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Ganini Aryika Shri 105 Shrushtibhushanmati Mataji took Initiation from Acharya Shri 108 Vidyabhushan Sanmati Sagar Ji Maharaj.
साधना और मंगल भावना की संपूर्णता का नाम है पूज्य आर्यिका 105 श्री सृष्टि भूषण माताजी जी, पूज्य माता जी ने भारतवर्ष के मध्य प्रदेश प्रांत की मुंगावली की धरा पर 23 मार्च सन 1964 को श्रद्धेय पिताश्री कपूर चंद जी एवं माता श्री पदमा देवी की बगिया में जन्म लिया नामकरण किया सुलोचना यह परिवार की तीसरी संतान थी।
इसे विधि का विधान कहे की इनसे पूर्व जन्मे दोनों ही पुत्र अल्प समय में ही इस मनुष्य पर्याय से पलायन कर गए। दोनों संतानों के चले जाने के बाद माताजी का जन्म हुआ।
लेकिन माताजी के जन्म से पहले ही माताजी की मातृश्री को सपनों के माध्यम से आदेशित किया गया यह संतान को अपने पास ना रख कर कहीं और परवरिश कराई जाए अन्यथा संतान भी काल के में विलीन हो जाएगी।
बडा ही व्याकुल क्षण थे इतना सुन माँ ने अपने हृदय और भावनाओं पर पत्थर रखा माताजी के जन्म के कुछ क्षणों बाद माताजी को श्रीमती रामप्यारी बाई को सौंप दिया। जो माताजी के गांव की एक वरिष्ठ महिला थी। उनके पति का देहांत भी उनके विवाह के मात्र 6 महीने बाद ही हो गया था। उनकी अपनी कोई संतान नहीं थी, अत: उन्होंने माताजीको हृदय से लगाकर अपनी खुद की संतान से भी ज्यादा प्यार देकर पाला पोसा और संस्कारित किया। सभी के आकर्षण का केंद्र थी, पूरे गांव की लाडली सुलोचना पूरे कुटुंब का आकर्षण थी। मेधावी छात्र को शिक्षकों ने भरपूर स्नेह दिया। वह इन्होने आत्मीयता से शिक्षा को सम्पन्न किया।
मुंगावली की जिस कन्यारत्न को संपूर्ण धरा को ही वर्ण करना था और आभूषणों बनाना था। माताजीके गांव में 40 वर्षों के अंतराल के बाद एक जैन संत पूज्य ज्ञान सागर जी महाराज जी महाराज का आगमन हुआ। आचार्य श्री ने उनके विचारों को सुना, और उनकी उपयोगिता का अनुभव किया। जीवन में आए इस बदलाव ने उन को संसार से विरक्त कर संन्यास की ओर अग्रसर होने की ओर प्रेरित किया।
उनका बचपन का एक प्रसंग याद आता है बचपन मे सुलोचना जी ने आर्यिका श्री सुपार्श्वमति माताजी के दर्शन परिजनों के साथ किये थे, तब ज्योतिष की जानकार आर्यिका माताजी ने कहा कि यह बालिका बड़ी होने पर किसी साधु के दर्शन करेगी तो घर नही रुकेगी। संन्यास मार्ग पर आगे बढ़ जावेगी। इस डर के कारण परिजन इन्हें साधु आगमन पर घर से निकलने नही देते थे। पर होनी को कौन बदल सकता है,माताजीके परिवार का स्नेह माताजीको बांध नहीं सका। माताजीने अलौकिक शिक्षा में ग्रेजुएशन पूरी कर 19 वर्ष की अल्पायु में ही सन्यास के मार्ग पर कदम बढ़ा दिये। और माताजी स्वयं में जागरण के मार्ग पर बढ़ चली एवं 10 वर्ष के सन्यासी जीवन के अभ्यास एवं जैन धर्म एवं अन्य शास्त्रों में निपुणता प्राप्त कर माताजीने गुरु आचार्य 108 श्री सुमति सागर जी महाराज एवं आचार्य 108 विद्याभूषण सन्मति सागर महाराज के वरदहस्त से 26 मार्च 1994 को वे सुलोचना से आर्यिका 105 श्री सृष्टि भूषण माताजी बन गई माताजीने अपने साधु जीवन को अपनी साधना संयम व्रत एवं तपस्या से तेजोमयी बनाया और अपनी सरल हृदयता से भक्तों के हृदय में भी स्थान प्राप्त किया । माताजी की मंगल वाणी से बहती भक्ति गंगा में अवगाहन कर भक्तों ने स्वयं को धन्य किया जहां-जहां भी माताजीका पद विहार हुआ भक्तों का विशाल प्रभुत्व