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#OmSagarJiMaharaj(Parsola)VardhmanSagarJi
Param Pujya Muni Shri 108 Om Sagarji was born in Dharmanagari Parsola. His household name was Mulchand ji Ghatliya. His father's name was Navalchandji and mother's name was Amrut bai. Mulchand ji had two brothers and three sisters. He took secular education till the fifth standard.
The nature of Mulchand ji, who had a strong faith in religion since childhood, was simple and full of simplicity. One of his qualities was to have respect for others.
Mulchandji did a big business of clothes. Mulchandji has five sons and four daughters.
परम पूज्य मुनि श्री ओम सागरजी का जन्म धर्मनगरी पारसोला में हुआ | उनके गृहस्थ अवस्था का नाम मुलचंद जी घाटलिया था | उनके पिताजी का नाम नवलचंदजी एवं माता का नाम अमृतबाई था | मुलचंद जी के दो भाई एवं तीन बहने थी | उन्होने लौकिक शिक्षा पाँचवी तक ग्रहण की |
बचपन से ही धर्म के प्रति दृढ श्रद्धान रखनेवाले मुलचंद जी का स्वभाव सरल एवं सादगी भरा था | दुसरो के प्रति आदर भाव रखना उनके गुणो में से एक था |
मुलचंदजी ने बडे होकार कपडो का व्यापार किया | मुलचंदजी के पाँच पुत्र एवं चार पुत्रिया है |
अपने प्रत्येक बच्चो को धर्म के संस्कार देने वाले मुलचंदजी घर में अनेक प्रकार के व्रत एवं नियमो का पालन करते थे | सन १९८२ पारसोला में आचार्य श्री संमति सागरजी आगमन हुआ एवं मुलचंदजी ने आचार्य श्री के पास सप्तम प्रतिमा व्रत एवं आजीवन ब्रम्हचार्य व्रत ग्रहण किया |
सप्तम प्रतिमा धारी मुलचंदजी ने व्रत ग्रहण करने के पश्चात अनेक प्रकार के रसो का त्याग कर भोजन करणा एवं उपवास तो मनो उनकी दिनचर्या का एक हिस्सा बन गया था | वह बेला एवं तेला उपवास करते थे | दसलक्षण व्रत आदि अनेक व्रतोंका उन्होने बडी श्रद्धापूर्ण पालन किया |
फिर आया १९९० का वह पावन वर्ष जिन्होने मुलचंदजी का जीवन परिवर्तन कर दिया | सन १९९० में आचार्य श्री वर्धमान सागरजी का पारसोला आगमन हुआ एवं पारसोला में ही वर्धमान सागरजी को आचार्य पद प्राप्त हुआ | आचार्य श्री वर्धमान सागरजी मुलचंदजी के जीवन में तो मानो एक सूर्य की किरण बन कर आए जिन्होने अपनी दिव्य उर्जा से मुलचंदजी के जीवन को प्रकाशित कर दिया | फिर आयी ४ अक्टूबर १९९० की पावन बेला जब आचार्य श्री वर्धमान सागरजी के कर - कमलो से मुलचंदजी बने ओमसागारजी | उन्होने आचार्य श्री के प्रथम शिष्य होने का सौभाग्य प्राप्त किया | सिद्ध क्षेत्र तारंगा जी में चातुर्मास के दौरान मुनि श्री सोलहकारण व्रत के ३२ उपवास किये एवं पारणे के दो दिन पश्चात १९ सितंबर १९९२ मे उनकी समाधी हुई |
#OmSagarJiMaharaj(Parsola)VardhmanSagarJi
मुनि श्री १०८ ओम सागरजी महाराज
Acharya Shri 108 Vardhaman Sagar Ji Maharaj 1950 (Vatsalya Viridhi)
आचार्य श्री १०८ वर्धमान सागरजी महाराज १९५० (वात्सल्य विरुद्ध) Acharya Shri 108 Vardhaman Sagarji Maharaj 1950 (Vatsalya Viridhi)
VardhamansagarjiDharmsagarji
Param Pujya Muni Shri 108 Om Sagarji was born in Dharmanagari Parsola. His household name was Mulchand ji Ghatliya. His father's name was Navalchandji and mother's name was Amrut bai. Mulchand ji had two brothers and three sisters. He took secular education till the fifth standard.
The nature of Mulchand ji, who had a strong faith in religion since childhood, was simple and full of simplicity. One of his qualities was to have respect for others.
Mulchandji did a big business of clothes. Mulchandji has five sons and four daughters.
Muni Shri 108 Om Sagarji Maharaj
आचार्य श्री १०८ वर्धमान सागरजी महाराज १९५० (वात्सल्य विरुद्ध) Acharya Shri 108 Vardhaman Sagarji Maharaj 1950 (Vatsalya Viridhi)
आचार्य श्री १०८ वर्धमान सागरजी महाराज १९५० (वात्सल्य विरुद्ध) Acharya Shri 108 Vardhaman Sagarji Maharaj 1950 (Vatsalya Viridhi)
Acharya Shri 108 Vardhaman Sagar Ji Maharaj 1950 (Vatsalya Viridhi)
Muni Shri 108 Om Sagar Ji Maharaj (Parsola)
#OmSagarJiMaharaj(Parsola)VardhmanSagarJi
VardhamansagarjiDharmsagarji
#OmSagarJiMaharaj(Parsola)VardhmanSagarJi
OmSagarJiMaharaj(Parsola)VardhmanSagarJi
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