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#SubuddhiSagarJiMaharaj(Pratapgarh)ShivSagarJi
Muni Shri 108 Subuddhi Sagar ji Maharaj was born in Pratap,Rajasthan.His name was Motilal before diksha.He received the initiation from Acharya Shri 108 Shiv Sagar Ji Maharaj.
परम पूज्य १०८ मुनिश्री सुबुद्धिसागरजी महाराज का जन्म राजस्थान की पवित्र भूमि प्रतापगढ़ नगर के निवासी संघ शिरोमणि गुरुभक्त सेठ श्री पूनमचन्दजी घासीलालजी विशा हूमड़ की धर्मपत्नी श्री नानीबाई की कुक्षि से संवत् 1957 में हुआ। जन्मनाम श्री मोतीलालजी रक्खा गया आपके तीन बड़े भ्राता थे सबसे बड़े अमृतलालजी जो कि १८ वर्ष की उम्र में ही दिवंगत हो चुके तथा सेठ सा. गेंदमलजी एवं दाड़मचन्दजी व बहन श्री रूपाबाईजी थे सबसे छोटे मोतीलालजी दूज के चन्द्रमा के समान वृद्धि करते पांच वर्ष के हुवे तभी पिता श्री भारत की महानगरी बम्बई में व्यापार निमित्त सपरिवार चले गये वहां पर क्रम क्रम से व्यापार करते हुये भाग्योदय हुवा सो बम्बई के जौहरी बाजार में आपका नाम प्रसिद्ध जौहरियों में गिना जाने लगा। अरब देशों में जाकर मोतियों की खरीद करने आदि से करोड़ों की सम्पत्ति प्राप्त करली आपका पूरा परिवार धर्मात्मा था। आपके पिता श्री एवं सभी के अंतरंग में एक उत्कृष्ट भावना जाग्रत हुई कि प० पू० चारित्र चक्रवर्ती १०८ आचार्य श्री शांतिसागरजी महाराज के साथ संघ सहित तीर्थराज सम्मेदशिखरजी की यात्रा करना; आचार्य श्री का संघ दक्षिण प्रांत में विराजमान था वहां पहुंचे महाराज श्री से निवेदन किया और विशेष आग्रह करने पर स्वीकृति प्राप्त हो गई। बड़े भाई साहब गेंदमल जी की उम्र करीब पैंतीस वर्ष एवं श्री मोतीलालजी की उम्र २५ वर्ष के करीब थी। पिताजी मौजूद थे सभी परिवार तन मन धन से जुट गया बड़ी तैयारी के साथ, संघ का विहार दक्षिण भारत से कराया और उत्तर भारत के गांव-गांव नगर-नगर में बिहार कराते हुबे चले, अनेक त्यागी एवं आगे अनेक श्रावक श्राविका ये साथ चलते रहे, संघ बढ़ता रहा, सभी भाई स्वयं आचार्य श्री के साथ साथ चलते थे, कमंडल उठाते, साधुओं की खूब वैयावृत्ति करते एवं आहार दान आदि देकर महान हर्ष एवं उदारतापूर्वक करीब एक वर्ष तक अपने मकान पर ताले बन्द रहे पीछे की तरफ देखा ही नहीं । धन्य है ऐसे दाता और पात्र । लाखों का खर्च हुवा पूरा परिवार संघ की चर्या में रत था। साथ ही प्रतापगढ़ के श्री शांतिनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार एवम् पंचकल्याणक प्रतिष्ठा करायी, जब संघ सहित तीर्थराज शिखर जी पहुंचे वहां पर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा कराई और बम्बई खास में कालबादेवी रोड पर स्वयम की बनी हई बिल्डिंग को गिराकर उस स्थान पर श्री पार्श्वनाथ दि० जैन विशाल मन्दिर का निर्माण करवाया जो करोड़ों की लागत से तैयार हुआ और वहां भी पंचकल्याणक हुआ इस प्रकार लाखों करोड़ों का दान देकर इस युग में महान कार्य किया है इसके अलावा भी परम पू० १०८ समाधि सम्राट आचार्य श्री महावीरकीर्तिजी महाराज के संघ में हमेशा जाते रहते और आहार दान आदि देकर समय समय पर पूरी व्यवस्था करते थे।
