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#VishuddhmatiMataJi1929ShivSagarJiMaharaj
Aryika Shri 105 Vishuddhmati Mataji was born on 12 April 1929 in Reethi,Jabalpur, Madhya Pradesh. Her name was Sumitra Jain in planetary state. She received initiation from Acharya Shri 108 Shiv Sagar Ji Maharaj.
आपकी सीधी आर्यिका दीक्षा हुई है।आप 12 वर्ष तक दिगंबर जैन महिला आश्रम में प्रधानाध्यापिका रह कर सेवा की।आपने अनेक टीकाएँ,रचना,सम्पादन,संकलन किये हैं।
गृहस्थाश्रम का नाम -श्री सुमित्रा बाई।
जन्म स्थान -रीठी, जि० जबलपुर (म० प्र०) ।
पिता -श्रीमान् सिं० लक्ष्मणलालजी
माता -सौ० मथुराबाई।
भाई- श्री नीरजजी जैन एम० ए० और श्री निर्मल कुमारजी जैन मु० सतना (म० प्र०)।
जाति -गोलापूर्व ।
जन्म तिथि- सं० १९८६ चैत्र शुक्ला तृतीया शुक्रवार दिनांक १२-४-१६२८ ई० ।
लौकिक शिक्षण- १. शिक्षकीय ट्रेनिंग ( दो वर्षीय) २. साहित्य रत्न एवं विद्यालंकार ।
धार्मिक शिक्षण -शास्त्री (धर्म विषय में)।
धार्मिक शिक्षण के गुरु -परम माननीय विद्वद्-शिरोमणि पं० डा० पन्नालालजी साहित्याचार्य, सागर
( म० प्र०)।
कार्यकाल -श्री दि० जैन महिलाश्रम (विधवाश्रम) का सुचारु-रीत्या संचालन करते हुए प्रधानाध्यापिका पद पर करीब १२ वर्ष पर्यन्त कार्य किया एवं अपने सद् प्रयत्नों से संस्था में १००८ श्री पार्श्वनाथ चैत्यालय की स्थापना कराई।
वैराग्य का कारण -परम पू०प० श्रद्धेय आचार्य १०८ श्री धर्मसागर महाराजजी के सन् १९६२ ई० सागर (म० प्र०) चातुर्मास में पू० १०८ श्री धर्मसागर महाराजजी की परम निरपेक्ष वृत्ति और परम शान्तता का आकर्षण एवं संघस्थ प० पू० प्रवर वक्ता १०८ श्री सन्मतिसागरजी महाराज के मार्मिक सम्बोधन ।
आर्यिका दीक्षागुरु -परम पु० कर्मठ तपस्वी अध्यात्मवेत्ता, चारित्र शिरोमणि, दिगम्बराचार्य १०८ श्री शिवसागरजी महाराज।
शिक्षा गुरु- परम पू० सिद्धान्तवेत्ता आचार्य कल्प १०८ श्री श्रुतसागरजी महाराज।
विद्या गुरु- परम पू० अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी उपाध्याय १०८ श्री अजितसागरजी महाराज ।
दीक्षा स्थान -श्री अतिशय क्षेत्र पपौराजी ( म०प्र०)।
दीक्षा तिथि -सं० २०२१ श्रावण शुक्ला सप्तमी दिनांक -१४-८-६४ ई० ।
वर्षा योग -सं० २०२१ में पपौरा क्षेत्र पर दीक्षा हुई पश्चात् क्रमश: श्री अतिशय क्षेत्र महावीरजी, कोटा, उदयपुर, प्रतापगढ़, टोडारायसिंह, भिण्डर, उदयपुर, अजमेर, निवाई, रेनवाल (किशनगढ़), सवाई माधोपुर, सीकर, रेनवाल (किशनगढ़), निवाई, निवाई, टोडारायसिंह आदि ।
जिन मुखोद् भव साहित्य सृजन -
१. टीका-श्रीमद् सिद्धान्त चक्रवर्ती नेमिचन्द्राचार्य विरचित त्रिलोकसार की सचित्र हिन्दी टीका।
२. भट्टारक सकल कीर्त्याचार्य विरचित सिद्धान्त सार दीपक अपर नाम त्रैलोक्य दीपिका की हिन्दी टीका। ३. तिलोयपण्णत्ती-प्राचार्य यतिवृषभ प्रणीत की हिन्दी टीका।
मौलिक रचनाएँ -
१. श्रुत निकुञ्ज के किञ्चित् प्रसून ( व्यवहार रत्नत्रय की उपयोगिता )
२ गुरु गौरव,
३. श्रावक सोपान और बारह भावना ।
संकलन -
१. शिवसागर स्मारिका, २. आत्म प्रसून ।
विशेष धर्म प्रभावना -
