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#Subhushanmatiji1957DayaSagarJiMaharaj1954
Aryika Shri 105 Subhushanmati Mataji took Initiation from Acharya Shri 108 Daya Sagarji Maharaj.
पूर्व नाम: कुमारी भारती जैन
जन्म तिथि: 10.07.1957, आषाढ़ शुक्ला चतुर्दशी
जन्म स्थान: गोटेगाँव (श्रीधाम), नरसिंहपुर (म.प्र.)
पिताश्री का नाम: श्री भगवानदास जैन (नेताजी)
माताश्री का नाम: श्रीमती शान्ति जैन
जाति: परवार (गोत्र - माडल)
सहोदर: श्री संतोष कुमारजी, श्री विनोद कुमारजी, श्री अरविन्द कुमारजी, श्री राजेन्द्र कुमारजी, श्री दीपक कुमारजी (वर्तमान सप्तम पट्टाधीश चारित्र शिरोमणि आचार्य श्री अनेकांतसागर जी मुनिराज)
सहोदरी: श्रीमती कान्ता जैन
लौकिक शिक्षा: बी. ए., बी. एड., एम.ए. (2 वर्ष शिक्षण कार्य)
संसार से अनासक्ति: सामाजिक कथानक व उपन्यास पठन से
वैराग्य उदय: श्रमण शिरोमणी श्री दयासागर जी गुरुदेव के चरण दर्शन मात्र से 24-03-1977
ब्रह्मचर्य व्रत दिनांक: 26-03-1977
ब्रह्मचर्य व्रत स्थान: गोटेगाँव (श्रीधाम)
ब्रह्मचर्य व्रत प्रदाता: समाधिस्थ श्रमण शिरोमणी १०८ श्री दयासागरजी गुरुदेव
संयम पथ पर: व्रत प्रतिमा - 6 मई 1977, सप्तम प्रतिमा - 17-03-1983 सिद्धवरकूट मुनि श्री १०८ दयासागर जी गुरुदेव से
संघ प्रवेश: भाद्रपद शु. अष्टमी, 26-08-1982 छिंदवाड़ा (म. प्र.)
धार्मिक शिक्षण: भारत गौरव समाधि सम्राट षष्ठम् पट्टाधीश आचार्य गुरुदेव श्री अभिनंदनसागरजी के मुखारविन्द से चारों अनुयोगों का
आर्यिका दीक्षा दिनांक: 09-05-1985
आर्यिका दीक्षा स्थान: हाड़ारानी की बलिदान भूमि सलूम्बर, उदयपुर (राज.)
दीक्षा प्रेरणा स्रोत: षष्ठम् पट्टाधीश भारत गौरव समाधि सम्राट आचार्य भगवन् श्री १०८ अभिनंदनसागरजी गुरुदेव
आर्यिका दीक्षा प्रदाता: समाधिस्थ साधु परमेष्ठी श्रमण शिरोमणी श्री १०८ दयासागरजी गुरुदेव
विलक्षण प्रतिभा: कारागार में प्रवचन, विद्यालय-महाविद्यालय में विद्यार्थियों को प्रेरणात्मक मार्मिक उद्बोधन
गणिनी पदारोहण एवं वात्सल्यनिधि उपाधि: चैत्र कृ. एकम्, 02-03-2018, ऋषभदेवपुरम्, मांगीतुंगी सिद्धक्षेत्र गणिनी प्रमुख आर्यिका शिरोमणि श्री ज्ञानमति माताजी के कर-कमलों से
अनूठी गुरु भक्ति: फाल्गुन कृ. द्वादशी (03-03-2019 ), बाँसवाड़ा, चा.च. प्रथमाचार्य श्रीशांतिसागरजी 'दीक्षा शताब्दी एवं श्रुतगुरु षष्ठम पट्टाचार्य श्री अभिनन्दनसागरजी 'दीक्षा अर्द्धशताब्दी महोत्सव के पावन प्रसंग पर आचार्य भगवन् श्री अभिनन्दनसागर जी गुरुदेव की अनूठी - अद्वितीय महापूजन "High Range Book of World Record" & "India Book of Record" में अंकित किया गया।
चेतन कृति: आर्यिका सुआद्यमति माताजी, आर्यिका अंशभारती माताजी, आर्यिका दक्षभारती माताजी, आर्यिका आर्षभारती माताजी
ग्रंथ प्रस्तुति: श्री जिनअर्चना, जिनभक्ति धारा, पंचामृत अभिषेक, स्तोत्र भारती, अन्तर्यात्रा, मुनिचर्या, भक्तामर स्तोत्र, धर्म के दश मुक्ता, बोधिगीत, जिनेन्द्र पंचामृत अभिषेक, हे ! मन, सुन रे मन!, मेरे युगल नयन एवं गुरु अर्चना आदि।
