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#NemiSagarJiMaharaj(Tada)YogendraTilakShantiJi
Muni Shri 108 Nemi Sagar Ji Maharaj was born in village Tada,Damoh,Madhya Pradesh.His name was Hariprasad Jain before diksha.He received the initiation from Acharya Shri Shanti Sagar Ji Maharaj Chhani.
सरल स्वभाव, शान्तचित्त, शरीर से कृश किन्तु तपस्तेज से दीप्त, हृदय के सच्चे, परिस्थितियों के अनुकूल चलने वाले, प्रयोजन वश बोलने वाले, प्रतिष्ठा, वैद्यक, ज्योतिष, गणित, मंत्र, तंत्रयंत्र, तथा धर्मशास्त्र के ज्ञाता, मधुर किन्तु ओजस्वी वाणी में बोलने वाले वक्ता, पण्डितों के पण्डित, सफल साधक, जीव मात्र के प्रति अहिंसा का भाव रखनेवाले, न किसी के अपने न पराये, न सपक्षी न विपक्षी, स्वाभिमान, निर्भीकता से धर्म साधन करनेवाले, विलासों एवं भोगों से अछूते, इन्द्रियों का दमन करने वाले, कषायों का निग्रह - करने वाले, समाज के गौरव एवं देश के अनमोल रत्न, तपोनिधि, अध्यात्म योगी श्री 108 मुनि नेमिसागर जी का जन्म मंगलमय एवं परम पवित्र श्री यशोदा देवी की पुनीत कुक्षि से पिता श्री मुन्नालाल जी के पुत्र के रूप में विक्रम संवत् 1960 के फाल्गुन शुक्ला द्वादशी रविवार को पठा (टड़ा) ग्राम में हुआ।
आप बाल्यकाल से ही बाबा गोकुलप्रसाद जी, पूज्य गणेशप्रसाद वर्णी एवं पूज्य मोतीलाल जी वर्णी के सान्निध्य में रहकर उक्त गुरुजनों की कृपा द्वारा संवत् 1978 में पूज्य पिताजी का स्वर्गारोहण हो जाने के कारण घर पर ही रहकर अनेकों विद्याओं के अथाह वारिधि बने।
आपके बचपन का नाम हरिप्रसाद जैन था। आपने विवाह का परित्याग कर ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया। 8 वर्ष की आयु में पाक्षिक व्रतों तथा 15 वर्ष की आयु में नैष्ठिक श्रावक के रूप में दूसरी प्रतिमा ग्रहण की। सन् 1956 में इन्दौर आए। विक्रम संवत् 1996 में माघ कृष्णा प्रतिपदा गुरुवार मु. पटना, पोस्ट रहली, जिला सागर के जलयात्रा महोत्सव परी 108 मुनि पदमसागरजी द्वारा सप्तम प्रतिमा ग्रहण की तथा आपका नाम रखा गया श्री विद्यासागर ।
फाल्गुन शुक्ला 3 सोमवार संवत् 2016 में म.प्र. के देवास जिलान्तर्गत लुहाखा नामक ग्राम में श्री पंचकल्याणक महोत्सव पर दीक्षा कल्याणक के समय श्री 108 मुनि आचार्य योगेन्द्रतिलक शान्तिसागर जी महाराज द्वारा - आपने 11वीं प्रतिमा धारण की और नाम पाया श्री 105 क्षुल्लक नेमिसागर जी। विक्रम संवत् 2040 की शुभ मिति मार्गशीर्ष शुक्ला 15 को आचार्य योगेन्द्रतिलक शान्तिसागर जी महाराज द्वारा मुनिदीक्षा ग्रहण की। - आपने लगभग 16 वर्ष की अवस्था से लिखना आरम्भ किया। आपने अपनी मनोवृत्तियों को शब्दों के माध्यम से व्यक्त किया। आपका गद्य एवं पद्य दोनों पर समान रूप से अधिकार रहा।
आपकी कृतियाँ निम्नलिखित हैं :
1. श्रावक धर्म दर्पण प्रकाशित