सं० २०२४ के साल में परम पू० १०८ आचार्य श्री शिवसागर जी महाराज का चातुर्मास उदयपूर ( राज० ) था उस समय आप श्री सेठ मोतीलालजी जौहरी दर्शनार्थ पधारे आचार्य श्री की प्रेरणा मिली तत्काल वैराग्य उमड़ पाया और आचार्यश्री से दीक्षा के लिये निवेदन किया और अच्छा मुहूर्त देखकर बहुत बड़ी धर्म प्रभावना के साथ मिती भाद्रपद शुक्ला १५ के दिन क्षुल्लक दीक्षा प्रदान कर दी आपकी धर्मपत्नि का नाम हलासी बाई था जिनका दीक्षा के चार वर्ष पूर्व ही स्वर्गवास हो गया था आपके पीछे तीन पुत्र पाँच पुत्री थे । बड़े श्री राजमलजी जौहरी, श्री सन्मतिकुमार, श्री अशोककुमार । इसप्रकार करोड़ों की सम्पत्ति एवं पूरा हरा भरा सम्पन्न परिवार भारी वैभव को ठुकराकर साधु बन गये ।
चातुर्मास के बाद संघ का उदयपुर से विहार होकर करीब ६ महीने में सलूम्बर पहुंचा और वहां पर आपने मुनि दीक्षा ग्रहण कर ली और आप मुनि श्री १०८ सुबुद्धि सागरजी के नाम से प्रसिद्ध हुवे और चारित्र शुद्धि आदि और भी अनेक व्रतों को करते हुवे कठिन व्रत उपवास करते रहे हैं इस वक्त आपकी उम्र ८३ वर्ष के करीब है और कई वर्षों से आप परम पू० १०८ अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी मुनि अजितसागरजी के साथ रहकर निरन्तर ध्यान अध्ययन करते हैं गत वर्ष सं० २०३६ के सलूम्बर चार्तुमास में आहार में केवल ५ वस्तु रखकर बाकी सभी प्रकार की बस्तुओं का आजीवन त्याग कर दिया है १. गेहूं, २. चावल, ३. दूध, ४ मट्ठा, ५. केला इस वद्ध अवस्था में इस प्रकार का त्याग करते हुवे चातुर्मास में अभी भी एकातर आहार में उठते हैं। इस प्रकार केबल समाधि का लक्ष बना हुवा है । आपके बड़े भाई श्रीमान सेठ सा० गेंदमलजी ने भी परम पू०.१०८ आचार्य श्री विमलसागरजी महाराज से नीरा (महाराष्ट्र) चार्तुमास के समय क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण कर ली उसके बाद कुछ समय गजपंथा क्षेत्र पर रहकर धर्म साधना करते थे
और जब अंतिम समय निकट आया उनके बम्बई आने के भाव हुवे और अपने निजी बनाये १००८ पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर कालबादेवी रोड़ पर आप पधारे । एक दिन सुबह उनकी तबियत कुछ विशेष खराब हुई और उसी समय अकस्मात् जीवन में संचित किये हए महान उदय से परम पू० १०८ आचार्य श्री सुमतिसागरजी का संघ सहित दर्शनार्थ वहीं आना हुआ। उनसे उसी वक्त आपने मुनि दीक्षा ग्रहण कर ली और एक घन्टे बाद ही महामंत्र णमोकार मंत्र का जाय करते हुवे इस पर्याय को छोड़कर स्वर्गवासी बन गये ।वास्तब में आपने ब आपके पूरे परिवार ने धर्म क्षेत्र में जो कार्य किया है अनुपम है साथ ही अनुकरणीय भी है।
Book written by Pandit Dharmchandra Ji Shashtri -Digambar Jain Sadhu
#SubuddhiSagarJiMaharaj(Pratapgarh)ShivSagarJi
Book written by Pandit Dharmchandra Ji Shashtri -Digambar Jain Sadhu
मुनि श्री १०८ सुबुद्धि सागरजी महाराज
आचार्य श्री १०८ शिव सागर जी महाराज १९०१ Aacharya Shri 108 Shiv Sagar Ji Maharaj 1901
ShivSagarJiMaharaj1901VeersagarJi
Muni Shri 108 Subuddhi Sagar ji Maharaj was born in Pratap,Rajasthan.His name was Motilal before diksha.He received the initiation from Acharya Shri 108 Shiv Sagar Ji Maharaj.
Book written by Pandit Dharmchandra Ji Shashtri -Digambar Jain Sadhu
Muni Shri 108 Subuddhi Sagarji Maharaj (Pratapgarh)
आचार्य श्री १०८ शिव सागर जी महाराज १९०१ Aacharya Shri 108 Shiv Sagar Ji Maharaj 1901
आचार्य श्री १०८ शिव सागर जी महाराज १९०१ Aacharya Shri 108 Shiv Sagar Ji Maharaj 1901
#SubuddhiSagarJiMaharaj(Pratapgarh)ShivSagarJi
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SubuddhiSagarJiMaharaj(Pratapgarh)ShivSagarJi
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