भाषाज्ञान: तमिल, कन्नड़, मराठी, हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी, राजस्थानी, गुजराती, बुन्देली
अन्य प्रेरक व प्रभावक बिन्दु
विहार परिमण्डल: तमिलनाडु पांडिचेरी, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, उत्तरप्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, उत्तराखण्ड।
वाचना एवं शिविर: चारों अनुयोगों की मार्मिक वाचना, धार्मिक शिक्षण एवं अनेक स्थलों पर श्रावक क्रिया शिविर।
तीर्थ वंदना: सम्पूर्ण भारत में सभी सिद्धक्षेत्र एवं अतिशय क्षेत्रों की वंदना
श्रेष्ठ निर्माण कार्य: : आपश्री की प्रेरणा से अनेक स्थलों पर जिनालय व संत निलय का निर्माण व नवीनीकरण।
प्रभावनाकारी महामस्तकाभिषेक: सिद्ध व अतिशय क्षेत्र एवं अनेक नगरों में विशालयकाय जिनबिम्ब महामस्तकाभिषेक।
महायज्ञ पूजा-विधान : गणिनीश्री के सान्निध्य में शताधिक भव्य महायज्ञ पूजा-विधान का आयोजन
जाप्यानुष्ठान एवं विश्व शांति महायज्ञ: प्रतिवर्ष राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर 'ॐ ह्रीं नमः' मंत्रराज का महानुष्ठान (करोड़ों में जाप)
राष्ट्रीय निबन्ध प्रतियोगिता: धार्मिक संस्कारों को पुष्ट करने हेतु प्रतिवर्ष राष्ट्रीय स्तर पर निबन्ध प्रतियोगिता का आयोजन
करूणा की प्रतिमूर्ति: गणिनीश्री ने मनुष्यों व ऊँट, घोड़ा, कुत्ता आदि अनेक तियंचों को समाधिमरण कराया।
विशेष रुचि: चिंतनपरक लेख, सूक्ति, कविता व मुक्तक सृजन आदि।
ऐसे विशिष्ट व्यक्तित्व को संजोया है- 'संयम भारती' के रूप में वरिष्ठ साहित्यकार 'श्री सुरेश जैन सरल', जबलपुर ने अपनी लेखनी से।
19 वर्ष की तरुण अवस्था में 24 मार्च, 1977 को गुरुवर्य मुनि श्री १०८ दयासागरजी का चरण दर्शन बना आत्म दर्शन, साधु चर्या से अनभिज्ञ होने पर भी कर लिया साधु बनने का दृढ़ संकल्प एवं 26 मार्च, 1977 को आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत स्वीकार कर साकार कर दिया यह संकल्प। मोही परिवारजनों द्वारा दी गई प्रतिकूलताओं में भी अपने संकल्प में दृढ़ माताजीने बी.ए., बी.एड., एम. ए. कर दो वर्ष ध्यापन कार्य किया परन्तु मन में दीक्षा की तीव्र उत्कण्ठा होने से सरकारी अधिकारी से उच्च पदों को भी ठुकरा दिया।
6 वर्ष बाद 1982 में गृहरूपी बादलों की ओट से निकलकर ब्रह्मचारिणी भारती बहन ने गुरु चरण सान्निध्य प्राप्त किया। 3 वर्ष तक विद्यागुरु षष्ठम् पट्टाचार्य श्री १०८ अभिनंदनसागरजी से धार्मिक शिक्षा में पारंगत हो ब्रह्मचारिणी भारती के रूप में बालचन्द्रिका धीरे-धीरे धर्म के पर अग्रसर होने लगी।
27 वर्ष की अल्पवय में 9 मई, 1985 को हाड़ा रानी के बलिदान की भूमि सलूम्बर (राजस्थान) की पावन धरा पर दयासिन्धु गुरुवर्य श्री १०८ दयासागरजी मुनिराज के कर कमलों से दीक्षित होकर मोह-ममता और सांसारिक बादलों की घनी छाया को छोड़कर यह चन्द्रिका पूर्णिमा के पथ की ओर बढ़ चली।
