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#Nisprahasagarji1944VardhamanSagarJiMaharaj1950
Muni Shri 108 Nispraha Sagarji Maharaj was born on 15 July 1944 in Village-Nagar, Dist-Tonk, Rajasthan. His name was Premchand Papdiwal before Diksha. He received initiation from Acharya Shri 108 Vardhaman Sagar Ji Maharaj.
किशनगढ गौरव मुनि निस्पृह सागर महाराज का गृहस्थ जीवन का नाम प्रेमचंद पापडीवाल है तथा इनका जन्म 15 जुलाई 1944 को ग्राम नगर जिला टोंक में हुआ। आपके पिता नाथूलाल एवं माता मनमौजी देवी पापडीवाल बडे ही धार्मिक प्रवृति एवं देव शास्त्र गुरू में गहरी आस्था रखने वाले थे। उन्होने ही धार्मिक व सामाजिक शिक्षा प्रदान की। आप बचपन से ही धार्मिक विचारों को अंगीकार करते हुए कक्षा 12 तक लौकिक शिक्षा मदनगंज में ग्रहण की थी। आपके बड़े भ्राता शिखरचंद पापडीवाल ने भी आचार्य वर्धमान सागर महाराज से दीक्षा लेकर मुनि भविक सागर बनकर संयम के मार्ग पर चलकर समाधि पूर्वक देवलोक गमन हुए। आपने 50 वर्ष पूर्व स्तानक परीक्षा उतीर्ण करने से पहले ही व्यावसायिक काम शुरू कर दिया था। अपनी मेहनत, लगन व ईमानदारी से व्यवसाय को धीरे धीरे आगे बढाते हुए आपनी साख व प्रतिष्ठा बनाए रखी। इसमें आपके दोनों सुयोग्य पुत्रों संजय कुमार, पुनीत कुमार पापडीवाल का सहयोग रहा। धार्मिक कार्यों में आपकी रूचि होने के कारण समाज के विभिन्न दायित्वों को सफलता पूर्वक निभाया। जब जब किशनगढ़ में मुनि संघ का प्रवेश हुआ तो आप दिन रात सेवा में लग जाते। आपका विशेष लगाव आचार्य धर्मसागर महाराज के संघ से था। विपरीत परिस्थितियों में भी आप चौका एवं आहार व्यवस्था पीछे नहीं हटते थे तथा गृहस्थ अवस्था में अपने दायित्वों का पूर्वण निर्वाह किया। अपका विवाह 26 मई 1962 को फूलेरा निवासी फूलचंद की पुत्री गुणमाला देवी के साथ हुआ। आपके गृहस्थ जीवन में दो पुत्रो संजय, पुनीत के अलावा पुत्रियां स्रेहलता एवं अल्का है। बहिन कमला देवी एवं रतनी देवी है। 4 अगस्त 1998 में धर्मपत्नी के निधन के बाद आपने अपना पूरा ध्यान आत्मिक उत्थान की ओर मोड दिया। 1985 में शुद्रजल का त्याग, 2006 में पंचम प्रतिमा एवं 2008 में सप्तह प्रतिमा धारण की। साधु संतो की सेवा सुश्रुषा उन्हे आहार देना, पूजा पाठ, दान आदि धार्मिक गतिविधियों में संलग्न हो गए। वैराग्य की ओर बढते हुए श्रावण शुक्ल दशमी, 31 जुलाई 2009 को प्रसिद्ध जैन सिद्ध क्षेत्र चम्पापुर, जिला भागलपुर, बिहार में वात्सल्य वारिधि आचार्य वर्धमान सागर महाराज से अप्रत्याशित सीधे जैनेश्वरी मुनि दीक्षा लेकर मुनि निस्पृह सागर महाराज बनकर किशनगढ के गौरव को बढाया। मुनिश्री त्याग, वैराग्य व निस्पृही जीवन का अद्धितीय उदाहरण देते हुए दीक्षित होने के बाद आप निरंतर आत्म साधना में लीन है तथा आचार्य वर्धमान सागर महाराज के संघ में रहते हुए मुनि मार्ग पर अग्रसर है। मुनि निस्पृह सागर महाराज ने यम सल्लेखना धारण कर (चारों प्रकार के आहार का त्याग कर) की समाधि पूर्वक देवलोक गमन 19 फरवरी 2019 को धर्मस्थल कर्नाटका सुबह 7.05 बजे हुआ।
