हैशटैग
#SrustiBhusanMataJi1964SanmatiSagarJiMaharaj
Aryika Shri 105 Srusti Bhusanmati Mata ji was born on 23 March 1964 in Mungaoli,Dist-Ashoknagar,Madhya Pradesh.Her name was Sulochna Jain in Planetary state.He received initiation from Acharya Shri 108 Sanmati Sagar ji Maharaj.
परम पूज्य आर्यिका रत्न 105 श्री सृष्टी भूषण माताजी का जन्म मध्य प्रदेश की पावन धरा पर बसने वाले मुंगावली में हुआ। इस पावन आत्मा के जन्म से संपूर्ण मुंगावली की धरती मानव मुंगावली हो गई।मानवता के दिव्य आलोक से परिपूर्ण, संयम कि मंगल मनीषा ने, सदाचारी, पतिव्रता, शीलवती माता श्रीमती पदमा एवं आदर्श ग्रस्त पिता श्री कपूरचंद जी के ग्रह आंगन को दिव्यता से भर दिया। 23 मार्च 1964 को साकार हो गए मां पदमा के शुभ स्वप्न जब गौरवमई सौभाग्यशाली कन्या रत्न उनकी गोद में अवतरित हुई। तत्काल ही इस दिव्य बालिका का नामकरण हो गया ‘सुलोचना’।
शुरू से ही सुलोचना अपने हर कार्य क्षेत्र में प्रथम रही। भले ही वह लौकिक शिक्षा हो, हस्तकला हो या संगीत कला, सुलोचना के जन्म से पूर्व मां पदमा जी ने दो पुत्रों को जन्म दिया परंतु वह अल्पायु में संसार से विदा हो गए। सुलोचना के जन्म के पूर्व भी इनके ताई रामप्यारी जी को स्वप्न आया था कि पदमा के इस बार होने वाली संतान को वह गोद ले ले अन्यथा उस जीव को भी जाना होगा। रामप्यारी ताई के मुख से ऐसे शब्द सुन मां पदमा का मन चिंतित हो उठा और उन्होंने ना चाहते हुए भी अपनी बच्ची को ताई जी के हाथों में सौंप दिया था। ताई जी छोटी उम्र में ही विधवा हो गई थी, उनकी अपनी कोई संतान नहीं थी, उन्हें तो मानव जीवन की सारी खुशियां मिल गई थी, ताई जी ने सुलोचना को बड़े नाज़ और प्यार से पाला।
जब सुलोचना 4 वर्ष की थी तो ताई जी सुपार्श्व मति माताजी के दर्शनों के लिए उन्हें उनके पास लेकर गई, उन्हें देख माताजी स्वतः ही बोल पड़ी, -अरे इस बालिका को तो सन्यास लेने से कोई नहीं रोक सकता। ताई जी हैरानी से बोली। पर ऐसा कैसे माताजी? माताजी ने कहा, जिस दिन यह बच्ची जैन संतों के दर्शन कर लेगी, उसी दिन से गृह त्याग की भावना बन जाएगी, जो रोके से भी नहीं रुकेगी, माताजी ने छोटी सी सुलोचना को छोटे-छोटे पिच्छी – कमंडल भी आशीर्वाद में दिए। ताई जी खुद धार्मिक महिला होते हुए भी इस बात से बहुत चिंतित हुई और उन्होंने सुलोचना का मंदिर जाना बंद कर दिया।
पर होता वही है जो भाग्य में लिखा होता है, संयोगवश सुलोचना को मुंगावली जाना पड़ा और वहां भाग्य प्रतीक्षा कर रहा था। सुलोचना के मस्तिष्क पर धर्म का स्वस्तिक रचने की, नगर में छुल्लक गुण सागर जी, (वर्तमान में समाधिस्थ आचार्य 108 श्री ज्ञानसागर जी) आए हुए थे, जिनके सानिध्य में ‘दहेज विषय’ पर वाद-विवाद प्रतियोगिता रखी गई थी, सुलोचना ने भी प्रतियोगिता में भाग लिया और अपनी वाकपटुता से प्रथम स्थान भी प्राप्त किया। पुरस्कार में मिली कुछ पुस्तकें जिसमें से एक थी “ आटे का मुर्गा” थी।
परिजनों के लाख जतन पर भी सुलोचना को मोक्ष के पद पर बढ़ने से कोई ना रोक सका। ललितपुर की प्रखर मेधावी ब्रह्मचारी कमलेश जी, ब्रह्मचारी सुलोचना के लिए वरदान बनकर मिली, उन्होंने उन्होंने ही ब्रह्मचारी सुलोचना को आगम ग्रंथों का अध्ययन कराया और बड़ी बहन जैसी आत्मीयता भी दी। संयम पथ पर सुलोचना बढ़ रही थी, सभी बहनों के साथ गुरु आज्ञा से तीर्थराज सम्मेद शिखरजी की यात्रा करने के लिए पहुंची तो वहां पर्वत पर एक श्रावक के साथ हृदय विदारक घटना घटी, शावकों को लुटेरों ने लूटा और गोली मार दी, जिससे उसकी मौत हो गई, उसकी मूर्छित पत्नी और तड़पते बच्चों को देखकर ब्रह्मचारी सुलोचना इस संसार की असारता को और गहराई से भाप गई और तुरंत दीक्षा लेकर आत्म कल्याण को व्याकुल हो गई 26 मार्च 1994 को आचार्य श्री 108 सुमति सागर जी महाराज से ब्रह्मचारी सुलोचना ने दीक्षा ग्रहण की और आचार्य श्री ने नाम प्रदान किया ‘आर्यिका सृष्टि भूषण’।