गुरुदेव से 'आर्यिका श्री १०५ सुभूषणमती' नाम पाकर आपने चरितार्थ कर दिखाया कि-
'छोड़ दिए जगत के भूषण, बन गई आप धर्म आभूषण। इसीलिए गुरुवर ने नाम दिया, 'आर्यिका सुभूषण'।।
आर्यिका बनकर आत्मकल्याण के लिए तप-त्याग-संयम के पथ पर अग्रसर होकर, जीवन की नश्वरता को लख 'समयसार' को जीवन का आधार बना लिया एवं आत्मसाधना के पथ पर चलते-चलते भव्यात्माओं को मोक्षमार्ग में लगाकर परकल्याण का पथ भी बुहार लिया। आत्म ऊर्जा को संग्रहित करने हेतु पू. गणिनीश्री ने सम्मेदशिखर आदि पावन सिद्धभूमि व श्रवणबेलगोला आदि क्षेत्रों पर तप-साधना के साथ-साथ देश के 14 प्रान्तों में विहार करते हुए मंदसौर, सेलम, चेन्नई, जयपुर, अहमदाबाद जैसे महानगरों में वर्षायोग करके धर्म का शंखनाद किया। अनेक राजधानियों को अपनी चरण-रज से पावन किया और दूसरी ओर छोटे- छोटे ग्रामों में भी वर्षायोग सम्पन्न कर श्रावकों की धार्मिक चेतना को नया आयाम दिया।
#Subhushanmatiji1957DayaSagarJiMaharaj1954
गणिनी आर्यिका श्री १०५ सुभूषणमती माताजी
Acharya Shri 108 Daya Sagar Ji Maharaj1954
आचार्य श्री १०८ दया सागरजी महाराज Acharya Shri 108 Daya Sagarji Maharaj
Chaturmas Details-
1985- Karavali, Udaipur, Rajasthan
1986- Vijaynagar, Gujarat
1987- Idar, Gujarat
1988- Shravan Belgola, Karnataka
1989- Selam, Tamilnadu
1990- Munigiri Tirth, Karendy, Tamilnadu
1991- Chennai
1992, 1993, 1994- Shravan Belgola, Karnataka
1995- Kalaghatagi, Hubli, Dharwad
1996- Gokak, Karnataka
1997- Shamanewadi, Belgaum, Karnataka
1998- Shirguppi, Karnataka
1999- Ichalkaranji, Maharashtra
2000- Shantigiri, Kothali, Karnataka
2001- Shri Sammed Shikharji
2002, 2003- Khatauli, Muzaffarnagar, Uttar Pradesh
2004– Sardhana, Meerut, Uttar Pradesh
2005- Khatauli, Muzaffarnagar, Uttar Pradesh
2006- Muzaffarnagar, Uttar Pradesh
2007- Salumbar, Rajasthan
2008- Idar, Gujarat
2009- Salumbar, Rajasthan
2010- Mandsaur, Madhya Pradesh
2011- Manasarovar, Jaipur
2012- Kirtinagar, Jaipur
2013- Jauhar Baug, Jaipur
2014- Partapur, Rajasthan
2015- Usmanpura, Ahmedabad
2016- Shri Mangi Tungi, Maharashtra
2017- Kopargaon, Maharashtra
2018- Mandsaur, Madhya Pradesh
2019- Sawala, Yavatmal, Maharashtra
2020- Idar, Gujarat
2021- Vijaynagar, Gujarat
2022- Usmanpura, Ahmedabad
2023- Shahpur, Ahmedabad
DayaSagarJiMaharaj1954NemiSagarJi1907
Aryika Shri 105 Subhushanmati Mataji took Initiation from Acharya Shri 108 Daya Sagarji Maharaj.
Former Name: Kumari Bharti Jain
Date of Birth: 10.07.1957, Ashada Shukla Chaturdashi
Place of Birth: Gotegaon (Sridham), Narsinghpur (M.P.)