माताजीके चरण रज को स्पर्श करने के लिए बढ़ता चला गया। यही कारण है कि आज लाखों की संख्या में माताजी के भक्त हैं। पर फिर भी माताजी में वही सरलता वात्सल्य सभी के प्रति रहती है। चाहे व्यक्ति किसी वर्ग से हो । माताजी के लिए सब समान हैं सर्वोपरि। माताजी का दीप्तिमान जीवन प्रतिक्षण प्राणी मात्र के कल्मस् समन हैतु तत्पर है। निस्काया प्रवृत्ति से अनंत आस्थाओं कि दिव्यांग में अमृतवाणी संप्रेषित करती हुई आत्मीयता पूर्ण आवाज से माताजी का जीवन का व्यक्तित्व कृतित्व क्रियात्मक रूप से वर्तमान युग का चमत्कार है। संवेदना अतुल वैभव जी जीवन से हताश निराश पीड़ित दुखी जनों में विश्वस्त स्पंदन की चमक दमक परी पूरित करता रहा है । माताजी के आशीर्वाद से आसपास अंधियारे को प्रकाश की किरण मिटाकर दुखियारो के आंचल को सुख समृद्धि एवं मुस्कान की संपत्ति से भर रहा है। इतना ही नहीं माताजी ने धर्म की प्रभावना करते हुए लगभग 25000 किलोमीटर की पदयात्रा की है। एवं माताजी ने अपने 29 वर्षीय संयमी जीवन में करीब 25000 किलोमीटर की पदयात्रा पूरी की। जिसमें दिल्ली ,उत्तर प्रदेश ,हरियाणा ,उत्तराखंड ,झारखंड, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा ,गुजरात आदि के प्रांतों के नगर एवं महानगर सम्मिलित हैं। माताजी ने दीर्घ जीवन अपने लोगों के जीवन को निकटता से देखा है । माताजी ने ना सिर्फ किताबों अखबारों के माध्यम से बल्कि लोगों के बीच में रहकर उन को होने वाली समस्याओं को नजदीक से देखा एवं महसूस किया कि और तब माताजीने निर्णय लिया कि माताजी अपने सतत एवं ग्रुप की आशीष की छांव तले समाज एवं राष्ट्र में शांति मानवता एवं खुशहाली स्थापित हो सके। ऐसे कार्यों के प्रति समाज का ध्यान आकर्षित करवाना चाहिए।
माताजी के द्वारा महानगर दिल्ली समेत सिद्ध क्षेत्र श्री सम्मेद शिखरजी झारखंड, सिद्ध क्षेत्र सोनागिर जी मध्य प्रदेश, अतिशय क्षेत्र श्री महावीर जी राजस्थान मैं भक्तों के सहयोग से श्री सृष्टि मंगलम फाउंडेशन ऐसी संस्थाओं की स्थापना करवाई। जिसके माध्यम से हर वर्ग के लोग लाभान्वित हो सके। साथ ही प्यारी आत्माओं जो संयम के मार्गदर्शक हैं। निर्विकल्प अपनी संयम साधना कर सकें। ऐसी व्यवस्था प्रदान की गई भविष्य में भी की जाती रहेंगी। माताजी के आशीर्वाद से एवं निर्देशन में जगह जगह निशुल्क भोजनालय खुलवाए गए। छात्रवृत्ति शिक्षण शिविर, संस्कार शिविर, पूजन विधान शिविर, वस्त्र वितरण ट्राई साइकिल बैसाखी कानों की मशीन सिलाई मशीन कंबल निशुल्क दवाइयों के वितरण के साथ साथ असहाय गरीब लड़कियों की शादी करवाना एवं साथ-साथ बेरोजगार परिवारों को कार्य दिलवाने के कार्य किए जा रहे हैं। इन सभी कार्योंके मध्य माताजी का चिंतन होना। असाध्य एवं अर्थ उपेक्षित व्याधियों जिनका उपचार तो है। उपचार से पूर्व उनके परीक्षण में भी बहुत धन चाहिए। ऐसी बीमारियों जिनकी जानकारी मिलते ही प्राणी मात्र मृतक के समान प्राय हो जाता है। ऐसी बीमारियों का उपचार समय पर रहते हो। ऐसी बीमारियों के होने से कैसे रोका जाए। इसके प्रति समाज को सजग करना भी जरूरी है। माताजीकी सद्भावना एवं प्रेरणा को अनुकूल प्रभाव पड़ा और माताजीकी करुणा आपूर्ति दृष्टि दुखी प्राणियों के लिए वरदान बन गई। कैंसर और थैलेसीमिया जैसी दो बड़ी बीमारियों को ध्यान में रखते हुए माताजी की प्रेरणा से गठन हुआ श्री आदि सृष्टि कैंसर ट्रस्ट का।