दीक्षा के उपरांत उन्होंने जगह-जगह, अनेक प्रांतों, नगरों में महती धर्म प्रभावना की और कर रही हैं।
आप वात्सल्य की प्रतिमूर्ति हैं, आपकी वाणी ओजस्वी एवं कंठ सुरीला है, आपकी ही प्रशांत प्रेरणा से श्री सम्मेद शिखरजी, सोनागिर जी श्री महावीर जी एवं नगली डेरी दिल्ली में त्यागी व्रतियों के लिए निरंतर आहार व्यवस्था की जा रही है। आप विशिष्ट प्रज्ञा समन्वित एवं रत्नत्रय से विभूषित हैं।
परम पूज्य जिन धर्म प्रभाविका आर्यिका रत्न 105 श्री सृष्टि भूषण माताजी समूचे भारतवर्ष में जैन हो या जैनेत्तर सभी के मध्य प्रभावना का वह नाम बन चुकी है कि कोई भी स्त्री जब जैनेश्वरी दीक्षा ग्रहण करती है तो यही भावना उसके मन में पल्लवित हो जाती है कि मैं भी सृष्टि भूषण माताजी की तरह बन जाऊं। क्योंकि माता जी जैनत्व के वर्तमान आकाश का वो जगमगाता सितारा है कि उन तक पहुंचना किसी सपने से कम नहीं है।
उनका नाम मात्र श्रावक समाज में ही नहीं अपितु संत समाज में भी बहूमान को प्राप्त है। पूज्य माता जी के सानिध्य में देश में ऐसे कीर्तिमान बने हैं जो स्वयं में ष्ना भूतो ना भविष्यतिष् की संख्या लिए हुए हैं. इसमें माता जी द्वारा बद्रीनाथ की यात्रा, अतिशय क्षेत्र रानीला में 57 दिवसीय अखंड भक्तामर आराधना, औद्योगिक नगरी गुड़गांव में पदम पुराण मानस लीला का मंचन, अतिशय क्षेत्र बड़ा गांव में अखंड 44 दिवसीय आराधना आदि कार्यक्रम शामिल है।
पूज्य माताजी के निमित्त से धर्म के प्रति जुड़ने वालों की संख्या हजारों, लाखों से कहीं ज्यादा है। जहां माता जी के चरण पड़ते हैं वहीं श्रद्धालुओं का हुजूम लग जाता है और जब माताजी चल पड़ती है तो लगता है कोई मेला लगा हुआ है। माता जी का चातुर्मास पाने के लिए समाजों में तो होड़ सी मची रहती है।
https://srishtibhushan.com/#
#SrustiBhusanMataJi1964SanmatiSagarJiMaharaj
https://srishtibhushan.com/#
आर्यिका श्री १०५ सृष्टिभूषण माताजी
आचार्य श्री १०८ सन्मति सागरजी १९३८ (अंकलिकार) Acharya Shri 108 Sanmati Sagarji 1938 (Ankalikar)
संतोष खुळे इन्होने २६ अगस्त २०२१ को आर्यिका रत्न 105 श्री सृष्टी भूषण माताजी का जीवन परिचय समाविष्ट किया|
Sanjul Jain on 30-Dec-2020 created wiki page for mata ji
SanmatiSagarJi1938(Ankalikar)Vimalsagarji
Aryika Shri 105 Srusti Bhusanmati Mata ji was born on 23 March 1964 in Mungaoli,Dist-Ashoknagar,Madhya Pradesh.Her name was Sulochna Jain in Planetary state.He received initiation from Acharya Shri 108 Sanmati Sagar ji Maharaj.
Aryika Shri 105 Srustibhusan Mataji
आचार्य श्री १०८ सन्मति सागरजी १९३८ (अंकलिकार) Acharya Shri 108 Sanmati Sagarji 1938 (Ankalikar)
आचार्य श्री १०८ सन्मति सागरजी १९३८ (अंकलिकार) Acharya Shri 108 Sanmati Sagarji 1938 (Ankalikar)
Sanjul Jain on 30-Dec-2020 created wiki page for mata ji
#SrustiBhusanMataJi1964SanmatiSagarJiMaharaj
SanmatiSagarJi1938(Ankalikar)Vimalsagarji
#SrustiBhusanMataJi1964SanmatiSagarJiMaharaj
SrustiBhusanMataJi1964SanmatiSagarJiMaharaj
You cannot copy content of this page