१, समाधि दीपक, २. श्रमण चर्या। ३. निरिण कल्याणक एवं दीपावली पूजन विधि, ४. श्रावक सुमन संचय आदि । आपकी प्रखर और मधुर वाणी से प्रभावित होकर श्री दि० जैन समाज जोबनेर जि० जयपुर ने श्री शान्ति वीर गुरुकुल को स्थायित्व प्रदान करने हेतु श्री दि. जैन महावीर चैत्यालय का नवीन निर्माण कराया एवं आपके सानिध्य में ही वेदी प्रतिष्ठा कराई। जन धन एवं आवागमन आदि अन्य साधन विहीन अलयारी ग्राम स्थित जिन मन्दिर का जीर्णोद्धार, २३ फुट ऊँची १००८ श्री चन्द्रप्रभु भगवान की नवीन प्रतिमा तथा संगमरमर की नवीन वेदी की प्राप्ति एवं वेदी प्रतिष्ठा आपके ही सद्प्रयत्नों का फल है। इसी प्रकार अनेक स्थानों पर कलशा-रोहण महा महोत्सव हुए, जैन पाठशालाएँ खोली गईं, श्री दि० जैन धर्मशाला टोडारायसिंह का नवीनीकरण भी आपकी ही सद् प्रेरणा का फल है। श्री ब्र० सूरज बाई मु० ड्योढी जि. जयपुर की । क्षुल्लिका दीक्षा, श्री ब्र० मनफूल बाई मातेश्वरी श्री गुलाबचन्दजी, कपूरचन्दजी सर्राफ टोडाराय सिंह, जि० टोंक को अष्टम प्रतिमा एवं श्री कजोड़ीमलजी कामदार, जोबनेर जि. जयपुर आदि को द्वितीय प्रतिमा के व्रत आपके कर कमलों से प्रदान किये गये । संयमदान
Book written by Pandit Dharmchandra Ji Shashtri -Digambar Jain Sadhu
#VishuddhmatiMataJi1929ShivSagarJiMaharaj
Book written by Pandit Dharmchandra Ji Shashtri -Digambar Jain Sadhu
आर्यिका श्री १०५ विशुद्धमति माताजी
Aacharya Shri 108 Shiv Sagar Ji Maharaj 1901
आचार्य श्री १०८ शिव सागर जी महाराज १९०१ Aacharya Shri 108 Shiv Sagar Ji Maharaj 1901
Papora Ji,Shri Atishay Kshetra Mahavirji, Kota, Udaipur, Pratapgarh, Todaraisingh, Bhinder, Udaipur, Ajmer, Niwai, Renwal (Kishangarh), Sawai Madhopur, Sikar, Renwal (Kishangarh), Niwai, Niwai, Todaraisingh etc.
ShivSagarJiMaharaj1901VeersagarJi
Aryika Shri 105 Vishuddhmati Mataji was born on 12 April 1929 in Reethi,Jabalpur, Madhya Pradesh. Her name was Sumitra Jain in planetary state. She received initiation from Acharya Shri 108 Shiv Sagar Ji Maharaj.
आपकी सीधी आर्यिका दीक्षा हुई है।आप 12 वर्ष तक दिगंबर जैन महिला आश्रम में प्रधानाध्यापिका रह कर सेवा की।आपने अनेक टीकाएँ,रचना,सम्पादन,संकलन किये हैं।
Aryika Shri 105 Vishuddhmati Mataji was born on 12 April 1929 in Reethi,Jabalpur, Madhya Pradesh. Her name was Sumitra Jain in planetary state. She received initiation from Acharya Shri 108 Shiv Sagar Ji Maharaj.
Book written by Pandit Dharmchandra Ji Shashtri -Digambar Jain Sadhu
Aryika Shri 105 Vishuddhmati Mataji
आचार्य श्री १०८ शिव सागर जी महाराज १९०१ Aacharya Shri 108 Shiv Sagar Ji Maharaj 1901
आचार्य श्री १०८ शिव सागर जी महाराज १९०१ Aacharya Shri 108 Shiv Sagar Ji Maharaj 1901
Aacharya Shri 108 Shiv Sagar Ji Maharaj 1901
Papora Ji,Shri Atishay Kshetra Mahavirji, Kota, Udaipur, Pratapgarh, Todaraisingh, Bhinder, Udaipur, Ajmer, Niwai, Renwal (Kishangarh), Sawai Madhopur, Sikar, Renwal (Kishangarh), Niwai, Niwai, Todaraisingh etc.
#VishuddhmatiMataJi1929ShivSagarJiMaharaj
ShivSagarJiMaharaj1901VeersagarJi
#VishuddhmatiMataJi1929ShivSagarJiMaharaj
VishuddhmatiMataJi1929ShivSagarJiMaharaj
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