अल्प समय मे ही देश के विभिन्न प्रांतों जिलो गांव कस्बों के साथ विदेशों में भी जांच शिविर सेमिनार एवं जागरूकता अभियान शुरू किए गए। शासन प्रशासन का भरपूर सहयोग मिला। सरकारी योजनाओं के द्वारा लाभान्वित लोगो इलाज कराया गया, एवं उसकी विस्तृत रूप में जानकारी दी गई। समाज की दान भक्ति का एक साथ सम्मेलन हुआ। माताजीके पुण्य प्रताप से पूरे भारतवर्ष के नामी गिरामी डॉक्टर्स का साथ मिलता चला गया ।हजारों रोगियों को इसका लाभ मिलना प्रारंभ हो गया अनेक कैंसर पीड़ित रोगियों की जीवन के प्रति निराशा एक बार फिर से आशा में प्रभावित हुई। माताजीने जनमानस के जीवन में मुस्कान बिखेरने का जो संकल्प रूपी बीज अपने हृदय में पल्लवित किया ।वृक्ष का रूप लेकर लाखों लोगों को छाव प्रदान कर रहा है।
मानव रत्न से अलंकृत
प्रख्यात मानव सेविका एवम जिनधर्म प्रभाविका आर्यिका 105 श्री सृष्टि भूषण माताजी को मानव कल्याणार्थ किए गए अति विशिष्ट कार्यों के लिए International News And Views Corporation द्वारा मानव रत्न अलंकरण से सम्मानित किया गया है। वे एक प्रख्यात जैन संत एवम समाज सेविका हैं जो पिछले कई दशकों से कैंसर पीड़ित व्यक्तियों, दिव्यांगजन, अनाथ बच्चों की शिक्षा एवम् महिला रोजगार के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक महा अभियान चला कर सृष्टि के मानव ग्रह भारतीय भू-वसुंधरा का संताप हरण कर रहीं हैं। उनको यह अलंकरण, कैंसर पीड़ित व्यक्तियों की सेवा के लिए चलाए जाए जा रहे आदि सृष्टि कैंसर सेवा ट्रस्ट के संचालन के लिए दिया गया है। International News And Views Corporation यानी अंतरराष्ट्रीय समाचार एवं विचार निगम के मानव रत्न अवार्ड सिलेक्शन कमेटी के समन्वयक डॉ डीपी शर्मा जो कि यूनाइटेड नेशंस की संस्था आईएलओ के अंतरराष्ट्रीय परामर्शक एवं भारत सरकार के स्वच्छ भारत मिशन के राष्ट्रीय ब्रांड एंबेसडर है ने बताया कि यह पुरस्कार सेवा के क्षेत्र में अति विशिष्ट कार्यों के लिए परंपरा से परे भागीरथ प्रयासों के लिए दिया जाता है। यह पुरस्कार उन्हें International News And Views Corporation यानी अंतरराष्ट्रीय समाचार एवं विचार निगम द्वारा 29 सितंबर 2019 को दिल्ली के राजवाडा पैलेस में एक भव्य समारोह में प्रदान किया गया है। गौरतलब है की ऐसा माना जाता है कि माताजीकी संवेदना का अतुल्य वैभव जीवन से हताश, निराश, पीड़ित मानवता के जीवन में विश्वास के स्पंदन की चमक पैदा कर रहा है। माताजी के ऊर्जस्वित आशीर्वाद से स्पर्श कर मनुष्य अंधियारा मिटाकर अपने रिक्त आँचल को सुख समृद्धि की निधि, एवं मुस्कान की संपत्ति से भर रहे हैं।
अल्प समय में ही देश के विभिन्न प्रान्तों जिलों गाँव कस्बो के साथ साथ विदेशों में भी इसके जाँच शिविर, सेमिनार, एवं जागरुकता अभियान शुरु किये गए..... शासन प्रशासन का, सरकारी योजनाओं जैसे भामाशाह कार्ड, आयुष्मान कार्ड आदि आदि सरकारी योजनाओं और समाज की दान प्रवृत्ति का एक साथ सम्मलित हुआ। एवं माताजीके पुण्य प्रताप से पूरे भारतवर्ष के करीब 1300 डॉक्टर्स का साथ मिलता चला गया, और हजारों रोगियों को इसका लाभ मिलना प्रारम्भ हो गया।
निराशा में आशा अनेकों कैंसर पीड़ित रोगियों के जीवन के प्रति निराशा एक बार फिर से आशा में परिवर्तित हुई है। माताजी ने जनमानस के जीवन में मुस्कान बिखरने का जो संकल्प रूपी बीज अपने हृदय में पल्लवित किया था वो आज एक वट वृक्ष का रूप लेकर लाखों लोगो को छाया प्रदान कर रहा है।
वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री का वात्सल्य प्रसंग है 1993 श्री बाहुबली भगवान के महामस्तकाभिषेक का तब माताजी की दीक्षा नही हुई थी, ब्रह्मचारिणी थी वह भी 93 में मस्तकाभिषेक देखने संघ की अन्य दीदियों के साथ गई थी। उन्होंने पंचम पट्टाधीश आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी से संघ के साथ अभिषेक देखने का निवेदन किया आचार्य श्री ने सहज स्वीकृति देकर अगले दिन दोपहर को सामायिक के बाद का समय दिया। आचार्य श्री संघ समय पर बड़े पहाड़ के गेट तक पहुँच गए। किंतु दीदियों के नही पहुँचने पर इंतजार कर बुलाने भेजा और संघ के साथ लेकर चले गए। घटना छोटी है किंतु यह अन्य संघ के प्रति वात्सलय को दर्शाती है कि सचमुच आचार्य श्री का हृदय कितना विशाल एवम करुणामय है।
माताजीको इन महान कार्यों के लिए निम्न उपाधियां भी पूर्व मे सम्मान स्वरूप प्रदान की गई हैं। जो मुख्य है
हरियाणा समाज द्वारा सन 1998- हरियाणा उद्धारक (200 देशों के शंकराचार्यों की उपस्तिथि में)
अजमेर समाज द्वारा सन 2005- जिनधर्म प्रभाविका
गुडगाँव समाज द्वारा सन 2011- कविमना बूंदी
राजस्थान समाज द्वारा सन 2012- वात्सल्य मूर्ति
महावीर जी समाज द्वारा सन 2016- समता शिरोमणि
नजफगढ़ समाज द्वारा सन 2018- वात्सल्य निधि
आचार्य अतिवीर जी महाराज जी द्वारा सन 2015- गणनी पद की उपाधि दी गई है आदि अनेकों उपाधियाँ माताजीको प्रदान की गयीं। परन्तु हर उपाधि माताजी के द्वारा किये जा रहे कार्योंके समक्ष छोटी ही नज़र आई।
भक्तो को सन्देश
माताजी ने अपने साथ जुड़े लाखो भक्तों को एक ही सन्देश दिया है-
"मेरा तो है बस एक ही सपना,
स्वस्थ सुखी हो जीवन सबका"
और माताजी की इसी मंगल भावना और आशीर्वाद को साथ लेकर संकल्पित और समर्पित है माताजी के सभी भक्तगण। हम प्रभु से निवेदन करते हैं कि आध्यात्म की सरिता स्वरूपा, आत्महित एवं परहित से संलग्न पूज्य माता श्री माताजी ने अपना सम्पूर्ण जीवन समाज अभ्युत्थान, संस्कृति के संरक्षण एवं श्रमण परम्परा के संवर्धन में समर्पित किया है। माताजी की यह कृति सम्पूर्ण मानवता के लिए अनुकरणीय है, वन्दनीय है। माताजीकी यशोगाथा का कांतिमय दीपस्तंभ युगों युगों तक इसी तरह दैदीप्यमान रहे। साथ ही माताजी ने अपने साथ जुड़े लोगों को भक्तों को एक ही संदेश दिया। मेरा तो है बस एक ही सपना स्वस्थ सुखी हो भारत अपना।
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गणिनी आर्यिका श्री १०५ श्रुष्टिभूषणमती माताजी
Acharya Shri 108 Vidyabhushan Sanmati Sagar Ji Maharaj 1949
आचार्य श्री १०८ विद्याभूषण सन्मति सागरजी महाराज 1949 Acharya Shri 108 Vidyabhushan Sanmati Sagarji Maharaj 1949
VidyabhushanSanmatiSagarJiMaharaj1949ShriSumatiSagarJi
Ganini Aryika Shri 105 Shrushtibhushanmati Mataji took Initiation from Acharya Shri 108 Vidyabhushan Sanmati Sagar Ji Maharaj.
Ganini Aryika Shri 105 Shrushtibhushanmati Mataji
आचार्य श्री १०८ विद्याभूषण सन्मति सागरजी महाराज 1949 Acharya Shri 108 Vidyabhushan Sanmati Sagarji Maharaj 1949
आचार्य श्री १०८ विद्याभूषण सन्मति सागरजी महाराज 1949 Acharya Shri 108 Vidyabhushan Sanmati Sagarji Maharaj 1949
Acharya Shri 108 Vidyabhushan Sanmati Sagar Ji Maharaj 1949
Ganini Aryika Shri 105 Shrushtibhushanmati Mataji
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