Father's Name: Shri Bhagwandas Jain (Netaji)
Mother's Name: Smt. Shanti Jain
Caste: Parvar (Gotra - Madel)
Siblings: Mr. Santosh Kumarji, Mr. Vinod Kumarji, Mr. Arvind Kumarji, Mr. Rajendra Kumarji, Mr. Deepak Kumarji (Present Saptam Pattadhish Charitra Shiromani Acharya Shri Anekantsagarji Muniraj)
Sister: Smt. Kanta Jain
Education: B. A., B. Ed., M.A. (2 years teaching work)
Detachment from the world: From reading social stories and novels
Vairagya Uday: Shramana Shiromani Shri Dayasagar Ji just by seeing the feet of Gurudev 24-03-1977
Brahmacharya Vrat Date: 26-03-1977
Brahmacharya Vrat Place: Gotegaon (Sridham)
Brahmacharya Vrat Guru: Samadhistha Shraman Shiromani 108 Shri Dayasagarji Gurudev
On the path of abstinence: Vrat Pratima - 6th May 1977, Seventh Pratima - 17-03-1983 from Siddhavarkoot Muni Shri 108 Dayasagar Ji Gurudev
Sangh Pravesh: Bhadrapada Shu. Ashtami, 26-08-1982 Chhindwara (M.P.)
Religious Teachings: Bharat Gaurav Samadhi Samrat Shastam Pattadhish Acharya Gurudev Shri Abhinandansagarji's Mukharvind of the four anuyogas
Aryika Diksha Date: 09-05-1985
Aryika Diksha Place: Hadarani's Sacrifice Land Salumber, Udaipur (Raj.)
Diksha Inspiration Source: Shastham Pattadhish Bharat Gaurav Samadhi Samrat Acharya Bhagwan Shri 108 Abhinandansagarji Gurudev
Aryika Diksha Guru: Samadhistha Sadhu Parmeshthi Shraman Shiromani Shri 108 Dayasagarji Gurudev
Prodigious talent: Discourse in prison, inspirational poignant address to students in school-college
Ganini Padarohan and Vatsalanidhi title: Chaitra Krushn Ekam, 02-03-2018, Rishabhdevpuram, Mangitungi Siddhakshetra Ganini Pramukh Aryika Shiromani Shri Gyanmati Mataji's feet.
Unique Guru Bhakti: Falgun Kr. Dwadashi (03-03-2019), Banswara, Ch. On the auspicious occasion of Prathamacharya Shrishantisagarji' Diksha Shatabdi and Shrutguru Sixth Pattacharya Shri Abhinandansagarji' Diksha Ardhshatabdi Mahotsav, Acharya Bhagwan Shri Abhinandansagarji's unique Mahapujan was mentioned in "High Range Book of World Record" & "India Book of Record".
Chetan Kruti: Aryika Suadymati Mataji, Aryika Anshbharti Mataji, Aryika Dakshbharti Mataji, Aryika Arshbharti Mataji
Text presentation: Shri Jinarchana, Jinabhakti Dhara, Panchamrit Abhishek, Stotra Bharti, Antaryatra, Municharya, Bhaktamar Stotra, Ten Mukta of Dharma, Bodhigeet, Jinendra Panchamrit Abhishek, Hey! Man, Sun Re Man!, Mere Yugal Nayan and Guru Archana etc.
Languages: Tamil, Kannada, Marathi, Hindi, Sanskrit, English, Rajasthani, Gujarati, Bundeli
other motivational and influencing points
Vihar Circle: Tamil Nadu Pondicherry, Karnataka, Maharashtra, Gujarat, Rajasthan, Madhya Pradesh, Chhattisgarh, Bihar, Jharkhand, Uttar Pradesh, Haryana, Delhi, Uttarakhand.
Readings and Camps: Touching readings of the four Anuyogas, religious teachings and Shravak Kriya Camps at many places.
Tirtha Vandana: Worship of all Siddha Kshetras and Atishya Kshetras all over India
Panchkalyanak and Vedi Pratishta: With the inspiration of Aapashree, construction and renovation of Jinalaya and Sant Nilaya at many places.
Effective Mahamastakabhishek: Siddha and immense area and in many cities giant image Mahamastakabhishek.
Mahayagya Puja-Vidhan: Centennial grand Mahayagya Puja-Vidhan organized in the presence of Ganinishri
Japyanushthan and World Peace Mahayagya: Every year at the national-international level, the great ceremony of 'Om Hree Namah' Mantraraj (chanting in crores)
National Essay Competition: Essay competition is organized every year at the national level to reinforce religious values.
Statue of compassion: Ganinishree did Samadhi of Peoples and many other animals like camel, horse, dog etc.
Special Interests: Contemplative articles, proverbs, poetry and free writing etc.
Such a special personality has been cherished - in the form of 'Sayama Bharti' by senior litterateur 'Shri Suresh Jain Saral', Jabalpur through his pen.
