMataJi(Karanja)ShivSagarJiMaharaj
Book written by Pandit Dharmchandra Ji Shashtri -Digambar Jain Sadhu
आर्यिका श्री १०५ राजुलमती माताजी
आचार्य श्री १०८ शिव सागर जी महाराज १९०१ Aacharya Shri 108 Shiv Sagar Ji Maharaj 1901
ShivSagarJiMaharaj1901VeersagarJi
Aryika Shri 105 Raajulmati Mata ji was born in Village Karanja,Dist-Akola,Maharashtra.Her name was Rupa bai before diksha.She received the initiation from Acharya Shri 108 Shiv Sagar Ji Maharaj.
Book written by Pandit Dharmchandra Ji Shashtri -Digambar Jain Sadhu
Aryika Shri 105 Raajulmati Mataji (Karanja)
आचार्य श्री १०८ शिव सागर जी महाराज १९०१ Aacharya Shri 108 Shiv Sagar Ji Maharaj 1901
आचार्य श्री १०८ शिव सागर जी महाराज १९०१ Aacharya Shri 108 Shiv Sagar Ji Maharaj 1901
#RaajulmatiMataJi(Karanja)ShivSagarJiMaharaj
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