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#RaviSagarJiMaharajDharmSagarJi
Muni Shri 108 Ravi Sagar Ji Maharaj received the initiation from Acharya Shri 108 Dharm Sagar Ji Maharaj.
खाते-पीते घर के हजारीलाल जैन को क्या सूझी कि छोटेपन में साधुओं की जमात में शामिल होने को छटपटा उठे । व्यवहारी जैसी छोटी सी बस्तियों में साधुओं का आना-जाना कभी हुआ हो यह बात तो गांव के अतिवृद्ध को भी ठीक से याद नहीं, सो हजारीलालजी साधुसेवा की अपनी उमंगें दूरदराज के शहरों में विराजमान साधुओं की सेवा करके ही पूरी कर पाते थे। साधुसेवा और स्वाध्याय की मेहनत कुछ ऐसा रंग लायी कि वैराग्य की निरझरणी बहने लगी । श्रावक लक्ष्मीचन्द जैन व चतुरी बाई की यह प्यारी संतान मंगसिर कृ० १३ सन् १९७६ जबलपुर में विराजमान आ० श्री सन्मतिसागरजी म० के चरणों में
क्षुल्लक दीक्षा की याचना करने उपस्थित हुई। श्रावकवर्ग के समक्ष दीक्षा विधि पूरी हुई और क्षु० रविसागरजी महाराज की जय हो के नारों से आपके इस अनुकरणीय मार्ग की सराहना की । आचार्य श्री धर्मसागरजी से साबला (राजस्थान) में मुनि दीक्षा ली । सम्प्रति गुरुचरणों में वैयाव्रत्तिकरते हुए शास्त्रों का स्वाध्याय कर रहे हैं ।
Book written by Pandit Dharmchandra Ji Shashtri -Digambar Jain Sadhu
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Book written by Pandit Dharmchandra Ji Shashtri -Digambar Jain Sadhu
मुनि श्री १०८ रवि सागरजी महाराज
आचार्य श्री १०८ धर्म सागरजी महाराज १९१४ Acharya Shri 108 Dharm Sagarji Maharaj 1914
DharmSagarJiMaharaj1914
Muni Shri 108 Ravi Sagar Ji Maharaj received the initiation from Acharya Shri 108 Dharm Sagar Ji Maharaj.
Book written by Pandit Dharmchandra Ji Shashtri -Digambar Jain Sadhu
Muni Shri 108 Ravi Sagarji Maharaj
आचार्य श्री १०८ धर्म सागरजी महाराज १९१४ Acharya Shri 108 Dharm Sagarji Maharaj 1914
आचार्य श्री १०८ धर्म सागरजी महाराज १९१४ Acharya Shri 108 Dharm Sagarji Maharaj 1914
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