Elder Brother -Shikharchand Jain After Diksha-Muni Shri 108 Bhavik Sagar Ji Maharaj
#Nisprahasagarji1944VardhamanSagarJiMaharaj1950
मुनि श्री १०८ निस्पर्ह सागरजी महाराज
Acharya Shri 108 Vardhaman Sagar Ji Maharaj 1950 (Vatsalya Viridhi)
आचार्य श्री १०८ वर्धमान सागरजी महाराज १९५० (वात्सल्य विरुद्ध) Acharya Shri 108 Vardhaman Sagarji Maharaj 1950 (Vatsalya Viridhi)
VardhamansagarjiDharmsagarji
Muni Shri 108 Nispraha Sagarji Maharaj was born on 15 July 1944 in Village-Nagar, Dist-Tonk, Rajasthan. His name was Premchand Papdiwal before Diksha. He received initiation from Acharya Shri 108 Vardhaman Sagar Ji Maharaj.
Samadhistha Muni Shri 108 Nispraha Sagarji Maharaj
Former Name: Shri PremChandji Papdiwal
Date of Birth: 15 July 1944
Place of Birth: Nagar, District Tonk, Rajasthan
Father's Name: Shri Nathu Lalji
Mother's Name: Smt. Manmoji Ji
Cosmic Education: 12th
Ex-Wife Name: Smt. Gunamala Ji
Brother: Shri Shikhar Chand Ji- Muni Shri 108 Bhavik Sagar Ji
Sister: Mrs. Kamala Devi, Mrs. Ratan Devi
Son: Mr. Sanjay, Mr. Puneet
Daughters: Mrs. Sneh Lata, Mrs. Alka
Tyagi in the family: Elder brother Muni Shri 108 Bhavik Sagarji
Pratima Vrat: 5 Pratima in 2006, 7 Pratima in 2008
Pratima Vrat Guru: Acharya Shri 108 Vardhaman Sagarji
Niyam of Pure in 1985
Muni Diksha: 31 July 2009 Shravan Shukla 10
Muni Diksha Guru: Pancham Pattadheesh Acharya Shri 108 Vardhamana Sagarji Maharaj
Muni Initiation Place: Siddha Kshetra Champapur
Samadhi: On February 19, 2019, in the presence of Acharya Shri Vardhamana Sagar Ji Sangh, the samadhi took place at 7 in the morning at Dharmasthala Karnataka.
Elder Brother -Shikharchand Jain After Diksha-Muni Shri 108 Bhavik Sagar Ji Maharaj
Muni Shri 108 Nispraha Sagarji Maharaj
आचार्य श्री १०८ वर्धमान सागरजी महाराज १९५० (वात्सल्य विरुद्ध) Acharya Shri 108 Vardhaman Sagarji Maharaj 1950 (Vatsalya Viridhi)
आचार्य श्री १०८ वर्धमान सागरजी महाराज १९५० (वात्सल्य विरुद्ध) Acharya Shri 108 Vardhaman Sagarji Maharaj 1950 (Vatsalya Viridhi)
Acharya Shri 108 Vardhaman Sagar Ji Maharaj 1950 (Vatsalya Viridhi)
Muni Shri 108 Nispraha Sagarji Maharaj
#Nisprahasagarji1944VardhamanSagarJiMaharaj1950
VardhamansagarjiDharmsagarji
#Nisprahasagarji1944VardhamanSagarJiMaharaj1950
Nisprahasagarji1944VardhamanSagarJiMaharaj1950
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