At the young age of 19 years, on March 24, 1977, Guruvarya Muni Shri 108 Dayasagarji's Charan Darshan became Atma-darshan, despite being ignorant of Sadhu charya, determined to become a Sadhu, and on March 26, 1977, by accepting lifelong celibacy vow, it came true. Gave this resolution. Mataji education B.A., B.Ed., M.A., determined in her resolution even in the adversities given by Mohi family members. He did teaching work for two years, but due to intense desire for initiation in his mind, he rejected even the higher posts from the government officials.
After 6 years in 1982 Brahmacharini Bharti Behan attained Guru Charan Sannidhya after coming out from the clouds of home. For 3 years, Balachandrika in the form of Brahmacharini Bharti, who was well versed in religious education from Vidyaguru Shastham Pattacharya Shri 108 Abhinandansagarji, slowly started moving towards religion.
On May 9, 1985, at the young age of 27, on the holy land of Salumber (Rajasthan), the land of Hada Rani's sacrifice, this Chandrika Purnima, having been initiated by the lotuses of Dayasindhu Guruvarya Shri 108 Dayasagarji Muniraj, leaving the thick shadow of worldly clouds and affection Moved towards the path of religion.
By getting the name 'Aryika Shri 105 Subhushanmati' from Gurudev, she proved that-
'छोड़ दिए जगत के भूषण, बन गई आप धर्म आभूषण। इसीलिए गुरुवर ने नाम दिया, 'आर्यिका सुभूषण'।।
By becoming Aryika, moving on the path of austerity-renunciation-restraint for self-welfare, made the impermanence of life the basis of life and while walking on the path of self-realization, by putting great souls in the path of salvation, also showered the path of welfare. To store self-energy Ganinishri, along with performing penance on the sacred areas like Sammed Shikhar, Siddhbhoomi and Shravanabelagola etc., while traveling in 14 provinces of the country, performed Varsha Yoga in metropolitan cities like Mandsaur, Salem, Chennai, Jaipur, Ahmedabad, and did conch shell of religion. He sanctified many capitals with his feet and on the other hand gave a new dimension to the religious consciousness of the Shravakas by performing Varsha Yoga in small villages as well.
Ganini Aryika Shri 105 Subhushanmati Mataji
आचार्य श्री १०८ दया सागरजी महाराज Acharya Shri 108 Daya Sagarji Maharaj
आचार्य श्री १०८ दया सागरजी महाराज Acharya Shri 108 Daya Sagarji Maharaj
Acharya Shri 108 Daya Sagar Ji Maharaj1954
Chaturmas Details-
1985- Karavali, Udaipur, Rajasthan
1986- Vijaynagar, Gujarat
1987- Idar, Gujarat
1988- Shravan Belgola, Karnataka
1989- Selam, Tamilnadu
1990- Munigiri Tirth, Karendy, Tamilnadu
1991- Chennai
1992, 1993, 1994- Shravan Belgola, Karnataka
1995- Kalaghatagi, Hubli, Dharwad
1996- Gokak, Karnataka
1997- Shamanewadi, Belgaum, Karnataka
1998- Shirguppi, Karnataka
1999- Ichalkaranji, Maharashtra
2000- Shantigiri, Kothali, Karnataka
2001- Shri Sammed Shikharji
2002, 2003- Khatauli, Muzaffarnagar, Uttar Pradesh
2004– Sardhana, Meerut, Uttar Pradesh
2005- Khatauli, Muzaffarnagar, Uttar Pradesh
2006- Muzaffarnagar, Uttar Pradesh
2007- Salumbar, Rajasthan
2008- Idar, Gujarat
2009- Salumbar, Rajasthan
2010- Mandsaur, Madhya Pradesh
2011- Manasarovar, Jaipur
2012- Kirtinagar, Jaipur
2013- Jauhar Baug, Jaipur
2014- Partapur, Rajasthan
2015- Usmanpura, Ahmedabad
2016- Shri Mangi Tungi, Maharashtra
2017- Kopargaon, Maharashtra
2018- Mandsaur, Madhya Pradesh
2019- Sawala, Yavatmal, Maharashtra
2020- Idar, Gujarat
2021- Vijaynagar, Gujarat
2022- Usmanpura, Ahmedabad
2023- Shahpur, Ahmedabad
Ganini Aryika Shri 105 Subhushanmati Mataji
#Subhushanmatiji1957DayaSagarJiMaharaj1954
DayaSagarJiMaharaj1954NemiSagarJi1907
DayaSagarJiMaharaj1954NemiSagarJi1907
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