2.हरि विलास प्रकाशित
3. प्रतिष्ठासार-संग्रह शास्त्राकार सजिल्द यह ग्रन्थ लगभग 2000 पृष्ठों का होगा
4. अध्यात्म सार
5. कविता संग्रह सार अप्रकाशित (स्वरचित)
सामाजिक क्षेत्र में आपने जो कार्य किए उनका विवरण सिर्फ इतना कह देने में ही पूर्णरूपेण दृष्टिगोचर होने लगता है कि क्षेत्र पपौरा, अहारजी एवं अनेक संस्थाओं के आप अधिष्ठाता, व्यवस्थापक एवं संचालक हैं। इन क्षेत्रों एवं संस्थाओं में आपने जितने भी कार्य किए हैं, वे अवगुण्ठन में नहीं हैं।
आपके संकल्प इतने अडिग हैं कि विरोधी तत्वों के अनेक विग्रहों, महादुर्मोच्च, भयानक संकटों, शारीरिक आधि-व्याधियाँ तथा लोगों की दुर्जनतापूर्ण मनोवृत्तियों से भी आप टस से मस नहीं हुए। अनेकों तरह की आपदाओं ने आपको कर्तव्य पथ से डिगाना चाहा पर निर्भीक स्वात्म बल से आपको सदैव सफलता मिली। गेंदाबाई था। माता-पिता ने आपका नाम हजारीलाल रखा। झालरापाटन में आपके चाचा रहते थे। उन्होंने आपका पालन-पोषण कर गोद ले लिया। उस जमाने में शिक्षा का प्रचार कम था अतः आपकी शिक्षा प्रारम्भिक हिन्दी ज्ञान तक सीमित रही। गृहस्थावस्था में कुछ दिन रहने के बाद संवत् 1981 को रात्रि में एक स्वप्न के कारण संसार स्वरूप से विरक्ति हो गयी। बस, सिर्फ गुरु की तलाश थी।
विक्रम संवत् 1981 आसौज शुक्ल 6 का दिन भाग्योदय का दिन था। इन्दौर में पूज्य आचार्य श्री शान्तिसागर महाराज (छाणी) के पास आपने ऐलक दीक्षा ग्रहण की। आचार्य श्री ने आपको दीक्षा देकर ‘सूर्यसागर' नाम दिया और आपने सूर्य की तरह चमक कर जग का अज्ञानान्धकार दूर किया। मंगसिर कृष्ण 11 को गुरु से हाटपीपल्या में उसी वर्ष मुनि पद की भी दीक्षा ग्रहण की। आपकी विद्वत्ता से प्रभावित होकर समाज ने आपको आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया। आप निर्भीक वक्ता, जिनधर्म की आचार-परम्परा का प्रचार करने वाले, अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी आचार्य थे। जिनके उपकारों से समाज कृतकृत्य है। पूज्य मुनि श्री गणेशकीर्तिजी महाराज आपको अपने गुरुतुल्य , मानकर निरंतर मार्गदर्शन प्राप्त करते रहें हैं, जग-उद्धारक ऐसे आचार्य श्री के चरणों में शत्-शत् वंदन। आचार्य श्री का विस्तृत परिचय इस स्मारिका के अनेक लेखों में दृष्टव्य है।
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मुनि श्री १०८ नेमी सागरजी महाराज
Acharya Shri 108 Yogendra Tilak Shanti Ji Maharaj
Sanjul Jain created wiki page for Maharaj ji on 04-June-2021
Muni Shri 108 Nemi Sagar Ji Maharaj was born in village Tada,Damoh,Madhya Pradesh.His name was Hariprasad Jain before diksha.He received the initiation from Acharya Shri Shanti Sagar Ji Maharaj Chhani.
Muni Shri 108 Nemi Sagarji Maharaj (Tada)
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